Tuesday, April 7, 2015

मजीठिया वेज: प्रेस की आय अनुमान से ज्यादा

मजीठिया वेज अर्थात् कम से कम 40 हजार वेतन, इतनी बड़ी राशि सुनने के बाद अधिकांश लोगों की जुबान से यही बात निकलती है कि इतना वेतन कोई नहीं दे पाएगा, प्रेस बंद हो जाएगे। जो मिथ्था सोच से बढ़कर कुछ नहीं है। हाल में पेश समाचार पत्रों के सरकुलेशन रिपोर्ट को सभी समाचार पत्रों ने बढ़-चढ़कर छापा। मैं राजस्थान पत्रिका का सरकुलेशन देख रहा था। जिसमें कहा गया था कि 2 करोड़ 40 लाख का प्रसार है। अर्थात् इतना पेपर प्रति दिन छपता, वो भी रंगीन। एक 12 पेज के अखबार की कीमत कम से कम 10 से 12 रूपए पड़ती है और दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका जिस क्वालिटी के रंग और पेपर का उपयोग करते है उसकी कीमत 20 से 25 रूपए पड़ती है। सोचो जो प्रतिदिन 2 करोड़ 40 लाख कापी छापता है तो उसकी लागत क्या होगी। जी हां यदि 10 रूपए के हिसाब से जोड़े तो 24 करोड़ रूपए प्रतिदिन का खर्च आता है। और एक माह में यह आंकड़ा 7 अरब 20 करोड़ पहुंचा है और साल में 8640 करोड़ पहुंचता है। अब साधारण सी बात है जो मालिक एक दिन में 24 करोड़ खर्च कर सकता है वो कर्मचारियों को एक माह में 24 करोड़ का अतिरिक्त वेतन नहीं दे सकता क्या। दे सकता है लेकिन वर्षों की मानसिकता की जिद के आगे कोई झुकने को तैयार नहीं। 
कोई घाटे में नहीं
मजीठिया वेतन के नाम पर हर प्रेस मालिक घाटे का रोना रोते हैं, प्रेस बंद होने की दुहाई देते हैं लेकिन सच्चाई यही है कि किसी को घाटा नहीं हो रहा है। यदि होता तो पाठकों को हर माह गिफ्ट नहीं बांटे जाते। नए एडीशनों की लांचिंग नहीं होती। दैनिक भास्कर और जागरण शेयर मार्केट में पंजीबद्ध है जो 1 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार दर्शाते है। माना मजीठिया वेतनमान देने पर वास्तव में घाटा होता है तो गुमास्ता एक्ट का पालन करों। रविवार का समाचार पत्र संस्थान बंद रखो। लेकिन तो रविवार को भी छापना है इसके लिए रविवार पेज के नाम से अलग से पंजीयन होता है। तब घाटा नहीं होता ? दरअसल मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के मन में यह भ्रम है कि इतने वेतनमान से प्रेस बंद हो जाएगा इसी शब्दावली का फायदा प्रेस मालिक उठा रहे है। पत्रकारों को पहले जागरूक होना जरूरी है। 
इतनी जिद क्यों?
मजीठिया वेतनमान ना देने की जिद इसलिए है कि मालिक यह रोना रो देते है कि इस वेतनमान में हमारा संस्थान बंद हो जाएगा। जिसपर सबको तरस आ जाता है कोई सच्चाई नहीं जानना चाहता। दूसरा सच यह है कि 1955 से आज तक किसी ने वेजबोर्ड की मांग ही नहीं की। इंडियन एक्सप्रेस और नवभारत के कर्मचारी यूनियन ने सफल आंदोलन कर वेज प्राप्त किया। जिससे सबक लेते हुए प्रेस संस्थान नौकरी ज्वाइन करते ही हर व्यक्ति को मौखिक फरमान सुनने लगे कि आप किसी संगठन से नहीं जुड़ोगे जो सरासर अन्याय है। अभी पत्रकार साथी मजीठिया वेतनमान को लेकर संसय में है और अपने हक के लिए ज्यादा तत्परता नहीं दिखा रहे है लेकिन जनवरी 2016 में मजीठिया वेतनमान अप्रासंगिक हो जाएगा। क्योंकि जर्नलिस्ट एक्ट के अनुसार पत्रकारों का वेतन किसी भी हालत में केन्द्रीय कर्मचारियों के सेकेंड क्लास अधिकारी से कम नहीं होना चाहिए। और तब तक राजपत्रित अधिकारियों का वेतन 150000 रूपए हो जाएगा तो क्या होगा।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र 
पत्रकार 

0 comments:

Post a Comment