दिनेश माहेश्वरी
कोटा। फाइनैंशल इयर 2015-16 या असेसमेंट इयर 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिरी तारीख 31 जुलाई है। अगर आपने अभी तक अपना रिटर्न नहीं भरा है, तो जल्दी से जल्दी भर दें। रिटर्न के बारे में जानकारी और ऑनलाइन रिटर्न भरने का तरीका एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं प्रभात गौड़:
सबसे पहले जानें कुछ बेसिक टर्म्स
इनकम टैक्स रिटर्न
देश के हर टैक्सपेयर की यह ड्यूटी है कि वह इनकम टैक्स विभाग को हर फाइनैंशल इयर के अंत में उस फाइनैंशल इयर में हुई आमदनी का ब्योरा दे। यह ब्योरा उसे विभाग द्वारा तय फॉर्म में भरकर देना होता है। इस फॉर्म के जरिये दी गई पूरी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न कहलाती है।
फाइनैंशल इयर
1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनैंशल इयर कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक के समय को फाइनैंशल इयर 2015-16 कहा जाएगा। अभी हम जो रिटर्न भर रहे हैं, वह फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए है।
असेसमेंट इयर
असेसमेंट इयर फाइनैंशल इयर से आगे वाला साल होता है यानी जिस साल उस फाइनैंशल इयर के टैक्स संबंधी मामलों का आकलन किया जाता है। मसलन फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए असेसमेंट इयर 2016-17 होगा क्योंकि फाइनैंशल इयर 2015-16 की जो आमदनी है, उस पर टैक्स भरा या नहीं जैसा आकलन इनकम टैक्स विभाग फाइनैंशल इयर 2016-17 में करेगा इसलिए फाइनैंशल इयर 2015-2016 के लिए असेसमेंट इयर 2016-17 होगा। अभी हम जो रिटर्न भर रहे हैं, वह फाइनैंशल इयर 2015-16 या असेसमेंट इयर 2016-17 का रिटर्न कहा जाएगा।
डिडक्शंस
विभिन्न तरह के इन्वेस्टमेंट पर इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपको टैक्स में छूट मिलती है। ये कई तरह के आइटम होते हैं, जहां इन्वेस्टमेंट करके टैक्स में छूट हासिल की जा सकती है। मसलन सेक्शन 80सी से सेक्शन 80यू तक जो भी आइटम हैं, उन्हें डिडक्शन के तहत माना जाता है।
ग्रॉस इनकम
टैक्स फ्री आमदनी और भत्तों को छोड़कर आपकी साल की कुल आमदनी जो भी है, उसे ग्रॉस इनकम कहा जाता है। ग्रॉस इनकम हमेशा 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम होती है।
टैक्सेबल इनकम
ग्रॉस इनकम में से 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन क्लेम कर लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं। यानी डिडक्शन से पहले वाली इनकम ग्रॉस इनकम और डिडक्शन के बाद वाली इनकम को टैक्सेबल इनकम कहते हैं।
टीडीएस
आपकी जो भी आमदनी होती है, सरकार उस पर टैक्स काटती है। इसे टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स कहा जाता है। जो संस्था आपको पेमेंट कर रही है, वही टैक्स की इस रकम को काटकर बाकी रकम आपको पे करती है। मसलन आपकी कंपनी आपको जो सैलरी देती है, वह उस पर बनने वाले टैक्स को काटकर बाकी रकम आपके खाते में ट्रांसफर करती है। टीडीएस काटने का काम एंम्प्लॉयर या पेमेंट करने वाली संस्था का है। इसे काटना या जमा करना लेने वाले की जिम्मेदारी नहीं है। आमतौर पर जब कोई संस्था किसी काम के बदले आपको पे करती है, तो वह 10 फीसदी की दर से टीडीएस काटती है।
सीनियर सिटिजन
जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2016 को 60 साल या उससे ज्यादा है, उन्हें सीनियर सिटिजन माना जाएगा।
सुपर सीनियर सिटिजन इसी तरह जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2016 को 80 साल से ज्यादा है, वे सुपर सीनियर सिटिजंस होंगे। आप जिस फाइनैंशल इयर का रिटर्न भर रहे हैं, उसके अंतिम दिन 31 मार्च को उम्र की गणना की जाती है।
इनकम टैक्स रिफंड
अगर किसी टैक्सपेयर ने सरकार को ज्यादा टैक्स दे दिया है, तो वह उस रकम को सरकार से वापस ले सकता है। इस वापस आई रकम को ही रिफंड कहा जाता है। टैक्स रिटर्न भरकर आप इस एक्स्ट्रा रकम को इनकम टैक्स विभाग से क्लेम करते हैं। इसके बाद रिफंड की यह रकम आपको इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपके अकाउंट में भेज दी जाती है।
फॉर्म 26 AS
