Saturday, October 31, 2015
Friday, October 30, 2015
आंखों के इशारे समझेगा अब कम्प्यूटर
अंगुलियों के इशारे पर काम करने वाला कम्प्यूटर आने वाले दिनों में आंखों का इशारा और चेहरे के भाव भी समझने लगेगा। वैज्ञानिक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसके जरिये कम्प्यूटर बिना कुछ बोले या छुए सिर्फ हाव-भाव और चेहरे के इशारे पर काम करने में सक्षम हो सकेंगे।
आमतौर पर क्लिक, टाइपिंग और कुछ सॉफ्टवेयर के जरिये बोलकर कम्प्यूटर पर काम किया जाता है। शोधकर्ता कम्प्यूटर से संवाद के तरीकों को इससे आगे ले जाने के प्रयास में हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, "दो व्यक्ति आपस में मुस्कुराकर, भौंहें चढ़ाकर, इशारा करते हुए और कई तरह की भाषाओं में संवाद करते हैं। हमारे प्रोजेक्ट का उद्देश्य मनुष्य और कम्प्यूटर के बीच संवाद में भी इसी तरह का क्रांतिकारी परिवर्तन लाना है।"कोलोरेडो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रूस ड्रेपर ने कहा, "कम्प्यूटर से संवाद का तरीका बहुत सीमित है। शुरुआती दौर में जब कम्प्यूटर सिर्फ एक मशीन की तरह थे, तब यह एकतरफा संवाद उचित था।आज की तारीख में कम्प्यूटर एक सहयोगी की भूमिका में आ चुका है और इस कारण मनुष्य और कम्प्यूटर के बीच भी दोतरफा संवाद स्थापित होना चाहिए।शोधकर्ता इसके लिए हाव-भाव और इशारों के अर्थ को लेकर लाइब्रेरी तैयार कर रहे हैं। इस लाइब्रेरी के जरिये ही कम्प्यूटर इशारों का अर्थ समझकर काम को अंजाम देने में सक्षम हो सकेगा।
आमतौर पर क्लिक, टाइपिंग और कुछ सॉफ्टवेयर के जरिये बोलकर कम्प्यूटर पर काम किया जाता है। शोधकर्ता कम्प्यूटर से संवाद के तरीकों को इससे आगे ले जाने के प्रयास में हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, "दो व्यक्ति आपस में मुस्कुराकर, भौंहें चढ़ाकर, इशारा करते हुए और कई तरह की भाषाओं में संवाद करते हैं। हमारे प्रोजेक्ट का उद्देश्य मनुष्य और कम्प्यूटर के बीच संवाद में भी इसी तरह का क्रांतिकारी परिवर्तन लाना है।"कोलोरेडो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रूस ड्रेपर ने कहा, "कम्प्यूटर से संवाद का तरीका बहुत सीमित है। शुरुआती दौर में जब कम्प्यूटर सिर्फ एक मशीन की तरह थे, तब यह एकतरफा संवाद उचित था।आज की तारीख में कम्प्यूटर एक सहयोगी की भूमिका में आ चुका है और इस कारण मनुष्य और कम्प्यूटर के बीच भी दोतरफा संवाद स्थापित होना चाहिए।शोधकर्ता इसके लिए हाव-भाव और इशारों के अर्थ को लेकर लाइब्रेरी तैयार कर रहे हैं। इस लाइब्रेरी के जरिये ही कम्प्यूटर इशारों का अर्थ समझकर काम को अंजाम देने में सक्षम हो सकेगा।
बोनस पर सभी पत्रकारों का हक
अब तक सिर्फ दीपावली पर मिठाई का डिब्बा या कभी वो भी नहीं को लेकर संतुष्ठ होने वाले देश भर के पत्रकारों के लिये एक अच्छी खबर आयी है। बोनस पर भी पत्रकारों का हक है । मुंबई के कामगार आयुक्त कार्यालय के राज्य जनमाहिती अधिकारी ने मुंबई के पत्रकार शशिकांत सिंह द्वारा ११ सितंबर २०१५ को आरटीआई के जरिये मांगी गयी एक सूचना पर जो जानकारी उपलब्ध करायी है उसमें यह पुरी संभावना बनती है कि पत्रकारों का भी बोनस पर हक है। पत्रकार शशिकांत सिंह ने कामगार आयुक्त कार्यालय से पूछा था कि पत्रकारों के लिये बोनस का क्या प्रावधान है इसपर १२ अक्टूबर २०१५ को डिस्पैच किये गये मुबई के कामगार आयुक्त के राज्य जनमाहिती अधिकारी ने सूचना उपलब्ध करायी है कि केन्द्र सरकार के बोनस प्रदान अधिनियम १९६५ में बोनस बावत सभी सूचना उपलब्ध है। कृपया बोनस प्रदान अधिनियम १९६५ के नियमों का अवलोकन करें।
केन्द्र सरकार के इस बोनस प्रदान अधिनियम का अध्ययन करने पर जो जानकारी आयी है वह एक अच्छी खबर है । आप भी इस केन्द्र सरकार के इस लिंक का अवलोकन कर सकते हैं जिसकी जानकारी राज्य जनमाहिती अधिकारी ने दी है।
http://labour.nic.in/contenthi/division/information-on-payment-of-bonushi.php
केन्द्र सरकार के इस बोनस प्रदान अधिनियम का अध्ययन करने पर जो जानकारी आयी है वह एक अच्छी खबर है । आप भी इस केन्द्र सरकार के इस लिंक का अवलोकन कर सकते हैं जिसकी जानकारी राज्य जनमाहिती अधिकारी ने दी है।
http://labour.nic.in/contenthi/division/information-on-payment-of-bonushi.php
Tuesday, October 27, 2015
मजीठिया वेज बोर्ड : जानिए नया डीए
साथियों, मजीठिया के अनुसार जुलाई 2015 से दिसंबर 2015 तक का नया डीए 87/167 है। इससे पहले जनवरी 2015 से जून 2015 तक का डीए 80/167 था। सभी ग्रेड के समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में डीए की गणना एक सी होती है। डीए के इस 7 अंक के अंतर से आपके वेतन पर क्या फर्क पड़ता है यह हम आपको निम्न उदाहरण से बता रहे हैं...
जून 2015
Basic - 20,000 रुपये
DA - 12,934
PF - 4,792
Gross Salary Rs. 61,826
जुलाई 2015
Basic - 20,000 रुपये
DA - 14,066
PF - 4,928
Gross Salary Rs. 63,094
अंतर पड़ा
DA में 1132
PF में 136 रुपये (इसमें कंपनी का PF मिलाकर यह राशि 272 रुपये हो जाएगी।)
Gross Salary में Rs. 1,268
उपरोक्त उदाहरण ग्रेड ए और बी के समाचार-पत्रों का है. इसमें VA, HRA, TRA, MED और Night Allowance नहीं दर्शाया है। साथियों, आप इन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखें, ज्यादातर साथी इन मामलों में अति लापरवाह होते हैं और इनको संभाल कर नहीं रखते।
1. सैलरी स्लिप और बैंक स्टेटमेंट को संभाल कर रखें।
2. यदि आपको सैलरी स्लिप नहीं मिलती है और वेतन के रुप में चैक मिलता है तो उसकी फोटो कापी करवा कर उसे संभाल कर रखें।
3. वेतन से संबंधित अन्य कोई भी दस्तावेज।
4. Appointment Letter या ऐसे दस्तावेज जो आपको कंपनी का कर्मचारी साबित करते हैं।
5. समय-समय पर होने वाली वेतन बढ़ोतरी या पदोन्नति से संबंधित दस्तावेज।
6. सैलरी स्लिप पर दिखने वाले वेतन के अलावा मिलने वाले लाभ से संबंधित अन्य दस्तावेज।
7. इनके अलावा भी यदि कोई अन्य दस्तावेज, जैसे ओवर टाइम, EL encashment आदि से संबंधित।
साथियों हम आपको इसके बारे में इसलिए सावधान कर रहे हैं, क्योंकि जब भी आपके यहां मजीठिया लागू होगा, तब यह आपके बेहद काम आएंगे। वो इसलिए की ज्यादतर समाचार-पत्र और पत्रिकाएं चोर रास्ते से कहां आपके लाभों पर सेंध लगा देंगी यह आपको पता भी नहीं चलेगा। यदि आपके पास अपने पूरे दस्तावेज होंगे तो यह उस वक्त बेहद काम आएंगे। साथियों, हम आपसे एक बार फिर से अनुरोध करते हैं कि कंपनियों के दबाव में आकर किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करिए, विशेषतौर पर ब्लैंक दस्तावेजों पर। कोई भी कंपनी आपको कितना भी तंग कर लें, परंतु मजीठिया वेजबोर्ड के लाभों से वंचित नहीं कर सकती।
मजीठिया के अनुसार नया वेतनमान और एरियर राशि निकालते वक्त बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है, इसमें जरा सी चूक आपको कई हजार या लाख रुपये का नुकसान पहुंचा सकती है। जहां तक हम समझते हैं कुछ मामलों में छोड़ कर इसको निकलवाने की अभी सभी साथियों को जरूरत नहीं है। जिन साथियों को इसकी आवश्यकता है वह इसके लिए पीटीआई, टि्ब्यून, नवभारत आदि की यूनियनों से मदद ले सकते हैं। यहां पर मजीठिया वेजबोर्ड लागू है। यहां से आपको निस्वार्थ भाव से मदद मिल सकती है।
जून 2015
Basic - 20,000 रुपये
DA - 12,934
PF - 4,792
Gross Salary Rs. 61,826
जुलाई 2015
Basic - 20,000 रुपये
DA - 14,066
PF - 4,928
Gross Salary Rs. 63,094
अंतर पड़ा
DA में 1132
PF में 136 रुपये (इसमें कंपनी का PF मिलाकर यह राशि 272 रुपये हो जाएगी।)
Gross Salary में Rs. 1,268
उपरोक्त उदाहरण ग्रेड ए और बी के समाचार-पत्रों का है. इसमें VA, HRA, TRA, MED और Night Allowance नहीं दर्शाया है। साथियों, आप इन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखें, ज्यादातर साथी इन मामलों में अति लापरवाह होते हैं और इनको संभाल कर नहीं रखते।
1. सैलरी स्लिप और बैंक स्टेटमेंट को संभाल कर रखें।
2. यदि आपको सैलरी स्लिप नहीं मिलती है और वेतन के रुप में चैक मिलता है तो उसकी फोटो कापी करवा कर उसे संभाल कर रखें।
3. वेतन से संबंधित अन्य कोई भी दस्तावेज।
4. Appointment Letter या ऐसे दस्तावेज जो आपको कंपनी का कर्मचारी साबित करते हैं।
5. समय-समय पर होने वाली वेतन बढ़ोतरी या पदोन्नति से संबंधित दस्तावेज।
6. सैलरी स्लिप पर दिखने वाले वेतन के अलावा मिलने वाले लाभ से संबंधित अन्य दस्तावेज।
7. इनके अलावा भी यदि कोई अन्य दस्तावेज, जैसे ओवर टाइम, EL encashment आदि से संबंधित।
साथियों हम आपको इसके बारे में इसलिए सावधान कर रहे हैं, क्योंकि जब भी आपके यहां मजीठिया लागू होगा, तब यह आपके बेहद काम आएंगे। वो इसलिए की ज्यादतर समाचार-पत्र और पत्रिकाएं चोर रास्ते से कहां आपके लाभों पर सेंध लगा देंगी यह आपको पता भी नहीं चलेगा। यदि आपके पास अपने पूरे दस्तावेज होंगे तो यह उस वक्त बेहद काम आएंगे। साथियों, हम आपसे एक बार फिर से अनुरोध करते हैं कि कंपनियों के दबाव में आकर किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करिए, विशेषतौर पर ब्लैंक दस्तावेजों पर। कोई भी कंपनी आपको कितना भी तंग कर लें, परंतु मजीठिया वेजबोर्ड के लाभों से वंचित नहीं कर सकती।
मजीठिया के अनुसार नया वेतनमान और एरियर राशि निकालते वक्त बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है, इसमें जरा सी चूक आपको कई हजार या लाख रुपये का नुकसान पहुंचा सकती है। जहां तक हम समझते हैं कुछ मामलों में छोड़ कर इसको निकलवाने की अभी सभी साथियों को जरूरत नहीं है। जिन साथियों को इसकी आवश्यकता है वह इसके लिए पीटीआई, टि्ब्यून, नवभारत आदि की यूनियनों से मदद ले सकते हैं। यहां पर मजीठिया वेजबोर्ड लागू है। यहां से आपको निस्वार्थ भाव से मदद मिल सकती है।
Sunday, October 25, 2015
मजीठिया चाहते सब हैं परन्तु बोलने में भी डरते हैं
आज मीडिया जगत में चहुंओर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लेकर
वाद-प्रतिवाद का माहौल बना हुआ है? सिर्फ अपनी बेड़ियों को ही अपनी नियति मान
चुके समाचार पत्रों के अधिकतर कर्मचारी कभी दबे स्वरों में तो कभी खुले रूप
में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के दिए गए
आदेश ज्यों के त्यों लागू होने को असंभव मानते हैं।
ऐसे लोग यह तर्क देते हैं कि कोई भी सरकार हो, मीडिया मालिकों के खिलाफ जा ही
नहीं सकती। अच्छे दिनों का वादा करके प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में भी हिम्मत नहीं है कि वे सुप्रीम कोर्ट का यह
आदेश लागू करवा सकें क्योंकि जिस दिन उनकी सरकारी मशीनरी यह फैसला लागू करवाने
की कोशिश शुरू कर देगी, उसी दिन से मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जायेगी।
सम्पूर्ण मीडिया मोदी के पीछे पड़ जाएगा और उनकी दुर्गति करके अपनी कठपुतली
सरकार केंद्र में स्थापित करने की मुहिम में जुट जाएगा। यही कारण है कि मोदी
जी इस बारे में कार्रवाई करने की बात तो दूर इस बारे में बोलने की भी भूल नहीं
कर रहे हैं।
तो फिर अगला कदम क्या होगा?
