Thursday, January 22, 2015
आईटी सेक्टर में सबसे ज्यादा सैलरी
कोटा। प्रफेशनल करियर में सबके लिए सबसे अहम होता है, मनपसंद काम और बेहतर सैलरी। सैलरी के लिहाज से देश का आईटी क्षेत्र सबसे आकर्षक है। एक रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक सैलरी आईटी सेक्टर में मिलती है और सबसे कम एजुकेशन सेक्टर में। आईटी क्षेत्र के कर्मचारियों को औसत 341.8 रुपये प्रति घंटे का वेतन मिलता है। इसके बाद वित्तीय सेक्टर का नंबर आता है। इस सेक्टर में कर्मचारियों का औसत वेतन 291 रुपये प्रति घंटे है।
ऑनलाइन करियर और रिक्रूटमेंट सलूशन कंपनी मॉन्सटर इंडिया के अनुसार विभिन्न सेक्टरों में वेतन की बात की जाए तो आईटी क्षेत्र सबसे आगे है। इस क्षेत्र में कर्मचारियों को औसत 341.8 रुपये प्रति घंटे का वेतन मिलता है। मॉन्सटर के वेतन इंडेक्स के अनुसार निर्माण सेक्टर में 259 रुपये प्रति घंटे, एजुकेशन सेक्टर में 186.5 रुपये, स्वास्थ्य सेवा सेक्टर में 215 रुपये, कानून सेक्टर में 215.6 रुपये और विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग तथा परिवहन सेक्टर में 230.9 रुपये प्रति घंटे का औसत वेतन मिलता है।
रिपोर्ट के अनुसार एजुकेशन सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों को सबसे कम 186.5 रुपये प्रति घंटे का औसत वेतन मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इस सेक्टर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 18 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। इसी तरह देश के आईटी सेक्टर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 34 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। वहीं वित्तीय सेक्टर में यह अंतर 19 प्रतिशत का है।
ऑनलाइन करियर और रिक्रूटमेंट सलूशन कंपनी मॉन्सटर इंडिया के अनुसार विभिन्न सेक्टरों में वेतन की बात की जाए तो आईटी क्षेत्र सबसे आगे है। इस क्षेत्र में कर्मचारियों को औसत 341.8 रुपये प्रति घंटे का वेतन मिलता है। मॉन्सटर के वेतन इंडेक्स के अनुसार निर्माण सेक्टर में 259 रुपये प्रति घंटे, एजुकेशन सेक्टर में 186.5 रुपये, स्वास्थ्य सेवा सेक्टर में 215 रुपये, कानून सेक्टर में 215.6 रुपये और विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग तथा परिवहन सेक्टर में 230.9 रुपये प्रति घंटे का औसत वेतन मिलता है।
रिपोर्ट के अनुसार एजुकेशन सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों को सबसे कम 186.5 रुपये प्रति घंटे का औसत वेतन मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इस सेक्टर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 18 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। इसी तरह देश के आईटी सेक्टर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 34 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। वहीं वित्तीय सेक्टर में यह अंतर 19 प्रतिशत का है।
Wednesday, January 21, 2015
Monday, January 19, 2015
22.41 रुपए हो जाए पेट्रोल, अगर ये चीजें हो जाएं आसान... जानें पूरा गणित
कोटा। तेल कंपनियों ने एक बार फिर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती कर ग्राहकों को कुछ राहत दी है। 17 जनवरी को सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में 2.42 रुपए प्रति लीटर और डीजल में 2.25 रुपए प्रति लीटर की कटौती की है। इस कटौती के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 58.91 रुपए प्रति लीटर और डीजल के दाम 48.26 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं। हालांकि, अब भी पेट्रोल और डीजल ग्राहकों की जेब को काटने का काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और तेल कंपनियां पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर कितने टैक्स लगा दे देती हैं कि ग्राहकों को असर कीमत का पता ही नहीं चलता।
क्या है पेट्रोल और टैक्स का गणित
ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार से बीएस 3 की गुणवत्ता के बराबर गैसोलीन (पेट्रोल) की लागत एवं माल भाड़ा 67.09 डॉलर प्रति बैरल रहता है। वहीं, औसत एक्सचेंज रेट 63.26 डॉलर प्रति रुपए है। अब हम आपको बताते हैं कि पेट्रोल पर कितने तरह के टैक्स लगाए जाते हैं।
केंद्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाला टैक्स : 11.02 रुपए प्रति लीटर
