Saturday, August 9, 2014

वेतन को भत्तों में बांट कर कंपनियां कम कर लेती हैं पीएफ देनदारी, होगी जांच

कोटा।  कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने नियोक्ताओं द्वारा वेतन को विभिन्न मदों में बांट देने के मसले से निपटने की तैयारी कर ली है। ईपीएफओ ने अपने 120 से अधिक क्षेत्रीय कार्यालयों को कहा है कि वे ऐसी कंपनियों की जांच करें, जो कर्मचारियों के कुल वेतन के 50 फीसदी या कम राशि पर पीएफ की कटौती कर रही हैं।
 नियोक्ता अक्सर कर्मचारियों के कुल वेतन को अलग-अलग भत्तों आदि में बांट देते हैं, ताकि उनकी पीएफ देनदारी कम हो जाए। इस कोशिश में नियोक्ता अपने कर्मचारियों की टेक होम सैलरी भी बढ़ा देते हैं। ध्यान रहे कि किसी कर्मचारी के मूल वेतन (बेसिक वेजेज) के आधार पर उसका पीएफ काटा जाता है।
 क्या है नियम
 मौजूदा नियम यह है कि पीएफ में योगदान के लिए किसी कर्मचारी के मूल वेतन का 12 फीसदी कर्मचारी से लिया जाता है, जबकि इतनी ही राशि का योगदान नियोक्ता की ओर से भी लिया जाता है।  
 कहां गड़बड़ी करते हैं नियोक्ता
 ईपीएफओ को ऐसी जानकारियां मिली हैं जहां कर्मचारियों के कुल वेतन को नियोक्ताओं ने इस तरह विभाजित किया है कि उनकी पीएफ देनदारी घट जाए। 
क्या है आदेश
 ईपीएफओ के एक आदेश में कहा गया है, ‘क्षेत्रीय कार्यालयों के सभी प्रमुखों को यह निर्देश दिया गया है वे उन सभी संस्थानों की जांच करें जहां कुल वेतन के 50 फीसदी या उससे कम राशि के आधार पर पीएफ काटा गया है।’आदेश में कहा गया है कि यह जांच 31 अगस्त 2014 तक पूरी कर ली जानी चाहिए। ईपीएफओ मुख्यालय ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों से कहा है कि वे इस बारे में अपनी रिपोर्ट 7 सितंबर 2014 तक पेश कर दें।
क्या कहता है एक्ट
 इम्प्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड एंड मिसलेनियस प्रॉविजन्स एक्ट 1952 के सेक्शन 2 (बी) के तहत पीएफ कटौती के लिहाज से मूल वेतन में उन सभी लाभों को शामिल किया जाता है जो कोई कर्मचारी अपनी ड्यूटी के दौरान हासिल करता है। हालांकि इस सेक्शन में आगे यह भी कहा गया है कि फूड कन्सेशन की कैश वैल्यू, डियरनेस अलाउंस, हाउस रेंट अलाउंस, ओवरटाइम अलाउंस, बोनस, कमीशन या इसी तरह का अन्य अलाउंस और नियोक्ता की ओर से दिया गया गिफ्ट उस कर्मचारी के मूल वेतन में शामिल नहीं होता।
 नवंबर 2012 में जारी की थी अधिसूचना
 ईपीएफओ ने इस संबंध में इससे पहले नवंबर 2012 में वेतन आपस में जोडऩे के लिए अधिसूचना जारी की थी, लेकिन बाद में इसे स्थगित कर दिया गया था। नवंबर 2012 की इस अधिसूचना में कहा गया था, ‘ऐसे सभी भत्ते, जो कर्मचारियों को सामान्यतः, अनिवार्यतः और एकसमान तरीके से अदा किए जाते हैं, मूल वेतन माने जाने चाहिए।’    
 

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