कोटा। रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स की चपेट में सिर्फ वोडाफोन पीएलसी जैसी कंपनियां ही नहीं आई हैं। पिछले पांच साल से नैशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में पैसा डाल रहे प्राइवेट सेक्टर के सब्सक्राइबर्स का कंट्रिब्यूशन भी कुछ मामलों में टैक्सेबल हो गया है। इसकी वजह पब्लिक और प्राइवेट एम्पलॉयी के बीच एक फर्क को खत्म करने के लिए बजट में किया गया एक प्रावधान है।
एनपीएस का मकसद 1 जनवरी 2004 या उसके बाद सर्विस जॉइन करने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट फंड तैयार करना था। इसमें जमा होने वाला एम्प्लॉयर और एम्प्लॉयी का कॉन्ट्रिब्यूशन टैक्स फ्री रखा गया था। हालांकि इनकम टैक्स ऐक्ट के सेक्शन 80 सीसीडी की वर्डिंग्स चेंज नहीं की गई, जब 1 मई 2009 से प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को अपने एम्प्लॉयीज को स्कीम में शामिल कराने की इजाजत दी गई। इस तरह टैक्स छूट 2004 से इस स्कीम का हिस्सा बने सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित रही। आईटी ऐक्ट के सेक्शन 80 सीसीडी में एनपीएस पर टैक्स छूट दी गई है।
इस गलती को दुरुस्त करने के लिए नए फाइनैंस बिल में एक क्लॉज जोड़ा गया है। इसके मुताबिक, प्राइवेट सेक्टर के एनपीए सब्सक्राइबर्स इस स्कीम में कॉन्ट्रिब्यूट कर सकते हैं और टैक्स में छूट ले सकते हैं। इसमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि उन्होंने कब नौकरी जॉइन की थी। हालांकि इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और एनपीएस जॉइन करने वाली कंपनियों के फाइनैंस हेड्स के मुताबिक, इसकी वर्डिंग्स के हिसाब से पुराना कॉन्ट्रिब्यूशन टैक्सेबल हो जाएगा।मिनिस्ट्री की तरफ से शुक्रवार को जारी स्टेटमेंट के मुताबिक, 'फाइनैंस बिल 2014 में प्राइवेट सेक्टर के एम्प्लॉयीज (जिनकी जॉइनिंग डेट कोई भी हो सकती है) को एनपीएस जॉइन करने की इजाजत देने और 1 अप्रैल 2015 और असेसमेंट ईयर 2015-16 के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट के कर्मचारियों जैसे बेनेफिट देने के लिए सेक्शन 80 सीसीडी में संशोधन किया गया है।'
2009 में कर्मचारियों को एनपीएस का ऑप्शन देने वाली तीन कंपनियों के फाइनैंस हेड्स के मुताबिक, असेसमेंट ईयर 2015-16, जो 1 अप्रैल 2014 से शुरू फिस्कल ईयर के बराबर है, के संदर्भ की वजह से अनिश्चतता का माहौल बना है। इन कंपनियों में एक दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी भी है।
इंडिया लाइफ कैपिटल के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट अमित गोपाल ने कहा, 'यह गड़बड़ी मौजूदा फिस्कल ईयर में दूर की गई है, इसलिए पीपीएफ और ईपीएफ की तरह एनपीएस में भी एक लाख रुपये तक की टैक्स फ्री लिमिट के दायरे में किए गए कॉन्ट्रिब्यूशन पर डिडक्शन क्लेम गलत माना जा सकता है। इसलिए अगर किसी कर्मचारी ने 2014 से पहले नौकरी शुरू की थी, तो एम्प्लॉयर के कॉन्ट्रिब्यूशन पर डिडक्शन को गलत माना जा सकता है।' अमित गोपाल ने कहा कि एनपीएस में एम्प्लॉयर का जो कॉन्ट्रिब्यूशन सैलरी के 10 पर्सेंट तक टैक्स फ्री माना जाता रहा है, 2009 से 2014 के बीच टैक्सेबल हो सकता है। इसमें एम्प्लॉयी की जॉइनिंग डेट से कोई फर्क नहीं पड़ता।