एक्साइज ड्यूटी : 11.48 रुपए
वैट एवं सेस : 4.00 रुपए
राज्य सरकार द्वारा लगाए जाने वाला टैक्स : 8.00 रुपए
डीलर्स कमीशन (घरेलू संगठन के टैक्स) : 2.00 रुपए प्रति लीटर
कुल टैक्स : 34.50 रुपए प्रति लीटर
रिटेल बिक्री की कीमत दिल्ली में 58.91 रुपए प्रति लीटर
असल कीमत : 58.91 – 34.50 = 22.41 रुपए प्रति लीटर
इस हिसाब से अगर हर टैक्स को हटा दिया जाए तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 22.41 रुपए प्रति लीटर हो सकती है और जनता की जेब से बोझ हट सकता है।
क्या है पेट्रोल और टैक्स का गणित
ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार से बीएस 3 की गुणवत्ता के बराबर गैसोलीन (पेट्रोल) की लागत एवं माल भाड़ा 67.09 डॉलर प्रति बैरल रहता है। वहीं, औसत एक्सचेंज रेट 63.26 डॉलर प्रति रुपए है। अब हम आपको बताते हैं कि पेट्रोल पर कितने तरह के टैक्स लगाए जाते हैं।
केंद्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाला टैक्स : 11.02 रुपए प्रति लीटर
एक्साइज ड्यूटी : 11.48 रुपए
वैट एवं सेस : 4.00 रुपए
राज्य सरकार द्वारा लगाए जाने वाला टैक्स : 8.00 रुपए
डीलर्स कमीशन (घरेलू संगठन के टैक्स) : 2.00 रुपए प्रति लीटर
कुल टैक्स : 34.50 रुपए प्रति लीटर
रिटेल बिक्री की कीमत दिल्ली में 58.91 रुपए प्रति लीटर
असल कीमत : 58.91 – 34.50 = 22.41 रुपए प्रति लीटर
इस हिसाब से अगर हर टैक्स को हटा दिया जाए तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 22.41 रुपए प्रति लीटर हो सकती है और जनता की जेब से बोझ हट सकता है।
Sunday, January 18, 2015
ऑनलाइन ब्योरा डालते ही जमा होगा टैक्स रिटर्न
कोटा। अब लोगों को आयकर जमा करने या रिटर्न दाखिल करने के लिए न तो सीएए के पास चक्कर काटने होंगे और न ही मुनीमों के दस्तावेजों में माथापच्ची करनी होगी। लोगों की मुश्किलों को आसान करने के लिए आयकर विभाग ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिसमें आय व्यय का ब्योरा डालते ही टैक्स की जानकारी उपलब्ध होगी और रिटर्न दाखिल हो जाएगा।आयकर विभाग ने वेबसाइट को अपग्रेड करना शुरू कर दिया है। जुलाई तक आयकर दाता अपने घर बैठे ही कंप्यूटर पर ऑनलाइन आयकर जमा कर सकेंगे।
आयकर अधिकारी बताते हैं कि आयकर दाताओं को अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आयकर सुविधा केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। घर बैठे सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्वत: आयकर गणना व रिटर्न दाखिल करने की सुविधा भी शीघ्र उपलब्ध हो जाएगी।
यूं तो बड़े आयकरदाता अपने काम के लिए सीए रखते हैं, ताकि उनकी परेशानी कम हो। लेकिन कई बार ऐसी शिकायतें देखने को मिली हैं कि लेखाकर कर्मचारियों के आयकर की गलत गणना कर उल्टा सीधा टैक्स काट लेते हैं और जब कर्मचारी रिटर्न फॉर्म भरवाने सीए के पास जाता है, तब पता चलता है उसका अधिक टैक्स जमा हो गया है। इसके बाद रिफंड के लिए आयकर विभाग में चक्कर लगाने पड़ते हैं। गौरतलब है कि आयकर विभाग ने सालाना पांच लाख रुपये से अधिक आय वालों के लिए इंटरनेट के माध्यम से रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य कर दिया है।
आयकर विभाग ने इस सिस्टम को अपग्रेड कर रहा है। आयकर दाता इसी सिस्टम में जाकर आय, व्यय का ब्योरा फीड करेगा और पलक झपकते टैक्स की राशि कंप्यूटर पर सामने होगी।रिटर्न दाखिल करने के लिए आयकर विभाग की वेबसाइट पर जाकर पैन नंबर डालना पड़ेगा। आयकर दाता के नाम व पता डालने से रिटर्न फॉर्म कंप्यूटर पर खुल जाएगा। फॉर्म में मांगी जाने वाली सूचना हिंदी व अंग्रेजी में होगी।आयकर दाता को आय-व्यय के साथ बचत राशि की जानकारी भरनी होगी। इसी के साथ रिटर्न दाखिल हो जाएगा। आर्थिक विश्लेषक के अनुसार, पांच लाख रुपये से अधिक आय वालों को डिजिटल हस्ताक्षर करने होंगे।पांच लाख रुपये से कम आय वालों को कंप्यूटर से रिटर्न का प्रिंट निकालकर आयकर विभाग में जमा करना होगा।
स्मार्ट जूता, जो बनाता है बिजली