सिर्फ शब्दों व कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाने वाले दब्बू व गपोड़ी कहते हैं कि अरे
यार, अख़बारों के मालिक उन लोगों को तो मजीठिया का सम्पूर्ण पैसा दे देंगे जो
मालिकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में न्यायालय की अवमानना का केस कर चुके हैं।
बाकी कर्मचारियों की कायरता तो मालिक लोग पहचान चुके हैं। इसलिए मालिक लोग केस
न करने वाले उन कायरों को छोटा-मोटा हड्डी का टुकड़ा डाल कर उन लोगों से मनचाहा
हलफनामा लिखवाकर अपने करोड़ों रुपए बचा लेंगे।
बहरहाल, धारा 20 जे की आड़ लेने वाले शिखंडी अखबार मालिक भीतरी रूप से डरे हुए
हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी मालिकों के इस छल के लिए उन्हें जेल अवश्य
भेजेगा। जीत सिर्फ और सिर्फ सत्य की होगी।
अब केस न करने वाले अख़बारी कर्मचारियों की मनःस्थिति का दार्शनिक विवेचन भी कर
लिया जाए- सुप्रीम कोर्ट में अख़बार मालिकों के खिलाफ केस न करने वाले दब्बू कर्मचारी
लोहे की दीवारों में नहीं, लोहे से भी ज्यादा संघातक चित्त की दीवारों में,
विचार की दीवारों में बंद हैं।
हे दब्बुओं, तुम ऊपर से कितने ही स्वतंत्र मालूम पड़ो, लेकिन 20 जे के कागज पर
साइन करवाकर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि तुम्हारे पंख काट दिए गए हैं। उड़ तुम
सकते नहीं। आकाश तुम्हारा तुमसे छीन लिया गया है और ऐसे सुंदर शब्दों की आड़
में छीना गया है कि तुम्हें याद भी नहीं आता। तुम्हारी जंजीरों को तुम्हारा
वैचारिक कारागृह बना दिया गया है। उसके बोझ से तुम दबे जा रहे हो, तुम्हें
बताया गया है कि मालिकों का ज्ञान ही ज्ञान है। वही शास्त्र है, सिद्धांत है।
हे दब्बुओं, यह सारा विराट आकाश तुम्हारा है मगर जीते हो तुम बड़े संकीर्ण आंगन
में। स्वाभिमान में जिसे जीना हो उसे सब जंजीरें तोड़ देनी पड़ती हैं; फिर वे
जंजीरें चाहे सोने की ही क्यों न हों।
ध्यान रखना, लोहे की जंजीरें तोड़ना आसान है, सोने की जंजीरें तोड़ना कठिन है,
क्योंकि सोने की जंजीरें प्रीतिकर मालूम होती हैं, बहुमूल्य मालूम होती हैं।
बचा लेना चाहते हो सोने की जंजीरों को। और जंजीरों के पीछे सुरक्षा छिपी है।
आत्महंता जो पक्षी तुम्हें पींजड़े में बंद मालूम होता है, तुम अगर पींजड़े का
द्वार भी खोल दो तो शायद न उड़े। क्योंकि एक तो न मालूम तुम कितने समय से
पींजड़े के भीतर बंद रहे हो, उड़ने की क्षमता खो चुके हो। क्षमता भी न खोई हो तो
विराट आकाश भयभीत करेगा। क्षुद्र में रहने का संस्कार विराट में जाने से
रोकेगा। तुम्हारे पंख फड़फड़ाएंगे भी तो आत्मा कमजोर मालूम होगी, आत्मा कायर
मालूम होगी।
फिर, अभी जिस पींजड़े में रह रहे हो उस पींजड़े को सुरक्षित भी मानते हो। भोजन
समय पर मिल जाता है, खोजना नहीं पड़ता। कभी ऐसा नहीं होता कि भूखा रह जाना पड़े।
खुला आकाश, माना कि सुंदर है, वृक्ष हरे और फूल रंगीन हैं और उड़ने का आनंद, सब
ठीक, लेकिन भोजन समय पर मिलेगा या नहीं मिलेगा? किसी दिन मिले, किसी दिन न
मिले! असुरक्षा है। फिर कोई दूसरा काम भी तो तुमने नहीं सीखा।
हे दब्बुओं, यह सोच कर पींजड़े में बंद हो कि कोई हमला तो नहीं कर सकता। पींजड़े
में बंद बाहर की दुनिया भीतर तो प्रवेश नहीं कर सकती। पींजड़े के बाहर शत्रु भी
होंगे, बाज भी होंगे, हमला भी हो सकता है, जीवन संकट में हो सकता है। पींजड़े
में सुरक्षा है, सुविधा है। आकाश असुरक्षित है, असुविधापूर्ण है। तुम द्वार भी
खोल दो पींजड़े का तो जरूरी नहीं कि तुम उड़ पाओ।
अखबार मालिक कहते हैं कि मैंने तुम्हारे द्वार खोल रखे हैं लेकिन मैं जानता
हूँ कि तुम नहीं उड़ोगे।
सच तो यह है कि जो तुम्हारी अंतरात्मा को झकझोरता है, तुम्हारे द्वार खोलता है
उससे तुम नाराज हो जाते हो, क्योंकि तुम्हारे लिए द्वार खुलने का अर्थ होता
है: बाहर से शत्रु के आने के लिए भी द्वार खुल गया। तुमने अपनी एक छोटी-सी
दुनिया बना ली है। तुम उस छोटी-सी दुनिया में मस्त मालूम होते हो। कौन विराट
की झंझट ले!
कपड़े के औजारों,
तुम परमात्मा हो, रत्तीभर कम नहीं। लेकिन जरा अपनी स्वतंत्रता को स्वीकार करो।
और मजा यह है कि पक्षियों पर तो पींजड़े दूसरे लोगों ने बनाए हैं, तुम्हारा
पींजड़ा तुमने खुद ही बनाया है। पक्षी को तो शायद किसी और ने बंद कर रखा है;
तुमने खुद ही अपने को बंद कर लिया है। क्योंकि तुम्हारा पींजड़ा ऐसा है, तुम
जिस क्षण तोड़ना चाहो टूट सकता है।
तुम्हारी अंतर्चेतना जगे तो समझो कि तुम्हारी चेतना परिपूर्ण व स्वाभाविक हो
गई, सारे बंधन गिर गए, सारी जंजीरें गिर गईं। जंजीरें सूक्ष्म हैं, दिखाई पड़ने
वाली नहीं हैं। लेकिन हैं जरूर।
यूं तो दुनिया का हर आदमी बंधा है। और जब भी कोई व्यक्ति यहां बंधन के बाहर हो
जाता है तो बुद्ध हो जाता है, महावीर हो जाता है, मुहम्मद हो जाता है, जीसस हो
जाता है।
स्मरण करो, अपनी क्षमता को स्मरण करो। तुम भी यही होने को हो। इससे कम मत
होना। होना हो तो ईसा होना, ईसाई मत होना, ईसाई होना बहुत कम होना है। जब ईसा
हो सकते हो तो क्यों ईसाई होने से तृप्त हो जाओ? और जब महावीर हो सकते हो तो
जैन होने से राजी होना बड़े सस्ते में अपनी जिंदगी बेच देना है।
मैं तुम्हें चाहता हूं बुद्ध बनो, उससे कम नहीं। उससे कम अपमानजनक है। उससे कम
परमात्मा का सम्मान नहीं है। क्योंकि तुम्हारे भीतर परमात्मा बैठा है और तुम
छोटी-छोटी चीजों में होकर छोटे-छोटे होकर उलझ गए हो। और अगर कोई तुम्हें
तुम्हारी उलझन से बाहर निकालना चाहे तो तुम नाराज होते हो, तुम क्रोधित हो
जाते हो। तुमने बड़ा मूल्य दे दिया है क्षुद्र बातों को। मूल्य तो सिर्फ एक बात
का है अपनी शुद्ध आत्मा का, बाकी सब निर्मूल्य है।
वाद-प्रतिवाद का माहौल बना हुआ है? सिर्फ अपनी बेड़ियों को ही अपनी नियति मान
चुके समाचार पत्रों के अधिकतर कर्मचारी कभी दबे स्वरों में तो कभी खुले रूप
में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के दिए गए
आदेश ज्यों के त्यों लागू होने को असंभव मानते हैं।
ऐसे लोग यह तर्क देते हैं कि कोई भी सरकार हो, मीडिया मालिकों के खिलाफ जा ही
नहीं सकती। अच्छे दिनों का वादा करके प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में भी हिम्मत नहीं है कि वे सुप्रीम कोर्ट का यह
आदेश लागू करवा सकें क्योंकि जिस दिन उनकी सरकारी मशीनरी यह फैसला लागू करवाने
की कोशिश शुरू कर देगी, उसी दिन से मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जायेगी।
सम्पूर्ण मीडिया मोदी के पीछे पड़ जाएगा और उनकी दुर्गति करके अपनी कठपुतली
सरकार केंद्र में स्थापित करने की मुहिम में जुट जाएगा। यही कारण है कि मोदी
जी इस बारे में कार्रवाई करने की बात तो दूर इस बारे में बोलने की भी भूल नहीं
कर रहे हैं।
तो फिर अगला कदम क्या होगा?
सिर्फ शब्दों व कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाने वाले दब्बू व गपोड़ी कहते हैं कि अरे
यार, अख़बारों के मालिक उन लोगों को तो मजीठिया का सम्पूर्ण पैसा दे देंगे जो
मालिकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में न्यायालय की अवमानना का केस कर चुके हैं।
बाकी कर्मचारियों की कायरता तो मालिक लोग पहचान चुके हैं। इसलिए मालिक लोग केस
न करने वाले उन कायरों को छोटा-मोटा हड्डी का टुकड़ा डाल कर उन लोगों से मनचाहा
हलफनामा लिखवाकर अपने करोड़ों रुपए बचा लेंगे।
बहरहाल, धारा 20 जे की आड़ लेने वाले शिखंडी अखबार मालिक भीतरी रूप से डरे हुए
हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी मालिकों के इस छल के लिए उन्हें जेल अवश्य
भेजेगा। जीत सिर्फ और सिर्फ सत्य की होगी।
अब केस न करने वाले अख़बारी कर्मचारियों की मनःस्थिति का दार्शनिक विवेचन भी कर
लिया जाए- सुप्रीम कोर्ट में अख़बार मालिकों के खिलाफ केस न करने वाले दब्बू कर्मचारी
लोहे की दीवारों में नहीं, लोहे से भी ज्यादा संघातक चित्त की दीवारों में,
विचार की दीवारों में बंद हैं।
हे दब्बुओं, तुम ऊपर से कितने ही स्वतंत्र मालूम पड़ो, लेकिन 20 जे के कागज पर
साइन करवाकर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि तुम्हारे पंख काट दिए गए हैं। उड़ तुम
सकते नहीं। आकाश तुम्हारा तुमसे छीन लिया गया है और ऐसे सुंदर शब्दों की आड़
में छीना गया है कि तुम्हें याद भी नहीं आता। तुम्हारी जंजीरों को तुम्हारा
वैचारिक कारागृह बना दिया गया है। उसके बोझ से तुम दबे जा रहे हो, तुम्हें
बताया गया है कि मालिकों का ज्ञान ही ज्ञान है। वही शास्त्र है, सिद्धांत है।
हे दब्बुओं, यह सारा विराट आकाश तुम्हारा है मगर जीते हो तुम बड़े संकीर्ण आंगन
में। स्वाभिमान में जिसे जीना हो उसे सब जंजीरें तोड़ देनी पड़ती हैं; फिर वे
जंजीरें चाहे सोने की ही क्यों न हों।
ध्यान रखना, लोहे की जंजीरें तोड़ना आसान है, सोने की जंजीरें तोड़ना कठिन है,
क्योंकि सोने की जंजीरें प्रीतिकर मालूम होती हैं, बहुमूल्य मालूम होती हैं।
बचा लेना चाहते हो सोने की जंजीरों को। और जंजीरों के पीछे सुरक्षा छिपी है।
आत्महंता जो पक्षी तुम्हें पींजड़े में बंद मालूम होता है, तुम अगर पींजड़े का
द्वार भी खोल दो तो शायद न उड़े। क्योंकि एक तो न मालूम तुम कितने समय से
पींजड़े के भीतर बंद रहे हो, उड़ने की क्षमता खो चुके हो। क्षमता भी न खोई हो तो
विराट आकाश भयभीत करेगा। क्षुद्र में रहने का संस्कार विराट में जाने से
रोकेगा। तुम्हारे पंख फड़फड़ाएंगे भी तो आत्मा कमजोर मालूम होगी, आत्मा कायर
मालूम होगी।
फिर, अभी जिस पींजड़े में रह रहे हो उस पींजड़े को सुरक्षित भी मानते हो। भोजन
समय पर मिल जाता है, खोजना नहीं पड़ता। कभी ऐसा नहीं होता कि भूखा रह जाना पड़े।
खुला आकाश, माना कि सुंदर है, वृक्ष हरे और फूल रंगीन हैं और उड़ने का आनंद, सब
ठीक, लेकिन भोजन समय पर मिलेगा या नहीं मिलेगा? किसी दिन मिले, किसी दिन न
मिले! असुरक्षा है। फिर कोई दूसरा काम भी तो तुमने नहीं सीखा।
हे दब्बुओं, यह सोच कर पींजड़े में बंद हो कि कोई हमला तो नहीं कर सकता। पींजड़े
में बंद बाहर की दुनिया भीतर तो प्रवेश नहीं कर सकती। पींजड़े के बाहर शत्रु भी
होंगे, बाज भी होंगे, हमला भी हो सकता है, जीवन संकट में हो सकता है। पींजड़े
में सुरक्षा है, सुविधा है। आकाश असुरक्षित है, असुविधापूर्ण है। तुम द्वार भी
खोल दो पींजड़े का तो जरूरी नहीं कि तुम उड़ पाओ।
अखबार मालिक कहते हैं कि मैंने तुम्हारे द्वार खोल रखे हैं लेकिन मैं जानता
हूँ कि तुम नहीं उड़ोगे।
सच तो यह है कि जो तुम्हारी अंतरात्मा को झकझोरता है, तुम्हारे द्वार खोलता है
उससे तुम नाराज हो जाते हो, क्योंकि तुम्हारे लिए द्वार खुलने का अर्थ होता
है: बाहर से शत्रु के आने के लिए भी द्वार खुल गया। तुमने अपनी एक छोटी-सी
दुनिया बना ली है। तुम उस छोटी-सी दुनिया में मस्त मालूम होते हो। कौन विराट
की झंझट ले!
