मजीठिया वेतनमान की आस लगाए बैठे पत्रकारों का इंतजार बढ़ गया है। कारण बिहार चुनाव है। दरअसल पहले मजीठिया वेतनमान की सुनवाई सितंबर में होने की कानफूसी चल रही थी लेकिन बिहार चुनाव के कारण मोदी सरकार किसी तरह का जोखिम लेने के पक्ष में नहीं थी, सो अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई दीवाली बाद ही होने की संभावना है। हालांकि एक धड़ा चाहता है कि जैसे ही बिहार चुनाव में वोटिंग हो जाए वैसे ही मजीठिया वेतनमान की सुनवाई की तिथि घोषित कर दी जाए। अब राजनीतिक खींचतान के बीच क्या होता है यह समय ही बताएगा।
चुनाव परिणाम का असर
यदि भाजपा बिहार विधानसभा का चुनाव हार गई तो इसकी खींस प्रेस मालिकों पर निकलना लाजमी है। नतीजन कुछ कड़े फैसले लिए जा सकते है। जिसमें जेल यात्रा भी शामिल हो सकती है। लेकिन भाजपा यदि चुनाव जीत जाती है तो सिर्फ पैसा वसूली कार्यवाही सख्ती से हो सकती है। हालांकि लेट-लतीफे के कारण पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान के हिसाब से जनवरी से अप्रैल तक पैसा मिल सकता है। इधर जिला स्तर पर प्रेस मालिकों के ऊपर हुए केस ने प्रबंधन को बेचैन किए हुए है।
कैसे मनाए कर्मचारियों को?
मजीठिया वेतनमान पर फैसला अपने हक से जाता देख प्रेस मालिक इस असमंज में पड़े है कि आखिर कर्मचारियों को कैसे मनाए। मामला इतना आगे बढ़ गया है कि अब कर्मचारी प्रबंधन पर विश्वास नहीं करेंगे। फैसले के बाद कर्मचारियों को यदि मजीठिया वेतनमान के नाम पर तय मापदंड ना सही लेकिन अच्छी सैलरी मिलती से शायद इतने विरोधी पैदा नहीं होते। लेकिन वर्षों से शोषण का इतिहास देखकर कोई यह अंजादा नहीं लगा सका कि इतना बढ़ा आंदोलन हो जाएगा। अब कंपनी प्रबंधन यही रणनीति बनाने में लगा है कि जो केस कर चुके है उन कर्मचारियों को परेशान ना किया जाए नहीं तो आंदोलन और उग्र हो जाएगा। और श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा।
तबादले पर क्या करें?
बात आती है तबादले की। जिसका कर्मचारियों के पास कोई तोड़ नहीं है। क्योंकि तबादला प्रोमोशन के तौर पर ही सकता है और दंड के तौर पर भी। इसके लिए जरूरी है संगठन। संगठन चाहे संस्थान के अंदर का हो या उसी शहर या जिले का। यदि किसी कर्मचारी का तबादला होता है तो संगठन यह कहकर श्रम विभाग में शिकायत करता है कि चूंकि यह कर्मचारी हमारे संगठन का सदस्य है और इसके तबादले से संगठन की गतिविधियों पर असर पड़ेगा। साथ ही कर्मचारी भी अन्य स्थान पर काम करने के खिलाफ है। इसलिए तबादले पर रोक लगाई जाए। इस तरह जब तक मामले की सुनवाई चलती है तब तक तबादला रुक जाता है।
इन सब दांव पेंच से बेहतर होगा हर प्रिंटिंग प्रेस में कर्मचारियों की एकता मजबूत हो और संगठन बने। जिससे कर्मचारियों का उत्प्रीणन रुके। कर्मचारियों में एकता नहीं है इसलिए प्रेस को हर कोई गाली देते रहता है। सब एक दूसरे को फर्जी पत्रकार करार देने में लगे रहते है। आपस में दुश्मनी ठीक है लेकिन बाहर वालों के लिए सभी एक जुट हो जाए नहीं तो बाहर वाला आपके साथी को पीट देगा और विरोध करने पर फर्जी पत्रकार कह देगा। इसलिए वकीलों के समान पत्रकारों में भी एकता होना जरूरी है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
चुनाव परिणाम का असर
यदि भाजपा बिहार विधानसभा का चुनाव हार गई तो इसकी खींस प्रेस मालिकों पर निकलना लाजमी है। नतीजन कुछ कड़े फैसले लिए जा सकते है। जिसमें जेल यात्रा भी शामिल हो सकती है। लेकिन भाजपा यदि चुनाव जीत जाती है तो सिर्फ पैसा वसूली कार्यवाही सख्ती से हो सकती है। हालांकि लेट-लतीफे के कारण पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान के हिसाब से जनवरी से अप्रैल तक पैसा मिल सकता है। इधर जिला स्तर पर प्रेस मालिकों के ऊपर हुए केस ने प्रबंधन को बेचैन किए हुए है।
कैसे मनाए कर्मचारियों को?
मजीठिया वेतनमान पर फैसला अपने हक से जाता देख प्रेस मालिक इस असमंज में पड़े है कि आखिर कर्मचारियों को कैसे मनाए। मामला इतना आगे बढ़ गया है कि अब कर्मचारी प्रबंधन पर विश्वास नहीं करेंगे। फैसले के बाद कर्मचारियों को यदि मजीठिया वेतनमान के नाम पर तय मापदंड ना सही लेकिन अच्छी सैलरी मिलती से शायद इतने विरोधी पैदा नहीं होते। लेकिन वर्षों से शोषण का इतिहास देखकर कोई यह अंजादा नहीं लगा सका कि इतना बढ़ा आंदोलन हो जाएगा। अब कंपनी प्रबंधन यही रणनीति बनाने में लगा है कि जो केस कर चुके है उन कर्मचारियों को परेशान ना किया जाए नहीं तो आंदोलन और उग्र हो जाएगा। और श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा।
तबादले पर क्या करें?
बात आती है तबादले की। जिसका कर्मचारियों के पास कोई तोड़ नहीं है। क्योंकि तबादला प्रोमोशन के तौर पर ही सकता है और दंड के तौर पर भी। इसके लिए जरूरी है संगठन। संगठन चाहे संस्थान के अंदर का हो या उसी शहर या जिले का। यदि किसी कर्मचारी का तबादला होता है तो संगठन यह कहकर श्रम विभाग में शिकायत करता है कि चूंकि यह कर्मचारी हमारे संगठन का सदस्य है और इसके तबादले से संगठन की गतिविधियों पर असर पड़ेगा। साथ ही कर्मचारी भी अन्य स्थान पर काम करने के खिलाफ है। इसलिए तबादले पर रोक लगाई जाए। इस तरह जब तक मामले की सुनवाई चलती है तब तक तबादला रुक जाता है।
इन सब दांव पेंच से बेहतर होगा हर प्रिंटिंग प्रेस में कर्मचारियों की एकता मजबूत हो और संगठन बने। जिससे कर्मचारियों का उत्प्रीणन रुके। कर्मचारियों में एकता नहीं है इसलिए प्रेस को हर कोई गाली देते रहता है। सब एक दूसरे को फर्जी पत्रकार करार देने में लगे रहते है। आपस में दुश्मनी ठीक है लेकिन बाहर वालों के लिए सभी एक जुट हो जाए नहीं तो बाहर वाला आपके साथी को पीट देगा और विरोध करने पर फर्जी पत्रकार कह देगा। इसलिए वकीलों के समान पत्रकारों में भी एकता होना जरूरी है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
साभार जनसत्ता एक्सप्रेस
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