कोटा। अब आप चलते चलते बिजली भी पैदा कर सकते हैं। जी हां, जर्मनी के शोधकर्ताओं ने यह मुमकिन कर दिखाया है। विज्ञान पत्रिका 'स्मार्ट मटीरियल्स एंज स्ट्रक्चर्स' के मुताबिक़, जूते के आकार का एक उपकरण विकसित कर लिया गया है, जिसे पहन कर चलने से बिजली पैदा होती है।इससे तीन से चार मिलीवॉट बिजली पैदा की जा सकती है। इतनी भर बिजली से स्मार्टफ़ोन की बैटरी तो चार्ज नहीं हो सकती पर यह छोटे सेंसरों और बैटरियों के लिए काफ़ी है।यह थर्मोडायनमिक्स के निहायत ही सामान्य सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है। घूमता हुआ चंबकीय क्षेत्र जब स्थिर क्वॉयल से गुजरता है तो बिजली पैदा होती है, बस।शोधकर्ता यह कोशिश भी कर रहे हैं कि बुजुर्गों के पहनने वाले जूते के फ़ीते ख़ुद बंध जाएं। उपकरण यह पता लगाएगा कि जूते में पांव कब डाला गया और उसके बाद वो फ़ीते बांध देगा।इस दिलचस्प उपकरण में दो हिस्से होंगे। एड़ी जैसे ही ज़मीन से टकराएगी, 'शॉक हार्वेस्टर' बिजली पैदा करेगा। जब पांव चलते रहेंगे और एक दूसरा उपकरण 'स्विंग हार्वेस्टर' बिजली पैदा करेगा। इस उपकरण से लैस जूते पहन कर चलने से यह भी पता चल सकेगा कि शख़्स किस तरफ़ गया है और कितनी दूर गया है।इसे पहन कर चलने वाले आदमी की निगरानी की जा सकेगी और राहत व बचाव कार्य में इससे सुविधा होगी।
Saturday, January 17, 2015
बिना 3डी चश्मे के देखी जा सकेंगी 3डी फिल्में
दिनेश माहेश्वरी
कोटा। ऑस्ट्रियन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से बिना 3डी चश्मा पहने हुए भी 3डी इफेक्ट्स को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में डिवाइस से कुछ लेजर बीम्स अलग-अलग दिशा में निकलेंगी जो छवियों का निर्माण करेंगी और हम 3डी चश्मे के बिना भी उन दृश्यों को देख सकेंगे।
विएना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक की मदद से हम घर से बाहर और दिन के उजाले में भी 3डी इफेक्ट वाली छवियां देख सकेंगे।
एक स्टार्ट अप कंपनी ट्राइलाइट टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक के आधार पर पहला प्रोटोटाइप भी विकसित कर लिया है। कंपनी ने बताया कि वह दूसरे प्रोटोटाइप का विकास कर रही है। जिसमें हाई रेजॉलुशन की रंगीन तस्वीरों को भी देखा जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि 3डी फिल्मों में केवल दो रंग होते हैं, जिन्हें दोनों आंखें अलग-अलग देखती हैं और फिर एक दृश्य का निर्माण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही तकनीक में दृश्य एकदम असली और आंखें के सामने ही प्रतीत होंगे। इसके लिए कुछ खास वीडियो फॉरमेट्स की जरूरत होगी, जिनके विकास पर काम जारी है।
ट्रिलाइट कंपनी के अनुसार मौजूदा 3डी तकनीक में दृश्यों को कई कैमरों से रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसे 3डी फॉरमेट में बदला जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह नया प्रोटोटाइप इस साल के मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा और प्रॉडक्ट को अगले साल 2016 में लॉन्च भी कर दिया जाएगा।
कोटा। ऑस्ट्रियन वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से बिना 3डी चश्मा पहने हुए भी 3डी इफेक्ट्स को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में डिवाइस से कुछ लेजर बीम्स अलग-अलग दिशा में निकलेंगी जो छवियों का निर्माण करेंगी और हम 3डी चश्मे के बिना भी उन दृश्यों को देख सकेंगे।
विएना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक की मदद से हम घर से बाहर और दिन के उजाले में भी 3डी इफेक्ट वाली छवियां देख सकेंगे।
एक स्टार्ट अप कंपनी ट्राइलाइट टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक के आधार पर पहला प्रोटोटाइप भी विकसित कर लिया है। कंपनी ने बताया कि वह दूसरे प्रोटोटाइप का विकास कर रही है। जिसमें हाई रेजॉलुशन की रंगीन तस्वीरों को भी देखा जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि 3डी फिल्मों में केवल दो रंग होते हैं, जिन्हें दोनों आंखें अलग-अलग देखती हैं और फिर एक दृश्य का निर्माण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही तकनीक में दृश्य एकदम असली और आंखें के सामने ही प्रतीत होंगे। इसके लिए कुछ खास वीडियो फॉरमेट्स की जरूरत होगी, जिनके विकास पर काम जारी है।
ट्रिलाइट कंपनी के अनुसार मौजूदा 3डी तकनीक में दृश्यों को कई कैमरों से रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसे 3डी फॉरमेट में बदला जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह नया प्रोटोटाइप इस साल के मध्य तक पूरा कर लिया जाएगा और प्रॉडक्ट को अगले साल 2016 में लॉन्च भी कर दिया जाएगा।
Wednesday, January 14, 2015
गिरे कच्चे तेल के दाम, फिर भी महंगा पेट्रोल क्यों?