एनपीएस का मकसद 1 जनवरी 2004 या उसके बाद सर्विस जॉइन करने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट फंड तैयार करना था। इसमें जमा होने वाला एम्प्लॉयर और एम्प्लॉयी का कॉन्ट्रिब्यूशन टैक्स फ्री रखा गया था। हालांकि इनकम टैक्स ऐक्ट के सेक्शन 80 सीसीडी की वर्डिंग्स चेंज नहीं की गई, जब 1 मई 2009 से प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को अपने एम्प्लॉयीज को स्कीम में शामिल कराने की इजाजत दी गई। इस तरह टैक्स छूट 2004 से इस स्कीम का हिस्सा बने सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित रही। आईटी ऐक्ट के सेक्शन 80 सीसीडी में एनपीएस पर टैक्स छूट दी गई है।
इस गलती को दुरुस्त करने के लिए नए फाइनैंस बिल में एक क्लॉज जोड़ा गया है। इसके मुताबिक, प्राइवेट सेक्टर के एनपीए सब्सक्राइबर्स इस स्कीम में कॉन्ट्रिब्यूट कर सकते हैं और टैक्स में छूट ले सकते हैं। इसमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि उन्होंने कब नौकरी जॉइन की थी। हालांकि इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और एनपीएस जॉइन करने वाली कंपनियों के फाइनैंस हेड्स के मुताबिक, इसकी वर्डिंग्स के हिसाब से पुराना कॉन्ट्रिब्यूशन टैक्सेबल हो जाएगा।मिनिस्ट्री की तरफ से शुक्रवार को जारी स्टेटमेंट के मुताबिक, 'फाइनैंस बिल 2014 में प्राइवेट सेक्टर के एम्प्लॉयीज (जिनकी जॉइनिंग डेट कोई भी हो सकती है) को एनपीएस जॉइन करने की इजाजत देने और 1 अप्रैल 2015 और असेसमेंट ईयर 2015-16 के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट के कर्मचारियों जैसे बेनेफिट देने के लिए सेक्शन 80 सीसीडी में संशोधन किया गया है।'
2009 में कर्मचारियों को एनपीएस का ऑप्शन देने वाली तीन कंपनियों के फाइनैंस हेड्स के मुताबिक, असेसमेंट ईयर 2015-16, जो 1 अप्रैल 2014 से शुरू फिस्कल ईयर के बराबर है, के संदर्भ की वजह से अनिश्चतता का माहौल बना है। इन कंपनियों में एक दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी भी है।
इंडिया लाइफ कैपिटल के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट अमित गोपाल ने कहा, 'यह गड़बड़ी मौजूदा फिस्कल ईयर में दूर की गई है, इसलिए पीपीएफ और ईपीएफ की तरह एनपीएस में भी एक लाख रुपये तक की टैक्स फ्री लिमिट के दायरे में किए गए कॉन्ट्रिब्यूशन पर डिडक्शन क्लेम गलत माना जा सकता है। इसलिए अगर किसी कर्मचारी ने 2014 से पहले नौकरी शुरू की थी, तो एम्प्लॉयर के कॉन्ट्रिब्यूशन पर डिडक्शन को गलत माना जा सकता है।' अमित गोपाल ने कहा कि एनपीएस में एम्प्लॉयर का जो कॉन्ट्रिब्यूशन सैलरी के 10 पर्सेंट तक टैक्स फ्री माना जाता रहा है, 2009 से 2014 के बीच टैक्सेबल हो सकता है। इसमें एम्प्लॉयी की जॉइनिंग डेट से कोई फर्क नहीं पड़ता।
0 comments:
Post a Comment