फॉर्म 26एएस एक कंसॉलिडेटेड टैक्स स्टेटमेंट है। इसमें खासतौर से तीन तरह के ब्योरे होते हैं। पहला टीडीएस का ब्योरा, दूसरा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का ब्योरा और तीसरा टैक्सपेयर द्वारा बैंक में जमा कराया गया एडवांस टैक्स/सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ब्योरा। फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा कराया भी है या नहीं। इस टीडीएस का ब्योरा आप दो तरह से देख सकते हैं। पहले incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं। अगर आप पिछले सालों में रिटर्न भर चुके हैं तो आपके पास यूजर नेम और पासवर्ड होगा। इसी से लॉग-इन करें। अगर पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो Register Yourself पर जाकर रजिस्टर करें। वैसे यूजर नेम आपका पैन नंबर होता है और पासवर्ड आप खुद जेनरेट करेंगे। लॉग-इन करने के बाद View Form 26 AS पर क्लिक करें। अगर आप नेट बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं तो बैंक की वेबसाइट पर जाकर View Your Tax Credit पर क्लिक करके फॉर्म 26 एएस देख सकते हैं, लेकिन इससे केवल उस बैंक में चल रही आपकी एफडी, सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज आदि का ही पता चलेगा।
फॉर्म 16 A
अगर सैलरी के साथ-साथ दूसरे जरियों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। इस सर्टिफिकेट को ही फॉर्म 16ए कहा जाता है। यहां हम रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम की बात कर रहे हैं। एफडी के मामले में आपका बैंक आपको यह सर्टिफिकेट देगा।
फॉर्म 16
अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तो आपका एम्प्लॉयर आपको एक फॉर्म 16 देता है। यह फॉर्म अब तक आपके एम्प्लॉयर ने आपको दे दिया होगा। यह इस बात को साबित करता है कि एम्प्लॉयर ने आपकी सैलरी से अगर टैक्स बनता है, तो टीडीएस काटा है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक हर एम्प्लॉयर के लिए जरूरी है कि वह फॉर्म 16 अपने कर्मचारियों को दे। अगर आपका एम्प्लॉयर आपको यह फॉर्म नहीं दे रहा है तो आप इसकी रिक्वेस्ट उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजें और इसका सबूत अपने पास रखें। इनकम टैक्स विभाग के पूछताछ करने पर यह सबूत दिखाया जा सकता है।
कैसे भरें इनकम टैक्स रिटर्न: इनकम टैक्स रिटर्न: यहां है हर सवाल का जवाब
किसके लिए कौन सा फॉर्म
ITR 1 (Sahaj)
ऐसे इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है: सैलरी या पेंशन एक मकान का किराया। कमर्शल प्रॉपर्टी से आ रहे किराये को भी इसी में माना जाएगा ब्याज
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
आपको एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी से आमदनी होती हो।
कोई फॉरेन इनकम या असेट हो।
कैपिटल गेंस हुआ हो।
5000 रुपये से ज्यादा की आमदनी खेती से हो।
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी होती हो।
इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज में लॉस दिखाया हो।
जिन लोगों को सैलरी या पेंशन से इनकम होती है और उनके पास एक घर है या कोई घर नहीं है, वे इसे भरेंगे।
ITR 2A
ऐसे टैक्सपेयर्स और एचयूएफ के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है: सैलरी या पेंशन। एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी। दूसरे सोर्स से आमदनी, जिसमें लॉटरी भी शामिल है।
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
कैपिटल गेंस हुआ हो।
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी होती हो।
फॉरेन इनकम या असेट है या विदेशों में ब्याज से आमदनी हुई हो।
ITR 2
ऐसे टैक्सपेयर्स और एचयूएफ के लिए, जिन्हें इन तरीकों से आमदनी होती है :
सैलरी या पेंशन
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
कैपिटल गेंस हुआ हो।
दूसरे सोर्स से आमदनी, लॉटरी समेत
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी
ITR 3
फर्म में ऐसे पार्टनर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
सैलरी या पेंशन
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
कैपिटल गेंस
दूसरे सोर्स से, जिसमें लॉटरी भी शामिल है।
पार्टनरशिप फर्म का प्रॉफिट