कपड़े के औजारों,
तुम परमात्मा हो, रत्तीभर कम नहीं। लेकिन जरा अपनी स्वतंत्रता को स्वीकार करो।
और मजा यह है कि पक्षियों पर तो पींजड़े दूसरे लोगों ने बनाए हैं, तुम्हारा
पींजड़ा तुमने खुद ही बनाया है। पक्षी को तो शायद किसी और ने बंद कर रखा है;
तुमने खुद ही अपने को बंद कर लिया है। क्योंकि तुम्हारा पींजड़ा ऐसा है, तुम
जिस क्षण तोड़ना चाहो टूट सकता है।
तुम्हारी अंतर्चेतना जगे तो समझो कि तुम्हारी चेतना परिपूर्ण व स्वाभाविक हो
गई, सारे बंधन गिर गए, सारी जंजीरें गिर गईं। जंजीरें सूक्ष्म हैं, दिखाई पड़ने
वाली नहीं हैं। लेकिन हैं जरूर।
यूं तो दुनिया का हर आदमी बंधा है। और जब भी कोई व्यक्ति यहां बंधन के बाहर हो
जाता है तो बुद्ध हो जाता है, महावीर हो जाता है, मुहम्मद हो जाता है, जीसस हो
जाता है।
स्मरण करो, अपनी क्षमता को स्मरण करो। तुम भी यही होने को हो। इससे कम मत
होना। होना हो तो ईसा होना, ईसाई मत होना, ईसाई होना बहुत कम होना है। जब ईसा
हो सकते हो तो क्यों ईसाई होने से तृप्त हो जाओ? और जब महावीर हो सकते हो तो
जैन होने से राजी होना बड़े सस्ते में अपनी जिंदगी बेच देना है।
मैं तुम्हें चाहता हूं बुद्ध बनो, उससे कम नहीं। उससे कम अपमानजनक है। उससे कम
परमात्मा का सम्मान नहीं है। क्योंकि तुम्हारे भीतर परमात्मा बैठा है और तुम
छोटी-छोटी चीजों में होकर छोटे-छोटे होकर उलझ गए हो। और अगर कोई तुम्हें
तुम्हारी उलझन से बाहर निकालना चाहे तो तुम नाराज होते हो, तुम क्रोधित हो
जाते हो। तुमने बड़ा मूल्य दे दिया है क्षुद्र बातों को। मूल्य तो सिर्फ एक बात
का है अपनी शुद्ध आत्मा का, बाकी सब निर्मूल्य है।
सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेतनमान की सुनवाई 17 नवंबर को
मजीठिया वेतनमान की अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी। गौरतलब है कि प्रेस जगत को इस सुनवाई का लंबे समय से इंतजार था। लेकिन बिहार चुनाव की वजह से अंदेशा लगाया जा रहा था कि अगली सुनवाई नवंबर में हो सकती है। कंटेम्पट पीटीशन सिविल 411, 2014 अभिषेक राजा व अन्य विरुद्ध संजय गुप्ता की सुनवाई तिथि 17 नवंबर 2014 को तय की गई है।
SUPREME COURT OF INDIA
Top of Form
Case Status
Status : PENDING
Status of : Contempt Petition (Civil) 411 OF 2014
AVISHEK RAJA & ORS. .Vs. SANJAY GUPTA
Pet. Adv. : MR. PARMANAND PANDEY Res. Adv. : MR. BIRENDRA KUMAR MISHRA
Subject Category : LABOUR MATTERS - OTHERS
Listed 2 times earlier Likely to be Listed on : 17/11/2015
Last updated on Oct 17 2015
SUPREME COURT OF INDIA
Top of Form
Case Status
Status : PENDING
Status of : Contempt Petition (Civil) 411 OF 2014
AVISHEK RAJA & ORS. .Vs. SANJAY GUPTA
Pet. Adv. : MR. PARMANAND PANDEY Res. Adv. : MR. BIRENDRA KUMAR MISHRA
Subject Category : LABOUR MATTERS - OTHERS
Listed 2 times earlier Likely to be Listed on : 17/11/2015
Last updated on Oct 17 2015
Monday, October 19, 2015
अंतिम संस्कार की ऑनलाइन बुकिंग
अगर कोई आप से कहे कि मरने से पहले ही अपने अंतिम संस्कार की सेवाओं को ऑनलाइन बुक करा सकते हैं तो आप भी पहली बार में यही कहेंगे कि क्या बेवकूफी भरी बात है। पर ये बात सच है अब आप अपने मरने से पहले ही अपनी अंतिम संस्कार की सभी सेवाओं को ऑनलाइन बुक करा सकते हैं।
रिटायर्ड हो चुके इंजीनियर सुनील कुमार शुक्ला और उनकी पत्नी सुनीता शुक्ला ने पहले से ही अपनी अंतिम संस्कार की सेवाओं को ऑनलाइन बुक कर लिया है। अहमदाबाद के एक जोड़े ने ऐसे ही अपने मरने से पहले अपनी अंतिम संस्कार की बुकिंग करा ली है। इसके लिए उन्होंने मोक्षिल डॉट कॉम पर जाकर बुकिंग कराई है।
सुनील शुक्ला ने बताया कि मेरी उम्र इस समय 75 वर्ष है और मेरी पत्नी की उम्र 70 वर्ष। हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं। इस समय हम उम्र के ऐसे पड़ाव पर है कि कभी भी हमें ऐसी चीजों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में हमने इस काम के लिए खुद को तैयार कर लिया है।
सुनील ने बताया कि हमारे बच्चों ने हमसे कहा कि जब भी हमें उनकी जरूरत होगी तो वो तुरंत उनके पास आ जाएंगे। पर उन्होंने कहा कि मेरे घर के निकट में एक व्यक्ति की पत्नी की मौत हो गई, वहां पर अंतिम संस्कार तक उनके घर के दोस्तों ने किया। उन्होंने कहा कि मोक्षिल डॉट कॉम इस अंतिम संस्कार की सभी क्रियाओं को पूरा करेगा। साथ ही मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराएगा। इसके लिए 4500 रुपए देकर उन्होंने अपने अंतिम संस्कार की अग्रिम बुकिंग भी करा ली है . अंतिम संस्कार करने के लिए कई भारतीय वेंचर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कई वेंचर ने इस तरह के कार्यों के लिए अपनी सर्विस देने का फैसला भी किया है। ऐसे वेंचर के मुताबिक यह काम कुछ कठिन होता है क्योंकि लोग ऐसे कामों में पूरी तरह से मान्यताओं का ध्यान रखते हैं। काशीमोक्ष डॉट कॉम के रूपसी गुप्ता ने बताया कि हम लोगों की पुण्यतिथि की परंपरा को लोगों के लिए करते हैं। बाद में इसकी सीडी बनाकर लोगों भेज दी जाती है।
मोक्षशिल के पीछे प्रोफेसर बिल्वा देवी और अभिजीत सिंह का दिमाग है। उन्होंने कहा कि कॉलेज के लिए प्रोजेक्ट के तौर पर इसे बनाया था। पर इस साल सिंतबर में इस सर्विस को उन्होंने लोगों के लिए शुरू कर दिया है। अभी तक उन्होंने इस वेबसाइट के जरिए 20 लोगों के अंतिम संस्कार की विधि को संपर्क किया है। मोक्षिल डॉट कॉम इस पर लोग अभी शरीर के अंगों का दान भी कर सकते हैं।
रिटायर्ड हो चुके इंजीनियर सुनील कुमार शुक्ला और उनकी पत्नी सुनीता शुक्ला ने पहले से ही अपनी अंतिम संस्कार की सेवाओं को ऑनलाइन बुक कर लिया है। अहमदाबाद के एक जोड़े ने ऐसे ही अपने मरने से पहले अपनी अंतिम संस्कार की बुकिंग करा ली है। इसके लिए उन्होंने मोक्षिल डॉट कॉम पर जाकर बुकिंग कराई है।
सुनील शुक्ला ने बताया कि मेरी उम्र इस समय 75 वर्ष है और मेरी पत्नी की उम्र 70 वर्ष। हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं। इस समय हम उम्र के ऐसे पड़ाव पर है कि कभी भी हमें ऐसी चीजों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में हमने इस काम के लिए खुद को तैयार कर लिया है।
सुनील ने बताया कि हमारे बच्चों ने हमसे कहा कि जब भी हमें उनकी जरूरत होगी तो वो तुरंत उनके पास आ जाएंगे। पर उन्होंने कहा कि मेरे घर के निकट में एक व्यक्ति की पत्नी की मौत हो गई, वहां पर अंतिम संस्कार तक उनके घर के दोस्तों ने किया। उन्होंने कहा कि मोक्षिल डॉट कॉम इस अंतिम संस्कार की सभी क्रियाओं को पूरा करेगा। साथ ही मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराएगा। इसके लिए 4500 रुपए देकर उन्होंने अपने अंतिम संस्कार की अग्रिम बुकिंग भी करा ली है . अंतिम संस्कार करने के लिए कई भारतीय वेंचर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कई वेंचर ने इस तरह के कार्यों के लिए अपनी सर्विस देने का फैसला भी किया है। ऐसे वेंचर के मुताबिक यह काम कुछ कठिन होता है क्योंकि लोग ऐसे कामों में पूरी तरह से मान्यताओं का ध्यान रखते हैं। काशीमोक्ष डॉट कॉम के रूपसी गुप्ता ने बताया कि हम लोगों की पुण्यतिथि की परंपरा को लोगों के लिए करते हैं। बाद में इसकी सीडी बनाकर लोगों भेज दी जाती है।
मोक्षशिल के पीछे प्रोफेसर बिल्वा देवी और अभिजीत सिंह का दिमाग है। उन्होंने कहा कि कॉलेज के लिए प्रोजेक्ट के तौर पर इसे बनाया था। पर इस साल सिंतबर में इस सर्विस को उन्होंने लोगों के लिए शुरू कर दिया है। अभी तक उन्होंने इस वेबसाइट के जरिए 20 लोगों के अंतिम संस्कार की विधि को संपर्क किया है। मोक्षिल डॉट कॉम इस पर लोग अभी शरीर के अंगों का दान भी कर सकते हैं।
Saturday, October 17, 2015
ऑनलाइन खरीदें गोबर के उपले भी
आपने कपड़े, जूते, चप्पल और मोबाइल जैसी चीजें तो ऑनलाइन बिकते देखी ही होंगी, लेकिन क्या कभी गाय का गोबर ऑनलाइन बिकते देखा है। दरअसल, नवरात्रि के मौके पर हवन आदि में गाय के गोबर से बने उपले इस्तेमाल होते हैं। इसी के चलते उपलों की ऑनलाइन सेल बढ़ गई है। हवन की सामग्री के साथ बहुत सारी वेबसाइट्स पर आपको गोबर के उपले भी ऑनलाइन बिकते दिख जाएंगे। आपके सिर्फ ऑर्डर करना है और इसकी होम डिलीवरी हो जाएगी। इन उपलों की कीमतें भी मामूली नहीं हैं। दर्जन भर कंडों की कीमत भी 150 रुपए से अधिक तक है। विदेशों में तो इनकी कीमत और भी अधिक है, क्योंकि वहां पर इसकी मांग बहुत कम है। विदेशों में बहुत सारे भारतीय रहते हैं, जो त्योहारों के मौकों पर पूजा-पाठ करते हैं। ऐसे में उन्हें हवन समाग्री और उपलों की जरूरत महसूस होती है। इसकी जरूरत को पूरा करने का काम ऑनलाइन वेबसाइट्स बखूबी कर रही हैं।
उपयोग के तरीके
कई वेबसाइट्स पर न सिर्फ उपलों को उपयोग करने के तरीके बताए हैं, बल्कि उपलों की राख से क्या-क्या फायदे हो सकते हैं, इसके भी तरीके बताए गए हैं। बहुत से लोग उपलों का राख का उपयोग अपने घरों में बने छोट-मोटे गार्डन में भी करते हैं।
उपयोग के तरीके
कई वेबसाइट्स पर न सिर्फ उपलों को उपयोग करने के तरीके बताए हैं, बल्कि उपलों की राख से क्या-क्या फायदे हो सकते हैं, इसके भी तरीके बताए गए हैं। बहुत से लोग उपलों का राख का उपयोग अपने घरों में बने छोट-मोटे गार्डन में भी करते हैं।
धारा २० जे की आड़ में छुप रहा है मीडिया प्रबंधन
वेज बोर्ड के प्रस्तावों को लागू करने के बदले लगभग सभी प्रबंधन जिसमें जागरण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड भी है, वे वेज बोर्ड प्रस्ताव के धारा 20जे के पीछे छिपने की कोशिश कर रहे हैं. धारा 20जे वास्तव में उन कर्मचारियों के लिए है जो वेज बोर्ड प्रस्तावों से अधिक वेतन पा रहे हैं, न कि उन कर्मियों के लिए जो प्रस्ताव से काफी कम पा रहे हैं.