7:59:00 AM
crude-is-now-lowest-level-after-six-year-but-government-has-not-cut-petrol-and-diesel-price
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कोटा। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की कीमत 12 जनवरी को 45.86 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत पेट्रोलियम नियोजन और विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) की सूचना के अनुसार भारतीय बॉस्केट के लिए कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत घटकर 45.86 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल रही। 9 जनवरी को यह कीमत 47.36 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी।
रुपए के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 12 जनवरी को घटकर 2850.66 रुपए प्रति बैरल हो गई, जबकि 9 जनवरी को 2955.26 रुपये प्रति बैरल थी। 12 जनवरी को रुपया मजबूती के साथ 62.16 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ। 9 जनवरी को यह कीमत 62.40 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत इतनी कम होने के बावजूद डीजल-पेट्रोल की कीमत भारत में कम नहीं हो पा रही है। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को क्यों नहीं कम रही है? वहीं केंद्र अभी तक तीन बार कच्चे तेल के आयात पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर लोगों को असली फायदा लेने से रोक रही है।
फरवरी 2007 में कच्चे तेल की कीमत 55 डॉलर के स्तर पर थी। तब भारत में पेट्रोल 42 रुपए और डीजल 30 रुपए प्रति लीटर की कीमत पर बिक रहा था। पर आज 45.86 डॉलर प्रति बैरल क्रूड ऑयल होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमत कम नहीं हुई है। अभी भी पेट्रोल 61 और डीजल 51 रुपए प्रति लीटर की दर से आम ग्राहकों को मिल रहा है।
गौरतलब है कि सरकार को सीधे तौर पर फायदा हो रहा है। पर इसका फायदा जनता को नहीं मिल रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 के छह महीनों के लिए अंडर-रिकवरी 51,110 करोड़ रूपए रही है। वित्त वर्ष 2013-14 के पूरे वर्ष के लिए यह राशि 1,39,869 करोड़ रूपये रही थी।भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 31 दिसंबर को 53.53 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 53.81 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी। रुपये के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 31 दिसंबर, 2014 को घटकर 3390.05 रुपये प्रति बैरल हो गई जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 3430.39 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया 31 दिसंबर, 2014 को रुपया मजबूत होकर 63.33 रुपये प्रति अमेरीकी डॉलर पर बन्द हुआ, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को 63.75 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर था।
जून 2014 और जुलाई 2014 के बीच में ब्रैंट क्रूड (ऑयल) की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर थी। पर धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत कम होने लगी।
अक्टूबर 2014 में ब्रैंट क्रूड की कीमत 88.66 डॉलर, 3 नवंबर को यह कीमत 84.9 डॉलर, 27 नवंबर को 72.68 डॉलर और 28 नवंबर को यह कीमत घटकर 72.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई। एक बैरल में 158.98 लीटर तेल होता है। वर्ष 2013-14 के आकड़ों के मुताबिक भारत प्रति दिन 385,000 बैरल तेल का आयात करता है।
रुपए के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 12 जनवरी को घटकर 2850.66 रुपए प्रति बैरल हो गई, जबकि 9 जनवरी को 2955.26 रुपये प्रति बैरल थी। 12 जनवरी को रुपया मजबूती के साथ 62.16 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ। 9 जनवरी को यह कीमत 62.40 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत इतनी कम होने के बावजूद डीजल-पेट्रोल की कीमत भारत में कम नहीं हो पा रही है। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को क्यों नहीं कम रही है? वहीं केंद्र अभी तक तीन बार कच्चे तेल के आयात पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर लोगों को असली फायदा लेने से रोक रही है।
फरवरी 2007 में कच्चे तेल की कीमत 55 डॉलर के स्तर पर थी। तब भारत में पेट्रोल 42 रुपए और डीजल 30 रुपए प्रति लीटर की कीमत पर बिक रहा था। पर आज 45.86 डॉलर प्रति बैरल क्रूड ऑयल होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमत कम नहीं हुई है। अभी भी पेट्रोल 61 और डीजल 51 रुपए प्रति लीटर की दर से आम ग्राहकों को मिल रहा है।