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर
आपके पास सोल प्रॉपराइटरशिप फर्म से इनकम है।
ITR 4
यह फॉर्म ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए है, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
प्रॉपराइटरशिप
प्रफेशन
कमिशन
ITR 4 s
ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
प्रिजम्प्टिव टैक्स रूल के तहत आने वाले बिजनस से
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
5 हजार से ज्यादा की आमदनी खेती से
कमीशन
विदेशी स्रोतों से
ITR v
रिटर्न की ई-फाइलिंग करने वाले सभी टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्होंने :
रिटर्न वेरिफाई करने के लिए डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल नहीं किया है।
रिटर्न को वेरिफाई करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड का इस्तेमाल नहीं किया है।
रिटर्न भरने की आखिरी तारीख
31 जुलाई 2016 - सैलरीड लोगों के लिए रिटर्न भरने की आखिरी तारीख। बिजनस वाले, प्रफेशनलों के लिए यही लास्ट डेट है, बशर्ते आमदनी की ऑडिटिंग न कराते हों। बिजनस में ऑडिटिंग की जरूरत उन्हें है, जिनकी टैक्सेबल इनकम 1 करोड़ से ज्यादा होती है।
30 सितंबर 2016 - असेसमेंट इयर 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने की लास्ट डेट 30 सितंबर उन लोगों, फर्मों और कंपनियों के लिए है, जिनके लिए अपनी सालाना आमदनी की ऑडिटिंग कराना जरूरी होता है।
31 मार्च 2017 - अगर आपका टीडीएस आपकी कंपनी ने काट लिया है और आप पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती तो आप 31 मार्च 2017 तक भी बिना किसी पेनल्टी के टैक्स रिटर्न भर सकते हैं।
किसे भरना है रिटर्न और किसे नहीं
फाइनैंशल इयर 2015-16 के स्लैब के हिसाब से छूट की सीमा 60 साल से कम के पुरुषों और महिलाओं के लिए ढाई लाख रुपये है। 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के बुजुर्गों के लिए यह सीमा तीन लाख रुपये है और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के सुपर सीनियर सिटिजन के लिए 5 लाख तक आमदनी टैक्स-फ्री है।
अगर चैप्टर VI A के इनवेस्टमेंट और ब्याज की छूट लेने से पहले आपकी इनकम इस सीमा से ज्यादा है तो आपको रिटर्न भरना होगा यानी इनवेस्टमेंट पर मिलने वाली छूट के बाद अगर टैक्सेबल इनकम इस लिमिट से कम हो रही है, तो भी रिटर्न भरना होगा। मान लें, आपकी ग्रॉस इनकम 3 लाख रुपये है और उम्र 60 साल से कम है। आपने 80 सी में पीपीएफ और इंश्योरेंस पॉलिसी में 60 हजार रुपये इनवेस्ट कर दिए। इससे आपकी टैक्सेबल इनकम हो गई 2 लाख 40 हजार रुपये। अब यह ढाई लाख की एग्जेंप्शन लिमिट से कम है, लेकिन रिटर्न भरना होगा क्योंकि डिडक्शन से पहले की इनकम तीन लाख है।
ग्रॉस इनकम डिडक्शन से पहले एग्जेंप्शन लिमिट से कम, तो रिटर्न की जरूरत नहीं। मसलन अगर किसी 60 साल से कम उम्र के शख्स की ग्रॉस इनकम 2 लाख 30 हजार रुपये है तो उसे रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है।
डिडक्शंस की लिस्ट
80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी में इन आइटम में छूट मिलती है। इसकी सीमा फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए 1.5 लाख रुपये है।
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड (EPF)
पांच साल की बैंक एफडी
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम
होम लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर दी जाने वाली रकम
लाइफ इंशूरंस पॉलिसी प्रीमियम जो आप चुकाते हैं।
NSC viii इश्यू
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS
सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया इन्वेस्टमेंट
डेढ़ लाख के अलावा
इन आइटमों में भी छूट मिलती है, जो 1.5 लाख की सीमा से अलग है:
80 D : हेल्थ इंशूरंस पॉलिसी का प्रीमियम 15 हजार की सीमा तक।
24 b : होम लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। इसकी सीमा दो लाख रुपये है।
80 E : हायर स्टडीज के लिए लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। कोई सीमा नहीं।
80 G : किसी संस्था को दी जाने वाली डोनेशन।
