Tuesday, April 14, 2015

ऐसे मिल सकता है खोया हुआ एंड्रॉयड फोन

दिनेश माहेश्वरी 
 कोटा। फोन का खो जाना काफी बेचैनी वाला क्षण होता है, क्‍योंकि इसके बाद न तो आपको केवल दूसरा फोन खरीदने का झंझट आ जाता है बल्कि फोन के साथ आपकी काफी सारी महत्‍वपूर्ण चीजें भी चलीं जाती हैं जो उसमें स्‍टोर होता है। आपकी प्राइवेसी और सिक्‍योरिटी दूसरे के हाथ में चली जाती है, और आपसे जुडे महत्‍वपूर्ण सूचनाओं को कोई दूसरा एक्‍सेस कर सकता है जैसे कुछ निजी तस्‍वीरें, फोन नंबर, एड्रेस, फिनांशल इंफो आदि।
लेकिन अब ऐसे कई तरीके उपलब्‍ध हैं, जिनसे आप अपने खोऐ हुए एंड्रॉयड फोन की लोकेशन का पता लगा सकते हैं और उसे खोज भी सकते हैं। हमेशा अपने फोन को लॉक रखें- लॉक स्‍क्रीन पैटर्न या पासवर्ड एनेबल करें। खो गए फोन को मिलने में यह कोई मदद नहीं करेगा पर फोन के खो जाने पर स्‍क्रीन लॉक होने की वजह से कोई आपकी निजी जानकारियों को एक्‍सेस नहीं कर सकेगा।
एंड्रायड डिवाइस मैनेजर को एनेबल कर उपयोग करें- आपका प्राइमरी ऑप्‍शन ये होना चाहिए कि आप अपने फोन को लोकेट कर सकें ताकि आप अपने डिवाइस के उचित रजिस्‍ट्रेशन को सुनिश्चित कर सकें और यह एंड्रायड डिवाइस मैनेजर के द्वारा एक्‍सेस हो सके।
गूगल ने इस फीचर को वर्ष 2013 में ही रिलीज किया था ऐंड्रॉयड डिवाइस मैनेजर गूगल की ऐसी सर्विस है, जिसके जरिए आप कहीं भूला अपना ऐंड्रॉयड फोन या टैबलेट कहीं रखकर भूल गए हैं, तो इससे खोज सकते हैं। इसमें पहले लॉक फीचर नहीं था।
इस सर्विस की मदद से आप फोन से दूर रहते हुए भी उसे लॉक कर सकते हैं। अगर आपको लगता है कि फोन आस-पास ही कहीं है, तो फोन के साइलेंट होने पर भी उसे पूरे वॉल्यूम पर रिंग कर सकते हैं। आप मैप पर देख सकते हैं कि आपका फोन कहां पर है। अगर आपका फोन चोरी हो गया है, तो आप अपने फोन का डाटा डिलीट कर सकते हैं।
मैनेजर को करें एनेबल- इसलिए आप सुनिश्चित कर लें कि आपके डिवाइस पर यह मैनेजर एनेबल है कि नहीं- सेटिंग्‍स>सिक्‍योरिटी एंड स्‍क्रीन लॉक> डिवाइस एडमिनिस्‍ट्रेटर।
एंड्रायड लॉस्‍ट– इस एप का नाम इसके काम को देखते हुए रखा गया है। यह आपको खोए हुए एंड्रायड फोन को पाने में मदद करेगा। इस एप को आप अपने फोन पर गूगल प्‍ले स्‍टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।
इस ऐप से आप यह काम कर सकते हैं:
यदि खोया हुआ फोन ऑन है तो उसके मैसेज पढ़ सकते हैं और मैसेज भेज सकते हैं।
फोन का सारा डेटा डिलीट कर सकते हैं।
फोन को लॉक कर सकते हैं।
एसडी कार्ड को फॉरमेट कर सकते हैं।
जीपीएस के माध्‍यम से फोन की लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं।
स्‍क्रीन की लाइट फ्लैश करते हुए अलार्म चालू कर सकते हैं।
फोन के फ्रंट और रियर कैमरे से तस्‍वीरें खींच सकते हैं।
माइक्रोफोन से आवाज रिकॉर्ड कर सकते हैं।