गौरतलब है कि सरकार को सीधे तौर पर फायदा हो रहा है। पर इसका फायदा जनता को नहीं मिल रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 के छह महीनों के लिए अंडर-रिकवरी 51,110 करोड़ रूपए रही है। वित्त वर्ष 2013-14 के पूरे वर्ष के लिए यह राशि 1,39,869 करोड़ रूपये रही थी।भारतीय बॉस्केट के कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 31 दिसंबर को 53.53 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 53.81 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी। रुपये के संदर्भ में कच्चे तेल की कीमत 31 दिसंबर, 2014 को घटकर 3390.05 रुपये प्रति बैरल हो गई जबकि 30 दिसंबर, 2014 को यह 3430.39 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया 31 दिसंबर, 2014 को रुपया मजबूत होकर 63.33 रुपये प्रति अमेरीकी डॉलर पर बन्द हुआ, जबकि 30 दिसंबर, 2014 को 63.75 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर था।
जून 2014 और जुलाई 2014 के बीच में ब्रैंट क्रूड (ऑयल) की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर थी। पर धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत कम होने लगी।
अक्टूबर 2014 में ब्रैंट क्रूड की कीमत 88.66 डॉलर, 3 नवंबर को यह कीमत 84.9 डॉलर, 27 नवंबर को 72.68 डॉलर और 28 नवंबर को यह कीमत घटकर 72.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई। एक बैरल में 158.98 लीटर तेल होता है। वर्ष 2013-14 के आकड़ों के मुताबिक भारत प्रति दिन 385,000 बैरल तेल का आयात करता है।
Sunday, January 11, 2015
ईमेल में डालें फेस डिटेक्शन पासवर्ड, चेहरा बन जाएगा पासवर्ड
कोटा। शारीरिक चिन्हों या आंखों की पुतलियों द्वारा व्यक्ति की पहचान करने की प्रक्रिया (बायोमेट्रिक) में अब एक नई कड़ी जुड़ गई है। अब तक तो आप फेस डिटेक्शन तकनीक से आईफोन या एंड्रॉयड को अनलॉक कर सकते थे, लेकिन अब एक ऐसा नया ऐप ′ट्रू-की′(true key) डेवलप किया गया है, जिसके जरिए आप अपने पासवर्ड प्रोटेक्टेड मल्टीपल वेबसाइट जैसे ईमेल, नेट बैंकिंग अकाउंट आदि को बिना कोई पासवर्ड डाले फेस डिटेक्शन तकनीक से ओपन कर सकेंगे। हालांकि फेस डिटेक्शन तकनीक की सुविधा एप्पल के आईफोन और गूगल के एंड्रॉयड पर पहले से ही उपलब्ध है। यह ′ट्रू-की′ कंप्यूटर कैमरे की मदद से फोटो क्लिक करके स्टोर कर लेगा, ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके।जब भी आप अपने पासवर्ड प्रोटेक्टेड वेबसाइट को ओपन करना चाहेंगे, यह ऐप आपके चेहरे को स्कैन कर अपने रिकॉर्ड से मैच कर लेगा। इस स्थिति में पासवर्ड की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह तकनीक उन सभी डिवाइसेज पर काम करेगी, जिनमें कैमरे लगे होंगे, यानी यह कंप्यूटर, टैबलेट और स्मार्टफोन के पासवर्ड भी बदल सकता है। ′ट्रू-की′ ऐप फरवरी से वेबसाइट पर उपलब्ध होगा। ′ट्रू-की′ सर्विस को कंप्यूटर चिपमेकर इंटेल ने डेवलप किया है।
Friday, January 9, 2015
अब आपकी कार रखेगी ड्राइवर की हरकतों पर नजर
कोटा। कार चलाते समय ड्राइवर का ध्यान भटकने या झपकी लेने जैसी हरकतों की वजह से अक्सर दूसरे लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। दुर्घटना में लोगों को जान तक गंवानी पड़ जाती है।
इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के मकसद से ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ‘सीइंग मशींस’ ने एक तकनीक ईजाद की है। जिसके जरिए कार ही ड्राइवर पर नजर रख सकेगी और किसी तरह की लापरवाही की स्थिति में ड्राइवर को सतर्क कर सकेगी। वैसे कई कारों में पहले से ऐसे सेंसर और कैमरे लगे हैं, जो ड्राइवर की नजर में नहीं आने वाली चीजों की पहचान कर उन्हें सावधान करते हैं। मगर इन सेंसर और कैमरों की कार के बाहर नजर रहती है।कार के अंदर की गतिविधियां उनकी पकड़ से दूर रहती है। नई तकनीक से ड्राइवर की आंखों और चेहरे के हाव-भाव पर नजर रखी जा सकेगी, ताकि सतर्क किया जा सके।
इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के मकसद से ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ‘सीइंग मशींस’ ने एक तकनीक ईजाद की है। जिसके जरिए कार ही ड्राइवर पर नजर रख सकेगी और किसी तरह की लापरवाही की स्थिति में ड्राइवर को सतर्क कर सकेगी। वैसे कई कारों में पहले से ऐसे सेंसर और कैमरे लगे हैं, जो ड्राइवर की नजर में नहीं आने वाली चीजों की पहचान कर उन्हें सावधान करते हैं। मगर इन सेंसर और कैमरों की कार के बाहर नजर रहती है।कार के अंदर की गतिविधियां उनकी पकड़ से दूर रहती है। नई तकनीक से ड्राइवर की आंखों और चेहरे के हाव-भाव पर नजर रखी जा सकेगी, ताकि सतर्क किया जा सके।
स्मार्टफोन से सिर्फ उंगली घुमाएं खुल जाएगा सूटकेस का लॉक
कोटा। अमेरिका की एक कंपनी ने एक ऐसा स्मार्ट लॉक बनाया है, जिसकी मदद से आप अपने स्मार्टफोन से सिर्फ स्वाइप करके सूटकेस का लॉक खोल सकते हैं।
सफर में कई लोग अपने सूटकेस की चाबी अक्सर खो देते हैं या उसका पासवर्ड भूल जाते हैं। 'ई-जी टच' नामक यह लॉक उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। इस नई तकनीक में एनएफसी (नियर फील्ड कम्युनिकेशन) की मदद से स्मार्टफोन या टैबलेट या स्मार्टवाच को सूटकेस में लगे लॉक की चाबी या पासवर्ड उपलब्ध हो जाते हैं।एनएफसी कुछ सेंटीमीटर के फासले पर दो डिवाइसों के बीच डेटा ट्रांसफर को संभव बनाता है। लेकिन ब्लूटूथ से अलग इसमें किसी पेयरिंग कोड की जरूरत नहीं है। इस तकनीक के बारे में कंपनी का दावा है कि इसमें चाबी के खोने का कोई गम नहीं रहता और कोई खास नंबर डालने की भी जरूरत नहीं है, न ही किसी कोड को याद रखने की जरूरत है।कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि ये दुनिया में अपनी तरह का पहला स्मार्ट लॉक है जो नवीनतम तकनीक से परिपूर्ण है। ये आइडेंटीफिकेशन तकनीक को एक नया स्तर देता है और लॉक सिस्टम से जुड़ी यांत्रिक समस्याओं का समाधान भी करता है।