कोटा। फाइनैंशल इयर 2015-16 या असेसमेंट इयर 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिरी तारीख 31 जुलाई है। अगर आपने अभी तक अपना रिटर्न नहीं भरा है, तो जल्दी से जल्दी भर दें। रिटर्न के बारे में जानकारी और ऑनलाइन रिटर्न भरने का तरीका एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं प्रभात गौड़:
सबसे पहले जानें कुछ बेसिक टर्म्स
इनकम टैक्स रिटर्न
देश के हर टैक्सपेयर की यह ड्यूटी है कि वह इनकम टैक्स विभाग को हर फाइनैंशल इयर के अंत में उस फाइनैंशल इयर में हुई आमदनी का ब्योरा दे। यह ब्योरा उसे विभाग द्वारा तय फॉर्म में भरकर देना होता है। इस फॉर्म के जरिये दी गई पूरी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न कहलाती है।
फाइनैंशल इयर
1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनैंशल इयर कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक के समय को फाइनैंशल इयर 2015-16 कहा जाएगा। अभी हम जो रिटर्न भर रहे हैं, वह फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए है।
असेसमेंट इयर
असेसमेंट इयर फाइनैंशल इयर से आगे वाला साल होता है यानी जिस साल उस फाइनैंशल इयर के टैक्स संबंधी मामलों का आकलन किया जाता है। मसलन फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए असेसमेंट इयर 2016-17 होगा क्योंकि फाइनैंशल इयर 2015-16 की जो आमदनी है, उस पर टैक्स भरा या नहीं जैसा आकलन इनकम टैक्स विभाग फाइनैंशल इयर 2016-17 में करेगा इसलिए फाइनैंशल इयर 2015-2016 के लिए असेसमेंट इयर 2016-17 होगा। अभी हम जो रिटर्न भर रहे हैं, वह फाइनैंशल इयर 2015-16 या असेसमेंट इयर 2016-17 का रिटर्न कहा जाएगा।
डिडक्शंस
विभिन्न तरह के इन्वेस्टमेंट पर इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपको टैक्स में छूट मिलती है। ये कई तरह के आइटम होते हैं, जहां इन्वेस्टमेंट करके टैक्स में छूट हासिल की जा सकती है। मसलन सेक्शन 80सी से सेक्शन 80यू तक जो भी आइटम हैं, उन्हें डिडक्शन के तहत माना जाता है।
ग्रॉस इनकम
टैक्स फ्री आमदनी और भत्तों को छोड़कर आपकी साल की कुल आमदनी जो भी है, उसे ग्रॉस इनकम कहा जाता है। ग्रॉस इनकम हमेशा 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम होती है।
टैक्सेबल इनकम
ग्रॉस इनकम में से 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन क्लेम कर लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं। यानी डिडक्शन से पहले वाली इनकम ग्रॉस इनकम और डिडक्शन के बाद वाली इनकम को टैक्सेबल इनकम कहते हैं।
टीडीएस
आपकी जो भी आमदनी होती है, सरकार उस पर टैक्स काटती है। इसे टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स कहा जाता है। जो संस्था आपको पेमेंट कर रही है, वही टैक्स की इस रकम को काटकर बाकी रकम आपको पे करती है। मसलन आपकी कंपनी आपको जो सैलरी देती है, वह उस पर बनने वाले टैक्स को काटकर बाकी रकम आपके खाते में ट्रांसफर करती है। टीडीएस काटने का काम एंम्प्लॉयर या पेमेंट करने वाली संस्था का है। इसे काटना या जमा करना लेने वाले की जिम्मेदारी नहीं है। आमतौर पर जब कोई संस्था किसी काम के बदले आपको पे करती है, तो वह 10 फीसदी की दर से टीडीएस काटती है।
सीनियर सिटिजन
जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2016 को 60 साल या उससे ज्यादा है, उन्हें सीनियर सिटिजन माना जाएगा।
सुपर सीनियर सिटिजन इसी तरह जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2016 को 80 साल से ज्यादा है, वे सुपर सीनियर सिटिजंस होंगे। आप जिस फाइनैंशल इयर का रिटर्न भर रहे हैं, उसके अंतिम दिन 31 मार्च को उम्र की गणना की जाती है।
इनकम टैक्स रिफंड
अगर किसी टैक्सपेयर ने सरकार को ज्यादा टैक्स दे दिया है, तो वह उस रकम को सरकार से वापस ले सकता है। इस वापस आई रकम को ही रिफंड कहा जाता है। टैक्स रिटर्न भरकर आप इस एक्स्ट्रा रकम को इनकम टैक्स विभाग से क्लेम करते हैं। इसके बाद रिफंड की यह रकम आपको इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपके अकाउंट में भेज दी जाती है।
फॉर्म 26 AS
