सुप्रीम कोर्ट में गए कर्मचारियों की एकता से घबराये अखबार मालिक अब उनकी एकता और मनोबल को तोड़ने के लिए समाचार-पत्र/पत्रिकाओं के ग्रेड को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। कर्मियों को अलग-अलग बुलाकर समझा रहे हैं कि हमारे समाचार-पत्र/पत्रिका की यूनिट मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार ग्रेड-4 या ग्रेड-5 में आ रही है। इसके अनुसार तो आपका वेतन इतना बनता है, जबकि हम आपको आज की डेट में इससे ज्यादा वेतन दे रहे हैं।
दैनिक जागरण का प्रबंधन कानपुर में अपने आपको चौथे, जालंधर व लुधियाना में पांचवें और धर्मशाला में खुद को सातवें ग्रेड का बता रहा है। यहां तक कि नोएडा यूनिट में वह कर्मियों को अपना ग्रेड चौथा बताता है। दैनिक जागरण प्रबंधन यहां तक ही बाज नहीं आ रहा, उसने नोएडा यूनिट में 16 जुलाई को हड़ताल करने की चेतावनी दे चुके कर्मियों के प्रतिनिधियों से कहा था कि उनका संस्थान तीसरे ग्रेड में आता है। इससे आप खुद समझ सकते हैं कि एक ही यूनिट अलग-अलग ग्रेड में कैसे आ सकती है।दैनिक जागरण ही नहीं ऐसा भ्रम भास्कर, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला आदि का प्रबंधन भी फैला रहा है। वे तर्क दे रहे हैं कि उनकी इस यूनिट का सालाना टर्न ओवर इतना है इसीलिए यहां इस ग्रेड का वेतनमान लागू होगा।
दैनिक जागरण या अन्य किसी समाचारपत्र या मैग्जीन के प्रबंधन के इस कुटिल छलावे में मीडिया कर्मी न आएं। जागरण हो या भास्कर या राजस्थान पत्रिका या अमर उजाला जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इनकी पूरे देश में फैली सभी यूनिटों का एक ही ग्रेड होगा, जो कि इनके पूरे ग्रुप के टर्न ओवर पर निर्भर करता ह
उदाहरण के तौर पर दैनिक भास्कर और जागरण समूह का सालाना टर्न ओवर एक हजार करोड़ रुपये से अधिक है। ऐसे में इन दोनों समूहों के अंतर्गत् आने वाले सभी समाचार-पत्र (किसी भी भाषा में हो या किसी अन्य नाम से), बेवसाइट और पत्रिकाओं में एक ही ग्रेड का वेतनमान लागू होगा।
यदि मीडिया कर्मियों से प्रबंधन ग्रेड को लेकर गलत बयानबाजी करता है तो उसी समय कंपनी का ग्रेड लिखित में संस्थान की मोहर, सक्षम अधिकारी की हस्ताक्षरयुक्त और दिनांक लगी कापी मांगें। फिर देखिए, प्रबंधन कैसे बगलें झांकता है और उसको न देने के लिए कैसी-कैसी बहानेबाजी करता है। क्योंकि वह जानता है कि ऐसा गलती से भी लिखकर दे देने से सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, इनकम टैक्स विभाग की नजरें भी कंपनी पर ढेढ़ी हो जाएंगी। जो कंपनियां शेयर बाजार से जुड़ी हुई हैं, उनपर तो सेबी की भी तिरछी नजरें इनायत हो जाएंगी।
नीचे दिए कुछ आंकड़ों से जाना जा सकता है कि कंपनी कौन से ग्रेड में हैं। यह आंकड़े इन कंपनियों ने अपनी सालाना वित्तीय रिपोर्ट में दिए हैं, जोकि इनकी बेवसाइट पर उपलब्ध हैं -
दैनिक भास्कर ग्रुप
2010-11 1,278 करोड़ रुपये
