दिनेश माहेश्वरी
कोटा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को रेट्स तय करने में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इंट्रेस्ट रेट्स पर आरबीआई के फैसले पर कमर्शल बैंक बहुत ही मुश्किल से अमल करते हैं। अब तक आरबीआई के लगभग सभी गवर्नर इन चुनौतियों का सामना करते आए हैं। हाल ही में आरबीआई के मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा था कि देश में योग्य इकॉनमिस्ट की कमी है। इसके अलावा रिसर्च के लिए आवश्यक आधारिक संरचना की कमी भी बहुत बड़ी चुनौती बनती है जबकि रिसर्च आरबीआई के लिए काफी अहमियत रखता है।
इस अहम काम में अब आरबीआई का हाथ बंटाने का काम अनुभवी और प्रसिद्ध इकॉनमिस्ट प्राची मिश्रा करेंगी। पटना में जन्मीं 40 वर्षीय प्राची मिश्रा अपने अनुभवों के आधार पर कुछ नए प्रयोग के साथ आरबीआई में रिसर्च को नई दिशा देंगी। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा प्राची मिश्रा पहले इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड की इकॉनमिस्ट भी रह चुकी हैं।
एक इंटरव्यू में मिश्रा ने ईटी को बताया, 'हमारी रिसर्च डेटा और साक्ष्य पर निर्भर होगी। मैं अपनी टीम में इस चीज की आदत डाल रही हूं।' उन्होंने बताया, 'मुझे रिसर्च की कुछ खास प्रैक्टिसेज का इस्तेमाल करके उन विषयों पर रिसर्च करना ही मेरा मुख्य कार्य है जो पॉलिसी निर्माण के लिए आरबीआई के काम आ सकता है।'
महंगाई दर और मॉनिटरी ट्रांसमिशन के अध्ययन में वह आरबीआई का मार्गदर्शन करेंगी। वह भारत के सेंट्रल बैंक में रिसर्च में अपनी अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके इसे नई दिशा देंगी। सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट पर जो ऐक्शन लेता है उस पर कमर्शल बैंक अमल नहीं करते हैं। आरबीआई के लिए यह बहुत बड़ी समस्या है। उम्मीद है कि प्राची इस दिशा में आरबीआई का सहयोग करेंगी जिससे सेंट्रल बैंक को इस समस्या का समाधान निकालने में मदद मिलेगी।
मिश्रा की इकॉनमिस्ट बनने की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प है। उनके परिवार के ज्यादातर लोग मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं। उनके घर के लोग नहीं चाहते थे कि वह इकनॉमिक्स की पढ़ाई करे। इसके अलावा उन्होंने सिविल सर्विसेज परीक्षा भी नहीं दी जबकि बिहार से संबंध रखने वाले परिवार के बीच में सिविल सर्विसेज की एक खास पोजिशन है। लेकिन इकनॉमिक्स में उनकी गहरी दिलचस्पी ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। उन्होंने अपने रिसर्च स्किल्स से राजन को प्रभावित कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि अप्रत्याशित रूप से उनको आरबीआई के मॉनिटरी पॉलिसी डिपार्टमेंट में हायर किया गया।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से कोलम्बिया और वहां से आईएमएफ तक फेलोशिप की एक लम्बी श्रंखला के दौरान उनकी सलाहियत का लोहा माना गया। उनको पॉलिटिकल इकॉनमी, इंटरनैशनल ट्रेड ऐंड एक्सचेंज रेट्स में इनोवेटिव रिसर्च के लिए आईएमएफ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
बेन बरनांक को पढ़ाने वाले स्टैनली फिशर, फेडरल रिजर्व के मौजूदा चेयरमैन और कोलम्बिया के डोनाल्ड डेविस जैसी दुनिया की बड़ी से बड़ी हस्तियों के साथ काम कर चुकीं प्राची के अगर जीवन की बात की जाए तो वह बहुत सादगी पसंद हैं। स्ट्रीड फूड जैसे पानी पुरी और वडा पाव उनका मनपसंद व्यंजन हैं।
