Monday, March 14, 2016

मूंगफली खाने से शिशुओं में कम होता है एलर्जी का खतरा

बच्चों के आहार में कम उम्र में मूंगफली को शामिल करके उसमें एलर्जी का खतरा काफी कम किया जा सकता है, भले ही बच्चे पांच साल की उम्र के आसपास इन्हें खाना छोड़ दें।
'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित एक शोध में यह दावा किया गया है। शोध के मुताबिक, कम उम्र में मूंगफली के सेवन से इससे संबंधित एलर्जी का खतरा कम हो जाता है। किंग कॉलेज लंदन के प्रमुख शोधकर्ता गिडियोन लैक के मुताबिक, 'मूंगफली से एलर्जी के जोखिम वाले अधिकांश शिशु इससे बचे रहते हैं, अगर वे अपनी उम्र के शुरुआती 11 महीनों के भीतर ही इसे खाना शुरू कर देते हैं।'शोध में 550 बच्चों को शामिल किया गया था। इनमें से 280 को मूंगफली से दूर रखा गया और 270 ने इसका सेवन किया। सभी प्रतिभागियों को उसके बाद 12 महीनों तक मूंगफली के सेवन से दूर रखा गया।
कई परीक्षणों के माध्यम से प्रतिभागियों के रक्त में मूंगफली की एलर्जी का मापन किया गया। शोध में पाया गया कि एक साल तक मूंगफली का सेवन न करने पर भी छह वर्ष की उम्र में उनमें एलर्जी में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। कुल मिलाकर शोध में पाया गया कि जिन बच्चों ने मूंगफली का सेवन किया, उनमें इससे संबंधित एलर्जी का खतरा उन बच्चों की तुलना में 74 प्रतिशत कम पाया गया, जिन्होंने इसका सेवन नहीं किया।

Friday, March 11, 2016

मजीठिया पर आरपार की लड़ाई, राजस्थान के पत्रकार भी एकजुट

जयपुर : चर्च रोड स्थित कुमारानन्द हॉल में रविवार को दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ़ इंडिया व पूरे राजस्थान राज्य के पत्रकार एवं गैर-पत्रकार कर्मचारी पहली बार एकसाथ एकत्रित हुए और मजीठिया के अनुसार वेतनमान के लिए आरपार की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवमाननना के 51  प्रतिनिधियों, अनेक यूनियन के नेताओं तथा विभिन्न सस्ंथानो के कर्मचरियों  की और से लड़ रहे अधिवक्ताओं के  एकसाथ मंच पर आने से मजीठिया की लड़ाई और मजबूत हुई है। पत्रकारों मैं ऐसी एकता पहले कभी नहीं देखी गयी उन्होंने एक साथ एक सुर मैं कहा की हम चाहे कुछ भी हो जाये अख़बार मालिक कितनी भी ओछी हरकतों पर उतर आयें लेकिन हम सब एक होकर मजीठिया की इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाकर रहेंगे । चाहे हम प्रताड़ित हों, चाहे निलंबित हों या फिर निष्कासित कर दिए जायें, हर हाल मैं मजीठिया के अनुसार वेतन लेकर  रहेंगे । हम सब एक साथ रहकर यह लड़ाई लड़ेंगे । 
इस मंच पर सुप्रीम कोर्ट के कई सीनियर अधिवक्ताओं ने कर्मचारियों को अख़बार मालिकों व उनके चमचों से सतर्क रहने के लिए कहा तथा सबको एक जुट होकर लड़ाई लड़ने पर जोर दिया, तथा मजीठिया की लड़ाई के लिए आगे की रणनीति तय की गयी ।  उन्होंने कहा कि यह उन लोगों के लिए भी सुनहरा मौका है जिन्होंने नौकरी के दबाव में आकर मजीठिया  के अनुसार वेतन न चाहने वाले बिना डेट वाले कागजों पर पहले ही साइन कर दिए हों। उनको करना यह है कि वे लेबर इंस्पेक्टर या लेबर कमिश्नर को लिखित मैं सूचित करें कि हमे मजीठिया के अनुसार वेतन अभी तक नहीं मिला है तथा नौकरी से निकालने की धमकी देकर हमसे साइन करवा लिए हैं, जो निराधार है। हमारे द्वारा अस्वीकार है व इसकी सही रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट मैं पेश करें। 
यह तय मानिये कि यदि आप सच्चाई के साथ हैं तो आपका हक़ आपसे कोई भी नहीं छीन सकता, बस कलम उठाएं और लेबर इंस्पेक्टर को सच्चाई से लिखित में अवगत कराएं। उसको भी अपनी नौकरी प्यारी है। अपने बच्चों से प्यार है। वह किसी भी कीमत पर सुप्रीम कोर्ट को गलत रिपोर्ट पेश नहीं कर सकता ।

