Tuesday, March 8, 2016

अब पशुओं में भी मादा ही जन्म लेगी

दिनेश माहेश्वरी
कोटा ।  देश में अब दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मादा पशु ही जन्म लेंगे। वर्तमान में यह अनुपात 50-50 का है। दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल (हरियाणा) में इस पर शोध किया गया है। जिसमें यह बात निकल कर आई है कि अब मादा पशुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वहीं नर पशुओं की संख्या का अनुपात 50 से घटाकर 10 प्रतिशत तक लाया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार ने 55 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। जिसकी पहली किश्त वर्ष 2014-15 में छह करोड़ रुपए जारी हो चुकी है।
इस प्रोजेक्ट के टीम लीडर एवं साइंटिस्ट टीके मोहंती ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। जिसमें काफी हद तक कामयाबी मिली है। उन्होंने बताया कि देश में पशुओं में नर ज्यादा पैदा होने से लोग इन्हें सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। आए दिन शहरों में सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। बैल यदि बनाते हैं, तो वर्तमान में इनका खेती में भी उपयोग नहीं होता है। क्योंकि ज्यादातर खेती ट्रैक्टर से होती है। ऐसे में नर का ज्यादा उपयोग नहीं है। सिवाय मादा पशुओं के गर्भाधान के। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, ताकि दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ेगी, तो दूध की मात्रा भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट पंचवर्षीय योजना में शामिल है। वर्ष 2014-15 में यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, जो वर्ष 2016-17 तक पूरा हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि अभी तक के अनुसंधान से यह बात तो स्पष्ट है कि सीमन के अंदर पाए जाने वाले एक्स और वाई गुणसूत्र में से यदि एक्स-एक्स मिलते हैं तो मादा और एक्स-वाई मिलने पर नर पैदा होते हैं। दोनों के बीच डीएनए में 3 से 4 प्रतिशत का अंतर आता है। 1985-86 में ऐसा ही एक प्रयोग खरगोश पर किया था। इसके बाद 2005 में यूएसए में इसका कॉमर्शियल उपयोग के लिए शोध हुआ। वहां पर हॉलिस्टन और जर्सी का सीमन मिलना शुरू हो गया है। अब भारत भी इसी दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए एक फ्लोरोसेंट एक्टिवेट सॉर्टर तैयार किया गया है। जिसमें से सीमन के अंदर से एक्स और वाई दोनों को अलग-अलग किया जाता है।
क्या है तरीका
लैब में इस इलेक्ट्रॉनिक सॉर्टर में से सीमन को बीकर के जरिए अलग-अलग किया जाता है। सॉर्टर में लगा लेजर सीमन के एक्स और वाई को पहचान करके अलग-अलग करता है। जिसे नहीं पहचान पाता है। उसे एक अलग बीकर में गिरा देता है। वैज्ञानिकों और पशु पालकों के लिए इस शोध के बाद बहुत आसान हो गया है कि वह जब चाहें मादा और वे जब चाहें नर का जन्म करा सकते हैं।
90 प्रतिशत फीमेल पैदा करना संभव
मोहंती ने बताया कि इस तकनीक से 90 प्रतिशत मादा और 10 प्रतिशत नर का अनुपात बनाए रखा जा सकेगा। क्योंकि नर का उपयोग सिर्फ गर्भाधान के लिए किया जा सकेगा। वह भी उन्नत नस्ल के नर पशु तैयार करके।
कौन है मोहंती
नेशनल डेयरी रिसर्च सेंटर करनाल में इंसेटिव हाईजिंग रिचार्ज इन एग्रीकल्चर के तहत सरकार की ओर से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट के टीम लीडर और साइंटिस्ट हैं। उनकी टीम में डॉ. एसके सिंगला भी हैं, जिन्होंने भैंस का क्लोन तैयार किया था।

0 comments:

Post a Comment