Thursday, March 31, 2016

कैसा पति चाहिए, जरूर देखिए

जमाना बहुत बदल गया है और महिलाएं अब अपने पसंद के जीवनसाथी को चुनने में हिचकिचाती नहीं है। अब इस वीडियो में ही देखिए बड़े ही सुरीले और मजेदार तरीके से इस महिला ने बताया कि आखिर उसे कैसा पति चाहिए। इस फनी वीडियो को सोशल मीडिया पर काफी शेयर किया जा रहा है। यह पता नहीं चला है कि यह कहां का वीडियो है लेकिन यह किसी किटी पार्टी का लग रहा है।


Wednesday, March 30, 2016

जाके राखो साइयां, मार सके ना कोई.............

12 वर्षीय बच्ची को मृत समझकर इलाहाबाद के गंगा तट में प्रावाहित करने के 6 साल बाद जिंदा देखकर परिजन आश्चर्य चकित हो गए। बच्ची ने सबसे पहले अपने बड़े पिताजी नरेंद्र कचेर को पहचाना था। मामला जिले के ब्यौहारी थाना क्षेत्र के कुआं गांव का है।
 ब्यौहारी के कुआं गांव निवासी झुरू कचेर की बेटी स्वाति उर्फ किशोरी 6 साल पहले एक रात खाना खाकर सोने चली गई। थोड़ी देर बाद उसके पेट में अचानक दर्द शुरू हो गया और मुंह से झाग निकलने लगा। परिजनों ने उसका झाड़फूंक से इलाज कराया, लेकिन उसकी धड़कनें थम गईं। इसके बाद परिजन उसे डॉक्टर के पास ले गए, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। इकलौती बेटी की मौत के बाद कचेर परिवार स्वाति को गंगा में प्रवाहित करने इलाहाबाद ले गया था। परिजनों के अनुसार ब्यौहारी से इलाहाबाद की दूरी अधिक होने के कारण करीब 36 घंटे बाद उसे प्रवाहित किया जा सका था। लेकिन उस समय तक बच्ची के शरीर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था, लेकिन डॉक्टरों द्वारा मृत घोषित करने के बाद उन्होंने बच्ची को गंगा में बहा दिया। बच्ची का वजन कम होने कारण परिजनों ने उसके शरीर में पत्थर बांध दिए थे।
वृंदावन के साधुओं को मिली 
बच्ची के पिता के अनुसार बच्ची को प्रवाहित करने के बाद वह घर लौट आए थे, लेकिन गंगा के तट पर आए वृंदावन के साधु-संतों की बच्ची पर नजर पड़ी, जिन्होंने उसे नदी से निकाला और डॉक्टर के पास ले गए, जहां कुछ दिनों बाद बच्ची स्वस्थ्य हो गई। इसके बाद से वह साधुओं के साथ रहने लगी। यहीं रहकर स्वाति ने कथा वाचन सीख लिया।


Sunday, March 27, 2016

यदि नहीं किया है तो अब‍ भी कर सकते हैं अंतरिम राहत का दावा

साथियों, आप में से कइयों ने अपने एरियर का दावा उप श्रमायुक्‍त (DLC) या सक्षम प्राधिकरण के समक्ष कर रखा है। यदि आपने अपने इस दावे में अंतरिम राहत की राशि नहीं जोड़ी है, तो आप अभी भी इसके लिए दावा कर सकते हैं। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि अंतरिम राहत 30 फीसद की दर से 8 जनवरी 2008 से 10 नवंबर 2011 के बीच के लिए लागू होती है (इसके बाद 11 नवंबर 2011 से मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू हो गई थी)। आप अपनी मूल मजदूरी (basic wage) पर अंतरिम राहत की राशि ब्‍याज सहित निकाल कर एक कवरिंग लैटर के साथ अपने एरियर राशि के क्‍लेम में जुड़वा सकते हैं।
केंद्र सरकार ने श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 की धारा 13क की उप-धारा (1) और धारा 13घ के साथ पठित 13क की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्‍त शक्तियों का प्रयोग करते हुए शुक्रवार, 24 अक्‍टूबर 2008 को अंतरिम दरों की अधिसूचना (Notification) क्रमश: S.O.2524(E) और S.O.2525(E) जारी की थी। S.O.2524(E) श्रमजीवी पत्रकारों और S.O.2525(E) गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों एवं समाचार अभिकरण कर्मचारियों (news agency employees) के संबंध में हैं। जब तक वेजबोर्ड लागू नहीं होता तब तक अंतरिम राहत मिलती रहती है। अंतरिम राहत का उल्‍लेख मजीठिया वेजबोर्ड (हिंदी में पेज नंबर 18 और अंग्रेजी में 20 नंबर पर) में भी हैं। इसकी तिथि की त्रुटि को पेज नंबर 2 (हिंदी व अंग्रेजी) पर संशोधित किया गया है।
दो पृष्ठ में समाहित अंतरिम राहत की अधिसूचना (Notification) हम आप को उपलब्‍ध करवा रहे हैं। जरुरत पड़ने पर आप अंतरिम राहत के क्‍लेम के साथ इसकी कॉपी लगा सकते हैं। इसकी jpg और pdf फाइल डाउनलोड करने के लिए नीचे क्लिक करें:
यदि आपको इसकी Attested हार्ड कॉपी चाहिए तो इसके लिए कुल 75 रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इसमें 70 रुपये शुल्‍क और पांच रुपये फोटोकॉपी के हैं। अप्रैल 2016 से यह शुल्‍क 90 रुपये हो जाएगा और आपको इसके 95 रुपये अदा करने पड़ेंगे। अधिसूचना (Notification) मांगते हुए आपको दिनांक 24 अक्‍टूबर 2008 के साथ S.O.2524(E) और S.O.2525(E) का उल्‍लेख भी करना पड़ेगा। इसके लिए आप यहां संपर्क कर सकते हैं।
DEPARTMENT OF PUBLICATION
CIVIL LINES, BEHIND OLD SECRETARIAT
(DELHI VIDHAN SABHA)
DELHI-110054
Website: www.deptpub.gov.in
Email: acop-dep@nic.in and pub.dep@nic.in
PH. 011-23817823/9689
Metro Station: Vidhan Sabha
यदि आप इसे व्‍यक्तिगत रूप से लेने जा रहे हैं तो सरकारी कार्यदिवस पर और कम से कम 1 घंटे का समय लेकर जाएं। क्‍योंकि इसकी Attested कॉपी और शुल्‍क अदा करने में इतना समय लग जाएगा। इस जगह को ढूंढने में भी आपको थोड़ी सी दिक्‍कत आ सकती है। इसको आप यहां Egazette क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं।
साथियों, जैसा कि आप जानते हैं कि 14 मार्च 2016 के अपने ताजा आदेश में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने 20 जे की आड़ में मजीठिया वेजबोर्ड देने से बच रहे अखबार मालिकानों को आईना दिखा दिया है और अपना हक लेने के लिए कर्मचारियों को रिकवरी डालने का ऑप्‍शन भी दिया है। यदि आपने मजीठिया वेजबोर्ड के लिए अभी तक कोई दावा पेश नहीं किया है और इसके बारे में सोच रहे हैं तो जल्‍द ही अंतरिम राहत समेत रिकवरी बनवाकर अपना दावा पेश करें। दावा कैसे पेश किया जाए इसको समझने में यदि आपको कोई दिक्‍कत आ रही है तो आप कर्मचारियों की तरफ से माननीय सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का केस लड़ रहे हैं वकीलों से या फि‍र जिन साथियों ने रिकवरी डाल रखी है उनसे बेहिचक संपर्क कर सकते हैं।