सफर में कई लोग अपने सूटकेस की चाबी अक्सर खो देते हैं या उसका पासवर्ड भूल जाते हैं। 'ई-जी टच' नामक यह लॉक उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। इस नई तकनीक में एनएफसी (नियर फील्ड कम्युनिकेशन) की मदद से स्मार्टफोन या टैबलेट या स्मार्टवाच को सूटकेस में लगे लॉक की चाबी या पासवर्ड उपलब्ध हो जाते हैं।एनएफसी कुछ सेंटीमीटर के फासले पर दो डिवाइसों के बीच डेटा ट्रांसफर को संभव बनाता है। लेकिन ब्लूटूथ से अलग इसमें किसी पेयरिंग कोड की जरूरत नहीं है। इस तकनीक के बारे में कंपनी का दावा है कि इसमें चाबी के खोने का कोई गम नहीं रहता और कोई खास नंबर डालने की भी जरूरत नहीं है, न ही किसी कोड को याद रखने की जरूरत है।कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि ये दुनिया में अपनी तरह का पहला स्मार्ट लॉक है जो नवीनतम तकनीक से परिपूर्ण है। ये आइडेंटीफिकेशन तकनीक को एक नया स्तर देता है और लॉक सिस्टम से जुड़ी यांत्रिक समस्याओं का समाधान भी करता है।
Tuesday, January 6, 2015
एसएमएस बताएगा डाक पैकेट पहुंचने का वक्त
कोटा। अब पार्सल या रजिस्ट्री गंतव्य पर पहुंचते ही भेजने वाले को संदेश मिल जाएगा। यह संदेश पावती की तरह ही काम करेगा। इस सुविधा को डाक विभाग शुरू करने जा रहा है। इसके लिए डाक विभाग कोई अतिरिक्त शुल्क भी नहीं वसूलेगा।
डाक विभाग निरंतर आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है। अभी तक स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल या मनीआर्डर भेजने वालों को इंटरनेट पर देखना पड़ता था कि उनके द्वारा भेजा पैकेट कहां तक पहुंचा है। पैकेट प्राप्त करने वाले को यदि रसीद की आवश्यकता होती है तो डाक सामग्री के साथ पावती भेजनी पड़ती है। इसमें काफी वक्त लगता है। डाक विभाग ने ऐसे ग्राहकों के लिए नई सुविधा शुरू की है। अब स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल या मनीआर्डर भेजने वाले व्यक्ति को पावती में अपना मोबाइल नंबर अंकित करना होगा। डाक विभाग संबंधित पार्सल के पहुंचते ही एसएमएस भेजकर सूचना देगा। इस संदेश के साथ कोड नंबर भी होगा। इस संदेश की मान्यता पावती की तरह ही होगी।
डाक विभाग निरंतर आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है। अभी तक स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल या मनीआर्डर भेजने वालों को इंटरनेट पर देखना पड़ता था कि उनके द्वारा भेजा पैकेट कहां तक पहुंचा है। पैकेट प्राप्त करने वाले को यदि रसीद की आवश्यकता होती है तो डाक सामग्री के साथ पावती भेजनी पड़ती है। इसमें काफी वक्त लगता है। डाक विभाग ने ऐसे ग्राहकों के लिए नई सुविधा शुरू की है। अब स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल या मनीआर्डर भेजने वाले व्यक्ति को पावती में अपना मोबाइल नंबर अंकित करना होगा। डाक विभाग संबंधित पार्सल के पहुंचते ही एसएमएस भेजकर सूचना देगा। इस संदेश के साथ कोड नंबर भी होगा। इस संदेश की मान्यता पावती की तरह ही होगी।
Monday, January 5, 2015
अब स्मार्ट होगी ऑनलाइन शॉपिंग
कोटा। नया साल आते ही ऑनलाइन शॉपिंग पर भी नए ऑफर्स की बहार दिखने लगी है, लेकिन ये ऑफर्स ही नहीं हैं जो इस साल आपको लुभाने वाले हैं। इस साल ऑनलाइन शॉपिंग का एक्सपीरिएंस एक नए मुकाम पर पहुंचने वाला है। इस साल कुछ ऐसे बड़े बदलाव होने को हैं जिससे ऑनलाइन शॉपिंग एक्सपीरिएंस बदलने वाला है।
क्लिक ऐंड ऑर्डर
आपको अपने दोस्त की टी-शर्ट बहुत पसंद आई लेकिन वह यह बताने से बच रहा है कि उसने यह कहां से और कितने में ली। कोई बात नहीं बस उसकी फोटो क्लिक करो और ऑनलाइन शॉपिंग साइट पर अपलोड करें। चंद सेकंड में ही साइट इस टीशर्ट और इससे मिलती जुलती टी-शर्ट्स को आपके सामने पेश कर देगी। इतना ही नहीं इनके प्राइस और ऑफर्स भी आपको दिखेंगे। बस क्लिक करो और शॉपिंग करो।
रियल टाइम ट्रैकिंग
आपको अपने पार्सल का इंतजार है और फिलहाल मौजूद ट्रैकिंग ऑप्शन आपको शिपमेंट की सटीक लोकेशन बचाने में नाकाम है। इस साल हर ऑर्डर की रियल टाइम ट्रैकिंग मुमकिन हो सकेगी। मतलब यह कि आपको अपना ऑर्डर किया हुआ सामान मैप पर नजर आएगा। वह कब आपके घर पहुंचेगा इसका पता लगाने के लिए आपको डिलीवरी पर्सन को फोन करके ट्रैक करने की जरूरत खत्म होगी और सीधे मैप पर उसकी लोकेशन दिखने लगेगी।
क्या होगा फायदा
अगर आप घर के बाहर हैं तो ऑर्डर की रियल टाइम लोकेशन देख कर उसे अटेंड करने पहुंच सकते हैं । इससे ऑर्डर के मिसप्लेस होने पर भी उसे ट्रैक करना आसान होगा।
क्लिक ऐंड ऑर्डर