हम ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी किस्मत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे की रिपोर्ट तक अपने अखबार में छाप नहीं सकते. न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमारे साथी हमारी इन खबरों को सामने लाने की हैसियत में हैं. इसके अलावा यह खबर उन तमाम लोगों के लिए भी है, जो समझते हैं कि हर मीडियाकर्मी लाखों में खेल रहा है और इतना पावरफुल है कि दुनिया बदल सकता है... उन साथियों के लिए तो है ही, जिनका बयान है... वो बेदर्दी से सर काटें औऱ मैं कहूं उनसे हुजूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता। यह खबर 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया आयोग के प्रस्तावों को लागू नहीं किये जाने के विरोध में हम पत्रकारों द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया आयोग लागू किये जाने की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक वर्चुअल एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया है जिसे तीन महीने में अपनी आकलन कोर्ट में सौंपनी थी। क़िन्तु मीडिया मालिकों के दबाव के चलते अभी तक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंची। इसलिए सुनवाई की तारीख छह माह लेट हो गई। अब नवम्बर माह में सुनवाई होगी। भास्कर प्रबंधन ने बचने के लिए चपरासी तक को एम ग्रेड में कर दिया, भले ही वेतन 2500 रुपये ही हो। पहले यह ग्रेड 15000 रुपये या इससे ऊपर वेतन वालों का होता था। नई नियुक्तियां संविदा पर की है।
हम ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी किस्मत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे की रिपोर्ट तक अपने अखबार में छाप नहीं सकते. न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमारे साथी हमारी इन खबरों को सामने लाने की हैसियत में हैं. इसके अलावा यह खबर उन तमाम लोगों के लिए भी है, जो समझते हैं कि हर मीडियाकर्मी लाखों में खेल रहा है और इतना पावरफुल है कि दुनिया बदल सकता है... उन साथियों के लिए तो है ही, जिनका बयान है... वो बेदर्दी से सर काटें औऱ मैं कहूं उनसे हुजूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता। यह खबर 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया आयोग के प्रस्तावों को लागू नहीं किये जाने के विरोध में हम पत्रकारों द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया आयोग लागू किये जाने की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक वर्चुअल एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया है जिसे तीन महीने में अपनी आकलन कोर्ट में सौंपनी थी। क़िन्तु मीडिया मालिकों के दबाव के चलते अभी तक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंची। इसलिए सुनवाई की तारीख छह माह लेट हो गई। अब नवम्बर माह में सुनवाई होगी। भास्कर प्रबंधन ने बचने के लिए चपरासी तक को एम ग्रेड में कर दिया, भले ही वेतन 2500 रुपये ही हो। पहले यह ग्रेड 15000 रुपये या इससे ऊपर वेतन वालों का होता था। नई नियुक्तियां संविदा पर की है।
Thursday, October 15, 2015
सारे देश में फैली मजीठिया आंदोलन की आग
नई दिल्ली। दैनिक जागरण नोएडा से शुरू हुई मजीठिया आंदोलन की आग पूरे देश भर में फ़ैल गयी है। हिसार, लुधियाना, जालंधर, जम्मू के बाद रांची, भागलपुर, पटना, बनारस, गोरखपुर, राजस्थान में कई जगहों पर, देहरादून के अलावा अन्य कई शहरों में अखबारकर्मी अपना हक़ लेने के लिए इस संघर्ष में कूद चुके हैं। कर्मचारियों ने सोशल मीडिया के साथ- साथ जनता के बीच जाकर भी प्रचार करना शुरू कर दिया है। वर्षों तक कर्मचारियों का शोषण करने में सफल रहे अखबार मालिकान इससे बुरी तरह तिलमिला कर कभी प्रधानमंत्री जी के आवास पर दस्तक दे रहे हैं तो कभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के आवास पर। लेकिन वहां से भी उन्हें दो टूक सुनने को मिल रही है कि वे सुप्रीम कोर्ट से बड़े नहीं हैं, इसलिए कृपया इस मुद्दे पर बात ना करें। वहां से निराश होकर अखबार मालिकानों ने अपने भाड़े के टट्टुओं को कर्मचारियों को तोड़ने के काम में लगाया लेकिन पिछले डेढ़ वर्ष में एक आदमी को भी नहीं तोड़ पाये। कर्मचारियों ने भी ठान लिया है कि अपना हक़ वे लेकर रहेंगे। अब जब पूरे देश में मजीठिया आंदोलन की लड़ाई फ़ैल गयी है तो निश्चित रूप से अखबार मालिकान और उनके चमचों में जबरदस्त घबराहट का माहौल है। नवरात्र के इस पावन अवसर पर माँ दुर्गे हमें पापियों और अत्याचारियों से लड़ने की ताकत दे। अखबार मालिकानों तुम्हारा जेल जाना तय है, इससे बचना चाहते हो तो कर्मचारियों को उनका हक़ दे दो।
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
मजीठिया वेतनमान की सुनवाई नवंबर में!
मजीठिया वेतनमान की आस लगाए बैठे पत्रकारों का इंतजार बढ़ गया है। कारण बिहार चुनाव है। दरअसल पहले मजीठिया वेतनमान की सुनवाई सितंबर में होने की कानफूसी चल रही थी लेकिन बिहार चुनाव के कारण मोदी सरकार किसी तरह का जोखिम लेने के पक्ष में नहीं थी, सो अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई दीवाली बाद ही होने की संभावना है। हालांकि एक धड़ा चाहता है कि जैसे ही बिहार चुनाव में वोटिंग हो जाए वैसे ही मजीठिया वेतनमान की सुनवाई की तिथि घोषित कर दी जाए। अब राजनीतिक खींचतान के बीच क्या होता है यह समय ही बताएगा।
चुनाव परिणाम का असर
यदि भाजपा बिहार विधानसभा का चुनाव हार गई तो इसकी खींस प्रेस मालिकों पर निकलना लाजमी है। नतीजन कुछ कड़े फैसले लिए जा सकते है। जिसमें जेल यात्रा भी शामिल हो सकती है। लेकिन भाजपा यदि चुनाव जीत जाती है तो सिर्फ पैसा वसूली कार्यवाही सख्ती से हो सकती है। हालांकि लेट-लतीफे के कारण पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान के हिसाब से जनवरी से अप्रैल तक पैसा मिल सकता है। इधर जिला स्तर पर प्रेस मालिकों के ऊपर हुए केस ने प्रबंधन को बेचैन किए हुए है।
कैसे मनाए कर्मचारियों को?
मजीठिया वेतनमान पर फैसला अपने हक से जाता देख प्रेस मालिक इस असमंज में पड़े है कि आखिर कर्मचारियों को कैसे मनाए। मामला इतना आगे बढ़ गया है कि अब कर्मचारी प्रबंधन पर विश्वास नहीं करेंगे। फैसले के बाद कर्मचारियों को यदि मजीठिया वेतनमान के नाम पर तय मापदंड ना सही लेकिन अच्छी सैलरी मिलती से शायद इतने विरोधी पैदा नहीं होते। लेकिन वर्षों से शोषण का इतिहास देखकर कोई यह अंजादा नहीं लगा सका कि इतना बढ़ा आंदोलन हो जाएगा। अब कंपनी प्रबंधन यही रणनीति बनाने में लगा है कि जो केस कर चुके है उन कर्मचारियों को परेशान ना किया जाए नहीं तो आंदोलन और उग्र हो जाएगा। और श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा।
तबादले पर क्या करें?
बात आती है तबादले की। जिसका कर्मचारियों के पास कोई तोड़ नहीं है। क्योंकि तबादला प्रोमोशन के तौर पर ही सकता है और दंड के तौर पर भी। इसके लिए जरूरी है संगठन। संगठन चाहे संस्थान के अंदर का हो या उसी शहर या जिले का। यदि किसी कर्मचारी का तबादला होता है तो संगठन यह कहकर श्रम विभाग में शिकायत करता है कि चूंकि यह कर्मचारी हमारे संगठन का सदस्य है और इसके तबादले से संगठन की गतिविधियों पर असर पड़ेगा। साथ ही कर्मचारी भी अन्य स्थान पर काम करने के खिलाफ है। इसलिए तबादले पर रोक लगाई जाए। इस तरह जब तक मामले की सुनवाई चलती है तब तक तबादला रुक जाता है।
इन सब दांव पेंच से बेहतर होगा हर प्रिंटिंग प्रेस में कर्मचारियों की एकता मजबूत हो और संगठन बने। जिससे कर्मचारियों का उत्प्रीणन रुके। कर्मचारियों में एकता नहीं है इसलिए प्रेस को हर कोई गाली देते रहता है। सब एक दूसरे को फर्जी पत्रकार करार देने में लगे रहते है। आपस में दुश्मनी ठीक है लेकिन बाहर वालों के लिए सभी एक जुट हो जाए नहीं तो बाहर वाला आपके साथी को पीट देगा और विरोध करने पर फर्जी पत्रकार कह देगा। इसलिए वकीलों के समान पत्रकारों में भी एकता होना जरूरी है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
चुनाव परिणाम का असर
यदि भाजपा बिहार विधानसभा का चुनाव हार गई तो इसकी खींस प्रेस मालिकों पर निकलना लाजमी है। नतीजन कुछ कड़े फैसले लिए जा सकते है। जिसमें जेल यात्रा भी शामिल हो सकती है। लेकिन भाजपा यदि चुनाव जीत जाती है तो सिर्फ पैसा वसूली कार्यवाही सख्ती से हो सकती है। हालांकि लेट-लतीफे के कारण पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान के हिसाब से जनवरी से अप्रैल तक पैसा मिल सकता है। इधर जिला स्तर पर प्रेस मालिकों के ऊपर हुए केस ने प्रबंधन को बेचैन किए हुए है।
कैसे मनाए कर्मचारियों को?
मजीठिया वेतनमान पर फैसला अपने हक से जाता देख प्रेस मालिक इस असमंज में पड़े है कि आखिर कर्मचारियों को कैसे मनाए। मामला इतना आगे बढ़ गया है कि अब कर्मचारी प्रबंधन पर विश्वास नहीं करेंगे। फैसले के बाद कर्मचारियों को यदि मजीठिया वेतनमान के नाम पर तय मापदंड ना सही लेकिन अच्छी सैलरी मिलती से शायद इतने विरोधी पैदा नहीं होते। लेकिन वर्षों से शोषण का इतिहास देखकर कोई यह अंजादा नहीं लगा सका कि इतना बढ़ा आंदोलन हो जाएगा। अब कंपनी प्रबंधन यही रणनीति बनाने में लगा है कि जो केस कर चुके है उन कर्मचारियों को परेशान ना किया जाए नहीं तो आंदोलन और उग्र हो जाएगा। और श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा।
तबादले पर क्या करें?