परमानंद पांडेय
वरिष्ठ वकील
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से खुला उम्मीदों का आसमान

महीनों की उमड़-घुमड़ के बाद निराशा के रंग अब छंटते दिख रहे हैं और उम्मीद का आसमान रंग भरे बादलों से आच्छादित होने लगा है। सोते-जागते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, घूमते-घामते, मिलते-जुलते, बोलते-बतियाते आस-निराश के जो साये हर वक्त घेरे रहते थे, उनसे पीछा छूटता दिख रहा है। वजह है इंसाफ के मंदिर की घंटियों की घनघनाहट। इन घंटियों की आवाज ने मृग मरीचिका का तिलिस्म तोड़ दिया है। जमीन पर उतारने का उपक्रम कर दिया है उस हकीकत को जो मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के क्रियान्वयन को लेकर हम प्रिंट मीडिया के कर्मचारी वर्षों से प्रयासरत थे। संघर्ष कर रहे थे। जूझ रहे थे। कई बार अन्यमनस्क हो रहे थे-हो गए थे। अनेकानेक बार ख्याल यह तक आया कि किस झंझट में फंस गए, कहां उलझ गए। इतने पैसे खर्च किए, इतनी भागदौड़ की, इतनी मुसीबत-परेशानी-मुश्किल-संकट-दिक्कत उठाई, पर पल्ले पड़ता कुछ दिख नहीं रहा। इसकी वापसी किसी कोने से होने के आसार नहीं नजर आ रहे। थक-हार कर अंतत: मान लिया कि चलो यह भी हमारी किस्मत का ही एक हिस्सा है। इसी में संतोष कर लेना पड़ेगा।
लेकिन नहीं, नाउम्मीदी का घटाटोप और चांद-सितारों रहित अंधियारी रात उस वक्त समर्पण कर गई जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उजियारा आ धमका। इस उजियारे ने हर तरह के धुंधलके को चीर कर रख दिया। 14 मार्च 2016 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने अखबार मालिकों की नाकों में नकेल डाल दी है। उनके गले में खतरे की घंटी बांध दी है। उनको उनकी औकात बता दी है कि तुम्हारी यह सीमा है। अगर इसका उल्लंघन करोगे तो अंजाम का भी अंदाजा करके रखो। तुम खुद को संविधान-कानून-न्यायपालिका से ऊपर समझने-मानने का भ्रम त्याग दो। यहां तक कि तुम स्वयं को ईश्वर मानने लगे हो-मानने लगे थे। सपनों के इस संसार से बाहर निकलो। और जानों कि वास्तव में तुम भी एक अदना से मनुष्य हो। यह जरूर है कि तुम्हारे पास थोड़ी दौलत है, लेकिन वह भी तो तुमने कर्मचारियों-मेहनतकशों-मजदूरों की गाढ़ी कमाई को हड़प करके बनाई है। इसलिए श्रीमानों-माननीयों-महानुभावों कर्मचारियों को उनका हक, उनका मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से वेतन-बकाया-सुविधाएं सब यथासंभव जल्द से जल्द निर्धारित समयावधि में दे दो। मुहैया करा दो। उपलब्ध करा दो। अन्यथा न्याय के सबसे बड़े मंदिर की अवमानना के जुर्म में सजा भुगतने को तैयार रहो।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई और श्री पी.सी. पंत ने अखबार मालिकों के खिलाफ दायर ढेरों अवमानना याचिकाओं के संदर्भ में 14 मार्च 2016 को जो आदेश दिए वे उन्हें नोंच डालने के लिए पर्याप्त हैं। आदेश में कहा गया है कि जिन अखबारों ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को अभी तक लागू नहीं किया है वे तत्काल 11.11.2011 से लागू करें और सारा एरियर एवं दूसरी अन्य सुविधाएं तद्नुसार क्रियान्वित करें। इसमें कर्मचारियों को एश्योर्ड कॅरियर प्रमोशन का लाभ देना और न्यूजपेपर इस्टेब्लिसमेंट के ग्रॉस रेवेन्यू के मुताबिक सेलरी देना शामिल है। लेकिन जैसा कि जानते हैं दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, प्रभात खबर, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स आदि अखबारों ने इन मानकों का निरंतर उल्लंघन किया है। इन अखबारों ने बेइंतहा-बेहिसाब कमाई की है-कर रहे हैं, पर वेज बोर्ड की व्यवस्था को बराबर तोड़ा-मरोड़ा है। और अपने निहितार्थ में इस्तेमाल किया है। दैनिक भास्कर की विज्ञापनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा उसकी अन्य दूसरी कमाई वाली कंपनियों में समावेश किया जाता है। इस्तेमाल होता है और मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है।
