Friday, January 2, 2015

मिट्‌टी की जांच के बिना यूरिया डाल रहे किसान, नहीं मिलता पूरा फायदा

दिनेश माहेश्वरी 
कोटा। मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से जारी आंकड़े साबित करते हैं कि हाड़ौती में अधिकांश किसान बिना मृदा परीक्षण के ही खेती करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले नौ महीनों में मात्र 2343 किसानों ही अपने खेत की मिट्टी की जांच कराई है। यह आंकड़े कोटा जिले की पांच पंचायत समितियों के  हैं। हाड़ौती के अन्य जिलों की भी लगभग यही स्थिति है। यहां भी किसान अपने ही हिसाब से खाद-बीज का उपयोग कर रहे हैं। 
कृषि अधिकारियों का कहना है कि हर खेत की मिट्टी अलग-अलग होती है। इसलिए उसमें पाए जाने वाले तत्व भी अलग होते हैं। सभी खेत में एक जैसी मात्रा वाले रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अगर किसान अपने खेत की मिट्टी की जांच करा कर उसमें खाद डालेंगे तो उनके धन की बचत होने के साथ ही खेत की जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि यूरिया या डीएपी का बेहिसाब उपयोग करने से जमीन भी खराब होती है। 
 हाड़ौती की मिट्टी उपजाऊ : हाड़ौती की मिट्टी वैसे ही उपजाऊ है। यहां दो प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जिसमें से एक है लवणता ली हुई और दूसरी है क्षारक वाली। कृषि अधिकारियों के अनुसार खैराबाद तहसील के आसपास की मिट्टी में क्षारक की अधिकता पाई जाती है। ऐसी मिट्टी को बंजर नहीं छोड़ कर उपजाऊ बनाया जा सकता है। वह भी गोबर की खाद से। किसानों को जैविक खाद का उपयोग करना लाभदायक होगा।
 30 प्रतिशत यूरिया ही काम आता है: इनके अनुसार खेत में डाला गया यूरिया मात्र 30 प्रतिशत ही काम आता है। बाकी का 70 प्रतिशत हवा में उड़ जाता है या पानी में बह जाता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा यूरिया या डीएपी डालने ज्यादा अच्छी फसल होगी। किसी जमीन में यूरिया की जरूरत ही नहीं तो यूरिया क्यों डाला जाए। हर फसल के लिए अलग जरूरत होती है। 
पांच रुपए में होती है जांच: कृषि अनुसंधान अधिकारी व मृदा परीक्षण लेब इंचार्ज वीबी   सिंह राजावत ने बताया कि मृदा परीक्षण का शुल्क सरकारी लेबोरेट्री में मात्र पांच रुपए है। कोई भी किसान अपने खेत में जिसमें फसल बोना चाहता है। उसकी जांच करा सकता है। वह खुद नहीं आए तो अपने ग्राम सेवक के हाथ मिट्टी की जांच के लिए नमूना भेज सकता है।

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