Monday, September 8, 2014

सभी मालिक मजीठिया वेतनमान से 10 गुना कम वेतन दे रहे हैं

सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सरकार का आदेश, फिर भी अपने हक के लिए पत्रकार तरस रहे हैं। कारण एकता की कमी। दरअसल पत्रकारों के मन में मालिकों ने ऐसी घिनौनी सोच भर दी है जिससे भाई-भाई एक दूसरे की रोटी छीनना चाहते है, नौकरी खाना चाहते है, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची है। अब मजीठिया की बारी आई तो पत्रकार एकजुट होने के बजाए एक-एक कर कानून के द्वार पिछले रास्ते से जा रहे हैं। ऐसे में जाहिर है आप कितने भी हिम्मती हैं लेकिन परेशान होकर अपना हक छोड़ देंगे।
क्या करें पत्रकार
सबसे पहले पत्रकारों को एकता की जरूरत है। कम से कम एक ग्रुप में 10 लोग हों तो अच्छी बात है। एक साथ लेबर आफिस में कम्प्लेन करें या कोर्ट केस करें। चूंकि पत्रकारों के वेतन या देनदारी विवाद का मामला औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के दायरे में आता है। जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 17 में इसका उल्लेख है। यदि कंपनी पर कर्मचारी की कोई बकाया राशि है तो राज्य सरकार या कर्मचारी स्वयं सक्षम प्रधिकृत अधिकारी से शिकायत करेगा और शासन या कोर्ट ऐसी बकाया राशि पाती है तो कलेक्टर आरआरसी जारी कर बकाया राशि की वसूली करेगा। कुछ लोग कहते हैं कि हम तो करार करा लिए हैं, पत्रकारों से लिखा चुके हैं कि हमें मजीठिया वेतन नहीं चाहिए। उनके लिए जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 खास है। जिसके तहत करार, संविदा नियुक्ति होने की दशा में भी यह अधिनियम मान्य होगा। अर्थात् यदि करार या संविदा नियुक्ति में आपको मजीठिया से ज्यादा फायदा मिल रहा है तो कोई बात नहीं लेकिन कम लाभ मान्य नहीं है।
गणना में परेशानी
दूसरी परेशानी पत्रकारों के साथ गणना की आ रही है। मजीठिया वेतनमान की गणना नहीं कर पा रहे हैं। चूंकि मेरी गणित कमजोर है और गणना की आधी अधूरी जानकारी है इसलिए अपने जानकार साथियों से गणना की गणित प्रस्तुत करने का अनुरोध करता हूं। हां, एक वरिष्ठ पत्रकार ने पीटीआई, व कुछ पेपरों की सैलरी सीट मजीठिया वेतनमान के अनुरूप सामने रखी थी, उससे अपको मदद मिल सकती है। चूंकि वर्तमान में सभी मालिक मजीठिया वेतनमान से 10 गुना कम वेतन दे रहे है इसलिए पत्रकारों को एक होने की सख्त जरूरत है।

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