माननीय अदालत के आदेश का दूसरा अहम पहलू अकेले इंप्लाइयों से संबंधित है। याद करें, 28 अप्रैल 2015 के आदेश में जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एन.वी. रमना की बेंच ने राज्य सरकारों को मजीठिया अवॉर्ड क्रियान्वयन के बारे में स्टेटस रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। कुछ प्रदेश सरकारों को छोडक़र बाकी राज्य सरकारों ने स्टेटस रिपोर्ट नहीं दी। मौजूदा सुनवाई में कोर्ट ने इस बात का बहुत संजीदगी से संज्ञान लिया है। यही नहीं, 12 जनवरी 2016 की सुनवाई में कोर्ट के समक्ष अन्य सच्चाइयों-तथ्यों के अलावा कर्मचारियों के मालिकान-मैनेजमेंट द्वारा उत्पीडऩ के मामले उठे तो माननीय न्यायाधीश हैरान रह गए। उन्होंने मजीठिया की मांग करने पर मालिकान-मैनेजमेंट द्वारा तरह-तरह से प्रताडि़त करने, नौकरी से निकाल देने, निलंबित कर देने, ट्रांसफर कर देने, वेतन रोक लेने, अपमानित करने, नीचा दिखाने, गैर जरूरी कामों में लगा देने, जूनियर के मातहत उसे काम करने पर मजबूर करने, नाकाबिल-निकम्मे को उस पर धौंस जमाने की आजादी देने आदि मामलों-कारनामों-करतूतों के खिलाफ बतौर सबूत कोर्ट में एफीडेविट जमा करने का आदेश पारित कर दिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट उस समय हैरान रह गया जब उसके समक्ष कर्मचारियों के एफिडेविट के ढेर रख दिए गए। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतनी बड़ी तादाद में कर्मचारियों का मालिकान-मैनेजमेंट द्वारा हैरेसमेंट हो रहा है। कर्मचारियों के इतने बड़े पैमाने पर उत्पीडऩ, अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया की ओर से आंख मूंद लेने और अनेक राज्य सरकारों द्वारा स्टेटस रिपोर्ट न पेश करने के मद्देनजर जस्टिस श्री रंजन गोगोई और जस्टिस श्री पी.सी. पंत की बेंच ने 14.3.2016 को बहुत सख्ती से ये आदेश जारी किए :---
1. जिन राज्य सरकारों ने स्टेटस रिपोर्ट फाइल नहीं की है वे 5 जुलाई 2016 तक रिपोर्ट जरूर फाइल कर दें। अन्यथा संबंधित राज्यों के चीफ सेक्रेटरीज स्वयं कोर्ट में हाजिर हों और रिपोर्ट दाखिल न करने की वजह का खुलासा करें।
2. हैरेसमेंट के शिकार कर्मचारी संबंधित लेबर कमिश्नर से खुद संपर्क करें और अपनी बनती सेलरी और बकाए आदि का ब्योरा उन्हें सौंपें। लेबर कमिश्नर की ड्यूटी होगी कि वे कर्मचारियों का हक दिलवाएं और उस बारे में रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करें।
3. बावजूद इसके, वे अखबार मालिक जिन्होंने न सुधरने की ठान रखी है, सर्वोच्च न्यायालय का आदेश न मानने की कसम खा रखी है, उन्हें दंड भोगने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। कंटेम्प्ट शुरू हो जाएगा। राज्य सरकारों की स्टेटस रिपोर्टों और जिरह-बहसों के आधार पर अखबार मालिकान को सजा मिलनी लाजिमी है। 
 तो साथियों! न्याय मंदिर की घनघनाती घंटियों की आवाज पर कान देने का यह सुनहरा अवसर है। इसे हाथ से जाने न दें। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के हिसाब से, अखबार इस्टेब्लिशमेंट के ग्रॉस रेवेन्यू के हिसाब से आपकी जो सेलरी बनती है, 11.11.2011 से आपका जो बकाया-सुविधाएं बनती हैं, उसे लेबर कमिश्नर, डिप्टी लेबर कमिश्नर, असिस्टेट लेबर कमिश्नर को बताएं। उसे दिलवाने और उसकी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में 19 जुलाई 2016 से पहले पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी है। क्यों कि 19 जुलाई 2016 को फाइनल हियरिंग यानी आखिरी सुनवाई है। फिर भी अगर मालिकान की ऐंठन बनी रही, नहीं सुधरे तो उन पर अवमानना का डंडा अनिवार्यत: गिरेगा। इससे उन्हें कोई नहीं बचा सकेगा।
चलते-चलते एक और चर्चा करता चलूं। मैंनेजमेंट के बहुत सारे गुर्गों, चमचों, दलालों ने अफवाह फैला रखी थी कि इन अवमानना केसों में कुछ भी नहीं हो सकता। सारे जज बिक गए हैं। अखबार मालिकों जितना पॉवरफुल कोई सत्ता-सरकार भी नहीं हो सकती। सरकार तो अखबार मालिकान चलाते हैं। न्यायपालिका-न्यायाधीश उनके सामने क्या है? अरे भई वे तो ईश्वर से भी बड़े है! ऐसे महानुभावों - सज्जनों से गुजारिश है कि वे भ्रम और गुमान से बाहर निकलें और सुप्रीम कोर्ट के फरमान को दिमाग में घुसा लें और आंखों में बसा लें। क्या पता उनका भी उद्धार हो जाए।