Tuesday, April 7, 2015

मजीठिया वेज: प्रेस की आय अनुमान से ज्यादा

मजीठिया वेज अर्थात् कम से कम 40 हजार वेतन, इतनी बड़ी राशि सुनने के बाद अधिकांश लोगों की जुबान से यही बात निकलती है कि इतना वेतन कोई नहीं दे पाएगा, प्रेस बंद हो जाएगे। जो मिथ्था सोच से बढ़कर कुछ नहीं है। हाल में पेश समाचार पत्रों के सरकुलेशन रिपोर्ट को सभी समाचार पत्रों ने बढ़-चढ़कर छापा। मैं राजस्थान पत्रिका का सरकुलेशन देख रहा था। जिसमें कहा गया था कि 2 करोड़ 40 लाख का प्रसार है। अर्थात् इतना पेपर प्रति दिन छपता, वो भी रंगीन। एक 12 पेज के अखबार की कीमत कम से कम 10 से 12 रूपए पड़ती है और दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका जिस क्वालिटी के रंग और पेपर का उपयोग करते है उसकी कीमत 20 से 25 रूपए पड़ती है। सोचो जो प्रतिदिन 2 करोड़ 40 लाख कापी छापता है तो उसकी लागत क्या होगी। जी हां यदि 10 रूपए के हिसाब से जोड़े तो 24 करोड़ रूपए प्रतिदिन का खर्च आता है। और एक माह में यह आंकड़ा 7 अरब 20 करोड़ पहुंचा है और साल में 8640 करोड़ पहुंचता है। अब साधारण सी बात है जो मालिक एक दिन में 24 करोड़ खर्च कर सकता है वो कर्मचारियों को एक माह में 24 करोड़ का अतिरिक्त वेतन नहीं दे सकता क्या। दे सकता है लेकिन वर्षों की मानसिकता की जिद के आगे कोई झुकने को तैयार नहीं। 
कोई घाटे में नहीं
मजीठिया वेतन के नाम पर हर प्रेस मालिक घाटे का रोना रोते हैं, प्रेस बंद होने की दुहाई देते हैं लेकिन सच्चाई यही है कि किसी को घाटा नहीं हो रहा है। यदि होता तो पाठकों को हर माह गिफ्ट नहीं बांटे जाते। नए एडीशनों की लांचिंग नहीं होती। दैनिक भास्कर और जागरण शेयर मार्केट में पंजीबद्ध है जो 1 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार दर्शाते है। माना मजीठिया वेतनमान देने पर वास्तव में घाटा होता है तो गुमास्ता एक्ट का पालन करों। रविवार का समाचार पत्र संस्थान बंद रखो। लेकिन तो रविवार को भी छापना है इसके लिए रविवार पेज के नाम से अलग से पंजीयन होता है। तब घाटा नहीं होता ? दरअसल मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के मन में यह भ्रम है कि इतने वेतनमान से प्रेस बंद हो जाएगा इसी शब्दावली का फायदा प्रेस मालिक उठा रहे है। पत्रकारों को पहले जागरूक होना जरूरी है। 
इतनी जिद क्यों?
मजीठिया वेतनमान ना देने की जिद इसलिए है कि मालिक यह रोना रो देते है कि इस वेतनमान में हमारा संस्थान बंद हो जाएगा। जिसपर सबको तरस आ जाता है कोई सच्चाई नहीं जानना चाहता। दूसरा सच यह है कि 1955 से आज तक किसी ने वेजबोर्ड की मांग ही नहीं की। इंडियन एक्सप्रेस और नवभारत के कर्मचारी यूनियन ने सफल आंदोलन कर वेज प्राप्त किया। जिससे सबक लेते हुए प्रेस संस्थान नौकरी ज्वाइन करते ही हर व्यक्ति को मौखिक फरमान सुनने लगे कि आप किसी संगठन से नहीं जुड़ोगे जो सरासर अन्याय है। अभी पत्रकार साथी मजीठिया वेतनमान को लेकर संसय में है और अपने हक के लिए ज्यादा तत्परता नहीं दिखा रहे है लेकिन जनवरी 2016 में मजीठिया वेतनमान अप्रासंगिक हो जाएगा। क्योंकि जर्नलिस्ट एक्ट के अनुसार पत्रकारों का वेतन किसी भी हालत में केन्द्रीय कर्मचारियों के सेकेंड क्लास अधिकारी से कम नहीं होना चाहिए। और तब तक राजपत्रित अधिकारियों का वेतन 150000 रूपए हो जाएगा तो क्या होगा।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र 
पत्रकार 

Thursday, March 26, 2015

sargam ....mera dil ye pukare aaja.....geet film nagin


Sunday, March 22, 2015

इस कोड से पता चलेगा कितना खतरनाक है आपका मोबाइल

दिनेश माहेश्वरी 
कोटा।  घंटों आप से चिपककर रहने वाला आपका मोबाइल हैंडसेट आपके लिए कहीं ‘साइलेंट किलर’ तो साबित नहीं हो रहा। चाइनीज समेत कई नामी ब्रांड के ऐसे मोबाइल हैंडसेट की बाजार में भरमार है जिनसे निकलने वाला रेडिएशन मानक से अधिक है। रेडिएशन जांचने के लिए *#07# डायल करें। यह नंबर डायल करते ही मोबाइल स्क्रीन पर रेडिएशन वैल्यू आ जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय एवं भारतीय मानक के अनुसार मोबाइल फोन का रेडिएशन लेवल 1.6 वाट/किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। मगर प्रतिस्पर्धा के दौर में तमाम कंपनियां कम कीमत पर मोबाइल हैंडसेट बाजार में लाने के लिए मानक की अनदेखी कर रही हैं।
सेल्युलर टेलीकम्यूनिकेशन एंड इंटरनेट एसोसिएशन के अनुसार सभी मोबाइल हैंडसेट पर रेडिएशन संबंधी जानकारी देनी जरूरी है। मगर तमाम कंपनियां इसे नजरअंदाज कर रही हैं।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी (निलेट) के सीनियर साइंटिस्ट निशांत त्रिपाठी के मुताबिक मानक से अधिक रेडिएशन वाले इन मोबाइल हैंडसेट से सुनने की क्षमता कम होने से लेकर मानसिक अवसाद समेत कई तरह की घातक बीमारियां होने की आशंका रहती है।
इंडियाज नेशनल स्पेसिफिक एब्जॉर्बशन रेट लिमिट (आईएनएसएआरएल) के अनुसार भी मोबाइल के रेडिएशन का मानक अधिकतम 1.6 वाट प्रति किलोग्राम तक ही होना चाहिए।
विशेषज्ञ के सुझाव
- देर तक लगातार एक कान की तरफ से बात न करें
- चार्ज करने के लिए लगाकर मोबाइल पर बात न करें, इस दौरान रेडिएशन लेवल 10 गुना तक बढ़ जाता है।
- सिग्नल कमजोर हो या फिर बैट्री डिस्चार्ज होने पर भी बात करने से परहेज करें। इस दौरान रेडिएशन लेवल बढ़ जाता है।
- संभव हो तो ज्यादा से ज्यादा हेड फोन का इस्तेमाल करें।

Monday, March 2, 2015

लगाएं कागज के कप का उद्योग