कोटा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को रेट्स तय करने में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इंट्रेस्ट रेट्स पर आरबीआई के फैसले पर कमर्शल बैंक बहुत ही मुश्किल से अमल करते हैं। अब तक आरबीआई के लगभग सभी गवर्नर इन चुनौतियों का सामना करते आए हैं। हाल ही में आरबीआई के मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा था कि देश में योग्य इकॉनमिस्ट की कमी है। इसके अलावा रिसर्च के लिए आवश्यक आधारिक संरचना की कमी भी बहुत बड़ी चुनौती बनती है जबकि रिसर्च आरबीआई के लिए काफी अहमियत रखता है।
इस अहम काम में अब आरबीआई का हाथ बंटाने का काम अनुभवी और प्रसिद्ध इकॉनमिस्ट प्राची मिश्रा करेंगी। पटना में जन्मीं 40 वर्षीय प्राची मिश्रा अपने अनुभवों के आधार पर कुछ नए प्रयोग के साथ आरबीआई में रिसर्च को नई दिशा देंगी। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा प्राची मिश्रा पहले इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड की इकॉनमिस्ट भी रह चुकी हैं।
एक इंटरव्यू में मिश्रा ने ईटी को बताया, 'हमारी रिसर्च डेटा और साक्ष्य पर निर्भर होगी। मैं अपनी टीम में इस चीज की आदत डाल रही हूं।' उन्होंने बताया, 'मुझे रिसर्च की कुछ खास प्रैक्टिसेज का इस्तेमाल करके उन विषयों पर रिसर्च करना ही मेरा मुख्य कार्य है जो पॉलिसी निर्माण के लिए आरबीआई के काम आ सकता है।'
महंगाई दर और मॉनिटरी ट्रांसमिशन के अध्ययन में वह आरबीआई का मार्गदर्शन करेंगी। वह भारत के सेंट्रल बैंक में रिसर्च में अपनी अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके इसे नई दिशा देंगी। सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट पर जो ऐक्शन लेता है उस पर कमर्शल बैंक अमल नहीं करते हैं। आरबीआई के लिए यह बहुत बड़ी समस्या है। उम्मीद है कि प्राची इस दिशा में आरबीआई का सहयोग करेंगी जिससे सेंट्रल बैंक को इस समस्या का समाधान निकालने में मदद मिलेगी।
मिश्रा की इकॉनमिस्ट बनने की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प है। उनके परिवार के ज्यादातर लोग मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं। उनके घर के लोग नहीं चाहते थे कि वह इकनॉमिक्स की पढ़ाई करे। इसके अलावा उन्होंने सिविल सर्विसेज परीक्षा भी नहीं दी जबकि बिहार से संबंध रखने वाले परिवार के बीच में सिविल सर्विसेज की एक खास पोजिशन है। लेकिन इकनॉमिक्स में उनकी गहरी दिलचस्पी ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। उन्होंने अपने रिसर्च स्किल्स से राजन को प्रभावित कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि अप्रत्याशित रूप से उनको आरबीआई के मॉनिटरी पॉलिसी डिपार्टमेंट में हायर किया गया।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से कोलम्बिया और वहां से आईएमएफ तक फेलोशिप की एक लम्बी श्रंखला के दौरान उनकी सलाहियत का लोहा माना गया। उनको पॉलिटिकल इकॉनमी, इंटरनैशनल ट्रेड ऐंड एक्सचेंज रेट्स में इनोवेटिव रिसर्च के लिए आईएमएफ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
बेन बरनांक को पढ़ाने वाले स्टैनली फिशर, फेडरल रिजर्व के मौजूदा चेयरमैन और कोलम्बिया के डोनाल्ड डेविस जैसी दुनिया की बड़ी से बड़ी हस्तियों के साथ काम कर चुकीं प्राची के अगर जीवन की बात की जाए तो वह बहुत सादगी पसंद हैं। स्ट्रीड फूड जैसे पानी पुरी और वडा पाव उनका मनपसंद व्यंजन हैं।
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