बात आती है तबादले की। जिसका कर्मचारियों के पास कोई तोड़ नहीं है। क्योंकि तबादला प्रोमोशन के तौर पर ही सकता है और दंड के तौर पर भी। इसके लिए जरूरी है संगठन। संगठन चाहे संस्थान के अंदर का हो या उसी शहर या जिले का। यदि किसी कर्मचारी का तबादला होता है तो संगठन यह कहकर श्रम विभाग में शिकायत करता है कि चूंकि यह कर्मचारी हमारे संगठन का सदस्य है और इसके तबादले से संगठन की गतिविधियों पर असर पड़ेगा। साथ ही कर्मचारी भी अन्य स्थान पर काम करने के खिलाफ है। इसलिए तबादले पर रोक लगाई जाए। इस तरह जब तक मामले की सुनवाई चलती है तब तक तबादला रुक जाता है।
इन सब दांव पेंच से बेहतर होगा हर प्रिंटिंग प्रेस में कर्मचारियों की एकता मजबूत हो और संगठन बने। जिससे कर्मचारियों का उत्प्रीणन रुके। कर्मचारियों में एकता नहीं है इसलिए प्रेस को हर कोई गाली देते रहता है। सब एक दूसरे को फर्जी पत्रकार करार देने में लगे रहते है। आपस में दुश्मनी ठीक है लेकिन बाहर वालों के लिए सभी एक जुट हो जाए नहीं तो बाहर वाला आपके साथी को पीट देगा और विरोध करने पर फर्जी पत्रकार कह देगा। इसलिए वकीलों के समान पत्रकारों में भी एकता होना जरूरी है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
Wednesday, October 14, 2015
DB Corp, the country's top companies
कंपनियों को विभिन्न फायनेंशल इंडिकेटर्स के साथ शीर्ष 500 में रखा गया है। इन इंडिकेटर्स में टोटल इनकम, नेट प्रॉफिट और नेट वर्थ आदि शामिल हैं। डन एंड ब्रेडस्ट्रीट के अनुसार ये शीर्ष कंपनियां देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।
डीबी कॉर्प लिमिटेड के अंतर्गत देश के सबसे बड़े हिंदी अखबार दैनिक भास्कर, गुजराती अखबार दिव्य भास्कर, मराठी अखबार दिव्य मराठी और अंग्रेजी अखबार डीएनए का प्रकाशन होता है। इसके अलावा अहा जिंदगी, बाल भास्कर और यंग भास्कर जैसी मैग्जीन का प्रकाशन भी होता है। देश के प्रमुख 17 शहरों में मायएफएम के नाम से रेडियो स्टेशन हैं। इसके अलावा हिंदी की वेबसाइट dainikbhaskar.com, गुजराती वेबसाइट divyabhaskar.com, मराठी वेबसाइट divyamarathi.com, अंग्रेजी वेबसाइट dailybhaskar.com एवं अन्य वेबसाइटों के कुल 3.84 करोड़ यूनिक विजिटर के साथ डिजिटल के क्षेत्र में भी प्रमुख स्थान है।
Tuesday, October 13, 2015
घड़ी बताएगी बच्चे की हर लोकेशन
बड़े होते बच्चों की सुरक्षा माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता होती है। इस चिंता को दूर करने के लिए एक गैजेट कंपनी ने खास घड़ी ईजाद की है, जिसके जरिये माता-पिता बच्चे की लोकेशन का आसानी से पता लगा सकेंगे।
किसी परेशानी की हालत में बच्चों को इस घड़ी में आपातकालीन बटन की व्यवस्था भी दी गई है।
ब्रिटेन की स्पाई किड्स गैजेट कंपनी इस साल क्रिसमस से इस घड़ी को बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध कराएगी। एक खास ऐप के जरिये नियंत्रित घड़ी की सहायता से अभिभावक बच्चों के लिए कुछ स्थान पूर्व निर्धारित कर सकेंगे। इन जगहों से दूर जाते ही बच्चे के बारे में माता-पिता के स्मार्टफोन पर संदेश आ जाएगा। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को घड़ी के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। छोटे बच्चों की सुरक्षा अभिभावकों की देखरेख में ही संभव है।
घड़ी में दिए गए एसओएस बटन की सहायता से बच्चे आपात स्थिति में माता -पिता से संपर्क कर सकेंगे। इस बटन को दबाते ही अभिभावकों के पास बच्चे के आसपास की 15 सेकेंड की ऑडियो रिकॉर्डिंग के साथ संदेश पहुंच जाएगा और अभिभावक बच्चे की लोकेशन का पता भी लगा सकेंगे।
किसी परेशानी की हालत में बच्चों को इस घड़ी में आपातकालीन बटन की व्यवस्था भी दी गई है।
ब्रिटेन की स्पाई किड्स गैजेट कंपनी इस साल क्रिसमस से इस घड़ी को बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध कराएगी। एक खास ऐप के जरिये नियंत्रित घड़ी की सहायता से अभिभावक बच्चों के लिए कुछ स्थान पूर्व निर्धारित कर सकेंगे। इन जगहों से दूर जाते ही बच्चे के बारे में माता-पिता के स्मार्टफोन पर संदेश आ जाएगा। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को घड़ी के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। छोटे बच्चों की सुरक्षा अभिभावकों की देखरेख में ही संभव है।
घड़ी में दिए गए एसओएस बटन की सहायता से बच्चे आपात स्थिति में माता -पिता से संपर्क कर सकेंगे। इस बटन को दबाते ही अभिभावकों के पास बच्चे के आसपास की 15 सेकेंड की ऑडियो रिकॉर्डिंग के साथ संदेश पहुंच जाएगा और अभिभावक बच्चे की लोकेशन का पता भी लगा सकेंगे।
स्टोन के टीलों पर पौधों ने ओढ़ी हरियाली
कोटा स्टोन की खदानों से निकले मलबे के ऊंचे-ऊंचे टीले पूरे क्षेत्र में नजर आते हैं। क्षेत्र की एक खदान कंपनी ने सातलखेड़ी में ऐसे ही कुछ टीलों की सूरत बदलने की ठानी और वहां काली मिट्टी डालकर सघन पौधरोपण कर पार्क विकसित कर दिया। पार्क में शिव मंदिर भी बना दिया, जहां धार्मिक आयोजन होते हैं और काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
वर्ष 1986 में कोटा स्टोन की खदान से निकले मलबे के टीलों पर काली मिट्टी डाल पौधरोपण कर शिव मंदिर का निर्माण किया गया था। हरियाली से आच्छादित यह स्थान मौजूदा समय में पिकनिक स्थल बन गया है। श्रद्धालु यहां भगवान शिवजी के दर्शन करने के साथ पिकनिक मनाने भी आने लगे हैं। सावन मास में शिव पुराण का पाठ पूजा-अर्चना होती है। तरह-तरह के वृक्षों के साथ यहां कई औषधीय पौधे भी लगाए गए हैं।
शिव उद्यान में 25 साल से महाशिवरात्रि मेला लगता है। यहां पार्क के पास शिव कुंड बना है, जिसमें 12 महीने पानी भरा रहता है। शिव उद्यान में 25 साल से महाशिवरात्रि मेला लगता है। यहां पार्क के पास शिव कुंड बना है, जिसमें 12 महीने पानी भरा रहता है। शिव उद्यान की ही तरह पर्यावरण सहभागिता में दूसरे टीलों पर गणेश उद्यान और पार्वती उद्यान विकसित करने का कार्य भी चल रहा है।
वर्ष 1986 में कोटा स्टोन की खदान से निकले मलबे के टीलों पर काली मिट्टी डाल पौधरोपण कर शिव मंदिर का निर्माण किया गया था। हरियाली से आच्छादित यह स्थान मौजूदा समय में पिकनिक स्थल बन गया है। श्रद्धालु यहां भगवान शिवजी के दर्शन करने के साथ पिकनिक मनाने भी आने लगे हैं। सावन मास में शिव पुराण का पाठ पूजा-अर्चना होती है। तरह-तरह के वृक्षों के साथ यहां कई औषधीय पौधे भी लगाए गए हैं।
शिव उद्यान में 25 साल से महाशिवरात्रि मेला लगता है। यहां पार्क के पास शिव कुंड बना है, जिसमें 12 महीने पानी भरा रहता है। शिव उद्यान में 25 साल से महाशिवरात्रि मेला लगता है। यहां पार्क के पास शिव कुंड बना है, जिसमें 12 महीने पानी भरा रहता है। शिव उद्यान की ही तरह पर्यावरण सहभागिता में दूसरे टीलों पर गणेश उद्यान और पार्वती उद्यान विकसित करने का कार्य भी चल रहा है।
Monday, October 12, 2015
आधार दर में कटौती नहीं करने वाले बैंकों पर आरबीआई की नजर
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस तथ्य को जानकर सहज नहीं है कि वाणिज्यिक बैंक अपने नए ग्राहकों को आधार दर में कटौती का पूरा लाभ नहींं दे रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए आरबीआई कर्जदाताओं से पूछताछ कर सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपनी आधार दर में 40 और आईसीआईसीआई बैंक ने 35 आधार अंकों की कटौती की है। लेकिन आवास कर्ज के नए ग्राहकों के लिए ब्याज दर में महज 20 से 25 आधार अंकों की कटौती की गई जबकि पुराने ग्राहकों को आधार दर में कटौती का पूरा लाभ मिलेगा। आरबीआई को इस बात पर आपत्ति है कि समान जोखिम प्रोफाइल वाले ग्राहकों से बैंक अलग-अलग ब्याज दरें क्यों वसूल रहे हैं। केंद्रीय बैंक के एक शीर्ष सूत्र ने कहा, 'यह बिना भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण नीति के खिलाफ है। अक्सर हम ग्राहकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार पर जोर देते हैं।' उन्होंने कहा, 'यदि वे किसी एक खंड (वाहन या आवास कर्ज) के लिए मार्जिन में बदलाव करते हैं तो वह इस आधार पर उचित हो सकता है कि उस खंड में जोखिम को लेकर बैंक की धारणा बदल गई है। लेकिन समान जोखिम प्रोफाइल वाले ग्राहकों को अलग-अलग दरों पर भुगतान नहीं करना चाहिए।'
बैंकिंग नियामक इस बाबत बैंकों से विस्तृत पूछताछ करने की योजना बना रहा है। साथ ही आरबीआई इस मुद्दे पर बैंकों को अपनी राय से भी अवगत करएगा। पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक द्वारा प्रमुख नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कटौती किए जाने के बाद कई बैंकों ने आधार दर में कटौती करने की घोषणा की। एसबीआई ने सबसे अधिक आधार दर में कटौती की। लेकिन एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक ने अपना मार्जिन बढ़ाने के लिए नए ग्राहकों को इसका पूरा लाभ नहीं दिया। पिछले तीन साल के दौरान कमजोर ऋण वृद्धि और डूबते कर्ज में इजाफे से बैंकों की ब्याज आय में उल्लेखनीय कमी आई है। इससे उनके शुद्ध ब्याज मार्जिन पर असर पड़ा है।ऋण के मूल्य निर्धारण के लिए केंद्रीय बैंक ने आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आनंद सिन्हा के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी। समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि हरेक बैंक को अपनी नीतियों के लिए निदेशक मंडल से मंजूरी लेनी चाहिए। इंडिया रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था, 'पिछले 10 साल के अध्ययन से पता चलता है कि नीतिगत दरों में कटौती के अधिकांश मामलों में जमा दरों में तेजी से कटौती की गई और उधारी दरों के मुकाबले उसकी रफ्तार आधिक रही।'
बैंकिंग नियामक इस बाबत बैंकों से विस्तृत पूछताछ करने की योजना बना रहा है। साथ ही आरबीआई इस मुद्दे पर बैंकों को अपनी राय से भी अवगत करएगा। पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक द्वारा प्रमुख नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कटौती किए जाने के बाद कई बैंकों ने आधार दर में कटौती करने की घोषणा की। एसबीआई ने सबसे अधिक आधार दर में कटौती की। लेकिन एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक ने अपना मार्जिन बढ़ाने के लिए नए ग्राहकों को इसका पूरा लाभ नहीं दिया। पिछले तीन साल के दौरान कमजोर ऋण वृद्धि और डूबते कर्ज में इजाफे से बैंकों की ब्याज आय में उल्लेखनीय कमी आई है। इससे उनके शुद्ध ब्याज मार्जिन पर असर पड़ा है।ऋण के मूल्य निर्धारण के लिए केंद्रीय बैंक ने आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आनंद सिन्हा के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी। समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि हरेक बैंक को अपनी नीतियों के लिए निदेशक मंडल से मंजूरी लेनी चाहिए। इंडिया रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था, 'पिछले 10 साल के अध्ययन से पता चलता है कि नीतिगत दरों में कटौती के अधिकांश मामलों में जमा दरों में तेजी से कटौती की गई और उधारी दरों के मुकाबले उसकी रफ्तार आधिक रही।'
