Saturday, February 20, 2016

वर्ल्ड में अब होगा बासमती का जलवा

बासमती अपनी खुशबू का जलवा निर्विवाद रूप से पूरी दुनिया में बिखेरेगा। बासमती की अंतरराष्ट्रीय पहचान पर मुहर लग गई है। घरेलू स्तर पर प्रमुख रूप से इसका लाभ गंगा के मैदानी क्षेत्र में पैदा होने वाले बासमती को मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल की उत्कृष्टता बनी रहेगी, जिससे अच्छी कीमत मिलेगी। दुनिया का कोई देश अब बासमती के नाम से अपना चावल बाजार में नहीं बेच सकेगा।
\चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड ने वाणिज्य मंत्रालय के कृषि व प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात प्राधिकरण (एपिडा) को यह जियोग्र्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) पेटेंट देने का अधिकार दिया है। अब एपिडा ही संबंधित बासमती चावल कंपनियों को यह टैग जारी करने के लिए अधिकृत है। हालांकि मध्य प्रदेश को नये सिरे से जीआई टैग के लिए आवेदन करना होगा, जिसके लिए नये दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।सूत्रों के मुताबिक अमेरिका व यूरोपीय संघ के देशों के माफिक भारत भी अपने कृषि उत्पादों के जीआई संरक्षण का टैग करने वाला देश बन गया है। जीआई टैग से अब समूची दुनिया में भारतीय बासमती निर्विवाद रूप से अकेला होगा। इससे गंगा के मैदानी क्षेत्रों में होने वाली बासमती की खुशबू समूची दुनिया में फैलेगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 85 फीसदी बाजार पर भारतीय बासमती का कब्जा है जबकि मात्र 15 फीसद पाकिस्तान निर्यात करता है।
गंगा के मैदानी क्षेत्रों के बासमती को मिली इस सफलता से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली व जम्मू व कश्मीर के बासमती उगाने वाले किसानों को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। भारत ने फैसला किया है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की बासमती के निर्यात का विरोध नहीं करेगा क्योंकि यह क्षेत्र भी गंगा के मैदानी क्षेत्रों में शुमार है।
बासमती चावल की सर्वाधिक मांग मध्य-पूर्व के देशों के साथ अमेरिका में है। विशेष स्वाद व खुशबू के अपने कद्रदानों के बीच बासमती फिर गमक बिखेरेगा। वर्ष 2008 में एपिडा ने बासमती की खासियत गिनाते हुए जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। भारत के साथ पाकिस्तान ने बासमती की पंरपरागत विरासत पर अपनी सहमति जताई थी। लेकिन पाकिस्तान में फिलहाल जीआई टैग की मुहर नहीं लगी है। हालांकि वहां पंजाब व करांची लॉबी के बीच जबर्दस्त विवाद चल रहा है। परस्पर सहमति से भारत ने पाकिस्तान का फिलहाल विरोध न करने का फैसला किया है।

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Monday, February 8, 2016

पेटीएम संस्थापक के पास मुश्किल दिनों में खाने के पैसे भी नहीं थे

ई-कॉमर्स कंपनी पेटीएम के संस्थापक विजय शंकर शर्मा ने बताया कि इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उन्हें नौकरी ढूंढने में परेशानी हुई। उन्हें कठिन दिनों में खाने के लिए भी पैसे नहीं होने से संघर्ष करना पड़ा।
एमिटी यूनिवर्सिटी गुड़गांव से मानद डॉक्टरेट की उपाधि लेने के बाद उन्होंने अपने अतीत का जिक्र करते हुए कहा, 'पढ़ाई के दौरान और डिग्री लेने के बाद भी कई परेशानियां झेलीं, लेकिन कभी हार नहीं मानी। मेरे परिजन ने मुझ पर शादी करने का दबाव डाला। मैं नौकरी के बिना कठिन समय का सामना कर रहा था। मैं इस स्थिति के बारे में परिवार को भी नहीं बता सकता था।
मुझे भोजन के लिए 14 किमी जाना पड़ता था। 1998 में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में डिग्री कोर्स इंग्लिश मीडियम में था। मैं हिंदी भाषी था, इस कारण काफी चुनौतियां आईं। मैं नर्वस हो जाता था क्योंकि कक्षा में जो पढ़ाया जाता मुझे समझ ही नहीं आता था। मैं हमेशा चिंता में रहता कि परीक्षा में पास कैसे होऊंगा। जब मुझे पेटीएम का आइडिया आया और मैंने इसे कुछ लोगों को बताया तो उन्होंने मुझे मूर्ख कहा। मेरा मनोबल तोड़ते हुए कहने लगे कि यदि यह कारगर होता तो कोई पहले ही यह कर चुका होता।'