Tuesday, December 29, 2015

ऐप्‍स बढ़ाते हैं स्‍मार्टफोन बैटरी की खपत

अगर आपके स्‍मार्टफोन है तो निश्चित तौर पर उसमें कई ऐप्‍स भी होंगे। ऐप्‍स की वजह से हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के कई काम आसान हो जाते हैं।
सामान्‍यत: स्‍मार्टफोन यूजर्स के पास सोशल नेटवर्किंग ऐप्‍स, मैसेंजर्स तथा गेम्स होते हैं। यूजर्स की हमेशा शिकायत रहती है कि उनके फोन की बैटरी जल्‍दी खत्‍म हो जाती है। कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्‍यों होता है। दरअसल आपके स्‍मार्टफोन में मौजूद ऐप्‍स सबसे ज्‍यादा बैटरी खपत करते हैं।
ऐप्‍स स्मार्टफोन की बैटरी की खपत तो करते ही हैं साथ ही स्‍टोरेज स्‍पेस भी काफी उपयोग कर लेते हैं। कुछ ऐप्‍स तो ऐसे हैं, जो फोन की प्राइमरी मेमोरी में ही स्‍टोर होते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपके फोन की बैटरी खपत कम हो और मेमोरी स्‍पेस भी कम उपयोग हो तो अनुपयोगी ऐप्‍स को अनइंस्‍टॉल कर दीजिए।
आज हम आपको कुछ ऐसे ऐप्‍स के बारे में बता रहे हैं जो स्‍मार्टफोन की बैटरी काफी अधिक खर्च करते हैं।
वीचैट : वीचैट एक इंस्‍टेंट मैसेंजर ऐप है, जो फोन की काफी बैटरी खर्च कर देता है। इस ऐप से टेक्‍स्‍ट मैसेज के साथ ही वॉयस मैसेज भी किया जा सकता है।
एंड्रॉयड फर्मवेअर अपडेटर : यह एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्‍टम का एक ऐप है, जो बैकग्राउंड में एक्टिव रहता है तथा इंटरनेट तथा बैटरी की खपत करता रहता है।
बीमिंग सर्विस फॉर सैमसंग : सैमसंग स्‍मार्टफोन्‍स के लिए बनाया गया विशेष ऐप
सैमसंग सिक्योरिटी पॉलिसी अपडेटर : यह ऐप भी केवल सैमसंग के स्‍मार्टफोन्‍स में ही इंस्‍टॉल रहता है।
सैमसंग चैटऑन : यह सैमसंग का चैटिंग ऐप है, जो दूसरे सैमसंग फोन यूजर्स के साथ चैट की सुविधा देता है।
गूगल प्ले सर्विसेज : गूगल प्‍ले स्‍टोर का यह ऐप बैटरी तथा डेटा पैक की काफी खपत करता है।
फेसबुक : सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक का मोबाइल ऐप
बीबीएम : ब्‍लैकबेरी मैसेंजर
व्हाट्सएप : इंस्‍टेंट मैसेंजर जो फोन की प्राइमरी स्‍टोरेज में सेव होता है और काफी बैटरी की खपत करता है।
वेदर एंड क्लॉक विजट एंड्रॉयड