Saturday, October 10, 2015
ई-रिटर्न फाइल करना होगा और आसान
इलेक्ट्रॉनिक तरीके से आयकर रिटर्न भरने को लोकप्रिय बनाने के लिए सीबीडीटी पहले से ही भरे हुए फॉर्म्स उपलब्ध कराने की योजना पर काम कर रहा है। इसमें एक करदाता की आय और अन्य अहम जानकारियों के बारे में आंकड़े ऑटोमेटिक अपलोड हो जाएंगे।
आयकर विभाग की शीर्ष नीति निर्माता संस्था केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) करदाता फ्रेंडली इस सुविधा को अगले वित्त वर्ष से लागू करने की पूरी कोशिश कर रहा है। इस साल अगस्त में शुरू नए ई-फाइलिंग सिस्टम के तहत ही यह कदम उठाया जा रहा है। अगस्त में शुरू किए गए सिस्टम में आयकर रिटर्न को आधार नंबर, इंटरनेट बैंकिंग, एटीएम आदि से जोड़ते हुए उसे ऑनलाइन वेरिफिकेशन करने की सुविधा दी गई है। पांच लाख से कम आय वाले छोटे करदाता और रिफंड का दावा न करने वाले इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड का फायदा उठा सकते हैं।
सीबीडीटी की चेयरपर्सन अनीता कपूर ने कहा कि विभाग पहले से ही भरे फॉर्म में अधिक से अधिक एंट्री करने की संभावना पर काम कर रहा है, जिससे कि करदाता के लिए ई-रिटर्न भरना और आसान हो जाए।
आयकर विभाग की शीर्ष नीति निर्माता संस्था केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) करदाता फ्रेंडली इस सुविधा को अगले वित्त वर्ष से लागू करने की पूरी कोशिश कर रहा है। इस साल अगस्त में शुरू नए ई-फाइलिंग सिस्टम के तहत ही यह कदम उठाया जा रहा है। अगस्त में शुरू किए गए सिस्टम में आयकर रिटर्न को आधार नंबर, इंटरनेट बैंकिंग, एटीएम आदि से जोड़ते हुए उसे ऑनलाइन वेरिफिकेशन करने की सुविधा दी गई है। पांच लाख से कम आय वाले छोटे करदाता और रिफंड का दावा न करने वाले इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड का फायदा उठा सकते हैं।
सीबीडीटी की चेयरपर्सन अनीता कपूर ने कहा कि विभाग पहले से ही भरे फॉर्म में अधिक से अधिक एंट्री करने की संभावना पर काम कर रहा है, जिससे कि करदाता के लिए ई-रिटर्न भरना और आसान हो जाए।
Friday, October 9, 2015
ज़रूरत रोटी की है मगर खाने को केक
ज़रूरत रोटी की है मगर खाने को केक दिया जा रहा है. आप दर्शकों से उन पत्रकारों का दर्द साझा करना चाहता हूं जो अपना दर्द कहने के लायक नहीं है. हिंदी के पत्रकार बंधु इसे जरूर पढ़े
Rakesh Praveer के फेसबुक वाल से। ज़रूरत रोटी की है मगर खाने को केक दिया जा रहा है. आप दर्शकों से उन पत्रकारों का दर्द साझा करना चाहता हूं जो अपना दर्द कहने के लायक नहीं है. हिंदी के तमाम और अंग्रेजी के भी शायद बड़े अखबारों में भी ज्यादातर पत्रकार बीस बीस साल के अनुभव के बाद भी बीस हजार या उससे भी कम सेलरी पर काम कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि मजीठिया वेतनबोर्ड लागू किया जाए मगर किसी अखबार ने मजीठिया लागू नहीं किया. लागू होता तो बीस हजार रुपये पाने वाले वरिष्ठ पत्रकार को साठ से अस्सी हजार रुपये की सेलरी मिल सकती थी. अदालत की खुलेआम अवमानना हो रही है मगर सब चुप हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मजीठिया बोर्ड की सिफारिशें लागू करवाने का वादा किया था लेकिन पांच सौ करोड़ की विज्ञापन बजट की ताकत के बाद फेल हो गए. वही नहीं, तमाम मुख्यमंत्री और पार्टियां फेल हो गई हैं. हो सकता है लेकिन जिस कारण से बताने का मौका मिला है उसका पहले शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. बीजेपी के विजन डाक्युमेंट में कहा गया है कि पत्रकारों के लिए सामूहिक बीमा योजना तथा मेडिकेयर की सुविधा दी जाएगी. राज्य सरकार मान्यता प्राप्त पत्रकारों को लैपटॉप देगी. राजस्थान में मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत 1500 पत्रकारों को लैपटाप दे चुके हैं. जयपुर अजमेर में कई सौ पत्रकारों को सस्ती दरों पर जमीन देने की सूची निकली थी. मामला कोर्ट में है.
पत्रकार भी वेतन की जगह क्या क्या ले लेते हैं. आप जिस मीडिया को दिनरात गरियाते हैं, उसकी यह हकीकत है. अपनी सेलरी के सवाल से समझौता करते हुए पत्रकार आपके लिए तटस्थता और नैतिकता का बोझ ढो रहा है. बोझ ढोेते ढोते बहुत अच्छा पत्रकार भी बीस साल में बीस हजार की तनख्वाह भी नहीं पा पाता है. शुक्रिया बीजेपी का उसने अपने विजन डाक्युमेंट में लैपटॉप देने का वादा किया है, मजीठिया बोर्ड लागू करने का वादा नहीं किया है.
यह हिस्सा कल रवीश के प्राइम टाइम का इंट्रो है. आज दैनिक जागरण के पत्रकार जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं. वे हड़ताल पर चले गए हैं. सरकार द्वारा मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अखबार के मालिकों ने इसे लागू नहीं किया. इसे चुनौती देने के लिए सभी अखबार सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को करोड़ों रुपये दे चुके हैं. हर अखबार के प्रबंधन ने अपने पत्रकारों से एक पेपर पर साइन कराया जिसपर यह लिखा गया कि 'मुझे जितनी तनख्वाह मिलती है, उतने में खुश हूं. मुझे मजीठिया वेतनबोर्ड नहीं चाहिए.' यह अखबार जो रोज दुनिया को ज्ञान देते हैं, कहां कहां गलत हो रहा है, उसकी खबर छापते हैं, वे अखबार अपने कर्मचारियों को भरपूर शोषण करते हैं और कर्मचारी परिवार चलाने की मजबूरी में सब सहते जाते हैं.
यह सोचने की बात है कि इस देश में सरकार और सुप्रीम कोर्ट इन छोटे उद्योगपतियों के सामने इस कदर लाचार हैं तो बड़े उद्योगपतियों का क्या हाल होगा? इस देश में जनता का शासन नहीं है, यहां कंपनी राज चलता है. सरकार और अदालत उनके पीछे चलती हैं.
Rakesh Praveer के फेसबुक वाल से। ज़रूरत रोटी की है मगर खाने को केक दिया जा रहा है. आप दर्शकों से उन पत्रकारों का दर्द साझा करना चाहता हूं जो अपना दर्द कहने के लायक नहीं है. हिंदी के तमाम और अंग्रेजी के भी शायद बड़े अखबारों में भी ज्यादातर पत्रकार बीस बीस साल के अनुभव के बाद भी बीस हजार या उससे भी कम सेलरी पर काम कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि मजीठिया वेतनबोर्ड लागू किया जाए मगर किसी अखबार ने मजीठिया लागू नहीं किया. लागू होता तो बीस हजार रुपये पाने वाले वरिष्ठ पत्रकार को साठ से अस्सी हजार रुपये की सेलरी मिल सकती थी. अदालत की खुलेआम अवमानना हो रही है मगर सब चुप हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मजीठिया बोर्ड की सिफारिशें लागू करवाने का वादा किया था लेकिन पांच सौ करोड़ की विज्ञापन बजट की ताकत के बाद फेल हो गए. वही नहीं, तमाम मुख्यमंत्री और पार्टियां फेल हो गई हैं. हो सकता है लेकिन जिस कारण से बताने का मौका मिला है उसका पहले शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. बीजेपी के विजन डाक्युमेंट में कहा गया है कि पत्रकारों के लिए सामूहिक बीमा योजना तथा मेडिकेयर की सुविधा दी जाएगी. राज्य सरकार मान्यता प्राप्त पत्रकारों को लैपटॉप देगी. राजस्थान में मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत 1500 पत्रकारों को लैपटाप दे चुके हैं. जयपुर अजमेर में कई सौ पत्रकारों को सस्ती दरों पर जमीन देने की सूची निकली थी. मामला कोर्ट में है.
पत्रकार भी वेतन की जगह क्या क्या ले लेते हैं. आप जिस मीडिया को दिनरात गरियाते हैं, उसकी यह हकीकत है. अपनी सेलरी के सवाल से समझौता करते हुए पत्रकार आपके लिए तटस्थता और नैतिकता का बोझ ढो रहा है. बोझ ढोेते ढोते बहुत अच्छा पत्रकार भी बीस साल में बीस हजार की तनख्वाह भी नहीं पा पाता है. शुक्रिया बीजेपी का उसने अपने विजन डाक्युमेंट में लैपटॉप देने का वादा किया है, मजीठिया बोर्ड लागू करने का वादा नहीं किया है.
यह हिस्सा कल रवीश के प्राइम टाइम का इंट्रो है. आज दैनिक जागरण के पत्रकार जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं. वे हड़ताल पर चले गए हैं. सरकार द्वारा मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अखबार के मालिकों ने इसे लागू नहीं किया. इसे चुनौती देने के लिए सभी अखबार सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को करोड़ों रुपये दे चुके हैं. हर अखबार के प्रबंधन ने अपने पत्रकारों से एक पेपर पर साइन कराया जिसपर यह लिखा गया कि 'मुझे जितनी तनख्वाह मिलती है, उतने में खुश हूं. मुझे मजीठिया वेतनबोर्ड नहीं चाहिए.' यह अखबार जो रोज दुनिया को ज्ञान देते हैं, कहां कहां गलत हो रहा है, उसकी खबर छापते हैं, वे अखबार अपने कर्मचारियों को भरपूर शोषण करते हैं और कर्मचारी परिवार चलाने की मजबूरी में सब सहते जाते हैं.
यह सोचने की बात है कि इस देश में सरकार और सुप्रीम कोर्ट इन छोटे उद्योगपतियों के सामने इस कदर लाचार हैं तो बड़े उद्योगपतियों का क्या हाल होगा? इस देश में जनता का शासन नहीं है, यहां कंपनी राज चलता है. सरकार और अदालत उनके पीछे चलती हैं.
Thursday, October 8, 2015
स्टार्टअप को 10 लाख का लोन देगी राजस्थान सरकार..
कोटा। राजस्थान सरकार जल्द ही राज्य के लिए स्टार्टअप पॉलिसी के तहत 10 लाख रुपए तक का लोन देगी। सरकार सालाना 11 करोड़ रुपए स्टार्टअप के लिए खर्च करेगी। पॉलिसी के तहत स्टार्टअप को जगह, लोन जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। स्टार्टअप पॉलिसी से सरकार की योजना साल 2020 तक 500 से अधिक स्टार्टअप खोलने की है। राजस्थान सरकार के अधिकारियों के मुताबिक वेंचर केपिटल और आईटी कंपनियों की मदद से सरकार अगले पांच साल में 500 करोड़ रुपए निवेश करेगी। निवेश सरकार अगले पांच साल तक करेगी। राज्य में 500 से अधिक स्टार्टअप खोलने का लक्ष्य रखा है। सरकार सालाना 11 करोड़ रुपए नए कारोबार को खुलवाने के लिए निवेश करेगी। राजस्थान सरकार ने पहले ही 55 करोड़ रुपए एलोकेट कर दिेए हैं। स्टार्टअप को 10 लाख रुपए तक का लोन दिया जाएगा स्टार्टअप पॉलिसी के तहत प्रत्येक स्टार्टअप को 10 लाख रुपए तक का लोन दिया जाएगा। अभी तक कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल में ही स्टार्टअप के लिए ऐसी योजनाएं हैं। स्टार्टअप पॉलिसी 2015 के तहत राजस्थान उत्तर भारत का अपनी तरह का पहला राज्य होगा जो टेक्निकल स्टार्ट अप के लिए पॉलिसी लेकर आएगा।
कारोबारियों के मुताबिक राजस्थान के स्टार्टअप को सबसे ज्यादा समस्या फंड जुटाने और हायरिंग को लेकर आती है। राजस्थान में स्टार्टअप्स की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने कोशिशें तेज कर दी हैं। स्टार्टअप्स तथा नए उद्यमियों को व्यवसाय शुरू करने के लिए रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराया जाएगा। सिडबी के महाप्रबंधक विवेक मल्होत्रा ने बताया कि सिडबी ने उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
अभी राज्य में कार देखो और कल्चर एले जैसे वेंचर फंडेड स्टार्टअप हैं। अमेजन, अरबन लैदर, फ्लिपकार्ट और पेपरफ्राई जैसी कंपनिया टेक्सटाइल और फर्नीचर राज्य से सोर्स करती हैं। ऐसे में स्टार्ट के लिए यहा काफी मौके उपलब्ध होंगे।.