2011-12 1,469 करोड़ रुपये
2012-13 1,604 करोड़ रुपये
2013-14 1,880 करोड़ रुपये
जागरण प्रकाशन लिमिटेड
2010-11 1,138 करोड़ रुपये
2011-12 1,290 करोड़ रुपये
2012-13 1,411 करोड़ रुपये
2013-14 1,589 करोड़ रुपये
(
दैनिक जागरण का प्रबंधन कानपुर में अपने आपको चौथे, जालंधर व लुधियाना में पांचवें और धर्मशाला में खुद को सातवें ग्रेड का बता रहा है। यहां तक कि नोएडा यूनिट में वह कर्मियों को अपना ग्रेड चौथा बताता है। दैनिक जागरण प्रबंधन यहां तक ही बाज नहीं आ रहा, उसने नोएडा यूनिट में 16 जुलाई को हड़ताल करने की चेतावनी दे चुके कर्मियों के प्रतिनिधियों से कहा था कि उनका संस्थान तीसरे ग्रेड में आता है। इससे आप खुद समझ सकते हैं कि एक ही यूनिट अलग-अलग ग्रेड में कैसे आ सकती है।दैनिक जागरण ही नहीं ऐसा भ्रम भास्कर, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला आदि का प्रबंधन भी फैला रहा है। वे तर्क दे रहे हैं कि उनकी इस यूनिट का सालाना टर्न ओवर इतना है इसीलिए यहां इस ग्रेड का वेतनमान लागू होगा।
दैनिक जागरण या अन्य किसी समाचारपत्र या मैग्जीन के प्रबंधन के इस कुटिल छलावे में मीडिया कर्मी न आएं। जागरण हो या भास्कर या राजस्थान पत्रिका या अमर उजाला जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इनकी पूरे देश में फैली सभी यूनिटों का एक ही ग्रेड होगा, जो कि इनके पूरे ग्रुप के टर्न ओवर पर निर्भर करता ह
उदाहरण के तौर पर दैनिक भास्कर और जागरण समूह का सालाना टर्न ओवर एक हजार करोड़ रुपये से अधिक है। ऐसे में इन दोनों समूहों के अंतर्गत् आने वाले सभी समाचार-पत्र (किसी भी भाषा में हो या किसी अन्य नाम से), बेवसाइट और पत्रिकाओं में एक ही ग्रेड का वेतनमान लागू होगा।
यदि मीडिया कर्मियों से प्रबंधन ग्रेड को लेकर गलत बयानबाजी करता है तो उसी समय कंपनी का ग्रेड लिखित में संस्थान की मोहर, सक्षम अधिकारी की हस्ताक्षरयुक्त और दिनांक लगी कापी मांगें। फिर देखिए, प्रबंधन कैसे बगलें झांकता है और उसको न देने के लिए कैसी-कैसी बहानेबाजी करता है। क्योंकि वह जानता है कि ऐसा गलती से भी लिखकर दे देने से सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, इनकम टैक्स विभाग की नजरें भी कंपनी पर ढेढ़ी हो जाएंगी। जो कंपनियां शेयर बाजार से जुड़ी हुई हैं, उनपर तो सेबी की भी तिरछी नजरें इनायत हो जाएंगी।
नीचे दिए कुछ आंकड़ों से जाना जा सकता है कि कंपनी कौन से ग्रेड में हैं। यह आंकड़े इन कंपनियों ने अपनी सालाना वित्तीय रिपोर्ट में दिए हैं, जोकि इनकी बेवसाइट पर उपलब्ध हैं -
दैनिक भास्कर ग्रुप
2010-11 1,278 करोड़ रुपये
2011-12 1,469 करोड़ रुपये
2012-13 1,604 करोड़ रुपये
2013-14 1,880 करोड़ रुपये
जागरण प्रकाशन लिमिटेड
2010-11 1,138 करोड़ रुपये
2011-12 1,290 करोड़ रुपये
2012-13 1,411 करोड़ रुपये
2013-14 1,589 करोड़ रुपये
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