दिनेश माहेश्वरी
कोटा। अब लोगों को आयकर जमा करने या रिटर्न दाखिल करने के लिए न तो सीएए के पास चक्कर काटने होंगे और न ही मुनीमों के दस्तावेजों में माथापच्ची करनी होगी। लोगों की मुश्किलों को आसान करने के लिए आयकर विभाग ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिसमें आय व्यय का ब्योरा डालते ही टैक्स की जानकारी उपलब्ध होगी और रिटर्न दाखिल हो जाएगा।आयकर विभाग ने वेबसाइट को अपग्रेड करना शुरू कर दिया है। जुलाई तक आयकर दाता अपने घर बैठे ही कंप्यूटर पर ऑनलाइन आयकर जमा कर सकेंगे।
आयकर अधिकारी बताते हैं कि आयकर दाताओं को अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आयकर सुविधा केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। घर बैठे सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्वत: आयकर गणना व रिटर्न दाखिल करने की सुविधा भी शीघ्र उपलब्ध हो जाएगी।
यूं तो बड़े आयकरदाता अपने काम के लिए सीए रखते हैं, ताकि उनकी परेशानी कम हो। लेकिन कई बार ऐसी शिकायतें देखने को मिली हैं कि लेखाकर कर्मचारियों के आयकर की गलत गणना कर उल्टा सीधा टैक्स काट लेते हैं और जब कर्मचारी रिटर्न फॉर्म भरवाने सीए के पास जाता है, तब पता चलता है उसका अधिक टैक्स जमा हो गया है। इसके बाद रिफंड के लिए आयकर विभाग में चक्कर लगाने पड़ते हैं। गौरतलब है कि आयकर विभाग ने सालाना पांच लाख रुपये से अधिक आय वालों के लिए इंटरनेट के माध्यम से रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य कर दिया है।
आयकर विभाग ने इस सिस्टम को अपग्रेड कर रहा है। आयकर दाता इसी सिस्टम में जाकर आय, व्यय का ब्योरा फीड करेगा और पलक झपकते टैक्स की राशि कंप्यूटर पर सामने होगी।रिटर्न दाखिल करने के लिए आयकर विभाग की वेबसाइट पर जाकर पैन नंबर डालना पड़ेगा। आयकर दाता के नाम व पता डालने से रिटर्न फॉर्म कंप्यूटर पर खुल जाएगा। फॉर्म में मांगी जाने वाली सूचना हिंदी व अंग्रेजी में होगी।आयकर दाता को आय-व्यय के साथ बचत राशि की जानकारी भरनी होगी। इसी के साथ रिटर्न दाखिल हो जाएगा। आर्थिक विश्लेषक के अनुसार, पांच लाख रुपये से अधिक आय वालों को डिजिटल हस्ताक्षर करने होंगे।पांच लाख रुपये से कम आय वालों को कंप्यूटर से रिटर्न का प्रिंट निकालकर आयकर विभाग में जमा करना होगा।

कोटा। अब आप चलते चलते बिजली भी पैदा कर सकते हैं। जी हां, जर्मनी के शोधकर्ताओं ने यह मुमकिन कर दिखाया है। विज्ञान पत्रिका 'स्मार्ट मटीरियल्स एंज स्ट्रक्चर्स' के मुताबिक़, जूते के आकार का एक उपकरण विकसित कर लिया गया है, जिसे पहन कर चलने से बिजली पैदा होती है।इससे तीन से चार मिलीवॉट बिजली पैदा की जा सकती है। इतनी भर बिजली से स्मार्टफ़ोन की बैटरी तो चार्ज नहीं हो सकती पर यह छोटे सेंसरों और बैटरियों के लिए काफ़ी है।यह थर्मोडायनमिक्स के निहायत ही सामान्य सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है। घूमता हुआ चंबकीय क्षेत्र जब स्थिर क्वॉयल से गुजरता है तो बिजली पैदा होती है, बस।शोधकर्ता यह कोशिश भी कर रहे हैं कि बुजुर्गों के पहनने वाले जूते के फ़ीते ख़ुद बंध जाएं। उपकरण यह पता लगाएगा कि जूते में पांव कब डाला गया और उसके बाद वो फ़ीते बांध देगा।इस दिलचस्प उपकरण में दो हिस्से होंगे। एड़ी जैसे ही ज़मीन से टकराएगी, 'शॉक हार्वेस्टर' बिजली पैदा करेगा। जब पांव चलते रहेंगे और एक दूसरा उपकरण 'स्विंग हार्वेस्टर' बिजली पैदा करेगा। इस उपकरण से लैस जूते पहन कर चलने से यह भी पता चल सकेगा कि शख़्स किस तरफ़ गया है और कितनी दूर गया है।इसे पहन कर चलने वाले आदमी की निगरानी की जा सकेगी और राहत व बचाव कार्य में इससे सुविधा होगी।