कारोबारियों के मुताबिक राजस्थान के स्टार्टअप को सबसे ज्यादा समस्या फंड जुटाने और हायरिंग को लेकर आती है। राजस्थान में स्टार्टअप्स की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने कोशिशें तेज कर दी हैं। स्टार्टअप्स तथा नए उद्यमियों को व्यवसाय शुरू करने के लिए रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराया जाएगा। सिडबी के महाप्रबंधक विवेक मल्होत्रा ने बताया कि सिडबी ने उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
अभी राज्य में कार देखो और कल्चर एले जैसे वेंचर फंडेड स्टार्टअप हैं। अमेजन, अरबन लैदर, फ्लिपकार्ट और पेपरफ्राई जैसी कंपनिया टेक्सटाइल और फर्नीचर राज्य से सोर्स करती हैं। ऐसे में स्टार्ट के लिए यहा काफी मौके उपलब्ध होंगे।.
Wednesday, October 7, 2015
मेडिक्लेम लेने से पहले इन बातों पर करें गौर
कोटा।हम सभी अपनी हेल्थ को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं। चाहे बूढ़े मां बाप हो या छोटे बच्चें सबकी बीमारी में अस्पताल में होने वाला खर्च आपकी सेविंग पर बड़ा असर डालता है। उम्र से संबंधित रोग ऐसे हैं जिन्हें आप रोक नहीं सकते। दूसरी और युवा अपनी लाइफ स्टाइल के कारण अलग तरह के रोगों का शिकार हो रहे हैं। अगर आपने पूरी तैयारी नहीं की है तो मेडिकल का खर्च आपकी बचत साफ कर देगा।
मेडिकल के इस तरह के खर्चों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस बहुत जरूरी है। इसमें दो तरह की पॉलिसी होती है। एक अकेले व्यक्ति के लिए और दूसरी पूरे परिवार के लिए। परिवार के लिए किए गए मेडिक्लेम की पॉलिसी का कोई भी सदस्य उपयोग कर सकता है। अगर आप मेडिक्लेम पॉलिसी खरीद रहें हैं तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें
*पॉलिसी में अस्पताल में भर्ती होने और बाद के खर्च की सुविधा हो
*कैशलेस सेवा के लिए हॉस्पिटल की लंबी सूची हो, आपके शहर के नामी हॉस्पिटल उस सूची में हों
*इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से 24*7 सहयोग की सेवा हो
*क्लेम निपटाने की प्रक्रिया आसान हो
*इनकम टैक्स छूट का लाभ हो, सेक्शन 80 (डी) के तहत इनकम टैक्स में छूट
*कमरों के किराए पर किसी तरह की लिमिट न हो
*क्रिटिकल इलनेस प्लान की सुविधा। इसमें कैंसर, टूटी जांघों, जलने और ह्दय से संबंधित रोगों को कवर किया जाता है
*जीवन भर रिन्यूवल की सुविधा, हर साल रिन्यूवल छूट पर भी ध्यान दें
क्लेम जल्दी निपटाने की सुविधा
मेडिकल के इस तरह के खर्चों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस बहुत जरूरी है। इसमें दो तरह की पॉलिसी होती है। एक अकेले व्यक्ति के लिए और दूसरी पूरे परिवार के लिए। परिवार के लिए किए गए मेडिक्लेम की पॉलिसी का कोई भी सदस्य उपयोग कर सकता है। अगर आप मेडिक्लेम पॉलिसी खरीद रहें हैं तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें
*पॉलिसी में अस्पताल में भर्ती होने और बाद के खर्च की सुविधा हो
*कैशलेस सेवा के लिए हॉस्पिटल की लंबी सूची हो, आपके शहर के नामी हॉस्पिटल उस सूची में हों
*इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से 24*7 सहयोग की सेवा हो
*क्लेम निपटाने की प्रक्रिया आसान हो
*इनकम टैक्स छूट का लाभ हो, सेक्शन 80 (डी) के तहत इनकम टैक्स में छूट
*कमरों के किराए पर किसी तरह की लिमिट न हो
*क्रिटिकल इलनेस प्लान की सुविधा। इसमें कैंसर, टूटी जांघों, जलने और ह्दय से संबंधित रोगों को कवर किया जाता है
*जीवन भर रिन्यूवल की सुविधा, हर साल रिन्यूवल छूट पर भी ध्यान दें
क्लेम जल्दी निपटाने की सुविधा
Tuesday, October 6, 2015
आजमाएं सिम लॉक की ट्रिक, सुरक्षित रहेगी आपकी कॉल
सिम कार्ड पर आपके बारे में कीमती जानकारी रहती है। अगर आपने अपने स्मार्टफोन के डेटा को एन्क्रिप्ट किया है या अपने स्मार्टफोन को पिन से लॉक किया है तो भी कोई आपका सिम कार्ड निकालकर आपके बारे में ढेर सारी जानकारी हासिल कर सकता है। अगर आप अपने एंड्रॉयड फ़ोन की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं तो आप अपने स्मार्टफोन के सिम को लॉक करने की सोच सकते हैं।
सिम कार्ड एक डिफ़ॉल्ट पिन के साथ ही आता है और पिन अनलॉक की या (PUK) होता है। अगर आप गलती से सिम कार्ड को लॉक कर देते हैं या गलत पासवर्ड डाल देते हैं तो पीयूके उसे अनलॉक करने में मदद करता है।
जानिए कैसे करें सिम लॉक।
सिम को लॉक करना बहुत मुश्किल नहीं है। जिस स्मार्टफोन में आपने सिम डाल रखा है उसके सेटिंग्स में जाइए और उसके बाद 'मोर टैब' पर क्लिक कीजिए। उसके बाद सिक्योरिटी चुनना होगा और उसके बाद समय है 'सेट अप सिम कार्ड लॉक' चुनने काफिर 'लॉक सिम कार्ड' के साथ वाले बॉक्स को टिक कर दीजिए और अपना पिन डाल दीजिए। उसके बाद ओके दबाइए। जब भी सिम लॉक होगा, तो आप कोई भी कॉल बिना पिन डाले नहीं कर पाएंगे।अगर आप सिम के पिन को बदलना चाहते हैं तो 'चेंज सिम पिन' पर क्लिक कीजिए और उसके बाद अपना पुराना पिन डाल दीजिए और ओके दबा दीजिए। उसके बाद आपको अपना नया पिन दो बार डालना होगा। दोनों बार पिन डालने के बाद ओके पर क्लिक करना ज़रूरी है। उसके बाद आपको अपनी डिवाइस को फिर से स्टार्ट करना होगा और अपना सिम का पिन भी डालना होगा। बिना पिन के आपका सिम किसी भी काम का नहीं है।
सिम कार्ड एक डिफ़ॉल्ट पिन के साथ ही आता है और पिन अनलॉक की या (PUK) होता है। अगर आप गलती से सिम कार्ड को लॉक कर देते हैं या गलत पासवर्ड डाल देते हैं तो पीयूके उसे अनलॉक करने में मदद करता है।
जानिए कैसे करें सिम लॉक।
सिम को लॉक करना बहुत मुश्किल नहीं है। जिस स्मार्टफोन में आपने सिम डाल रखा है उसके सेटिंग्स में जाइए और उसके बाद 'मोर टैब' पर क्लिक कीजिए। उसके बाद सिक्योरिटी चुनना होगा और उसके बाद समय है 'सेट अप सिम कार्ड लॉक' चुनने काफिर 'लॉक सिम कार्ड' के साथ वाले बॉक्स को टिक कर दीजिए और अपना पिन डाल दीजिए। उसके बाद ओके दबाइए। जब भी सिम लॉक होगा, तो आप कोई भी कॉल बिना पिन डाले नहीं कर पाएंगे।अगर आप सिम के पिन को बदलना चाहते हैं तो 'चेंज सिम पिन' पर क्लिक कीजिए और उसके बाद अपना पुराना पिन डाल दीजिए और ओके दबा दीजिए। उसके बाद आपको अपना नया पिन दो बार डालना होगा। दोनों बार पिन डालने के बाद ओके पर क्लिक करना ज़रूरी है। उसके बाद आपको अपनी डिवाइस को फिर से स्टार्ट करना होगा और अपना सिम का पिन भी डालना होगा। बिना पिन के आपका सिम किसी भी काम का नहीं है।
Saturday, October 3, 2015
दुर्घटना होने से पहले ही आगाह कर देगी ये कार
आपने मोबाइल को तो स्मार्ट होते सुना होगा लेकिन अब आपकी कार आपसे भी ज्यादा स्मार्ट होने जा रही है। कार न सिर्फ आपको दुर्घटनाओं से बचाएगी, बल्कि यह आपके स्टीयरिंग घुमाने से पहले ही जान जाएगी कि आप किस तरफ जाना चाहते हैं।
यह स्टीयरिंग और अन्य गतिविधियों के आधार पर चालक के व्यवहार का पुर्वानुमान लगा सकती है और यह अपने-आप पता कर लेती है कि आप किस तरफ जाने वाले हैं। कोई भी खतरा होने की स्थिति में यह एलर्ट कर देगी। वैज्ञानिक एक ऐसा कंप्यूटर डैशबोर्ड तैयार करने में जुटे हैं, जो मानव की गलती से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला सकता है। हालांकि सड़कों पर उतरने में इसे अभी काफी समय है।
अमेरिका की कॉर्नेल और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता इस कार्य में जुटे हैं। ब्रेन फॉर कार्स नाम के इस प्रोजेक्ट से जुड़े आशुतोष सक्सेना बताते हैं कि इस सिस्टम को चालक की भाषा और बॉडी लैंग्वेज के आधार पर व्यवहार पहचानने और उसका पुर्वानुमान लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने मशीन आधारित एलगोरिदम के जरिये इस सिस्टम को प्रशिक्षित किया। टेस्ट के दौरान पाया गया कि जब चालक गलत दिशा में मोड़ने वाला था, तो इस सिस्टम ने कुछ सेकंडों में ही एलर्ट भेजकर चालक को आगाह कर लिया।
शोधकर्ता कहते हैं कि इसके परिणाम 90 फीसदी सही निकले हैं। आशुतोष कहते हैं कि परीक्षण से ये साबित होता है कि यह सड़क पर उतरने को तैयार है।
एक अन्य शोधकर्ता कहते हैं कि सड़क पर इसकी जांच किए बिना इन्हें कारों में लगाना सुरक्षित नहीं होगा। फिलहाल इसे और निपुण बनाने को लेकर काम चल रहा है। पिछले दिनों जर्मनी के फ्रैंकफर्ट मोटर शो के दौरान ऑडी ने अपनी इलेक्ट्रिक स्पोर्ट यूटिलिटी व्हिकल (एसयूवी) ई-ट्रॉन क्वाट्रो का कॉन्सेप्ट पेश किया। हाल में अमरीकी कार निर्माता टेसला की इलेक्ट्रिक एसयूवी की भी बेहद चर्चा हुई, इसने 29 सितंबर को अपना मॉडल एक्स शोरूम में पेश किया है।लेकिन उससे पहले ऑडी ने बाज़ार में अपनी इलेक्ट्रिक एसयूवी की ख़बर दी और बताया कि इस कांसेप्ट कार का उत्पादन 2018 से होने लगेगा।
फ्रैंकफर्ट ऑटो शो के दौरान इसकी बहुत चर्चा रही और ज़्यादातर लोगों की नज़र में, बनने के बाद ये एक बेमिसाल कार हो सकती है।
ऑडी के व्हिकल कांसेप्ट्स के वाइस प्रेसीडेंट राफ़ गेरहार्ड विल्नर ने बताया कि कार को तैयार करने में उम्मीद से कम समय लगा है और इसकी एक वजह यही है कि इसमें पहले से तैयार पार्ट्स को इस्तेमाल किया गया है। इसमें सस्पेंशन और स्टीयरिंग से जुड़ें कॉम्पोनेंट शामिल हैं।
यह स्टीयरिंग और अन्य गतिविधियों के आधार पर चालक के व्यवहार का पुर्वानुमान लगा सकती है और यह अपने-आप पता कर लेती है कि आप किस तरफ जाने वाले हैं। कोई भी खतरा होने की स्थिति में यह एलर्ट कर देगी। वैज्ञानिक एक ऐसा कंप्यूटर डैशबोर्ड तैयार करने में जुटे हैं, जो मानव की गलती से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला सकता है। हालांकि सड़कों पर उतरने में इसे अभी काफी समय है।
अमेरिका की कॉर्नेल और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता इस कार्य में जुटे हैं। ब्रेन फॉर कार्स नाम के इस प्रोजेक्ट से जुड़े आशुतोष सक्सेना बताते हैं कि इस सिस्टम को चालक की भाषा और बॉडी लैंग्वेज के आधार पर व्यवहार पहचानने और उसका पुर्वानुमान लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने मशीन आधारित एलगोरिदम के जरिये इस सिस्टम को प्रशिक्षित किया। टेस्ट के दौरान पाया गया कि जब चालक गलत दिशा में मोड़ने वाला था, तो इस सिस्टम ने कुछ सेकंडों में ही एलर्ट भेजकर चालक को आगाह कर लिया।
शोधकर्ता कहते हैं कि इसके परिणाम 90 फीसदी सही निकले हैं। आशुतोष कहते हैं कि परीक्षण से ये साबित होता है कि यह सड़क पर उतरने को तैयार है।
एक अन्य शोधकर्ता कहते हैं कि सड़क पर इसकी जांच किए बिना इन्हें कारों में लगाना सुरक्षित नहीं होगा। फिलहाल इसे और निपुण बनाने को लेकर काम चल रहा है। पिछले दिनों जर्मनी के फ्रैंकफर्ट मोटर शो के दौरान ऑडी ने अपनी इलेक्ट्रिक स्पोर्ट यूटिलिटी व्हिकल (एसयूवी) ई-ट्रॉन क्वाट्रो का कॉन्सेप्ट पेश किया। हाल में अमरीकी कार निर्माता टेसला की इलेक्ट्रिक एसयूवी की भी बेहद चर्चा हुई, इसने 29 सितंबर को अपना मॉडल एक्स शोरूम में पेश किया है।लेकिन उससे पहले ऑडी ने बाज़ार में अपनी इलेक्ट्रिक एसयूवी की ख़बर दी और बताया कि इस कांसेप्ट कार का उत्पादन 2018 से होने लगेगा।
फ्रैंकफर्ट ऑटो शो के दौरान इसकी बहुत चर्चा रही और ज़्यादातर लोगों की नज़र में, बनने के बाद ये एक बेमिसाल कार हो सकती है।
ऑडी के व्हिकल कांसेप्ट्स के वाइस प्रेसीडेंट राफ़ गेरहार्ड विल्नर ने बताया कि कार को तैयार करने में उम्मीद से कम समय लगा है और इसकी एक वजह यही है कि इसमें पहले से तैयार पार्ट्स को इस्तेमाल किया गया है। इसमें सस्पेंशन और स्टीयरिंग से जुड़ें कॉम्पोनेंट शामिल हैं।
मजीठिया पर इस तरह के सवाल-जवाब के लिए तैयार रहें पत्रकार
मजीठिया वेतनमान पर अगर पत्रकारों से ये सवाल पूछे जाएं तो उन्हें दृढ़ता से जवाब देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है। अखबार मालिक पत्रकारों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे।
1. क्या आप का प्रबंधक भारत सरकार की अधिसूचना पर, मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड के अनुसार वेतन का भुगतान कर रहा है?
