दिनेश माहेश्वरी
कोटा। ऑस्ट्रियन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से बिना 3डी चश्मा पहने हुए भी 3डी इफेक्ट्स को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में डिवाइस से कुछ लेजर बीम्स अलग-अलग दिशा में निकलेंगी जो छवियों का निर्माण करेंगी और हम 3डी चश्मे के बिना भी उन दृश्यों को देख सकेंगे।
विएना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक की मदद से हम घर से बाहर और दिन के उजाले में भी 3डी इफेक्ट वाली छवियां देख सकेंगे।
एक स्टार्ट अप कंपनी ट्राइलाइट टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक के आधार पर पहला प्रोटोटाइप भी विकसित कर लिया है। कंपनी ने बताया कि वह दूसरे प्रोटोटाइप का विकास कर रही है। जिसमें हाई रेजॉलुशन की रंगीन तस्वीरों को भी देखा जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि 3डी फिल्मों में केवल दो रंग होते हैं, जिन्हें दोनों आंखें अलग-अलग देखती हैं और फिर एक दृश्य का निर्माण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही तकनीक में दृश्य एकदम असली और आंखें के सामने ही प्रतीत होंगे। इसके लिए कुछ खास वीडियो फॉरमेट्स की जरूरत होगी, जिनके विकास पर काम जारी है।
ट्रिलाइट कंपनी के अनुसार मौजूदा 3डी तकनीक में दृश्यों को कई कैमरों से रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसे 3डी फॉरमेट में बदला जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह नया प्रोटोटाइप इस साल के मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा और प्रॉडक्ट को अगले साल 2016 में लॉन्च भी कर दिया जाएगा।
कोटा। ऑस्ट्रियन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से बिना 3डी चश्मा पहने हुए भी 3डी इफेक्ट्स को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में डिवाइस से कुछ लेजर बीम्स अलग-अलग दिशा में निकलेंगी जो छवियों का निर्माण करेंगी और हम 3डी चश्मे के बिना भी उन दृश्यों को देख सकेंगे।
विएना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक की मदद से हम घर से बाहर और दिन के उजाले में भी 3डी इफेक्ट वाली छवियां देख सकेंगे।
एक स्टार्ट अप कंपनी ट्राइलाइट टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक के आधार पर पहला प्रोटोटाइप भी विकसित कर लिया है। कंपनी ने बताया कि वह दूसरे प्रोटोटाइप का विकास कर रही है। जिसमें हाई रेजॉलुशन की रंगीन तस्वीरों को भी देखा जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि 3डी फिल्मों में केवल दो रंग होते हैं, जिन्हें दोनों आंखें अलग-अलग देखती हैं और फिर एक दृश्य का निर्माण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही तकनीक में दृश्य एकदम असली और आंखें के सामने ही प्रतीत होंगे। इसके लिए कुछ खास वीडियो फॉरमेट्स की जरूरत होगी, जिनके विकास पर काम जारी है।
ट्रिलाइट कंपनी के अनुसार मौजूदा 3डी तकनीक में दृश्यों को कई कैमरों से रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसे 3डी फॉरमेट में बदला जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह नया प्रोटोटाइप इस साल के मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा और प्रॉडक्ट को अगले साल 2016 में लॉन्च भी कर दिया जाएगा।
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