दिनेश माहेश्वरी
कोटा। ऑस्ट्रियन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से बिना 3डी चश्मा पहने हुए भी 3डी इफेक्ट्स को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में डिवाइस से कुछ लेजर बीम्स अलग-अलग दिशा में निकलेंगी जो छवियों का निर्माण करेंगी और हम 3डी चश्मे के बिना भी उन दृश्यों को देख सकेंगे।
विएना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक की मदद से हम घर से बाहर और दिन के उजाले में भी 3डी इफेक्ट वाली छवियां देख सकेंगे।
एक स्टार्ट अप कंपनी ट्राइलाइट टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक के आधार पर पहला प्रोटोटाइप भी विकसित कर लिया है। कंपनी ने बताया कि वह दूसरे प्रोटोटाइप का विकास कर रही है। जिसमें हाई रेजॉलुशन की रंगीन तस्वीरों को भी देखा जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि 3डी फिल्मों में केवल दो रंग होते हैं, जिन्हें दोनों आंखें अलग-अलग देखती हैं और फिर एक दृश्य का निर्माण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही तकनीक में दृश्य एकदम असली और आंखें के सामने ही प्रतीत होंगे। इसके लिए कुछ खास वीडियो फॉरमेट्स की जरूरत होगी, जिनके विकास पर काम जारी है।
ट्रिलाइट कंपनी के अनुसार मौजूदा 3डी तकनीक में दृश्यों को कई कैमरों से रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसे 3डी फॉरमेट में बदला जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह नया प्रोटोटाइप इस साल के मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा और प्रॉडक्ट को अगले साल 2016 में लॉन्च भी कर दिया जाएगा।
कोटा। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत 12 जनवरी को 45.86 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत पेट्रोलियम नियोजन और विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) की सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्केट के लिए कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत घटकर 45.86 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल रही। 9 जनवरी को यह कीमत 47.36 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी।
रुपए के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 12 जनवरी को घटकर 2850.66 रुपए प्रति बैरल हो गई, जबकि 9 जनवरी को 2955.26 रुपये प्रति बैरल थी। 12 जनवरी को रुपया मजबूती के साथ 62.16 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ। 9 जनवरी को यह कीमत 62.40 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत इतनी कम होने के बावजूद डीजल-पेट्रोल की कीमत भारत में कम नहीं हो पा रही है। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को क्यों नहीं कम रही है? वहीं केंद्र अभी तक तीन बार कच्चे तेल के आयात पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर लोगों को असली फायदा लेने से रोक रही है।
फरवरी 2007 में कच्चे तेल की कीमत 55 डॉलर के स्तर पर थी। तब भारत में पेट्रोल 42 रुपए और डीजल 30 रुपए प्रति लीटर की कीमत पर बिक रहा था। पर आज 45.86 डॉलर प्रति बैरल क्रूड ऑयल होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमत कम नहीं हुई है। अभी भी पेट्रोल 61 और डीजल 51 रुपए प्रति लीटर की दर से आम ग्राहकों को मिल रहा है।