30 जून तक बदल सकेंगे 2005 से पहले के नोट

उपभोक्ताओं से साल 2005 के पुराने नोट बदलने में आरबीआई पूरी तरह से तैयार नजर आ रहा है। बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि भले ही आरबीआई ने पुराने नोट बदलने के लिए तय समय सीमा 31 दिसंबर से बढ़ाकर 30 जून 2016 करने के संकेत दिए है। इन संकेतों के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब लोगों को पुराने नोट बदलने ही होंगे। पुराने नोट बदलने के लिए जल्द ही आरबीआई द्वारा कुछ बैंकों को चिन्हित कर लिया जाएगा। इसके लिए अलग से अधिकारी भी नियुक्त होंगे।
जो केवल पुराने नोट के बदले जाने पर भी नजर रखेंगे। हालांकि अभी तक इस संबंध में अभी जानकारी नहीं है कि वे कौन से बैंक है जहां पुराने नोट बदले जाएंगे। साल 2005 से पहले के नोट बदलने की आखिरी तारीख अब तक 31 दिसंबर ही है। इसके अनुसार उपभोक्ताओं को अपने 2005 से पहले के नोट बदलने होंगे।इससे पहले पिछले साल अप्रैल में ही पुराने नोट बदली जाने थे, लेकिन आरबीआई ने तीन बार तारीख बढ़ा दी तथा इसे 31 दिसंबर 2015 कर दिया। बैंकिग अधिकारियों का कहना है कि इस बार आरबीआई लोगों के घरों में जमा पुराने नोट बाहर निकालने में सक्रिय नजर आ रहा है। बताया जाता है कि पुराने नोट बदलने की तारीख 30 जून तक बढ़ा दी गई है लेकिन अभी तक बैंकों के पास इस संबंध में कोई सूचना नहीं है। 
\कालेधन पर लगेगा लगाम
आरबीआई द्वारा पुराने नोट बदलने पर जोर देने का मुख्य कारण कालेधन पर लगाम लगाना है। बैंकिंग अधिकारियों का कहना है कि इससे काफी हद तक कालेधन पर लगाम कसेगा और लोग अपना पैसा दूसरे सेक्टरों में खपाने की कोशिश करेंगे। इससे आसानी से वे पकड़ में आएंगे। सूत्रों का कहना है कि इससे बहुत अधिक राशि सोने व रियल इस्टेट सेक्टर में भी खपेगा। 
ऐसे पहचाने पुराने नोट
साल 2005 से पहले के नोट के पीछे की ओर वर्ष का जिक्र नहीं है। जबकि इसके बाद के नोट के पीछे वर्ष का जिक्र है। जिससे आप बड़ी आसानी से पुराने नोट पहचान सकते है। इनमें मुख्य रूप से 500 व 1000 के नोट बदलवाने है।

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Friday, December 25, 2015

वॉट्सऐप पर अब वीडियो कॉलिंग की सुविधा

लोकप्रिय इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस वॉट्सऐप पर वॉयस कॉल के बाद अब वीडियो कॉल की भी सुविधा जल्द मिलने वाली है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वॉट्सऐप जल्द ही अपने यूजर्स को वीडिया कॉलिंग की सुविधा मुहैया करने वाला है। जर्मन वेबसाइट Macerkopf के अनुसार, यूजर्स को वीडियो कॉल के लिए दोनों कैमरों को चुनने का विकल्प मिलेगा।
वॉट्सऐप के एक्टिव यूजर्स की संख्या 90 करोड़ पार कर चुकी है। यह एप्लिकेशन अब अपनी मूल कंपनी फेसबुक जितना ही बड़ा रूप में है। फेसबुक मैसेंजर पर पहले से ही वीडियो कॉल की सुविधा मौजूद है, इसलिए वॉट्सऐप पर भी नई सुविधाओं को जोड़ने की जरूरत है।
जर्मन वेबसाइट ने वॉट्सऐप के स्क्रीनशॉट साझा किए हैं जो कथित तौर पर वीडियो कॉल के हैं। इन स्क्रीनशॉट के आधार पर कहा जा सकता है कि वॉट्सऐप के वीडियो कॉल फीचर का इंटरफेस बहुत हद वॉयस कॉल सपोर्ट के इंटरफेस जैसा ही है।स्क्रीनशॉट में यह भी दिख रहा है कि यूजर को म्यूट करने का विकल्प मिलेगा और वीडियो कॉल के दौरान कैमरा भी स्विच किया जा सकेगा यानि फ्रंट और रियर दोनों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, वॉट्सऐप के 2.12.16.2 आईओएस वर्जन को आंतरिक तौर पर टेस्ट किया जा रहा है। इस वर्जन में ही कथित तौर पर वीडियो कॉल सपोर्ट मौजूद है।
हालांकि वीडियो कॉल सपोर्ट को लेकर वॉट्सऐप की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि इसे अगले साल की शुरुआत में रोलआउट किया जाएगा।
वॉट्सऐप वीडियो कॉल का मोबाइल इंटरनेट पर कैसा प्रदर्शन होगा यह देखना  दिलचस्प होगा। मुफ्त वॉट्सऐप वॉयस कॉल ने शुरुआत में यूजर्स का काफी ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन जल्द ही लोगों ने इसे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है, खासकर भारत में, जहां 3 जी नेटवर्क के बिना बातचीत करना लगभग असंभव है।