आपको अपने दोस्त की टी-शर्ट बहुत पसंद आई लेकिन वह यह बताने से बच रहा है कि उसने यह कहां से और कितने में ली। कोई बात नहीं बस उसकी फोटो क्लिक करो और ऑनलाइन शॉपिंग साइट पर अपलोड करें। चंद सेकंड में ही साइट इस टीशर्ट और इससे मिलती जुलती टी-शर्ट्स को आपके सामने पेश कर देगी। इतना ही नहीं इनके प्राइस और ऑफर्स भी आपको दिखेंगे। बस क्लिक करो और शॉपिंग करो।
रियल टाइम ट्रैकिंग
आपको अपने पार्सल का इंतजार है और फिलहाल मौजूद ट्रैकिंग ऑप्शन आपको शिपमेंट की सटीक लोकेशन बचाने में नाकाम है। इस साल हर ऑर्डर की रियल टाइम ट्रैकिंग मुमकिन हो सकेगी। मतलब यह कि आपको अपना ऑर्डर किया हुआ सामान मैप पर नजर आएगा। वह कब आपके घर पहुंचेगा इसका पता लगाने के लिए आपको डिलीवरी पर्सन को फोन करके ट्रैक करने की जरूरत खत्म होगी और सीधे मैप पर उसकी लोकेशन दिखने लगेगी।
क्या होगा फायदा
अगर आप घर के बाहर हैं तो ऑर्डर की रियल टाइम लोकेशन देख कर उसे अटेंड करने पहुंच सकते हैं । इससे ऑर्डर के मिसप्लेस होने पर भी उसे ट्रैक करना आसान होगा।
Saturday, January 3, 2015
Friday, January 2, 2015
मिट्टी की जांच के बिना यूरिया डाल रहे किसान, नहीं मिलता पूरा फायदा
दिनेश माहेश्वरी
कोटा। मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से जारी आंकड़े साबित करते हैं कि हाड़ौती में अधिकांश किसान बिना मृदा परीक्षण के ही खेती करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले नौ महीनों में मात्र 2343 किसानों ही अपने खेत की मिट्टी की जांच कराई है। यह आंकड़े कोटा जिले की पांच पंचायत समितियों के हैं। हाड़ौती के अन्य जिलों की भी लगभग यही स्थिति है। यहां भी किसान अपने ही हिसाब से खाद-बीज का उपयोग कर रहे हैं।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि हर खेत की मिट्टी अलग-अलग होती है। इसलिए उसमें पाए जाने वाले तत्व भी अलग होते हैं। सभी खेत में एक जैसी मात्रा वाले रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अगर किसान अपने खेत की मिट्टी की जांच करा कर उसमें खाद डालेंगे तो उनके धन की बचत होने के साथ ही खेत की जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि यूरिया या डीएपी का बेहिसाब उपयोग करने से जमीन भी खराब होती है।
हाड़ौती की मिट्टी उपजाऊ : हाड़ौती की मिट्टी वैसे ही उपजाऊ है। यहां दो प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जिसमें से एक है लवणता ली हुई और दूसरी है क्षारक वाली। कृषि अधिकारियों के अनुसार खैराबाद तहसील के आसपास की मिट्टी में क्षारक की अधिकता पाई जाती है। ऐसी मिट्टी को बंजर नहीं छोड़ कर उपजाऊ बनाया जा सकता है। वह भी गोबर की खाद से। किसानों को जैविक खाद का उपयोग करना लाभदायक होगा।
30 प्रतिशत यूरिया ही काम आता है: इनके अनुसार खेत में डाला गया यूरिया मात्र 30 प्रतिशत ही काम आता है। बाकी का 70 प्रतिशत हवा में उड़ जाता है या पानी में बह जाता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा यूरिया या डीएपी डालने ज्यादा अच्छी फसल होगी। किसी जमीन में यूरिया की जरूरत ही नहीं तो यूरिया क्यों डाला जाए। हर फसल के लिए अलग जरूरत होती है।
पांच रुपए में होती है जांच: कृषि अनुसंधान अधिकारी व मृदा परीक्षण लेब इंचार्ज वीबी सिंह राजावत ने बताया कि मृदा परीक्षण का शुल्क सरकारी लेबोरेट्री में मात्र पांच रुपए है। कोई भी किसान अपने खेत में जिसमें फसल बोना चाहता है। उसकी जांच करा सकता है। वह खुद नहीं आए तो अपने ग्राम सेवक के हाथ मिट्टी की जांच के लिए नमूना भेज सकता है।
कोटा। मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से जारी आंकड़े साबित करते हैं कि हाड़ौती में अधिकांश किसान बिना मृदा परीक्षण के ही खेती करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले नौ महीनों में मात्र 2343 किसानों ही अपने खेत की मिट्टी की जांच कराई है। यह आंकड़े कोटा जिले की पांच पंचायत समितियों के हैं। हाड़ौती के अन्य जिलों की भी लगभग यही स्थिति है। यहां भी किसान अपने ही हिसाब से खाद-बीज का उपयोग कर रहे हैं।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि हर खेत की मिट्टी अलग-अलग होती है। इसलिए उसमें पाए जाने वाले तत्व भी अलग होते हैं। सभी खेत में एक जैसी मात्रा वाले रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अगर किसान अपने खेत की मिट्टी की जांच करा कर उसमें खाद डालेंगे तो उनके धन की बचत होने के साथ ही खेत की जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि यूरिया या डीएपी का बेहिसाब उपयोग करने से जमीन भी खराब होती है।
हाड़ौती की मिट्टी उपजाऊ : हाड़ौती की मिट्टी वैसे ही उपजाऊ है। यहां दो प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जिसमें से एक है लवणता ली हुई और दूसरी है क्षारक वाली। कृषि अधिकारियों के अनुसार खैराबाद तहसील के आसपास की मिट्टी में क्षारक की अधिकता पाई जाती है। ऐसी मिट्टी को बंजर नहीं छोड़ कर उपजाऊ बनाया जा सकता है। वह भी गोबर की खाद से। किसानों को जैविक खाद का उपयोग करना लाभदायक होगा।