Friday, March 18, 2016

सर्वोच्च न्यायालय ने उठाया अब तक का सबसे सख्त कदम

पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेज बोर्ड मामले में उच्चतम न्यायालय ने 14 मार्च को हुई सुनवाई में काफी सख्त रवैया अपनाते हुए यह कहा कि जिन राज्यों ने अभी तक मजीठिया मामले में अपनी कार्यवाही का ब्योरा जमा नहीं किया है वो 5 जुलाई तक कर दें अन्यथा उस राज्य के मुख्य सचिव 12 जुलाई को अदालत के सामने पेश होंगे। अदालत ने यह भी कहा कि जिन लोगों की अर्जी अब लगाई गयी है वो अब श्रम अधिकारियों के समक्ष अपना मामला पेश करें। सभी लोग अब चाहें तो धारा 17(1) के तहत अपने मजीठिया लाभ का दावा पेश करें। जिन लोगों ने 20 (j) पर भी हस्ताक्षर किया है वो भी इस बात का उल्लेख करते हुए अपनी शिकायत इंस्पेक्टर के सामने लगाएं। सभी कर्मचारी गण चाहे तो लेबर इंस्पेक्टर के सामने सम्मिलित रूप से किसी यूनियन द्वारा शिकायत लगाएं। यह जरूरी नहीं है कि सभी कर्मचारी उस शिकायत पर दस्तखत करें। शिकायत का प्रारूप इस मामले में भड़ास के यशवंत सिंह के सौजन्य से देश भर के पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों की लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता उमेश शर्मा की ओर से पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों के लिए दे रहे हैं। इसे डाउनलोड कर सकते हैं। यूनियन और कर्मचारी इस बात की भी शिकायत कर सकते हैं कि प्रबंधकों ने उनसे जबदस्ती 20 (J) पर दस्तखत करवाया है और इसे अमान्य समझा जाये, साथ ही इसके लिए प्रबंधकों के खिलाफ कार्यवाही की जाये। जो लोग सेवानिवृत हो चुके हैं, त्यागपत्र दे चुके हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके बच्चे इस लाभ के हक़दार हैं और उनसे भी संपर्क कर उन्हें साथ लिया जाना चाहिए ताकि सभी लोग संगठित रह सकें और प्रबंधको को एक किनारे कर सकें। शिकायत का प्रारूप प्राप्त करने के लिए नीचे क्लिक करें :
Before the Labour Commissioner/Deputy Labour Commissioner/Assistant Labour Commissioner, District:----------------
Sub: Compliance of the orders dated 28/4/2015 passed by the Hon’ble Supreme Court of India in CCP NO. 128/2015 & 129/2015 alongwith bunch of other such cases regarding non implementation of the Majithia Wage Board notification dated 11/11/11 issued by Central Government and affirmed by the Supreme Court of India vide its orders dated 7/2/2014.
Name & address of the management:
Sir,
1.The management named above is a newspaper establishment, the employees of the establishment are entitled to the benefits of the Majithia Wage Board notification w.e.f. 11/11/11 as notified by the Central Government .
3. Hon’ble Supreme Court of India has also issued specific directions for the release of the aforesaid benefits vide its orders dated 7/2/2014 in WRIT PETITION (CIVIL) NO. 382 OF 2011, WRIT PETITION (CIVIL) NO. 384 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 386 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 408 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 510 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 538 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 514 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 546 OF 2011,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 87 OF 2012,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 264 OF 2012,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 315 OF 2012,WRIT PETITION (CIVIL) NO. 817 OF 2013 WITH CONTEMPT PETITION (CIVIL) NO. 252 OF 2012 IN WRIT PETITION (CIVIL) NO. 538 OF 2011, the operative part of the directions of Supreme Court are reproduced hereunder for ready reference and compliance:
“71) Accordingly, we hold that the recommendations of the Boards are valid in law, based on genuine and acceptable considerations and there is no valid ground for interference under Article 32 of the Constitution of India.
72) Consequently, all the writ petitions are dismissed with no order as to costs.
73) In view of our conclusion and dismissal of all the writ petitions, the wages as revised/determined shall be payable from 11.11.2011 when the Government of India notified the recommendations of the Majithia Wage Boards. All the arrears up to March, 2014 shall be paid to all eligible persons in four equal installments within a period of one year from today and continue to pay the revised wages from April, 2014 onwards.
74) In view of the disposal of the writ petitions, the contempt petition is closed.”
2
4. The management named above has not implemented the aforesaid wage board
notification and is also violating the orders dated 7/2/2014 passed by the Supreme Court.
The management is now falsely claiming that the recommendations of the wage board are
not applicable on the employees and forcing the employees to sign on pre-typed formats
and declarations illegally. The employees refusing to do so are being victimized by way of
illegal transfer, suspension and other colorable exercise of the powers of the management
and a reign of terror inside the establishment has been created by the management as a
result of which the employees are not coming forward to demand the said benefits. A list
of all the employees is being attached as ANNEXURE-A.
7. The management be asked to furnish the details of the salaries paid to the employees of
the establishment before 7/2/2014 and being paid now and reasons for non
implementation of the Majithia Wage Board by the management.
8. The present application is without prejudice to the rights of the applicant to the
contempt of court proceedings against the management for its deliberate, willful and
intentional violation of the orders of the Supreme Court dated 7/2/2014, referred
hereinabove.
9. The present application is being filed for compliance of the orders
dated 28/4/2015 passed by the Hon’ble Supreme Court wherein the Court has asked for
submission of a report by the Labour Commissioner of the states regarding the
implementation of the Majithia Wage Board notification, the said order is reproduced
hereunder :
“While keeping these contempt petitions pending we issue the
following directions :
All the State Governments acting through their respective Chief Secretaries
shall, within four weeks from today, appoint Inspectors under Section 17(b)
of the Working Journalists and Other Newspaper Employees (Conditions of
Service) and Miscellaneous Provisions Act, 1955 to determine as to whether
the dues and entitlements of all categories of Newspaper Employees including
Journalists under the Majithia Wage Board award has been implemented in
accordance with the terms thereof. The inspectors appointed by the State
Government will naturally exercise their powers as provided under the Act
and shall submit their report to this Court through the Labour
Commissioners of each State indicating the precise findings on the issue
indicated above. This will be done within a period of three months from the
date of appointment under Section 17(b) of the Act. The cases will be listed
again after receipt of the report as above stated. All contentions with regard
to maintainability of the contempt petitions are kept open.”
PRAYER
3
It is therefore prayed that the authority may issue specific direction to the management to implement the Majithia Wage Board recommendation and issue a recovery certificate in favour of the applicant for the recovery of the dues of the employees mentioned in ANNEXURE-A of the application and forward the said recovery certificate to the Collector to recover the said amount as arrears of land revenue along with all their accrued interest and costs.
Any other order which the Hon’ble Court may deem fit and proper in the facts and circumstances be also passed in favour of the applicant and against the respondent.
Applicant
Name
Post
Address
Contact No.
Enclosure:
Enclosure:
ANNEXURE-A Containing the list of all the employees of the establishment who are not being paid the Majithia Wage Board benefits.
Name of the employee
Post
Present salary
Salary accordingly to Majithia notification.
4
To, Date: The Labour Commissioner---------------------
Sub: Illegal acts by the management of M/s---------------------------------
Sir,
We are the employees of the establishment named above and constrained to report against the illegal, highhanded acts of the management named above. The management has extracted my signature on pre typed formats and papers to the effect that I do not want the benefits of the Majithia Wage Board award and have entered into a settlement with the management. When the workers refused to do so, the management has threatened me that they would terminate my services.
The aforesaid act of the management is illegal and an attempt to overreach the notification of the Majithia Wage Board as issued by the central government and the violation of the orders dated 7/2/2015 passed by the Supreme Court of India. Since all the employees are being coerced and pressurized to sign on the said formats , we have no option then to writ to you that we reaffirm our demand for Majithia Wage Board notification and do not subscribe to the forcible extraction of our signatures on the pre typed formats of the management. Our signatures on the said papers be treated as withdrawn, cancelled. Please issue directions to the management to release us the benefits of the Majithia Wage Board and do not victimize the workers of the establishment.
Thanking You, Yours Name Post Contact No.

Copy forwarded to: SHO, PS--------------for information.