Sunday, December 20, 2015

पत्रकारों को भी पेंशन दे सरकार : हाईकोर्ट

हिमाचल हाईकोर्ट ने मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों को पेंशन दिए जाने का प्रावधान बनाने के आदेश पारित किए हैं। प्रदेश सरकार को यह आदेश जारी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा सरकार की ओर से पत्रकारों को पेंशन दिए जाने बाबत बनाए गए नियमों की तर्ज पर प्रदेश में भी नियम बनाए जाएं। न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया के पत्रकारों को यह लाभ देने के लिए 3 माह का समय दिया है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जिन पत्रकारों ने अपनी जिंदगी के अहम दिन इस व्यवसाय में लगा दिए, उन्हें पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने पत्रकारों के कल्याण के लिए अभी तक कोई भी पेंशन और स्वास्थ्य योजना नहीं बनाई है। पत्रकारों को इस तरह की योजना का लाभ दिया जाना जरूरी है। कोर्ट के अनुसार जिन पत्रकारों ने इस व्यवसाय में कम से कम 20 साल पूरे कर लिए हैं, उन्हें पेंशन जैसा लाभ दिए जाने का प्रावधान बनाया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि पत्रकारों को अदालतों की कार्यवाही की रिपोर्ट पेश करने के मामले में अतिरिक्त सावधानियां रखनी चाहिए। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की एक पीठ ने अपने आदेश को गलत ढंग से पेश करने के लिए एक अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। पीठ ने यह कहते हुए कि 'कलम की ताकत, तलवार की ताकत से अधिक होती है', आगे कहा कि रिपोर्टिंग त्रुटि रहित, वास्तविक और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए।