गौरतलब है कि सरकार को सीधे तौर पर फायदा हो रहा है। पर इसका फायदा जनता को नहीं मिल रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 के छह महीनों के लिए अंडर-रिकवरी 51,110 करोड़ रूपए रही है। वित्त वर्ष 2013-14 के पूरे वर्ष के लिए यह राशि 1,39,869 करोड़ रूपये रही थी।भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 31 दिसंबर को 53.53 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 53.81 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी। रुपये के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 31 दिसंबर, 2014 को घटकर 3390.05 रुपये प्रति बैरल हो गई जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 3430.39 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया 31 दिसंबर, 2014 को रुपया मजबूत होकर 63.33 रुपये प्रति अमेरीकी डॉलर पर बन्द हुआ, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को 63.75 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर था।
जून 2014 और जुलाई 2014 के बीच में ब्रैंट क्रूड (ऑयल) की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर थी। पर धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत कम होने लगी।
अक्टूबर 2014 में ब्रैंट क्रूड की कीमत 88.66 डॉलर, 3 नवंबर को यह कीमत 84.9 डॉलर, 27 नवंबर को 72.68 डॉलर और 28 नवंबर को यह कीमत घटकर 72.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई। एक बैरल में 158.98 लीटर तेल होता है। वर्ष 2013-14 के आकड़ों के मुताबिक भारत प्रति दिन 385,000 बैरल तेल का आयात करता है।
कोटा। शारीरिक चिन्हों या आंखों की पुतलियों द्वारा व्यक्ति की पहचान करने की प्रक्रिया (बायोमेट्रिक) में अब एक नई कड़ी जुड़ गई है। अब तक तो आप फेस डिटेक्शन तकनीक से आईफोन या एंड्रॉयड को अनलॉक कर सकते थे, लेकिन अब एक ऐसा नया ऐप ′ट्रू-की′(true key) डेवलप किया गया है, जिसके जरिए आप अपने पासवर्ड प्रोटेक्टेड मल्टीपल वेबसाइट जैसे ईमेल, नेट बैंकिंग अकाउंट आदि को बिना कोई पासवर्ड डाले फेस डिटेक्शन तकनीक से ओपन कर सकेंगे। हालांकि फेस डिटेक्शन तकनीक की सुविधा एप्पल के आईफोन और गूगल के एंड्रॉयड पर पहले से ही उपलब्ध है। यह ′ट्रू-की′ कंप्यूटर कैमरे की मदद से फोटो क्लिक करके स्टोर कर लेगा, ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके।जब भी आप अपने पासवर्ड प्रोटेक्टेड वेबसाइट को ओपन करना चाहेंगे, यह ऐप आपके चेहरे को स्कैन कर अपने रिकॉर्ड से मैच कर लेगा। इस स्थिति में पासवर्ड की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह तकनीक उन सभी डिवाइसेज पर काम करेगी, जिनमें कैमरे लगे होंगे, यानी यह कंप्यूटर, टैबलेट और स्मार्टफोन के पासवर्ड भी बदल सकता है। ′ट्रू-की′ ऐप फरवरी से वेबसाइट पर उपलब्ध होगा। ′ट्रू-की′ सर्विस को कंप्यूटर चिपमेकर इंटेल ने डेवलप किया है।
कोटा। कार चलाते समय ड्राइवर का ध्यान भटकने या झपकी लेने जैसी हरकतों की वजह से अक्सर दूसरे लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। दुर्घटना में लोगों को जान तक गंवानी पड़ जाती है।
इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के मकसद से ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ‘सीइंग मशींस’ ने एक तकनीक ईजाद की है। जिसके जरिए कार ही ड्राइवर पर नजर रख सकेगी और किसी तरह की लापरवाही की स्थिति में ड्राइवर को सतर्क कर सकेगी। वैसे कई कारों में पहले से ऐसे सेंसर और कैमरे लगे हैं, जो ड्राइवर की नजर में नहीं आने वाली चीजों की पहचान कर उन्हें सावधान करते हैं। मगर इन सेंसर और कैमरों की कार के बाहर नजर रहती है।कार के अंदर की गतिविधियां उनकी पकड़ से दूर रहती है। नई तकनीक से ड्राइवर की आंखों और चेहरे के हाव-भाव पर नजर रखी जा सकेगी, ताकि सतर्क किया जा सके।