मजीठिया वेज बोर्ड : जीत के करीब हैं हम

आखिरकार मजीठिया वेज बोर्ड के तहत अपने हक की लड़ाई लड़ रहे अखबार कर्मियों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय से एक बड़ा निर्णय हासिल हुआ है। अदालत में लंबित अवमानना याचिकाओं की 14 मार्च को हुई सुनवाई पर लंबे इंतजार के बाद आज अदालत का आर्डर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हो चुका है। इसमें माननीय अदालत ने जो आदेश दिए हैं, उन्हें देख कर अखबार मालिकों के होश उड़ गए होंगे। हालांकि अभी भी अदालत ने उन्हें अपनी गलती सुधारने का एक अवसर प्रदान किया है।
अदालत के आदेशों के अनुसार अब इस मामले की अंतिम सुनवाई 19 जुलाई, 2016 को होगी। माननीय न्यायाधीश ने अपने आदेशों में रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि अगली तारीख 19 जुलाई होगी और अखबार मालिकों के खिलाफ अवमानना के सभी मामले इस दिन सबसे पहले सूचीबद्ध किए जाएं। लिहाजा अब दूध का दूध और पानी का पानी होने वाला है।
कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा है कि मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करने को लेकर तलब की गई रिपोर्ट मेघालय, हिमाचल प्रदेश और पुडुचेरी ने प्रस्तुत की है। इसे कोर्ट ने रिकॉर्ड पर लिया है और इन राज्यों की स्थिति का अध्ययन किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि जिन राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से रिपेार्ट मिली है, जिनमें इस न्यायालय के आदेश की आंशिक अनुपालना की बात कही गई है। वहां से संबंधित पक्षों के प्रतिष्ठानों(समाचारपत्रों)  को स्पष्ट किया जाता है कि वे न्यायालय के आदेश का पालन 19 जुलाई, 2016 से पहले करें।
कोर्ट ने अपने 28 अप्रैल, 2015 के आदेशों के तहत प्रदेश की स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल न करने पर उत्तर प्रदेश (आंशिक), उत्तराखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, गोवा और असम राज्यों के रवैये पर चिंता जाहिर करते हुए निर्देश दिए हैं कि वे 5 जुलाई,2016 से पहले अपनी रिपोर्ट दाखिल करें। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा न करने पर इन राज्यों के मुख्य सचिवों को 19 जुलाई, 2016 को में व्यक्ति तौर पर कोर्ट के समक्ष हाजिर होना होगा।  साथ ही निर्देश दिए हैं कि इन राज्यों की रिपोर्ट आने पर अगर बचाव पक्ष की कोई आपत्ति होगी, तो वह 12 जुलाई, 2016 तक रिकार्ड में लाई जाएगी।
कोर्ट के आदेशों का सबसे अहम हिस्सा यह है कि कोर्ट ने मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे कर्मियों के उत्पीड़न को गंभीरता से लिया है। इसके तहत कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि कोर्ट ने उन सभी इंटरलोकेटरी एप्लिकेशन को रिकार्ड कर लिया गया है, जिसमें कोर्ट के आदेशों की अनुपालना के तहत अपनी देनदारियों से बचने के लिए संस्थानों ने अपने कर्मियों की सेवाओं को गलत तरीके से समाप्त किया है और वेतन बोर्ड की सिफारिशों के तहत अधिकारों को समाप्त करने के लिए धोखाधड़ी से आत्मसमर्पण करने को मजबूर किया गया है। आदेशों ने लिखा है कि कोर्ट के पास इस तरह की शिकायतें भारी संख्या में प्राप्त हुई हैं। ऐसे में न्यायालय एक-एक शिकायत को व्यक्तिगत रूप से जांचने की स्थिति में नहीं है। लिहाजा प्रत्येक राज्य के श्रम आयुक्त को निर्देश दिए जाते हैं कि वह ऐसी सभी शिकायतों पर गौर करके न्यायालय के समक्ष एक ही आवश्यक फाइल बनाकर 12 जुलाई, 2016 से पहले अपनी जांच रिपोर्ट दायर करे। आगे कोर्ट ने एक और बड़ा निर्णय सुनाते हुए अपने इन आदेशों में लिखा है कि हम उन सभी कर्मचारियों को जिन्होंने उत्पीडऩ से जुड़ी इंटरलोकेटरी एप्लिकेशन दायर की है और उन सभी कर्मियों को जिन्होंने इस न्यायालय में याचिका दयर की है, मगर वे उत्पीडऩ की शिकायत नहीं कर पाए हैं उन सभी को अपने राज्य के श्रम आयुक्त के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता देते हैं।
यहां मैं एक बात यह भी जोड़ना चाहूंगा कि जो डरपोक लोग माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के इंतजार में थे, अब उनके लिए कोई आसान रास्ता नहीं नजर आ रहा है। अब उनके लिए एक ही रास्ता है कि वे सीधे श्रम विभाग में शिकायत करके अपनी रिकवरी का केस फाइल करें, नहीं तो उन्हें अखबार मालिकों के गुलाम बनकर आधे टुकड़े पर पलते रहना होगा। बात भी अब साफ हो गई है कि जिन अखबारों ने 20 जे के तहत वेज बोर्ड न देने का रास्ता खोजा था, उन्हें इन ताजा आदेशों मे कोर्ट का फैसला नजर आ जाएगा।
वहीं इनसे भी ज्यादा चालाक उन अखबार मालिकों को भी इन आदेशों में आखिरी मौका मिला है, जिन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड को तोड़ मरोड़ कर लागू किया और अदालत की अवमानना से बचने के सपने देख रहे थे। उन्हें कोर्ट ने इन आदेशों के जरिये अंतिम अवसर दे दिया है। साथ ही अखबार मालिकों से डरने वाले और मजीठिया वेजबोर्ड की शिकायतों पर आंखें मूंदे बैठे राज्यों के श्रम अधिकारियों को भी कोर्ट ने साफ संकेत दे दिया है कि अब उनकी लापरवाही नहीं चलेगी। कोर्ट ने इन आदेशों में श्रम आयुक्तों को शामिल करके श्रम विभाग को भी अंतिम अवसर और छदम चेतावनी दी है।
रविंद्र अग्रवाल-

Thursday, March 17, 2016

वजन कम करने के तरीके

पतला होने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। खाना कम कर देते हैं, अधिक से अधिक कसरत करने की कोशिश करते हैं, अपने फेवरिट चीज़ें जैसे कि फास्ट फूड, चर्बी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ नहीं खाते। वजन कम करने के लिए लोग हर तरह से त्याग करने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन फिर भी बहुत मुश्किल से परिणाम हासिल होते हैं।
इसके लिए आपको ये तीन सामग्री चाहिए - 250 ग्राम मैथीदाना, 100 ग्राम अजवाईन और 50 ग्राम काला जीरा। इन तीनों को एकत्रित करने के बाद इन्हें अच्छे से साफ कर लें और फिर धीमी आंच पर थोड़ा-सा भून लें। इसे केवल उतना ही भूनें जितने में आपको इनका रंग बदलता हुआ दिखाई देने लगे।
इसके बाद इन्हें आंच से उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें। ठंडा हो जाने पर तीनों को पीस लें और एक मिश्रण तैयार कर लें। अब इस चूर्ण को किसी एयर टाइट डिब्बे में रख दें, ताकि इसमें सीलन ना आने पाए।
वजन कम करने के लिए तैयार किए गए चूर्ण को रोज़ रात को सोने से पहले गुनगुने पानी में डाल कर पी लें। मात्रा केवल एक चम्मच ही रखें, इससे अधिक नहीं। क्योंकि चूर्ण बनाने के लिए इस्तेमाल की गई तीनों सामग्रियों की तासीर गर्म है, इसका अधिक सेवन करने से पेट में गर्मी हो सकती है।
एक और बात... ध्यान रहे कि इस चूर्ण का सेवन गुनगुने या फिर गर्म पानी के साथ ही आवश्यक है। इसका सेवन करने के बाद कुछ भी खाना या पीना नहीं है।इस चूर्ण को तीन महीने तक नियमित रूप से लेने से शरीर की गंदगी मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी। परिणाम स्वरूप शरीर से फालतू चरबी गल जाएगी और नया शुद्ध खून बनने लगेगा। चरबी के कम होने से शारीरिक वजन में तो कमी आएगी ही साथ ही नया खून बनने से त्वचा की झुर्रियां भी अपने आप दूर हो जाएगी।
और भी हैं फायदे
इसका मतलब यह है कि यह चूर्ण ना केवल मोटापे से छुटकारा दिलाएगा, बल्कि साथ ही सुंदर त्वचा एवं हष्ट-पुष्ट, स्फूर्ति शरीर भी देगा। इस चूर्ण का तीन महीने तक नियमित सेवन करने से और भी कुछ रोगों को नष्ट किया जा सकता है।
जरूर इस्तेमाल करें
जैसे कि गठ्ठिया की दिक्कत, आंखों की कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी, हृद्य संबंधी रोगों को भी नष्ट करता है इस चमत्कारी चूर्ण का सेवन।