Monday, December 14, 2015

मजीठिया को लेकर मीडिया यूनियनों की चुप्पी

 सुप्रीम कोर्ट में 7 फरवरी और फिर 10 अप्रैल 2014 के बाद पत्रकारिता जगत में कोई हलचल नहीं मची। मजीठिया वेतन बोर्ड के खिलाफ मुकदमा जिताने का दावा करने वाली देश की बड़ी-बड़ी यूनियनों ने हाथ खड़े कर दिए। ये वही संस्थााएं थीं जो सुप्रीम कोर्ट में मालिकों को नाकों चने चबवाने का दावा कर रही थीं लेकिन समझ में नहीं आया कि इतना सब करने वाली ये यूनियनें जब मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने की बात हुई तो उन्हें सांप क्यों सूंघ गया। न पीटीआई, न यूएनआई ( खैर इनकी अब हालत पहले जैसी नहीं रही) की यूनियनें, न डीयूजे और न ही आई एफडब्यूएनआईजे ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए मालिकों को कटघरे में खड़ा किया। आखिर उनकी चुप्पी का राज क्या था। जीत का दावा करने वालों को पता होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में जीतने के बाद असल काम तो इसे लागू कराना है जहां उनकी जरूरत थी।
10 अप्रैल और और मई के पहले हफ्ते तक भी इन यूनियनों को कोई होश नहीं था। लेकिन जब दैनिक जागरण, भास्कर, प्रभात खबर, डीएनए, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी के प्रबंधनों के खिलाफ आवाज उठने लगी। पूरे देश में एक माहौल बना। सोशल मीडिया पर बताया गया कि सभी साथियों को इस बार क्यों मालिकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए तो लगभग पूर देश के पीडि़त साथी, इस बात से सहमत थे कि उनके चुप बैठने से काम नहीं चलेगा। उन्हें कुछ करना पड़ेगा और उसकी शुरुआत देश के सबसे अधिक लाभ कमाने वाले पर घटिया प्रबंधन वाले अखबार दैनिक जागरण के साथियों ने की। सबको आश्चर्य हुआ कि इतना बड़ा फैसला पहली बार देश में दैनिक जागरण के साथियों ने लिया। हम में से किसी को यह उम्मीद नहीं थी। लेकिन हकीकत यही है।
माहौल बना और प्रबंधन को नोटिस दिया गया। इसके बाद इसका पूरे जोर-शोर से प्रचार किया गया और नतीजा बेहतर निकला जब तक दै‍निक जागरण के साथी मामला दर्ज करवाते, एक और चमत्कार हो चुका था। दैनिक भास्‍क्‍र के साथी अपने मालिक रमेशचंद्र अग्रवाल को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने का बीड़ा उठा चुके थे। जून और जुलाई आते-आते मालिकों के खिलाफ माहौल गर्म हो चुका था और सितंबर आते-आते इंडियन एक्सप्रेस के साथियों के मामले में सुनवाई शुरू हो गई। इस समय तक सुप्रीम कोर्ट में छह मामले दर्ज कराए जा चुके थे और साथियों को मना करने के बाद भी देश के लगभग हर शहर में अन्याय के खिलाफ लड़ने का मन बना चुके थे। हालांकि मामला सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाएगा और सभी साथियों से फिर निवेदन है कि वे अपनी ताकत न गंवाएं और लड़ाई सु्प्रीम कोर्ट में लड़ने के लिए ताकत संजोकर रखें। लेकिन उत्साह और उबाल इतना कि शिमला, अहमदाबाद, पटना, मुंबई, पुणे, कानपुर, रांची, चंडीगढ़, लुधियाना, हिसार, पानीपत, जम्मू, जयपुर ,लखनऊ और इंदौर जैसे शहरों के साथी हिम्म़त के साथ आगे आए। कई लोग हाईकोर्ट गए तो कई लेबर कोर्ट। मालिकों को जवाब देना पड़ा। लेकिन इतने दिनों तक किसी यूनियन की नींद नहीं खुली।


हमें क्यों चाहिए मजीठिया : दूर करें भ्रांतियां...

प्रश्न. मेरा स्‍थानांतरण ग्रुप की दूसरी कंपनी में कर दिया गया है। मैं जिस कंपनी में था वह ए ग्रुप की कंपनी थी। मेरा विभाग और पद भी बदल दिया गया है, ऐसे में वेजबोर्ड लागू होने पर मेरे वेतन का आधार क्‍या होगा।
उत्तर. आपके या इसी तरह के किसी अन्‍य केस में कंपनी आपको ए ग्रेड के हिसाब से मिलने वाले लाभ से वंचित नहीं कर सकती है। आपका तबादला जिस तिथि में हुआ उस तिथि में मजीठिया के अनुसार आपका जो वेतनमान होना चाहिए उससे एक भी नया पैसा आपको संस्‍थान कम नहीं दे सकती है। आपका एरियर भी ए ग्रेड के वेतनमान के अनुसार ही कंपनी को देना होगा। दूसरी कंपनी में रहते भी हुए आप ए ग्रेड की कंपनी के वेतनमान के अनुसार ही वेतन पाने के अधिकारी हैं। ग्रुप ए के वेतनमान से कंपनी आपको वंचित नहीं कर सकती।
प्र. जिस संस्‍थान में मैं कार्य कर रहा हूं वेजबोर्ड में उसका ग्रेड सी है। ऐसी अफवाह है कि संस्‍थान पूरी तरह से वेजबोर्ड के लाभ नहीं देने के मकसद से कंपनी को दो तीन भागों में बांट कर अपने मुनाफे का बंटवारा करना चाहता है। जिससे वे सी ग्रेड के वेतनमान देने से बच सकें।
उ. कंपनी को कई भागों में बांटने के बावजूद आपका संस्‍थान आपको सी ग्रेड के लाभ से वंचित नहीं कर सकता।
प्र. मैं पिछले पांच साल से बी ग्रेड की कंपनी में अनुबंध कर्मी के रुप में कार्य कर रहा हूं। क्‍या मैं भी वेजबोर्ड का लाभ पाने का हकदार हूं।
उ. जी हां। आप वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान पाने के हकदार हैं।

