दिनेश माहेश्वरी
कोटा । भारत की देशी गायों में दूध की पौष्टिकता के कारण विदेशों में इनकी बहुत मांग
है। खास तौर से अफ्रीकी देशों में। वहां पर इन गायों की एक नई नस्ल तैयार कर इसका नाम दिया है गिरांडा । यूरोपीय देशों में भी मांग है, लेकिन यहां का पशुधन वहां की जलवायु में सुरक्षित नहीं है। इसलिए अभी तक अफ्रीकी देशों में ही इन पर प्रयोग किया जाता रहा है।
पुणे की एबीएस कंपनी में वेटनरी डॉक्टर राहुल गुप्ता ने भास्कर से बातचीत में बताया कि गिर नस्ल की देशी गायों में दूध की पौष्टिकता को विदेशियों ने भी स्वीकार किया है। न्यूजीलैंड की लिंकन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केइथ वुडफोर्ड ने अपनी पुस्तक डेविल इन द मिल्क पुस्तक में 100 से अधिक शोध के आधार पर ए-1 एवं ए-2 कंपोनेंट में अंतर स्पष्ट किया है। विदेशी हॉलिस्टन नस्ल की गायों में ए-1 कंपोनेंट होता है। जिससे डायबिटीज एवं हार्ट संबंधी डिजीज की संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि कि भारत की गिर नस्ल की गायों के दूध में ए-2 कंपोनेंट होता है। यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है। जिससे व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इसे लेकर न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया एवं यूरोप के कई हिस्सों में काफी बहस हो चुकी है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि देश में हमारे पास बहुत अच्छी नस्ल की गायें हैं, लेकिन उनका कोई अध्ययन रिकार्ड विदेशों की तरह देश में नहीं रखा जाता है। यही वजह है कि हम हमारे पशुधन की कद्र नहीं करते हैं। दूध निकालने के बाद लोग उन्हें सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। वहीं विदेशों में इसकी इतनी मांग है कि वह यहां से अपने यहां की पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए यहां की देशी गायों के सीमन पर प्रयोग कर एक नई नस्ल गिरांडो तैयार कर ली है। वर्तमान में ब्राजील इसका सीमन निर्यात कर दुनिया में नंबर वन स्थिति में पहुंच गया है।
क्या है ए-2
शोध में पाया गया है कि यह एक प्रकार का प्रोटीन है। जो देशी गायों के दूध में पाया जाता है। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। देशी गाय के दूध से पंचगव्य चिकित्सा पद्धति के माध्यम से 90 प्रतिशत बीमारियों को खत्म किया जा सकता है।
कोटा । भारत की देशी गायों में दूध की पौष्टिकता के कारण विदेशों में इनकी बहुत मांग
है। खास तौर से अफ्रीकी देशों में। वहां पर इन गायों की एक नई नस्ल तैयार कर इसका नाम दिया है गिरांडा । यूरोपीय देशों में भी मांग है, लेकिन यहां का पशुधन वहां की जलवायु में सुरक्षित नहीं है। इसलिए अभी तक अफ्रीकी देशों में ही इन पर प्रयोग किया जाता रहा है।
पुणे की एबीएस कंपनी में वेटनरी डॉक्टर राहुल गुप्ता ने भास्कर से बातचीत में बताया कि गिर नस्ल की देशी गायों में दूध की पौष्टिकता को विदेशियों ने भी स्वीकार किया है। न्यूजीलैंड की लिंकन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केइथ वुडफोर्ड ने अपनी पुस्तक डेविल इन द मिल्क पुस्तक में 100 से अधिक शोध के आधार पर ए-1 एवं ए-2 कंपोनेंट में अंतर स्पष्ट किया है। विदेशी हॉलिस्टन नस्ल की गायों में ए-1 कंपोनेंट होता है। जिससे डायबिटीज एवं हार्ट संबंधी डिजीज की संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि कि भारत की गिर नस्ल की गायों के दूध में ए-2 कंपोनेंट होता है। यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है। जिससे व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इसे लेकर न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया एवं यूरोप के कई हिस्सों में काफी बहस हो चुकी है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि देश में हमारे पास बहुत अच्छी नस्ल की गायें हैं, लेकिन उनका कोई अध्ययन रिकार्ड विदेशों की तरह देश में नहीं रखा जाता है। यही वजह है कि हम हमारे पशुधन की कद्र नहीं करते हैं। दूध निकालने के बाद लोग उन्हें सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हैं। वहीं विदेशों में इसकी इतनी मांग है कि वह यहां से अपने यहां की पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए यहां की देशी गायों के सीमन पर प्रयोग कर एक नई नस्ल गिरांडो तैयार कर ली है। वर्तमान में ब्राजील इसका सीमन निर्यात कर दुनिया में नंबर वन स्थिति में पहुंच गया है।
क्या है ए-2
शोध में पाया गया है कि यह एक प्रकार का प्रोटीन है। जो देशी गायों के दूध में पाया जाता है। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। देशी गाय के दूध से पंचगव्य चिकित्सा पद्धति के माध्यम से 90 प्रतिशत बीमारियों को खत्म किया जा सकता है।
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