Thursday, March 10, 2016

Tuesday, March 8, 2016

अब पशुओं में भी मादा ही जन्म लेगी

दिनेश माहेश्वरी
कोटा ।  देश में अब दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मादा पशु ही जन्म लेंगे। वर्तमान में यह अनुपात 50-50 का है। दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल (हरियाणा) में इस पर शोध किया गया है। जिसमें यह बात निकल कर आई है कि अब मादा पशुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वहीं नर पशुओं की संख्या का अनुपात 50 से घटाकर 10 प्रतिशत तक लाया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार ने 55 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। जिसकी पहली किश्त वर्ष 2014-15 में छह करोड़ रुपए जारी हो चुकी है।
इस प्रोजेक्ट के टीम लीडर एवं साइंटिस्ट टीके मोहंती ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। जिसमें काफी हद तक कामयाबी मिली है। उन्होंने बताया कि देश में पशुओं में नर ज्यादा पैदा होने से लोग इन्हें सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। आए दिन शहरों में सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। बैल यदि बनाते हैं, तो वर्तमान में इनका खेती में भी उपयोग नहीं होता है। क्योंकि ज्यादातर खेती ट्रैक्टर से होती है। ऐसे में नर का ज्यादा उपयोग नहीं है। सिवाय मादा पशुओं के गर्भाधान के। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, ताकि दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ेगी, तो दूध की मात्रा भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट पंचवर्षीय योजना में शामिल है। वर्ष 2014-15 में यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, जो वर्ष 2016-17 तक पूरा हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि अभी तक के अनुसंधान से यह बात तो स्पष्ट है कि सीमन के अंदर पाए जाने वाले एक्स और वाई गुणसूत्र में से यदि एक्स-एक्स मिलते हैं तो मादा और एक्स-वाई मिलने पर नर पैदा होते हैं। दोनों के बीच डीएनए में 3 से 4 प्रतिशत का अंतर आता है। 1985-86 में ऐसा ही एक प्रयोग खरगोश पर किया था। इसके बाद 2005 में यूएसए में इसका कॉमर्शियल उपयोग के लिए शोध हुआ। वहां पर हॉलिस्टन और जर्सी का सीमन मिलना शुरू हो गया है। अब भारत भी इसी दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए एक फ्लोरोसेंट एक्टिवेट सॉर्टर तैयार किया गया है। जिसमें से सीमन के अंदर से एक्स और वाई दोनों को अलग-अलग किया जाता है।
क्या है तरीका
लैब में इस इलेक्ट्रॉनिक सॉर्टर में से सीमन को बीकर के जरिए अलग-अलग किया जाता है। सॉर्टर में लगा लेजर सीमन के एक्स और वाई को पहचान करके अलग-अलग करता है। जिसे नहीं पहचान पाता है। उसे एक अलग बीकर में गिरा देता है। वैज्ञानिकों और पशु पालकों के लिए इस शोध के बाद बहुत आसान हो गया है कि वह जब चाहें मादा और वे जब चाहें नर का जन्म करा सकते हैं।
90 प्रतिशत फीमेल पैदा करना संभव
मोहंती ने बताया कि इस तकनीक से 90 प्रतिशत मादा और 10 प्रतिशत नर का अनुपात बनाए रखा जा सकेगा। क्योंकि नर का उपयोग सिर्फ गर्भाधान के लिए किया जा सकेगा। वह भी उन्नत नस्ल के नर पशु तैयार करके।
कौन है मोहंती
नेशनल डेयरी रिसर्च सेंटर करनाल में इंसेटिव हाईजिंग रिचार्ज इन एग्रीकल्चर के तहत सरकार की ओर से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट के टीम लीडर और साइंटिस्ट हैं। उनकी टीम में डॉ. एसके सिंगला भी हैं, जिन्होंने भैंस का क्लोन तैयार किया था।