2. क्या प्रबंधकों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश 07-02-2014 के बाद किसी प्रकार के बकाया धन राशि (अरिअर्स) का भुगतान किया है?
3. मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार आप का संस्थान किस राजस्व श्रेणी के अंतर्गत आता है? 2007-08, 2008-09 और 2009-2010 की राजस्व स्थित (बैलेंस शीट) उपलब्ध कराऐं।
4. मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड लागू करते समय आप के संस्थान ने कौन सा मापदंड अपनाया है? उसकी वृहत जानकारी उपलब्ध कराऐं।या वेज बोर्ड अवार्ड लागू करते समय आप के संस्थान ने कौन सा मापदंड अपनाया है? उसकी वृहत जानकारी उपलब्ध कराऐं।
5. क्या आप का संस्थान वेतन निर्धारित करते समय पुराना मूल वेतन, मंहगाई भत्ता तथा सर्विस वेतन-वृद्धि का समयोजन किया है? इसका विस्तारित ब्योरा दें।
6. मजीठिया लागू करने के बाद आप के वेतन में कितने गुणा वृद्धि हुई है?
7. आप के संस्थान में सन् 2008 से पहले कर्मचारियों की संख्या कितनी थीऔर अब कितनी है?
8. क्या आप के संस्थान ने वेतन अवार्ड लागू होने के बाद मिल रहे अतिरिक्त भत्ते (किसी विशेष समक्षौते के तहद) का भुगतान बन्द कर दिया है?
9. क्या स्थायी तथा संविदा सेवा कर्मचारियों को मूल वेतन के साथ 35%का परिवर्ती (वेरिअबल) वेतन का भुगतान हो रहा है?
10. क्या मंहगाई भत्ता, मकान भत्ता, परिवहन भत्ता, छुट्टी यात्रा रियायत (एलटीसी) का भुगतान करते समय मूल वेतन के साथ वेरिअबल वेतन को जोड़ा जाता है?
11. क्या मंहगाई भत्ते का भुगतान जुलाई 2009 और जून 2010 (12 महीने का औसत) पॉइंट 167 के अधार पर हो रहा है?
12. क्या वेतन फिक्स करते समय आप को पांच साल में एक तथा ज्यादा से ज्यादा तीन सर्विस इंक्रीमेंट का लाभ मिला है, यदि हां तो पुराने रेट पर या नये रेट पर?
13. क्या कर्मचारियों को रात्रि पाली भत्ता तथा चिकित्सा भत्ते का भुगतान मजीठिया वेज अवार्ड के अनुसार किया जा रहा है?
14. क्या कार्यरत कर्मचारियों के भविष्य निधि को काटते समय मूल वेतन, वेरिअबल वेतन तथा मंहगाई भत्ते को जोड़ा जाता है? (जैसा कि श्रमजीवी पत्रकार एवं दूसरे समाचार कर्मचारियों की सेवा शर्तें, अधिनियम 1955 में की गयी व्यस्था के अनुसार)।
15. क्या अवकाश प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को आनुतोषिक (ग्रेट्यूटी) का भुगतान करते समय मूल वेतन, मंहगाई भत्ता तथा वेरिअबल को जोड़ा गया है?
16. कृपया संस्थान में काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकार, अनुबंध प्राप्त पत्रकार,गैर पत्रकार, प्रबंधन से जुड़े तथा उत्पादकता (प्रोडक्शन) में शामिल सभी कर्मचारियों का श्रेणीबद्ध ब्योरा दें।
17. कृपया अपने संस्थान में काम करने वाले सभी स्थायी, अस्थायी, अनुबंधक, उप-अनुबंधक कर्मचारियों की संख्या, उनके पद, वेतनमान, सर्विस अवधि के साथ-साथ मिलने वाले भत्ते का भी पूरा ब्योरा दें।
18. क्या अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन भुगतान में किसी प्रकार का भेद-भाव किया जा रहा है? कृपया अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों का पूरा ब्योरा दें।
19. क्या मजीठिया वेज अवार्ड के अनुसार सुनिश्चित कैरियर विकास योजना यानी 10 साल में एक पदोन्नति तथा पूरी सर्विस में तीन पदोन्नति का लाभ मिल रहा है?
20. क्या 11/11/2011 के बाद अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को मजीठिया वेतन अवार्ड का लाभ मिला? (ग्रेट्यूटी उपर्युक्त कथानुसार तथा दूसरे अवकाश प्राप्त लाभ)।
21. सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का केस दाखिल होने के बाद संस्थान से कितने कर्मचारियों का स्थानांतरण, निलम्बन तथा सेवा समाप्ति की कार्यवायी हुई है?
22. वेरिअबल कंसेप्ट से पहले पिछले सभी वेज अवार्डो में समाचार कर्मचारियों की वार्षिक वेतन वृद्धि 6.5-8.5% के बीच हुआ करती थी, जो वेरिअबल कंसेप्ट के कारण 4% कर दी गयी है इससे सिद्ध होता है कि वेरिअबल वेतन मूल वेतन का ही समेकित अंग है, जिसको इससे अलग नहीं किया जा सकता है, अगर किया गया है तो विवरण दें।
साभार भड़ास4 मिडिया डॉटकॉम
1. क्या आप का प्रबंधक भारत सरकार की अधिसूचना पर, मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड के अनुसार वेतन का भुगतान कर रहा है?
2. क्या प्रबंधकों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश 07-02-2014 के बाद किसी प्रकार के बकाया धन राशि (अरिअर्स) का भुगतान किया है?
3. मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार आप का संस्थान किस राजस्व श्रेणी के अंतर्गत आता है? 2007-08, 2008-09 और 2009-2010 की राजस्व स्थित (बैलेंस शीट) उपलब्ध कराऐं।
4. मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड लागू करते समय आप के संस्थान ने कौन सा मापदंड अपनाया है? उसकी वृहत जानकारी उपलब्ध कराऐं।या वेज बोर्ड अवार्ड लागू करते समय आप के संस्थान ने कौन सा मापदंड अपनाया है? उसकी वृहत जानकारी उपलब्ध कराऐं।
5. क्या आप का संस्थान वेतन निर्धारित करते समय पुराना मूल वेतन, मंहगाई भत्ता तथा सर्विस वेतन-वृद्धि का समयोजन किया है? इसका विस्तारित ब्योरा दें।
6. मजीठिया लागू करने के बाद आप के वेतन में कितने गुणा वृद्धि हुई है?
7. आप के संस्थान में सन् 2008 से पहले कर्मचारियों की संख्या कितनी थीऔर अब कितनी है?
8. क्या आप के संस्थान ने वेतन अवार्ड लागू होने के बाद मिल रहे अतिरिक्त भत्ते (किसी विशेष समक्षौते के तहद) का भुगतान बन्द कर दिया है?
9. क्या स्थायी तथा संविदा सेवा कर्मचारियों को मूल वेतन के साथ 35%का परिवर्ती (वेरिअबल) वेतन का भुगतान हो रहा है?
10. क्या मंहगाई भत्ता, मकान भत्ता, परिवहन भत्ता, छुट्टी यात्रा रियायत (एलटीसी) का भुगतान करते समय मूल वेतन के साथ वेरिअबल वेतन को जोड़ा जाता है?
11. क्या मंहगाई भत्ते का भुगतान जुलाई 2009 और जून 2010 (12 महीने का औसत) पॉइंट 167 के अधार पर हो रहा है?
12. क्या वेतन फिक्स करते समय आप को पांच साल में एक तथा ज्यादा से ज्यादा तीन सर्विस इंक्रीमेंट का लाभ मिला है, यदि हां तो पुराने रेट पर या नये रेट पर?
13. क्या कर्मचारियों को रात्रि पाली भत्ता तथा चिकित्सा भत्ते का भुगतान मजीठिया वेज अवार्ड के अनुसार किया जा रहा है?
14. क्या कार्यरत कर्मचारियों के भविष्य निधि को काटते समय मूल वेतन, वेरिअबल वेतन तथा मंहगाई भत्ते को जोड़ा जाता है? (जैसा कि श्रमजीवी पत्रकार एवं दूसरे समाचार कर्मचारियों की सेवा शर्तें, अधिनियम 1955 में की गयी व्यस्था के अनुसार)।
15. क्या अवकाश प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को आनुतोषिक (ग्रेट्यूटी) का भुगतान करते समय मूल वेतन, मंहगाई भत्ता तथा वेरिअबल को जोड़ा गया है?
16. कृपया संस्थान में काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकार, अनुबंध प्राप्त पत्रकार,गैर पत्रकार, प्रबंधन से जुड़े तथा उत्पादकता (प्रोडक्शन) में शामिल सभी कर्मचारियों का श्रेणीबद्ध ब्योरा दें।
17. कृपया अपने संस्थान में काम करने वाले सभी स्थायी, अस्थायी, अनुबंधक, उप-अनुबंधक कर्मचारियों की संख्या, उनके पद, वेतनमान, सर्विस अवधि के साथ-साथ मिलने वाले भत्ते का भी पूरा ब्योरा दें।
18. क्या अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन भुगतान में किसी प्रकार का भेद-भाव किया जा रहा है? कृपया अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों का पूरा ब्योरा दें।
19. क्या मजीठिया वेज अवार्ड के अनुसार सुनिश्चित कैरियर विकास योजना यानी 10 साल में एक पदोन्नति तथा पूरी सर्विस में तीन पदोन्नति का लाभ मिल रहा है?
20. क्या 11/11/2011 के बाद अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को मजीठिया वेतन अवार्ड का लाभ मिला? (ग्रेट्यूटी उपर्युक्त कथानुसार तथा दूसरे अवकाश प्राप्त लाभ)।
21. सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का केस दाखिल होने के बाद संस्थान से कितने कर्मचारियों का स्थानांतरण, निलम्बन तथा सेवा समाप्ति की कार्यवायी हुई है?
22. वेरिअबल कंसेप्ट से पहले पिछले सभी वेज अवार्डो में समाचार कर्मचारियों की वार्षिक वेतन वृद्धि 6.5-8.5% के बीच हुआ करती थी, जो वेरिअबल कंसेप्ट के कारण 4% कर दी गयी है इससे सिद्ध होता है कि वेरिअबल वेतन मूल वेतन का ही समेकित अंग है, जिसको इससे अलग नहीं किया जा सकता है, अगर किया गया है तो विवरण दें।
साभार भड़ास4 मिडिया डॉटकॉम