30 प्रतिशत यूरिया ही काम आता है: इनके अनुसार खेत में डाला गया यूरिया मात्र 30 प्रतिशत ही काम आता है। बाकी का 70 प्रतिशत हवा में उड़ जाता है या पानी में बह जाता है। ऐसा नहीं है कि ज्यादा यूरिया या डीएपी डालने ज्यादा अच्छी फसल होगी। किसी जमीन में यूरिया की जरूरत ही नहीं तो यूरिया क्यों डाला जाए। हर फसल के लिए अलग जरूरत होती है।
पांच रुपए में होती है जांच: कृषि अनुसंधान अधिकारी व मृदा परीक्षण लेब इंचार्ज वीबी सिंह राजावत ने बताया कि मृदा परीक्षण का शुल्क सरकारी लेबोरेट्री में मात्र पांच रुपए है। कोई भी किसान अपने खेत में जिसमें फसल बोना चाहता है। उसकी जांच करा सकता है। वह खुद नहीं आए तो अपने ग्राम सेवक के हाथ मिट्टी की जांच के लिए नमूना भेज सकता है।
थाली से उड़नछू होती दाल
कोटा। खाने की थाली से उड़नछू होती दाल ने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। प्रोत्साहन के अभाव में किसानों ने दलहन खेती से मुंह मोड़ लिया है। इसीलिए न दलहन खेती का न रकबा बढ़ा और न ही उत्पादकता। पिछले पांच दशक में दालों की प्रति व्यक्ति खपत 65 ग्राम रोजाना से घटकर 31 ग्राम रह गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति रोजाना 80 ग्राम दाल चाहिए। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने दलहन खेती की इस स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए कारगर पहल का एलान किया है।
विलायती दालों पर बढ़ती निर्भरता को घटाने और दाल आपूर्ति बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने पुख्ता इंतजाम करने की घोषणा की है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) का 50 फीसद धन अब दलहन फसलों की उत्पादकता व रकबा बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा। दलहन खेती को बढ़ावा देने वाली योजना में अब देश के सभी जिलों को रखा गया है। साथ ही हिमालयी राज्यों समेत समूचे पूर्वोत्तर को इसमें शामिल कर लिया गया है।
दलहन फसलों की खेती का रकबा और उसकी उत्पादकता में पिछले पांच दशक के दौरान कमोबेश कोई अंतर नहीं आया है। इसके उलट बढ़ती जनसंख्या के चलते दाल की मांग में लगातार इजाफा हुआ है। दालें प्रोटीन का प्रमुख सस्ता स्त्रोत होने के नाते गरीबों के लिए बहुत सहज हैं। लेकिन दाल की मांग व आपूर्ति के बढ़ते अंतर के चलते कीमतें सातवें आसमान पर रहती हैं। घरेलू मांग को पूरा करने के लिए हर साल 35 से 40 लाख टन विलायती दालें आयात की जाती हैं।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आजादी के बाद से दालों की पैदावार 1.30 से 1.50 करोड़ टन के आसपास ही सिमटी रही। हरित क्रांति के दौर में दलहन खेती को और झटका लगा। गेहूं व चावल की खेती को प्रोत्साहित करने के चक्कर में किसानों ने भी दलहन की खेती से मुंह मोड़ लिया। इसीलिए दलहन की कृषि कम उपजाऊ और असिंचित भूमि पर ही होने लगी है। भूमि के सिंचित होते ही दालों की खेती बंद हो जाती है।
दरअसल, दलहन खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा नहीं गई है। तकनीकी, जागरूकता और प्रोत्साहन के अभाव में घरेलू स्तर पर दलहन की उत्पादकता 635 किलो प्रति हेक्टेयर है। इसके मुकाबले कनाडा और अमेरिका में दालों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1,900 किलो प्रति हेक्टेयर है।
विलायती दालों पर बढ़ती निर्भरता को घटाने और दाल आपूर्ति बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने पुख्ता इंतजाम करने की घोषणा की है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) का 50 फीसद धन अब दलहन फसलों की उत्पादकता व रकबा बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा। दलहन खेती को बढ़ावा देने वाली योजना में अब देश के सभी जिलों को रखा गया है। साथ ही हिमालयी राज्यों समेत समूचे पूर्वोत्तर को इसमें शामिल कर लिया गया है।
दलहन फसलों की खेती का रकबा और उसकी उत्पादकता में पिछले पांच दशक के दौरान कमोबेश कोई अंतर नहीं आया है। इसके उलट बढ़ती जनसंख्या के चलते दाल की मांग में लगातार इजाफा हुआ है। दालें प्रोटीन का प्रमुख सस्ता स्त्रोत होने के नाते गरीबों के लिए बहुत सहज हैं। लेकिन दाल की मांग व आपूर्ति के बढ़ते अंतर के चलते कीमतें सातवें आसमान पर रहती हैं। घरेलू मांग को पूरा करने के लिए हर साल 35 से 40 लाख टन विलायती दालें आयात की जाती हैं।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आजादी के बाद से दालों की पैदावार 1.30 से 1.50 करोड़ टन के आसपास ही सिमटी रही। हरित क्रांति के दौर में दलहन खेती को और झटका लगा। गेहूं व चावल की खेती को प्रोत्साहित करने के चक्कर में किसानों ने भी दलहन की खेती से मुंह मोड़ लिया। इसीलिए दलहन की कृषि कम उपजाऊ और असिंचित भूमि पर ही होने लगी है। भूमि के सिंचित होते ही दालों की खेती बंद हो जाती है।
दरअसल, दलहन खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा नहीं गई है। तकनीकी, जागरूकता और प्रोत्साहन के अभाव में घरेलू स्तर पर दलहन की उत्पादकता 635 किलो प्रति हेक्टेयर है। इसके मुकाबले कनाडा और अमेरिका में दालों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1,900 किलो प्रति हेक्टेयर है।