फॉर्म 26एएस एक कंसॉलिडेटेड टैक्स स्टेटमेंट है। इसमें खासतौर से तीन तरह के ब्योरे होते हैं। पहला टीडीएस का ब्योरा, दूसरा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का ब्योरा और तीसरा टैक्सपेयर द्वारा बैंक में जमा कराया गया एडवांस टैक्स/सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ब्योरा। फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा कराया भी है या नहीं। इस टीडीएस का ब्योरा आप दो तरह से देख सकते हैं। पहले incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं। अगर आप पिछले सालों में रिटर्न भर चुके हैं तो आपके पास यूजर नेम और पासवर्ड होगा। इसी से लॉग-इन करें। अगर पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो Register Yourself पर जाकर रजिस्टर करें। वैसे यूजर नेम आपका पैन नंबर होता है और पासवर्ड आप खुद जेनरेट करेंगे। लॉग-इन करने के बाद View Form 26 AS पर क्लिक करें। अगर आप नेट बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं तो बैंक की वेबसाइट पर जाकर View Your Tax Credit पर क्लिक करके फॉर्म 26 एएस देख सकते हैं, लेकिन इससे केवल उस बैंक में चल रही आपकी एफडी, सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज आदि का ही पता चलेगा।
फॉर्म 16 A
अगर सैलरी के साथ-साथ दूसरे जरियों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। इस सर्टिफिकेट को ही फॉर्म 16ए कहा जाता है। यहां हम रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम की बात कर रहे हैं। एफडी के मामले में आपका बैंक आपको यह सर्टिफिकेट देगा।
फॉर्म 16
अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तो आपका एम्प्लॉयर आपको एक फॉर्म 16 देता है। यह फॉर्म अब तक आपके एम्प्लॉयर ने आपको दे दिया होगा। यह इस बात को साबित करता है कि एम्प्लॉयर ने आपकी सैलरी से अगर टैक्स बनता है, तो टीडीएस काटा है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक हर एम्प्लॉयर के लिए जरूरी है कि वह फॉर्म 16 अपने कर्मचारियों को दे। अगर आपका एम्प्लॉयर आपको यह फॉर्म नहीं दे रहा है तो आप इसकी रिक्वेस्ट उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजें और इसका सबूत अपने पास रखें। इनकम टैक्स विभाग के पूछताछ करने पर यह सबूत दिखाया जा सकता है।
कैसे भरें इनकम टैक्स रिटर्न: इनकम टैक्स रिटर्न: यहां है हर सवाल का जवाब
किसके लिए कौन सा फॉर्म
ITR 1 (Sahaj)
ऐसे इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है: सैलरी या पेंशन एक मकान का किराया। कमर्शल प्रॉपर्टी से आ रहे किराये को भी इसी में माना जाएगा ब्याज
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
आपको एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी से आमदनी होती हो।
कोई फॉरेन इनकम या असेट हो।
कैपिटल गेंस हुआ हो।
5000 रुपये से ज्यादा की आमदनी खेती से हो।
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी होती हो।
इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज में लॉस दिखाया हो।
जिन लोगों को सैलरी या पेंशन से इनकम होती है और उनके पास एक घर है या कोई घर नहीं है, वे इसे भरेंगे।
ITR 2A
ऐसे टैक्सपेयर्स और एचयूएफ के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है: सैलरी या पेंशन। एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी। दूसरे सोर्स से आमदनी, जिसमें लॉटरी भी शामिल है।
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
कैपिटल गेंस हुआ हो।
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी होती हो।
फॉरेन इनकम या असेट है या विदेशों में ब्याज से आमदनी हुई हो।
ITR 2
ऐसे टैक्सपेयर्स और एचयूएफ के लिए, जिन्हें इन तरीकों से आमदनी होती है :
सैलरी या पेंशन
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
कैपिटल गेंस हुआ हो।
दूसरे सोर्स से आमदनी, लॉटरी समेत
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी
ITR 3
फर्म में ऐसे पार्टनर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
सैलरी या पेंशन
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
कैपिटल गेंस
दूसरे सोर्स से, जिसमें लॉटरी भी शामिल है।
पार्टनरशिप फर्म का प्रॉफिट
इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर
आपके पास सोल प्रॉपराइटरशिप फर्म से इनकम है।
ITR 4
यह फॉर्म ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए है, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
प्रॉपराइटरशिप
प्रफेशन
कमिशन
ITR 4 s
ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
प्रिजम्प्टिव टैक्स रूल के तहत आने वाले बिजनस से
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
5 हजार से ज्यादा की आमदनी खेती से
कमीशन
विदेशी स्रोतों से
ITR v
रिटर्न की ई-फाइलिंग करने वाले सभी टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्होंने :
रिटर्न वेरिफाई करने के लिए डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल नहीं किया है।
रिटर्न को वेरिफाई करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वेरिफिकेशन कोड का इस्तेमाल नहीं किया है।
रिटर्न भरने की आखिरी तारीख
31 जुलाई 2016 - सैलरीड लोगों के लिए रिटर्न भरने की आखिरी तारीख। बिजनस वाले, प्रफेशनलों के लिए यही लास्ट डेट है, बशर्ते आमदनी की ऑडिटिंग न कराते हों। बिजनस में ऑडिटिंग की जरूरत उन्हें है, जिनकी टैक्सेबल इनकम 1 करोड़ से ज्यादा होती है।
30 सितंबर 2016 - असेसमेंट इयर 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने की लास्ट डेट 30 सितंबर उन लोगों, फर्मों और कंपनियों के लिए है, जिनके लिए अपनी सालाना आमदनी की ऑडिटिंग कराना जरूरी होता है।
31 मार्च 2017 - अगर आपका टीडीएस आपकी कंपनी ने काट लिया है और आप पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती तो आप 31 मार्च 2017 तक भी बिना किसी पेनल्टी के टैक्स रिटर्न भर सकते हैं।
किसे भरना है रिटर्न और किसे नहीं
फाइनैंशल इयर 2015-16 के स्लैब के हिसाब से छूट की सीमा 60 साल से कम के पुरुषों और महिलाओं के लिए ढाई लाख रुपये है। 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के बुजुर्गों के लिए यह सीमा तीन लाख रुपये है और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के सुपर सीनियर सिटिजन के लिए 5 लाख तक आमदनी टैक्स-फ्री है।
अगर चैप्टर VI A के इनवेस्टमेंट और ब्याज की छूट लेने से पहले आपकी इनकम इस सीमा से ज्यादा है तो आपको रिटर्न भरना होगा यानी इनवेस्टमेंट पर मिलने वाली छूट के बाद अगर टैक्सेबल इनकम इस लिमिट से कम हो रही है, तो भी रिटर्न भरना होगा। मान लें, आपकी ग्रॉस इनकम 3 लाख रुपये है और उम्र 60 साल से कम है। आपने 80 सी में पीपीएफ और इंश्योरेंस पॉलिसी में 60 हजार रुपये इनवेस्ट कर दिए। इससे आपकी टैक्सेबल इनकम हो गई 2 लाख 40 हजार रुपये। अब यह ढाई लाख की एग्जेंप्शन लिमिट से कम है, लेकिन रिटर्न भरना होगा क्योंकि डिडक्शन से पहले की इनकम तीन लाख है।
ग्रॉस इनकम डिडक्शन से पहले एग्जेंप्शन लिमिट से कम, तो रिटर्न की जरूरत नहीं। मसलन अगर किसी 60 साल से कम उम्र के शख्स की ग्रॉस इनकम 2 लाख 30 हजार रुपये है तो उसे रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है।
डिडक्शंस की लिस्ट
80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी में इन आइटम में छूट मिलती है। इसकी सीमा फाइनैंशल इयर 2015-16 के लिए 1.5 लाख रुपये है।
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड (EPF)
पांच साल की बैंक एफडी
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम
होम लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर दी जाने वाली रकम
लाइफ इंशूरंस पॉलिसी प्रीमियम जो आप चुकाते हैं।
NSC viii इश्यू
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS
सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया इन्वेस्टमेंट
डेढ़ लाख के अलावा
इन आइटमों में भी छूट मिलती है, जो 1.5 लाख की सीमा से अलग है:
80 D : हेल्थ इंशूरंस पॉलिसी का प्रीमियम 15 हजार की सीमा तक।
24 b : होम लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। इसकी सीमा दो लाख रुपये है।
80 E : हायर स्टडीज के लिए लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। कोई सीमा नहीं।
80 G : किसी संस्था को दी जाने वाली डोनेशन।
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