Friday, December 11, 2015

कोचिंग छोड़ने पर फीस वापस,होगी

दिनेश माहेश्वरी 
कोटा। राजस्थान में कोटा और अन्य शहरों के कोचिंग संस्थानो में पढ़ रहे बच्चे यदि बीच में पढ़ाई छोड़ना चाहें तो कोचिंग संस्थान को उनकी फीस वापस करनी होगी। इसके साथ ही इन कोचिंग संस्थाओं को नियमों के दायरे में लाया जाएगा और इसके लिए राज्य स्तर पर नियामक व्यवस्था लागू की जाएगी। कोटा के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ रहे बच्चों की लगातार आत्महत्याओं के बाद आखिर गुरूवार को जयपुर में राजस्थान में मुख्य सचिव सी.एस.राजन के स्तर पर बैठक हुई।
बैठक में सम्बन्धित विभागों के अधिकारी, कोटा जिला प्रशासन के अधिकारी और कुछ कोचिंग संस्थानों के प्रतिनिधि भी शमिल थे। कोटा में इस वर्ष 26 कोचिंग छात्र-छात्राएं आत्महत्याएं कर चुके हैं और इन संस्थानों में पढ़ाने के तरीके और बच्चो में बढ़ते तनाव को ले कर सख्त नियम बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी। बैठक में मुख्य सचिव ने कोचिंग बीच में छोड़ने के इच्छुक छात्रों की बकाया फीस लौटाने सरल एक्जिट सिस्टम विकसित करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव का मानना था कि कोचिंग संस्थानों की भारी फीस का दबाव बच्चों पर रहता है। ऐसे में यदि वे नहीं पढ़ पाते तो तनाव में आ जाते हैं। उन्हें माता- पिता द्वारा किए गए खर्च की चिंता सताने लगती है। उन्होंने कोचिंग संस्थाओं से कहा कि कोई छात्र यदि बीच में जाना चाहता है और उसकी फीस लौटा दी जाए तो बच्चों का तनाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसके साथ ही बैठक में कोचिंग संस्थानों के लिए नियामक सिस्टम विकसित करने पर भी सहमति बनी है। इसका ड्राफ्ट जल्द तैयार कर लिया जाएगा।
इसके जरिए सरकार कोचिंग संस्थानों की कार्यप्रणाली पर पूरी नजर रखेगी। अभी तक ये संस्थान सरकार के नियमों से बाहर है। बैठक में संस्थानों को बच्चों के स्ट्रेस मैनेजमेन्ट के लिए एक हैल्पलाइन और ट्रेनिंग मॉड्यूल बनाने के निर्देश भी दिए गए है। यह हैल्पलाइन मुख्य तौर पर दो काम करेगी जिसमें बच्चों को तनाव से दूर रखने के साथ ही स्कूल और कोचिंग साथ-साथ करने की समस्या से निपटने पर भी बात की जाएगी। कोचिंग में तो सिर्फ छह घंटे रहते हैं कोचिंग संस्थानों के प्रतिनिधियों ने मुख्य सचिव के सामने यह तर्क दिया कि बच्चे कोचिंग में तो महज छह घंटे ही रहते हैं, और बाकी के अठारह घंटे वे बाहर रहते हैं, ऐसे में सिर्फ उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं है। लेकिन मुख्य सचिव सीएस राजन ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया। कोचिंग संस्थानों ने कोचिंग पर कोई संकट आने की स्थिति में कोटा की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने का तर्क भी दिया। लेकिन इस तर्क को भी बैठक में खारिज कर दिया गया। अफसरों ने कहा कि एक शहर की इकॉनोमी की खातिर आने वाली पीढ़ी का भविष्य खतरे में नहीं डाला जा सकता।