मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 11 नवम्बर 2011 को भारत के राजपत्र में अधिसूचना संख्या 2532 (अ) में अधिसूचित्त आदेश दिया है जिसके मुताबिक़ 10 वर्ष की सेवा संतोषजनक करने पर पदोन्नति का प्रावधान है। यानि अगर आप दस साल से ज्यादा समय से एक ही समाचार पत्र प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं तो आपको एक प्रमोशन मिलना चाहिए था।
इसी आदेश में पूरे सेवाकाल में तीन प्रमोशन की बात है। यानी अगर आप 20 साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं एक ही समाचार पत्र या उस प्रतिष्ठान में तो आपको दो प्रमोशन मिलना चाहिए था जो कि समाचार पत्र प्रबंधन ने नहीं दिया है। इस बारे में मुम्बई के श्रम आयुक्त कार्यालय के पास भी इस बाबत कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। मुम्बई के निर्भीक पत्रकार शशिकांत सिंह ने मुम्बई शहर के श्रम आयुक्त कार्यालय के जन माहिती अधिकारी से ये जानकारी माँगा कि मुम्बई के कौन कौन से समाचार पत्रों ने मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक़ अपने उन समाचार पत्र कर्मियों और पत्रकारों को जो दस साल से अधिक समय से एक ही समाचार पत्र प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं, को प्रमोशन दिया है।
पूरी सूची शशिकांत सिंह ने एक मार्च को माँगा था जिस पर श्रम आयुक्त कार्यालय ने 9 मार्च 2016 को तीन लाइन का एक जवाब भेजा कि ये जानकारी हमारे कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। जबकि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर भारत सरकार ने इसे राजपत्र में अधिसूचित किया है और उसमे प्रमोशन की भी चर्चा है। अब सवाल ये उठता है कि अगर श्रम आयुक्त कार्यालय के पास ऐसी कोई सूची नहीं है तो फिर माननीय सुप्रीम कोर्ट को किस आधार पर रिपोर्ट सौपी गयी है।
क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुलेआम धज्जी नहीं उड़ा रहा है श्रम आयुक्त कार्यालय? फिलहाल वेतन के साथ अगर हम इस मुद्दे को भी अदालत में रख कर पूछें कि आपने कितने लोगों को प्रमोशन दिया है तो अच्छे अच्छे अख़बार मालिकों की और फर्जी रिपोर्ट तैयार कर माननीय सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने वाले श्रम आयुक्त कार्यालय की पूरी पोल पट्टी खुल जायेगी और उन्हें सजा भी मिलनी तय है।
इसी आदेश में पूरे सेवाकाल में तीन प्रमोशन की बात है। यानी अगर आप 20 साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं एक ही समाचार पत्र या उस प्रतिष्ठान में तो आपको दो प्रमोशन मिलना चाहिए था जो कि समाचार पत्र प्रबंधन ने नहीं दिया है। इस बारे में मुम्बई के श्रम आयुक्त कार्यालय के पास भी इस बाबत कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। मुम्बई के निर्भीक पत्रकार शशिकांत सिंह ने मुम्बई शहर के श्रम आयुक्त कार्यालय के जन माहिती अधिकारी से ये जानकारी माँगा कि मुम्बई के कौन कौन से समाचार पत्रों ने मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक़ अपने उन समाचार पत्र कर्मियों और पत्रकारों को जो दस साल से अधिक समय से एक ही समाचार पत्र प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं, को प्रमोशन दिया है।
पूरी सूची शशिकांत सिंह ने एक मार्च को माँगा था जिस पर श्रम आयुक्त कार्यालय ने 9 मार्च 2016 को तीन लाइन का एक जवाब भेजा कि ये जानकारी हमारे कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। जबकि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर भारत सरकार ने इसे राजपत्र में अधिसूचित किया है और उसमे प्रमोशन की भी चर्चा है। अब सवाल ये उठता है कि अगर श्रम आयुक्त कार्यालय के पास ऐसी कोई सूची नहीं है तो फिर माननीय सुप्रीम कोर्ट को किस आधार पर रिपोर्ट सौपी गयी है।
क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुलेआम धज्जी नहीं उड़ा रहा है श्रम आयुक्त कार्यालय? फिलहाल वेतन के साथ अगर हम इस मुद्दे को भी अदालत में रख कर पूछें कि आपने कितने लोगों को प्रमोशन दिया है तो अच्छे अच्छे अख़बार मालिकों की और फर्जी रिपोर्ट तैयार कर माननीय सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने वाले श्रम आयुक्त कार्यालय की पूरी पोल पट्टी खुल जायेगी और उन्हें सजा भी मिलनी तय है।
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