Wednesday, January 18, 2017

आधार ऐप से भुगतान पर कारोबारी कमा सकेंगे कमीशन

डिजिटल लेनदेन के लिए मोबाइल आधारित आधार ऐप इस्तेमाल करने वाले कारोबारियों को सौदे के मूल्य का 1 फीसदी तक कमीशन मिल सकता है। भारतीय विशिष्टï पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) बैंकों और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस दिशा में काम कर रहा है। यूआईडीएआई का मानना कि आधार इनेबल्ड भुगतान प्रणाली (एईपीएस) अगले कुछ महीनों में शुरू हो सकती है, जिसमें लेनदेन के लिए डेबिट कार्ड और ई-वॉलेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे उलट सभी तरह के डिजिटल भुगतान में कारोबारियों को तकनीक के इस्तेमाल के लिए शुल्क या कमीशन का भुगतान करना होता है।
 यूआईडीएआई के मुख्य कार्याधिकारी अजय भूषण पांडे ने कहा, 'आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में फिलहाल जनवितरण प्रणाली में आधार आधारित प्रणाली का इस्तेमाल किया जा रहा है। हम हरियाणा सरकार के साथ भी इस पर बात कर रहे हैं। हम बैंकों को भी पंजीकृत कर रहे हैं ताकि वे आधार आधारित भुगतान स्वीकार करना शुरू कर सकें। दो बैंक इस पर पहले ही सहमति जता चुके हैं। कारोबारियों को बैंकों के साथ जोडऩे का काम अगले कुछ हफ्तों में पूरा हो जाएगा।'
अपना आधार नंबर देना होगा 

 इस प्रणाली के लागू होने से पारंपरिक स्वाइप मशीनों के इस्तेमाल से जुड़े सभी तरह के शुल्क खत्म हो जाएंगे। इस प्रणाली के तहत यूआईडीएआई कारोबारियों और कारोबारी कॉरस्पॉन्डेंट को सूचीबद्घ करेगी। उसके बाद कारोबारी लेनदेन के लिए बायोमेट्रिक उपकरण से जुड़े अपने फोन का इस्तेमाल कर सकेंगे। इसके लिए ग्राहक को पासवर्ड के तौर पर अपना आधार नंबर देना होगा और सत्यापन के लिए फोन से जुड़े बायोमेट्रिक रीडर पर उंगली की छाप देनी होगी। इस प्रणाली को व्यापक तौर पर स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार सभी बचत बैंक खातों को आधार नंबर से जोडऩे के लिए एक सख्त समयसीमा तय कर सकती है।
 ग्राहक जब भी एईपीएस के माध्यम से लेनदेन करेगा, संबंधित कारोबारी को बैंक के बिजनेस कॉरस्पॉन्डेंट की तरह ही कमीशन प्राप्त होगा। अलग-अलग बैंक अपने बिजनेस कॉरस्पॉन्डेंट को उनके प्रदर्शन के आधार पर प्रोत्साहन देते हैं। उदाहरण के लिए विदर्भ कोंकण ग्रामीण बैंक बिजनेस कॉरस्पॉन्डेंट को हर नया खाता खुलवाने पर 10 रुपये देता है। अगर कोई स्वाइप मशीन के जरिये पैसे जमा कराता है तो कॉरस्पॉन्डेंट को 0.5 फीसदी कमीशन मिलता है। पांडे ने कहा, 'कारोबारी भी अब बिजनेस कॉरस्पॉन्डेंट की तरह काम करेंगे। ऐसे में उन्हें भी प्रोत्साहन का भुगतान किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि समय के साथ ऐसे कारोबारियों की संख्या बढऩे पर बैंकिंग कॉरस्पॉन्डेंट की जरूरत कम हो जाएगी।
 नकद लेनदेन की लागत भी कम होगी
यूआईडीएआई के कारोबारी मॉडल का सीधा अर्थ है कि बैंकिंग प्रणाली पर मोबाइल के माध्यम से आधार आधारित भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन देने का बोझ बढ़ेगा। हालांकि दूसरी ओर उन्हें अन्य डिजिटल लेनदेन से कमाई होगी। लेकिन पांडे ने कहा कि यूआईडीएआई बैंकों को यह समझा रहे हैं कि यह कमीशन कॉरस्पॉन्डेंट को दिए जाने वाले मौजूदा कमीशन की तरह ही होगा और नकद लेनदेन की लागत भी कम होगी।
 स्वाइप मशीन (पीओएस) के शुल्क ढांचे के तहत कारोबारियों को कार्ड से लेनदेन पर लागत वहन करना होता है। थर्ड पार्टी के पीओएस सेवा प्रदाता से कई तरह के शुल्क जुड़े होते हैं। स्वाइप मशीनों की आमतौर पर बिक्री नहीं होती है बल्कि इसे बैंकों या थर्ड पार्टी वेंडर द्वारा किराये पर दिया जाता है। कुछ बैंक दो वर्षों तक पोर्टेबल पीओएस मशीन के लिए हर महीने 400 रुपये का किराया वसूलते हैं। कुछ बैंक 'कमिटमेंट चार्ज' के रूप में भी शुल्क वसूलते हैं। ये शुल्क उन कारोबारियों के लिए अतिरिक्त बोझ का सबब बन सकते हैं, जिनकी बिक्री कम है। कम बिक्री वाले कारोबारियों को ऊंचा 'कमिटमेंट चार्ज' चुकाना पड़ता है। हालांकि विभिन्न वेंडरों और बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा से यह लागत घटती जा रही है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और अन्य सरकारी बैंक थर्ड पाटी वेंडरों के मुकाबले ज्यादा उदार शर्तों पर मशीनें मुहैया कराते हैं। उदाहरण के लिए एसबीआई का दावा है कि वह किसी भी कारोबारी से एकबारगी लिया जाने वाला इंस्टॉलेशन चार्ज नहीं वसूलता है।
  पीओएस मशीन इस्तेमाल की लागत