Tuesday, March 15, 2016

19 जुलाई को मजीठिया के मामले की अंतिम सुनवाई

 सुप्रीम कोर्ट में प्रिंट मीडियाकर्मियों के मजीठिया वेज बोर्ड मामले की सुनवाई है. विद्वान न्यायाधीश ने आखिरी सुनवाई की तारीख तय कर दी. 19 जुलाई को फैसला आ जाएगा. फाइनल हियरिंग की तारीख तय होने से मीडियाकर्मी खुश हैं. कोर्ट ने लंबी तारीख इसलिए भी दी है ताकि मीडिया मालिक खुद अपने स्तर पर अपनी कमियों को दुरुस्त कर पीड़ितों को राहत दे दें अन्यथा सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाना पड़ जाएगा. देखना है कि 19 जुलाई के पहले मीडिया मालिक खुद न्याय कर पाते हैं या फिर सुप्रीम कोर्ट की लाठी का इंतजार करते हैं. आज हुई सुनवाई और पूरे मामले की विस्तृत रपट जाने माने वकील परमानंद पांडेय ने भड़ास को मेल से भेजा है, जिसे नीचे प्रकाशित किया जा रहा है.
All the contempt petitions against the newspaper owners for not implementing the Majithia Award have been listed for final hearing on 19th July 2016. Those states, which have still not filed the status report have been given the last chance to file the same, otherwise the Chief Secretaries of the concerned states will have to be psychically present in the Supreme Court on the next date of hearing to explain as to why they should not be hauled up.
It may be noted that the Majithia Report was submitted to the Government of India on 31st December 2010 but before it could be notified by the Government, the proprietors of newspapers led by Anand Bazar Patrika and Bennett Colman & Company approached the Supreme Court of India for quashing of the Working Journalists Act and the Majithia Wage Board recommendations.
However, on the direction of the Supreme Court the Government notified the recommendations on 11.11.2011 subject, of course, to the decision of the Supreme Court in the Writ Petition (C) No. 246/2011. After marathon hearings the bench consisting of the then Chief Justice of India Shri Sathashivam, Justice Ranjan Gogoi and Justice Shiv Kirti Singh dismissed all the petitions of the newspaper owners, upholding the Working Journalists Act and the Majithia Wage Boards constituted thereunder. The judgment of the Supreme Court came on 07.02.2014 and the newspapers were given time to disburse all arrears in four instalments within one year and pay the salaries to employees from April, payable in the month of May 2016.
Some of the newspapers, no doubt, implemented the Majithia Award but most of them failed to honour the verdict of the Supreme Court. Majority of newspapers which have been violating the directions of the Supreme Court are from the Hindi heartland like; Dainik Jagran, Dainik Bhaskar and Rajasthan Patrika. These newspapers brazenly adopted the coercive methods to get undertaking from employees ‘that they are satisfied with the salaries which they are getting and they do not want the Majithia Award to be implemented in the organisation they work for’. These newspapers also arbitrarily changed the designations of the employees to deny them Majithia Award. Even clerical employees have been designated as the Managers or the Executives.  

Parmanand Pandey 
Secretary General
IFWJ

Monday, March 14, 2016

मजीठिया वेज बोर्ड मामले में वकील का प्रमोशन की तरफ भी ध्यान दिलाएं

मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंषा के अनुसार वेतन और सुविधाएं पाने के लिये सुप्रीम कोर्ट में या देश के दूसरे किसी भी अदालत में या लेबर कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे सभी पत्रकार भाई अपने अपने प्रमोशन की तरफ भी अपने वरिष्ठ अधिवक्ता का ध्यान दिलाएं। सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 11 नवम्बर 2011 को भारत के राजपत्र में अधिसूचना संख्या 2532 (अ) में अधिसूचित कर आदेश दिया है जिसके मुताबिक़ 10 वर्ष की सेवा संतोषजनक करने पर पदोन्नति का प्रावधान है।
अगर आप दस साल से ज्यादा समय से एक ही समाचार पत्र प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं तो आपको एक प्रमोशन मिलना चाहिए। इसी आदेश में पूरे सेवाकाल में तीन प्रमोशन की बात है। यानी अगर आप 20 साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं एक ही समाचार पत्र या उस प्रतिष्ठान में तो आपको दो प्रमोशन मिलना चाहिए था जो कि समाचार पत्र प्रबंधन ने नहीं दिया है।
वेतन के साथ अगर हम इस मुद्दे को भी अदालत में रख कर पूछें कि आपने कितने लोगों को प्रमोशन दिया है तो अच्छे अच्छे अख़बार मालिकों की और फर्जी रिपोर्ट तैयार कर माननीय सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने वाले श्रम आयुक्त कार्यालय की पूरी पोल पट्टी खुल जायेगी और उन्हें सजा भी मिलनी तय है। तो दोस्तों, आप सबसे निवेदन है कि जो लोग भी माननीय सुप्रीम कोर्ट में 14 मार्च की सुनवाई में उपस्थित होंगे वे अपने अपने अधिवक्ता का ध्यान पहले से ही इस मुद्दे की तरफ भी दिलाएं। मान लीजिये टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है कि हमने मजीठिया वेज बोर्ड लागू कर दिया तो टाइम्स प्रबंधन से पूछना चाहिए कि आपने प्रमोशन कितने लोगों को दिया, तब राज खुलेगा कि कितना सही तरीका इस्तेमाल किया गया है मजीठिया वेज बोर्ड के पालन में।

शशिकांत सिंह
मुंबई
9322411335

मूंगफली खाने से शिशुओं में कम होता है एलर्जी का खतरा

बच्चों के आहार में कम उम्र में मूंगफली को शामिल करके उसमें एलर्जी का खतरा काफी कम किया जा सकता है, भले ही बच्चे पांच साल की उम्र के आसपास इन्हें खाना छोड़ दें।
'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित एक शोध में यह दावा किया गया है। शोध के मुताबिक, कम उम्र में मूंगफली के सेवन से इससे संबंधित एलर्जी का खतरा कम हो जाता है। किंग कॉलेज लंदन के प्रमुख शोधकर्ता गिडियोन लैक के मुताबिक, 'मूंगफली से एलर्जी के जोखिम वाले अधिकांश शिशु इससे बचे रहते हैं, अगर वे अपनी उम्र के शुरुआती 11 महीनों के भीतर ही इसे खाना शुरू कर देते हैं।'शोध में 550 बच्चों को शामिल किया गया था। इनमें से 280 को मूंगफली से दूर रखा गया और 270 ने इसका सेवन किया। सभी प्रतिभागियों को उसके बाद 12 महीनों तक मूंगफली के सेवन से दूर रखा गया।
कई परीक्षणों के माध्यम से प्रतिभागियों के रक्त में मूंगफली की एलर्जी का मापन किया गया। शोध में पाया गया कि एक साल तक मूंगफली का सेवन न करने पर भी छह वर्ष की उम्र में उनमें एलर्जी में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। कुल मिलाकर शोध में पाया गया कि जिन बच्चों ने मूंगफली का सेवन किया, उनमें इससे संबंधित एलर्जी का खतरा उन बच्चों की तुलना में 74 प्रतिशत कम पाया गया, जिन्होंने इसका सेवन नहीं किया।

