Sunday, August 21, 2016

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अखबार की सभी यूनिटों को माना है एक..

मजीठिया को लेकर चल रही हक की लड़ाई की 23 अगस्त 2016 की सुनवाई को लेकर सभी साथी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस दिन माननीय अदालत 20(जे) को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 के अनुसार सुनवाई करेगी। पूरी आशा है कि जीत कर्मचारियों की होगी क्योंकि एक्ट बड़ा है न की मजीठिया की सिफारिशें। चलिए अब बात करते हैं मजीठिया को लेकर अखबार मालिकों द्वारा कई राज्यों के लेबर विभाग के माध्यम से कंपनी का Classification गलत व मनमाने तरीके से अपने आप को lower कैटगरी में बताया गया है उदाहरण के लिए उत्तराखंड द्वारा दी गई रिपोर्ट में दैनिक जागरण अखबार ने अपने आप को 5 वीं कैटगरी में दिखाया है जबकि ये अखबार 1वीं कैटगरी में आता है। वहीं, अमर उजाला ने भी अपने आपको 5वीं कैटगरी का दिखाया है, जबकि उसकी कैटगरी 2वीं है। इसी तरह अन्य अखबारों ने भी अपने आप को दर्शाया होगा।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने 7 फरवरी 2014 के फैसले की पेज संख्या 54 के कॉलम 58 में साफ लिखा है कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 2(डी) के अनुसार ऑल- इंडिया न्यूजपेपर establishment की financial capacity and gross revenue के लिए अखबार की सभी यूनिटों को एक माना जाएगा। साथ ही माननीय कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि establishment की व्यक्तिगत (Individual) यूनिट आर्थिक रूप से चाहे अक्षम हो तब हम ये नहीं कह सकते की न्यूजपेपर establishments जीने योग्य नहीं है।

58) On the other hand, it is the stand of the Union of India that in the absence of availability of such parameters for the assessment of capacity to pay of the newspaper establishments, it is judicially accepted methodology to determine the same on the basis of gross revenue and relied on the observations in Indian Express Newspapers (Pvt.) Ltd. (supra):-

“16…In view of the amended definition of the “newspaper establishment” under Section 2(d) which came into operation retrospectively from the inception of the Act and the Explanation added to Section 10(4), and in view further of the fact that in clubbing the units of the establishment together, the Board cannot be said to have acted contrary to the law laid down by this Court in Express Newspapers case, the classification of the newspaper establishments on all-India basis for the purpose of fixation of wages is not bad in law. Hence it is not violative of the petitioners’ rights under Articles 19(1)(a) and 19(1)(g) of the Constitution. Financial capacity of an all-India newspaper establishment has to be considered on the basis of the gross revenue and the financial capacity of all the units taken together. Hence, it cannot be said that the petitioner-companies as all-India newspaper establishments are not viable whatever the financial incapacity of their individual units. After amendment of Section 2(d) retrospectively read with the addition of the Explanation to Section 10(4), the old provisions can no longer be pressed into service to contend against the grouping of the units of the all-India establishments, into one class.”

आगे अपने फैसले में माननीय कोर्ट ने लिखा है कि एक्ट के सेक्शन 2(डी) जिसे सेक्शन 10(4) के साथ पड़ा जाए, जिसके अनुसार देश भर में फैली अखबार की सभी यूनिटों को एक ही मानना जाएगा। पुराने प्रावधान सभी यूनिटों को एक होने से नहीं रोक सकते। अब आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि अखबार प्रबंधन किस तरह माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07 फरवरी 2014 के फैसले की अवमानना करने पर आमादा हैं।

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