पीओएस मशीन इस्तेमाल करने की अंतिम लागत मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) है। यह वह शुल्क है जो बैंकों द्वारा विक्रेता से मशीन में कार्ड स्वाइप किए जाने के लिए वसूला जाता है। आमतौर पर बैंक उस स्थिति में कम शुल्क वसूल करते हैं, जब उनका ही डेबिट कार्ड उनकी पीओएस मशीनों में इस्तेमाल किया जाता है। 1 जनवरी से पहले ये शुल्क 2,000 रुपये तक के लेनदेन पर इस लेनदेन की कीमत के 0.75 फीसदी थे। वहीं, 2,000 रुपये के लेनदेन से ऊपर विक्रेता से लेनदेन की कीमत का 1 फीसदी शुल्क वसूला जाता था। विदेशी कार्डों पर दोगुना शुल्क वसूला जाता था, जबकि क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर शुल्क 1.5 फीसदी वसूला जाता था। यह शुल्क या तो व्यापारी वहन करता था या इसका बोझ ग्राहक को उठाना पड़ता था।
 नोटबंदी के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 16 दिसंबर 2016 को एक अधिसूचना जारी कर एमडीआर के अतिरिक्त नियम जारी किए थे। इस साल 1 जनवरी से 31 मार्च तक 1,000 रुपये तक के लेनदेन पर एमडीआर 0.25 फीसदी कर दिया गया है। अन्य लेनदेन पर शुल्क की वसूली पूर्ववत होगी। एमडीआर की दर की अधिकतम सीमा 1 फीसदी तय कर दी गई है। यह साफ है कि विभिन्न शुल्कों से कारोबारी पर एक अहम राशि का बोझ बढ़ता है, जिसके पास इसे खुद वहन करने या ग्राहक पर डालने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है। आरबीआई के अनुसार डेबिट कार्डों के जरिये पीओएस पर होने वाले लेनदेन नवंबर 2016 में 31,600 करोड़ रुपये पर पहुंच गए। 


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