Friday, March 11, 2016

मजीठिया पर आरपार की लड़ाई, राजस्थान के पत्रकार भी एकजुट

जयपुर : चर्च रोड स्थित कुमारानन्द हॉल में रविवार को दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ़ इंडिया व पूरे राजस्थान राज्य के पत्रकार एवं गैर-पत्रकार कर्मचारी पहली बार एकसाथ एकत्रित हुए और मजीठिया के अनुसार वेतनमान के लिए आरपार की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवमाननना के 51  प्रतिनिधियों, अनेक यूनियन के नेताओं तथा विभिन्न सस्ंथानो के कर्मचरियों  की और से लड़ रहे अधिवक्ताओं के  एकसाथ मंच पर आने से मजीठिया की लड़ाई और मजबूत हुई है। पत्रकारों मैं ऐसी एकता पहले कभी नहीं देखी गयी उन्होंने एक साथ एक सुर मैं कहा की हम चाहे कुछ भी हो जाये अख़बार मालिक कितनी भी ओछी हरकतों पर उतर आयें लेकिन हम सब एक होकर मजीठिया की इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाकर रहेंगे । चाहे हम प्रताड़ित हों, चाहे निलंबित हों या फिर निष्कासित कर दिए जायें, हर हाल मैं मजीठिया के अनुसार वेतन लेकर  रहेंगे । हम सब एक साथ रहकर यह लड़ाई लड़ेंगे । 
इस मंच पर सुप्रीम कोर्ट के कई सीनियर अधिवक्ताओं ने कर्मचारियों को अख़बार मालिकों व उनके चमचों से सतर्क रहने के लिए कहा तथा सबको एक जुट होकर लड़ाई लड़ने पर जोर दिया, तथा मजीठिया की लड़ाई के लिए आगे की रणनीति तय की गयी ।  उन्होंने कहा कि यह उन लोगों के लिए भी सुनहरा मौका है जिन्होंने नौकरी के दबाव में आकर मजीठिया  के अनुसार वेतन न चाहने वाले बिना डेट वाले कागजों पर पहले ही साइन कर दिए हों। उनको करना यह है कि वे लेबर इंस्पेक्टर या लेबर कमिश्नर को लिखित मैं सूचित करें कि हमे मजीठिया के अनुसार वेतन अभी तक नहीं मिला है तथा नौकरी से निकालने की धमकी देकर हमसे साइन करवा लिए हैं, जो निराधार है। हमारे द्वारा अस्वीकार है व इसकी सही रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट मैं पेश करें। 
यह तय मानिये कि यदि आप सच्चाई के साथ हैं तो आपका हक़ आपसे कोई भी नहीं छीन सकता, बस कलम उठाएं और लेबर इंस्पेक्टर को सच्चाई से लिखित में अवगत कराएं। उसको भी अपनी नौकरी प्यारी है। अपने बच्चों से प्यार है। वह किसी भी कीमत पर सुप्रीम कोर्ट को गलत रिपोर्ट पेश नहीं कर सकता ।

Thursday, March 10, 2016

Tuesday, March 8, 2016

अब पशुओं में भी मादा ही जन्म लेगी

दिनेश माहेश्वरी
कोटा ।  देश में अब दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मादा पशु ही जन्म लेंगे। वर्तमान में यह अनुपात 50-50 का है। दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल (हरियाणा) में इस पर शोध किया गया है। जिसमें यह बात निकल कर आई है कि अब मादा पशुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वहीं नर पशुओं की संख्या का अनुपात 50 से घटाकर 10 प्रतिशत तक लाया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार ने 55 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। जिसकी पहली किश्त वर्ष 2014-15 में छह करोड़ रुपए जारी हो चुकी है।
इस प्रोजेक्ट के टीम लीडर एवं साइंटिस्ट टीके मोहंती ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। जिसमें काफी हद तक कामयाबी मिली है। उन्होंने बताया कि देश में पशुओं में नर ज्यादा पैदा होने से लोग इन्हें सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। आए दिन शहरों में सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। बैल यदि बनाते हैं, तो वर्तमान में इनका खेती में भी उपयोग नहीं होता है। क्योंकि ज्यादातर खेती ट्रैक्टर से होती है। ऐसे में नर का ज्यादा उपयोग नहीं है। सिवाय मादा पशुओं के गर्भाधान के। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, ताकि दूध देने वाले मादा पशुओं की संख्या बढ़ेगी, तो दूध की मात्रा भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट पंचवर्षीय योजना में शामिल है। वर्ष 2014-15 में यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, जो वर्ष 2016-17 तक पूरा हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि अभी तक के अनुसंधान से यह बात तो स्पष्ट है कि सीमन के अंदर पाए जाने वाले एक्स और वाई गुणसूत्र में से यदि एक्स-एक्स मिलते हैं तो मादा और एक्स-वाई मिलने पर नर पैदा होते हैं। दोनों के बीच डीएनए में 3 से 4 प्रतिशत का अंतर आता है। 1985-86 में ऐसा ही एक प्रयोग खरगोश पर किया था। इसके बाद 2005 में यूएसए में इसका कॉमर्शियल उपयोग के लिए शोध हुआ। वहां पर हॉलिस्टन और जर्सी का सीमन मिलना शुरू हो गया है। अब भारत भी इसी दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए एक फ्लोरोसेंट एक्टिवेट सॉर्टर तैयार किया गया है। जिसमें से सीमन के अंदर से एक्स और वाई दोनों को अलग-अलग किया जाता है।
क्या है तरीका
लैब में इस इलेक्ट्रॉनिक सॉर्टर में से सीमन को बीकर के जरिए अलग-अलग किया जाता है। सॉर्टर में लगा लेजर सीमन के एक्स और वाई को पहचान करके अलग-अलग करता है। जिसे नहीं पहचान पाता है। उसे एक अलग बीकर में गिरा देता है। वैज्ञानिकों और पशु पालकों के लिए इस शोध के बाद बहुत आसान हो गया है कि वह जब चाहें मादा और वे जब चाहें नर का जन्म करा सकते हैं।
90 प्रतिशत फीमेल पैदा करना संभव
मोहंती ने बताया कि इस तकनीक से 90 प्रतिशत मादा और 10 प्रतिशत नर का अनुपात बनाए रखा जा सकेगा। क्योंकि नर का उपयोग सिर्फ गर्भाधान के लिए किया जा सकेगा। वह भी उन्नत नस्ल के नर पशु तैयार करके।
कौन है मोहंती
नेशनल डेयरी रिसर्च सेंटर करनाल में इंसेटिव हाईजिंग रिचार्ज इन एग्रीकल्चर के तहत सरकार की ओर से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट के टीम लीडर और साइंटिस्ट हैं। उनकी टीम में डॉ. एसके सिंगला भी हैं, जिन्होंने भैंस का क्लोन तैयार किया था।

