दिनेश माहेश्वरी | कोटा
दालें महंगी होने का असर अब कोटा की कचौरी पर भी दिखने लगा है। व्यापारियों ने दाम तो नहीं बढ़ाए, हां वजन जरूर कम कर दिया। अब ज्यादातर दुकानों पर साइज छोटी करके कचौरी 60 की जगह 50 ग्राम की बनाई जा रही है, जो 5 से 10 रुपए प्रति नग तक बिक रही है।
कचौरी का वजन विक्रेताओं ने इस तरह कम किया कि रोज कचौरी खाने वालों को भी एकदम से उसका पता नहीं लग पाता। लेकिन, गौर से देखें तो कचौरी साइज में छोटी नजर आएगी। कुछ नामी विक्रेताओं से जब कचौरी की साइज छोटी होने के बारे में भास्कर ने पूछा तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया। परन्तु आखिर उनकी जुबान से निकल ही गया कि हां दाल की मात्रा कम कर दी है। दूसरे ने कहा कि 60 ग्राम की जगह 50 से 55 ग्राम की हो गई है।रतलामी कचौरी वाले रूपचंद जैन और रतन कचौरी वाले मनोज जैन का तर्क है कि कचौरी में काम आने वाली उड़द मोगर दाल 80 रुपए किलो की जगह 160 से 170 रुपए किलो पड़ रही है। चना दाल 40 की जगह 60 से 65 रुपए किलो हो गई है। ऐसे में कचौरी विक्रेताओं का मार्जिन भी घट रहा है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ही कचौरी के दाम नहीं बढ़ाकर वजन कम किया है। एक दशक पहले तक कचौरी 80 से 85 ग्राम तक की होती थी, किंतु जैसे-जैसे महंगाई बढ़ती गई, कचौरी का साइज घटने के साथ दाम भी बढ़ गए। वर्तमान में शहर के नामी कचौरी विक्रेता 7 से लेकर 10 रुपए प्रति नग की दर पर कचौरी बेच रहे हैं। जबकि छोटे दुकानदार 5 से 6 रुपए में उनसे बड़ी कचौरी बेच रहे हैं। बड़े दुकानदारों का दावा है कि वे मूंगफली के तेल में बनाते हैं, जबकि छोटे दुकानदार सोया रिफाइंड में। इसलिए उनके यहां दाम ज्यादा हैं।
एक कचौरी पर कितनी लागत
कुछछोटे कचौरी विक्रेताओं का कहना है कि एक कचौरी की लागत 3.50 से 4 रुपए आती है। दुकानदार उसे 5 से लेकर 10 रुपए तक में बेचते हैं। मूंगफली तेल का तेल फिलहाल 1500 से 1600 रुपए का टिन है।
नयापुरा की एक दुकान पर बिकती कचौरी।
रोजाना 5 लाख कचौरी की खपत
शहरमें छोटे-बड़े सभी दुकानदार मिलकर कम से कम पांच लाख कचौरी रोजाना बेचते हैं। समोसे की बिक्री अलग है। अगर केवल कचौरी की बिक्री का आंकड़ा निकालें तो कम से कम 35 से 40 लाख रुपए रोजाना का बिजनेस है।
विधानसभा,संसद और विदेशों तक मांग : कचौरीविक्रेताओं के अनुसार कोटा कचौरी का नाम संसद तक फेमस है। यहां के जनप्रतिनिधि कोटा की बनी कचौरियां लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंचाते हैं। यहां तक कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी तक यहां की कचौरी का स्वाद चख चुके हैं। यहां के व्यक्ति विदेश में जाकर जॉॅब करते हैं, लेकिन जब आते हैं तो 200 से 300 कचौरी एक साथ पैक कराकर अपने साथ ले जाते हैं।
दालें महंगी होने का असर अब कोटा की कचौरी पर भी दिखने लगा है। व्यापारियों ने दाम तो नहीं बढ़ाए, हां वजन जरूर कम कर दिया। अब ज्यादातर दुकानों पर साइज छोटी करके कचौरी 60 की जगह 50 ग्राम की बनाई जा रही है, जो 5 से 10 रुपए प्रति नग तक बिक रही है।
कचौरी का वजन विक्रेताओं ने इस तरह कम किया कि रोज कचौरी खाने वालों को भी एकदम से उसका पता नहीं लग पाता। लेकिन, गौर से देखें तो कचौरी साइज में छोटी नजर आएगी। कुछ नामी विक्रेताओं से जब कचौरी की साइज छोटी होने के बारे में भास्कर ने पूछा तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया। परन्तु आखिर उनकी जुबान से निकल ही गया कि हां दाल की मात्रा कम कर दी है। दूसरे ने कहा कि 60 ग्राम की जगह 50 से 55 ग्राम की हो गई है।रतलामी कचौरी वाले रूपचंद जैन और रतन कचौरी वाले मनोज जैन का तर्क है कि कचौरी में काम आने वाली उड़द मोगर दाल 80 रुपए किलो की जगह 160 से 170 रुपए किलो पड़ रही है। चना दाल 40 की जगह 60 से 65 रुपए किलो हो गई है। ऐसे में कचौरी विक्रेताओं का मार्जिन भी घट रहा है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ही कचौरी के दाम नहीं बढ़ाकर वजन कम किया है। एक दशक पहले तक कचौरी 80 से 85 ग्राम तक की होती थी, किंतु जैसे-जैसे महंगाई बढ़ती गई, कचौरी का साइज घटने के साथ दाम भी बढ़ गए। वर्तमान में शहर के नामी कचौरी विक्रेता 7 से लेकर 10 रुपए प्रति नग की दर पर कचौरी बेच रहे हैं। जबकि छोटे दुकानदार 5 से 6 रुपए में उनसे बड़ी कचौरी बेच रहे हैं। बड़े दुकानदारों का दावा है कि वे मूंगफली के तेल में बनाते हैं, जबकि छोटे दुकानदार सोया रिफाइंड में। इसलिए उनके यहां दाम ज्यादा हैं।
एक कचौरी पर कितनी लागत
कुछछोटे कचौरी विक्रेताओं का कहना है कि एक कचौरी की लागत 3.50 से 4 रुपए आती है। दुकानदार उसे 5 से लेकर 10 रुपए तक में बेचते हैं। मूंगफली तेल का तेल फिलहाल 1500 से 1600 रुपए का टिन है।
नयापुरा की एक दुकान पर बिकती कचौरी।
रोजाना 5 लाख कचौरी की खपत
शहरमें छोटे-बड़े सभी दुकानदार मिलकर कम से कम पांच लाख कचौरी रोजाना बेचते हैं। समोसे की बिक्री अलग है। अगर केवल कचौरी की बिक्री का आंकड़ा निकालें तो कम से कम 35 से 40 लाख रुपए रोजाना का बिजनेस है।
विधानसभा,संसद और विदेशों तक मांग : कचौरीविक्रेताओं के अनुसार कोटा कचौरी का नाम संसद तक फेमस है। यहां के जनप्रतिनिधि कोटा की बनी कचौरियां लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंचाते हैं। यहां तक कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी तक यहां की कचौरी का स्वाद चख चुके हैं। यहां के व्यक्ति विदेश में जाकर जॉॅब करते हैं, लेकिन जब आते हैं तो 200 से 300 कचौरी एक साथ पैक कराकर अपने साथ ले जाते हैं।
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