दिनेश माहेश्वरी
कोटा। रेलवे पिछले कुछ सालों से ऑनलाइन टिकट बुकिंग को तेज करने की भरपूर कोशिशें की है, फिर भी आम लोगों के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग कभी आसान नहीं रही। हां, दलालों की हर समय चांदी रही। आईआरसीटीसी की वेबसाइट को समय-समय पर अपग्रेड भी किया गया ताकि ऑनलाइन टिकटों की कालाबाजारी पर रोक लगे, लेकिन तकनीकी मामले में माहिर दलाल हमेशा IRCTC से एक कदम आगे रहे। टिकट बुकिंग में भले ही आम लोगों के पसीने छूट जाए लेकिन दलाल बड़ी आसानी से कुछ ही सेकंड में थोक के भाव में टिकट बुक कर लेते हैं।
इंटरनेट पर तेजी से टिकट बुकिंग के लिए पेड सॉफ्टवेयर मौजूद हैं। एजेंट इन सॉफ्टवेयर्स की मदद ले रहे हैं। एजेंटों को सिर्फ यात्री और ट्रेन के डिटेल के साथ-साथ पेमेंट का माध्यम भरना होता है, बाकी के काम सॉफ्टवेयर के जरिए अपने आप हो जाता है। आईआरसीटीसी ने वेबसाइट में सिक्यॉरिटी फीचर के तौर पर कैप्चा कोड का इस्तेमाल किया है ताकि इंसान ही टिकट बुक कर सके, कोई रोबॉट या ऑटोमेटेड कंप्यूटर प्रोग्राम नहीं। दलाल इस सिक्यॉरिटी फीचर को भी धता बताकर टिकट बुक कर ले रहे हैं।
जैसे ही तत्काल टिकट बुकिंग शुरू होती है, सॉफ्टवेयर कुछ ही सेकंड में कई टिकट बुक कर देता है। यही वजह है कि तत्काल के टिकट बुकिंग शुरू होने के कुछ ही समय बाद खत्म हो जाते हैं। दलाल हर टिकट पर यात्रियों से 500 से 1000 रुपये तक ज्यादा वसूलते हैं। इन सॉफ्टवेयर्स की वजह से रेलवे को तो कोई नुकसान नहीं होता, क्योंकि बुकिंग अमाउंट उसके खाते में तो आती ही है। लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान आम यात्री को होता है। लोगों को समय पर टिकट नहीं मिल पाता, वहीं दलाल टिकटों की कालाबाजारी कर उन्हें डेढ़ से दोगुने तक में बेच देते हैं।
कोटा। रेलवे पिछले कुछ सालों से ऑनलाइन टिकट बुकिंग को तेज करने की भरपूर कोशिशें की है, फिर भी आम लोगों के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग कभी आसान नहीं रही। हां, दलालों की हर समय चांदी रही। आईआरसीटीसी की वेबसाइट को समय-समय पर अपग्रेड भी किया गया ताकि ऑनलाइन टिकटों की कालाबाजारी पर रोक लगे, लेकिन तकनीकी मामले में माहिर दलाल हमेशा IRCTC से एक कदम आगे रहे। टिकट बुकिंग में भले ही आम लोगों के पसीने छूट जाए लेकिन दलाल बड़ी आसानी से कुछ ही सेकंड में थोक के भाव में टिकट बुक कर लेते हैं।
इंटरनेट पर तेजी से टिकट बुकिंग के लिए पेड सॉफ्टवेयर मौजूद हैं। एजेंट इन सॉफ्टवेयर्स की मदद ले रहे हैं। एजेंटों को सिर्फ यात्री और ट्रेन के डिटेल के साथ-साथ पेमेंट का माध्यम भरना होता है, बाकी के काम सॉफ्टवेयर के जरिए अपने आप हो जाता है। आईआरसीटीसी ने वेबसाइट में सिक्यॉरिटी फीचर के तौर पर कैप्चा कोड का इस्तेमाल किया है ताकि इंसान ही टिकट बुक कर सके, कोई रोबॉट या ऑटोमेटेड कंप्यूटर प्रोग्राम नहीं। दलाल इस सिक्यॉरिटी फीचर को भी धता बताकर टिकट बुक कर ले रहे हैं।
जैसे ही तत्काल टिकट बुकिंग शुरू होती है, सॉफ्टवेयर कुछ ही सेकंड में कई टिकट बुक कर देता है। यही वजह है कि तत्काल के टिकट बुकिंग शुरू होने के कुछ ही समय बाद खत्म हो जाते हैं। दलाल हर टिकट पर यात्रियों से 500 से 1000 रुपये तक ज्यादा वसूलते हैं। इन सॉफ्टवेयर्स की वजह से रेलवे को तो कोई नुकसान नहीं होता, क्योंकि बुकिंग अमाउंट उसके खाते में तो आती ही है। लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान आम यात्री को होता है। लोगों को समय पर टिकट नहीं मिल पाता, वहीं दलाल टिकटों की कालाबाजारी कर उन्हें डेढ़ से दोगुने तक में बेच देते हैं।
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