Saturday, March 5, 2016

मजीठिया वेज बोर्ड : 20जे पर दूर करें भ्रांतियां

पत्रकार  साथियों, आपमें से अभी भी कई साथी 20जे को लेकर शंकित है। हम एक बार फि‍र से आपको स्‍पष्‍ट कर देना चाहते हैं कि 20जे कहीं से भी मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार न्‍यूनतम वेतनमान प्राप्‍त करने के आपके हक के आड़े नहीं आ रहा है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 आपके न्‍यूनतम वेतनमान के हक की पूर्णता रक्षा करता है और एक्‍ट हमेशा वेजबोर्ड से ऊपर होता है, क्‍योंकि वेजबोर्ड का गठन एक्‍ट के अंतर्गत् ही होता है, यानि वेजबोर्ड की कोई भी सिफारिश एक्‍ट से ऊपर नहीं हो सकती। वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 की धारा 13 में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि किसी भी कर्मचारी का वेतन वेजबोर्ड द्वारा तय न्‍यूनतम वेतनमान से किसी भी दशा में कम नहीं होगा। धारा 13 को पढ़कर आप खुद इस बात को समझ जाएंगे।
[Sec. 13- Working journalists entitled to wages at rates not less than those specified in the order - On the coming into operation of an order of the Central Government under section 12, every working journalist shall be entitled to be paid by his employer wages at the rate which shall in no case be less than the rate of wages specified in the order.]
[धारा 13 श्रमजीवी पत्रकारों का आदेश में विनिर्दिष्‍ट दरों से अन्‍यून दरों पर मजदूरी का हकदार होना-- धारा 12 के अधीन केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रवर्तन में आने पर, प्रत्‍येक श्रमजीवी पत्रकार इस बात का हकदार होगा कि उसे उसके नियोजक द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश में विनिर्दिष्‍ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम न होगी।]।
वहीं, 20जे आखिर किनने के लिए है यह आप धारा 16 पढ़कर समझ सकते हैं। धारा 16 स्‍पष्‍ट करती है कि यदि आप किसी भी वेजबोर्ड में निर्धारित न्‍यूनतम वेतनमान से ज्‍यादा वेतन प्राप्‍त कर रहे हैं तो यह आपके उस ज्‍यादा वेतन को प्राप्‍त करने के अधिकार की रक्षा करता है। यानि कोई भी करार आपको ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदा देने के लिए हो सकता है, नाकि आपको न्‍यूनतम वेतनमान से वंचित करने के लिए।
Sec 16. Effect of laws and agreements inconsistent with this Act.-- (1) The provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith contained in any other law or in the terms of any award, agreement or contract of service, whether made before or after the commencement of this Act:
Provided that where under any such award, agreement, contract of service or otherwise, a newspaper employee is entitled to benefits in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act, the newspaper employee shall continue to be entitled to the more favourable benefits in respect of that matter, notwithstanding that he receives benefits in respect of other matters under this Act.
(2) Nothing contained in this Act shall be construed to preclude any newspaper employee from entering into an agreement with an employer for granting him rights or privileges in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act.
धारा 16- इस अधिनियम से असंगत विधियों और करारों का प्रभाव-- (1) इस अधिनियम के उपबन्‍ध, किसी अन्‍य विधि में या इस अधिनियम के प्रारम्‍भ से पूर्व या पश्‍चात् किए गए किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के निबंधनों में अन्‍तर्विष्‍ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे :
परन्‍तु जहां समाचारपत्र कर्मचारी ऐसे किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के अधीन या अन्‍यथा, किसी विषय के संबंध में ऐसे फायदों का हकदार है जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है तो वह समाचारपत्र कर्मचारी उस विषय के संबंध में उन अधिक अनुकूल फायदों का इस बात के होते हुए भी हकदार बना रहेगा कि वह अन्‍य विषयों के संबंध में फायदे इस अधिनियम के अधीन प्राप्‍त करता है।
(2) इस अधिनियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी समाचारपत्र कर्मचारी को किसी विषय के संबंध में उसके ऐसे अधिकार या विशेषाधिकार जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है, अनुदत्‍त कराने के लिए किसी नियोजक के साथ कोई करार करने से रोकती है। वहीं, धारा 16क. वेजबोर्ड लागू करने के विवाद या एरियर विवाद के चलते संस्‍थान द्वारा आपको पदच्‍युत या सेवामुक्‍त या छंटनी करने से रोकती है।
[16A. Employer not to dismiss, discharge, etc. newspaper employees.-- No employer in relation to a newspaper establishment shall, by reason of his liability for payment of wages to newspaper employees at the rates specified in an order of the Central Government under section 12, or under section 12 read with section 13AA or section 13DD, dismiss, discharge or retrench any newspaper employee.]
[धारा 16क. नियोजक द्वारा समाचारपत्र कर्मचारियों को पदच्‍युत, सेवोन्‍मुक्‍त, आदि न किया जाना-- किसी समाचारपत्र स्‍थापन के संबंध में कोई नियोजक, धारा 12 के अधीन या धारा 13कक या धारा 13घ घ के साथ पठित धारा 12 के अधीन केन्‍द्रीय सरकार के किसी आदेश में विनिर्दिष्‍ट समाचारपत्र कर्मचारियों को मजदूरी के संदाय के अपने दायित्‍व के कारण, किसी समाचारपत्र कर्मचारी को पदच्‍युत या सेवोन्‍मुक्‍त नहीं करेगा या उसकी छंटनी नहीं करेगा।]
परमानंद पांडेय एडवोकेट
सुप्रीम कोर्ट

मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई 14 मार्च को

 सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड प्रकरण की अगली सुनवाई की तारीख तय हो चुकी है. इसी महीने यानि मार्च की चौदह तारीख को सुनवाई की जाएगी. यह जानकारी भड़ास4मीडिया की तरफ से सैकड़ों अवमानना केस दायर करने वाले एडवोकेट उमेश शर्मा ने दी. यह  जानकारी उमेश शर्मा जी ने दी है . जो भी मीडिया कर्मचारी अभी उच्चतम न्यायालय में खुले रूप से अथवा गुप्त रूप से अपने याचिका लगाना चाहते हैं, वो अभी भी तुरंत रूप से संपर्क कर सकते हैं. अखबार प्रबंधन से अपना हक लेने के लिए चल रही न्यायिक लड़ाई में सहभागी बनने हेतु सम्पर्क सूत्र 011-2335 5388 पर दिन के आफिस आवर में कॉल कर सकते हैं या फिर मेल आईडी legalhelplineindia@gmail.com पर मेल कर सकते हैं.


Thursday, March 3, 2016

लिपस्टिक से बनाती हैं पोट्रेट

ह्यूस्‍टन की रहने वाली नताली आयरिश एक विजुअल आर्टिस्‍ट है। उनका मी‍डि‍यम मेटल, पेंट, क्‍ले, फेब्रिक और चारकोल है लेकिन उन्‍होंने लिपस्टिक का यूज कर पोट्रेट्स बनाकर सबका ध्‍यान आकर्षित किया।
वे मर्लिन मुनरो, जिमी हेंड्रि‍क्‍स और रॉय रोजर्स के लिप प्रिंट पोट्रेट बनाकर 2011 में मीडिया में छा गई थी।उनका एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस आर्ट‍िस्‍ट के इस इनसाइडर वीडियो को फेसबुक पर 2 करोड़ 87 लाख से ज्‍यादा लोगों ने देख लिया है।

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