दिनेश माहेश्वरी
कोटा। अब तक आप अपना और अपनी महंगी चीजों का बीमा डायरेक्ट करवा लेते थे लेकिन अक्टूबर 2016 से ऐसा नहीं हो पाएगा। 1 अक्टूबर 2016 से बीमा पॉलिसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में मिलने लगेगी। यह बिलकुल उस तरह होगा जैसे आप ऑनलाइन शेयर खरीदते हैं और फिर वो डीमेट फॉर्म में जमा हो जाते हैं।
अक्टूबर से ज्यादातर पॉलिसीज जिसमें मोटर बीमा और ओवरसीज ट्रेवल बीम पॉलिसी केवल डीमेट फॉर्म में ली जा सकेंगी। इसके लिए उपभोक्ता को ई-अकाउंट बनाना होगा। अब तक बीमा कोष पहले से मौजूद फीजिकल डॉक्युमेंट में होती हैं जिन्हें डीमेट में कन्वर्ट किया जाता है लेकिन अक्टूबर से पॉलिसी को डीमेट फॉर्म में ही जारी किया जाएगा।
इंश्युरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया रेगुलेशन 2016 ने डिजिटल इंश्युरेंस पॉलिसी के कामकाज के लिए नियम बनाए हैं। ई-इंश्युरेंस के फायदे वैसे ही होंगे जैसे डीमेट से सुरक्षा, स्टॉक और बॉन्ड में निवेश के लिए होते हैं। पॉलिसी जारी करने के लिए एप्लीकेशन लिखने से लेकर पॉलिसी जारी होने तक के सारे काम अब पेपरलेस होंगे।
फ्यूचर जनराली इंडिया इंश्युरेंस के सीईओ एसवारा नरायणन के अनुसार इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि कोई भी उपभोक्ता किसी भी तरह की नकली पॉलिसी और कागजों के चलते धोखाधड़ी का शिकार नहीं होगा। वहीं बजाज कैपीटल के ग्रुप सीईओ और डायरेक्टर अनिल चोपड़ा के अनुसार ई-इंश्युरेंस को कम ही लोग जानते हैं इसलिए इसका उपयोग भी कम है।
कम जागरूकता और बीमा कंपनियों द्वारा कम प्रचार ई-अकाउंट के लिए दिक्कतें पैदा करेगा। इसलिए अगर किसी पॉलिसी को रिन्यू करवाना हो तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि आपका ई-अकाउंट हो।
केम्स रिपोजिटरी सर्विस के सीईओ सीवी रामानन बताते हैं कि ई-इंश्युरंस को जो प्रतिसाद मिला है वो मिलाजुला है। इसके पीछे कारण यह है कि यह अब भी ज्यादा लोगों तक नही पहुंचा। पॉलिसी का मालिक इंश्युरेंस करने वाले या सेल्स पर्सन की राय ज्यादा मानते हैं।
शुरुआती समस्याएं
ई-पॉलिसी के लिए उपभोक्ता को ई-अकाउंट खोलना होगा जो अपनी एक समस्या है। अकाउंट खोलने के बाद उसे किसी पेपर के बजाय ई-फार्म भरना होगा। जहां तक डिजिटल पहुंच की बात है तो यह अब भी बड़े वर्ग तक अपनी पहुंच नहीं बना पाया है।
कोटा। अब तक आप अपना और अपनी महंगी चीजों का बीमा डायरेक्ट करवा लेते थे लेकिन अक्टूबर 2016 से ऐसा नहीं हो पाएगा। 1 अक्टूबर 2016 से बीमा पॉलिसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में मिलने लगेगी। यह बिलकुल उस तरह होगा जैसे आप ऑनलाइन शेयर खरीदते हैं और फिर वो डीमेट फॉर्म में जमा हो जाते हैं।
अक्टूबर से ज्यादातर पॉलिसीज जिसमें मोटर बीमा और ओवरसीज ट्रेवल बीम पॉलिसी केवल डीमेट फॉर्म में ली जा सकेंगी। इसके लिए उपभोक्ता को ई-अकाउंट बनाना होगा। अब तक बीमा कोष पहले से मौजूद फीजिकल डॉक्युमेंट में होती हैं जिन्हें डीमेट में कन्वर्ट किया जाता है लेकिन अक्टूबर से पॉलिसी को डीमेट फॉर्म में ही जारी किया जाएगा।
इंश्युरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया रेगुलेशन 2016 ने डिजिटल इंश्युरेंस पॉलिसी के कामकाज के लिए नियम बनाए हैं। ई-इंश्युरेंस के फायदे वैसे ही होंगे जैसे डीमेट से सुरक्षा, स्टॉक और बॉन्ड में निवेश के लिए होते हैं। पॉलिसी जारी करने के लिए एप्लीकेशन लिखने से लेकर पॉलिसी जारी होने तक के सारे काम अब पेपरलेस होंगे।
फ्यूचर जनराली इंडिया इंश्युरेंस के सीईओ एसवारा नरायणन के अनुसार इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि कोई भी उपभोक्ता किसी भी तरह की नकली पॉलिसी और कागजों के चलते धोखाधड़ी का शिकार नहीं होगा। वहीं बजाज कैपीटल के ग्रुप सीईओ और डायरेक्टर अनिल चोपड़ा के अनुसार ई-इंश्युरेंस को कम ही लोग जानते हैं इसलिए इसका उपयोग भी कम है।
कम जागरूकता और बीमा कंपनियों द्वारा कम प्रचार ई-अकाउंट के लिए दिक्कतें पैदा करेगा। इसलिए अगर किसी पॉलिसी को रिन्यू करवाना हो तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि आपका ई-अकाउंट हो।
केम्स रिपोजिटरी सर्विस के सीईओ सीवी रामानन बताते हैं कि ई-इंश्युरंस को जो प्रतिसाद मिला है वो मिलाजुला है। इसके पीछे कारण यह है कि यह अब भी ज्यादा लोगों तक नही पहुंचा। पॉलिसी का मालिक इंश्युरेंस करने वाले या सेल्स पर्सन की राय ज्यादा मानते हैं।
शुरुआती समस्याएं
ई-पॉलिसी के लिए उपभोक्ता को ई-अकाउंट खोलना होगा जो अपनी एक समस्या है। अकाउंट खोलने के बाद उसे किसी पेपर के बजाय ई-फार्म भरना होगा। जहां तक डिजिटल पहुंच की बात है तो यह अब भी बड़े वर्ग तक अपनी पहुंच नहीं बना पाया है।
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