Saturday, March 5, 2016

मजीठिया वेज बोर्ड : 20जे पर दूर करें भ्रांतियां

पत्रकार  साथियों, आपमें से अभी भी कई साथी 20जे को लेकर शंकित है। हम एक बार फि‍र से आपको स्‍पष्‍ट कर देना चाहते हैं कि 20जे कहीं से भी मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार न्‍यूनतम वेतनमान प्राप्‍त करने के आपके हक के आड़े नहीं आ रहा है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 आपके न्‍यूनतम वेतनमान के हक की पूर्णता रक्षा करता है और एक्‍ट हमेशा वेजबोर्ड से ऊपर होता है, क्‍योंकि वेजबोर्ड का गठन एक्‍ट के अंतर्गत् ही होता है, यानि वेजबोर्ड की कोई भी सिफारिश एक्‍ट से ऊपर नहीं हो सकती। वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 की धारा 13 में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि किसी भी कर्मचारी का वेतन वेजबोर्ड द्वारा तय न्‍यूनतम वेतनमान से किसी भी दशा में कम नहीं होगा। धारा 13 को पढ़कर आप खुद इस बात को समझ जाएंगे।
[Sec. 13- Working journalists entitled to wages at rates not less than those specified in the order - On the coming into operation of an order of the Central Government under section 12, every working journalist shall be entitled to be paid by his employer wages at the rate which shall in no case be less than the rate of wages specified in the order.]
[धारा 13 श्रमजीवी पत्रकारों का आदेश में विनिर्दिष्‍ट दरों से अन्‍यून दरों पर मजदूरी का हकदार होना-- धारा 12 के अधीन केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रवर्तन में आने पर, प्रत्‍येक श्रमजीवी पत्रकार इस बात का हकदार होगा कि उसे उसके नियोजक द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश में विनिर्दिष्‍ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम न होगी।]।
वहीं, 20जे आखिर किनने के लिए है यह आप धारा 16 पढ़कर समझ सकते हैं। धारा 16 स्‍पष्‍ट करती है कि यदि आप किसी भी वेजबोर्ड में निर्धारित न्‍यूनतम वेतनमान से ज्‍यादा वेतन प्राप्‍त कर रहे हैं तो यह आपके उस ज्‍यादा वेतन को प्राप्‍त करने के अधिकार की रक्षा करता है। यानि कोई भी करार आपको ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदा देने के लिए हो सकता है, नाकि आपको न्‍यूनतम वेतनमान से वंचित करने के लिए।
Sec 16. Effect of laws and agreements inconsistent with this Act.-- (1) The provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith contained in any other law or in the terms of any award, agreement or contract of service, whether made before or after the commencement of this Act:
Provided that where under any such award, agreement, contract of service or otherwise, a newspaper employee is entitled to benefits in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act, the newspaper employee shall continue to be entitled to the more favourable benefits in respect of that matter, notwithstanding that he receives benefits in respect of other matters under this Act.
(2) Nothing contained in this Act shall be construed to preclude any newspaper employee from entering into an agreement with an employer for granting him rights or privileges in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act.
धारा 16- इस अधिनियम से असंगत विधियों और करारों का प्रभाव-- (1) इस अधिनियम के उपबन्‍ध, किसी अन्‍य विधि में या इस अधिनियम के प्रारम्‍भ से पूर्व या पश्‍चात् किए गए किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के निबंधनों में अन्‍तर्विष्‍ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे :
परन्‍तु जहां समाचारपत्र कर्मचारी ऐसे किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के अधीन या अन्‍यथा, किसी विषय के संबंध में ऐसे फायदों का हकदार है जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है तो वह समाचारपत्र कर्मचारी उस विषय के संबंध में उन अधिक अनुकूल फायदों का इस बात के होते हुए भी हकदार बना रहेगा कि वह अन्‍य विषयों के संबंध में फायदे इस अधिनियम के अधीन प्राप्‍त करता है।
(2) इस अधिनियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी समाचारपत्र कर्मचारी को किसी विषय के संबंध में उसके ऐसे अधिकार या विशेषाधिकार जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है, अनुदत्‍त कराने के लिए किसी नियोजक के साथ कोई करार करने से रोकती है। वहीं, धारा 16क. वेजबोर्ड लागू करने के विवाद या एरियर विवाद के चलते संस्‍थान द्वारा आपको पदच्‍युत या सेवामुक्‍त या छंटनी करने से रोकती है।
[16A. Employer not to dismiss, discharge, etc. newspaper employees.-- No employer in relation to a newspaper establishment shall, by reason of his liability for payment of wages to newspaper employees at the rates specified in an order of the Central Government under section 12, or under section 12 read with section 13AA or section 13DD, dismiss, discharge or retrench any newspaper employee.]
[धारा 16क. नियोजक द्वारा समाचारपत्र कर्मचारियों को पदच्‍युत, सेवोन्‍मुक्‍त, आदि न किया जाना-- किसी समाचारपत्र स्‍थापन के संबंध में कोई नियोजक, धारा 12 के अधीन या धारा 13कक या धारा 13घ घ के साथ पठित धारा 12 के अधीन केन्‍द्रीय सरकार के किसी आदेश में विनिर्दिष्‍ट समाचारपत्र कर्मचारियों को मजदूरी के संदाय के अपने दायित्‍व के कारण, किसी समाचारपत्र कर्मचारी को पदच्‍युत या सेवोन्‍मुक्‍त नहीं करेगा या उसकी छंटनी नहीं करेगा।]
परमानंद पांडेय एडवोकेट
सुप्रीम कोर्ट

मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई 14 मार्च को

 सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड प्रकरण की अगली सुनवाई की तारीख तय हो चुकी है. इसी महीने यानि मार्च की चौदह तारीख को सुनवाई की जाएगी. यह जानकारी भड़ास4मीडिया की तरफ से सैकड़ों अवमानना केस दायर करने वाले एडवोकेट उमेश शर्मा ने दी. यह  जानकारी उमेश शर्मा जी ने दी है . जो भी मीडिया कर्मचारी अभी उच्चतम न्यायालय में खुले रूप से अथवा गुप्त रूप से अपने याचिका लगाना चाहते हैं, वो अभी भी तुरंत रूप से संपर्क कर सकते हैं. अखबार प्रबंधन से अपना हक लेने के लिए चल रही न्यायिक लड़ाई में सहभागी बनने हेतु सम्पर्क सूत्र 011-2335 5388 पर दिन के आफिस आवर में कॉल कर सकते हैं या फिर मेल आईडी legalhelplineindia@gmail.com पर मेल कर सकते हैं.


Thursday, March 3, 2016

लिपस्टिक से बनाती हैं पोट्रेट

ह्यूस्‍टन की रहने वाली नताली आयरिश एक विजुअल आर्टिस्‍ट है। उनका मी‍डि‍यम मेटल, पेंट, क्‍ले, फेब्रिक और चारकोल है लेकिन उन्‍होंने लिपस्टिक का यूज कर पोट्रेट्स बनाकर सबका ध्‍यान आकर्षित किया।
वे मर्लिन मुनरो, जिमी हेंड्रि‍क्‍स और रॉय रोजर्स के लिप प्रिंट पोट्रेट बनाकर 2011 में मीडिया में छा गई थी।उनका एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस आर्ट‍िस्‍ट के इस इनसाइडर वीडियो को फेसबुक पर 2 करोड़ 87 लाख से ज्‍यादा लोगों ने देख लिया है।

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