Thursday, December 29, 2016

डिजिटल पेमेंट में गड़बड़ी हुई तो कौन करेगा गौर?

जब से केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी का ऐलान किया है तभी से नकदरहित लेनदेन पर सभी को जोर नजर आ रहा है और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई)भी सुर्खियों में है। नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी अमिताभ कांत ने यूपीआई दुनिया की सबसे आसान भुगतान प्रणालियों में से एक करार दिया है। इसमें आपको बहुत कुछ झंझट भी नहीं करना पड़ता है। आपको जिसे भुगतान करना है या जिसके पास रकम भेजनी है, उसके आधार क्रमांक यानी आभासी पेमेंट एड्रेस की जरूरत पड़ती है। यह पता लगने के बाद आपको केवल अंगूठा टिकाना होगा और आप अपने बैंक खाते तक भी पहुंच जाएंगे तथा दूसरे पक्ष को रकम भी भेज पाएंगे। इसमें सबसे अच्छी और खास बात यह है कि बैंक की खाता संख्या और आईएफएससी कोड जैसी तमाम बातें याद रखने की आपको कोई जरूरत नहीं है। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि यह प्रक्रिया कितनी आसान है।
 वाकई यह बहुत आसान है, लेकिन बैंक और ग्राहक कुछ बातों को लेकर चिंतित रहते ही हैं। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधती भट्टाचार्य ने एक टेलीविजन चैनल को पिछले दिनों दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अभी यह बात स्पष्टï नहीं है कि अगर लेनदेन पूरा नहीं हो पाता है तो उसकी शिकायत किस बैंक से की जाएगी और उसे सुलझाने का जिम्मा किसका होगा। हालांकि यूपीआई के जरिये लेनदेन में 8 नवंबर के बाद से जबरदस्त इजाफा हुआ है। जिस दिन प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था, उस दिन यूपीआई से 3,721 लेनदेन हुए थे, लेकिन 7 दिसंबर को इसके जरिये 48,238 लेनदेन किए गए। इस तरह महज एक महीने के अंदर लेनदेन में 1,196 फीसदी का इजाफा हुआ। फिर भी कई लोगों को इस पर भरोसा नहीं है।
 कौन निपटाएगा शिकायत
 यूपीआई के जरिये लेनदेन में चार पक्ष शामिल हो सकते हैं: दो पक्ष तो ऐप तैयार करने वाले होंगे (एक रकम भेजने वाले के फोन में मौजूद ऐप बनाने वाला और दूसरा पाने वाले का ऐप बनाने वाला), तीसरा वह बैंक, जिससे रकम भेजी जानी है और चौथा वह बैंक, जिसमें रकम आनी है। यूपीआई में व्यक्ति किसी बैंक का ग्राहक बने बगैर ही उसके ऐप का इस्तेमाल कर सकता है और किसी दूसरे बैंक के खाते को उससे जोड़ सकता है। लेकिन यदि लेनदेन विफल रहता है तो वह रकम भेजने वाले के खाते में वापस नहीं आती है। ऐसे में उसे अपने बैंक के पास ही शिकायत करनी होगी।
 बैंकरों का कहना है कि अभी किसी भी पक्ष को यह नहीं पता होता कि समस्या किस जगह है और रकम खुद-ब-खुद वापस आने की कोई व्यवस्था भी अभी नहीं है। एक बैंकर कहते हैं, 'फिलहाल नैशनल पेमेंट्ïस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) अधिकारी इन दिक्कतों को सुलझान में मदद करते हैं, लेकिन अभी लेनदेन की संख्या भी बहुत कम है। जब रोजाना कई लाख लेनदेन होंगे तो शिकायतों का निपटारा करना एनपीसीआई के लिए भी मुश्किल होगा और बैंक कर्मचारियों के लिए भी।' उस सूरत में ग्राहकों को खुद ही बैंक से बार-बार संपर्क करना होगा।
 कैसे हो निपटारा
 जैसे ही रकम भेजने वाले के खाते से किसी लेनदेन की शुरुआत की जाती है तो उसकी सूचना एनपीसीआई के सर्वर पर पहुंच जाती है। वहां से वह सूचना रकम पाने वाले के बैंक तक जाती है। कभी कभार ऐसा भी होता है कि दूसरे बैंक से लेनदेन की पुष्टि होने से पहले ही उसके लिए निर्धारित समय पूरा हो जाता है यानी टाइम आउट हो जाता है, लेकिन रकम पाने वाले के खाते में पहुंच जाती है। उस सूरत में रकम भेजने वाले के पास तो लेनदेन विफल रहने का संदेश आता है यानी उसके बैंक खाते से रकम नहीं निकली होती है, लेकिन दूसरे बैंक को रकम मिल चुकी है। ऐसे में मामला सुलझाने के लिए दोनों बैंकों को मिलकर काम करना होगा और रकम भेजने वाले या पाने वाले के खाते से उक्त रकम निकालनी होगी। लेकिन मामला तब पेचीदा हो जाता है, जब रकम पाने वाला पैसा आते ही उसे किसी और खाते में भेज देता है या निकाल लेता है। इसीलिए बैंकों ने एनपीसीआई से अनुरोध किया है कि प्राप्तकर्ता बैंक से पहले यह पुष्टिï की जाए कि रकम वहां पहुंची है या नहीं और उसके बाद ही लेनदेन पूरा होने या नाकाम रहने का संदेश भेजा जाए।
 प्रक्रिया से परेशानी
 कुछ बैंकों को लेनदेन की शुरुआत करने वाली प्रक्रिया से परेशानी होती है। इस प्रक्रिया में डेबिट कार्ड संख्या के आखिरी 6 अंक और उसकी एक्सपायरी डेट की जरूरत होती है। बैंकों का कहना है कि यह विवरण बेहद आसानी से प्राप्त होता है क्योंकि लोग खरीदारी करते वक्त पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों पर अपने कार्ड सौंप देते हैं। बैंकों ने एनपीसीआई से कहा है कि साइन अप करते वक्त ग्राहकों से अपने कार्ड की निजी पहचान संख्या (पिन) भी डालने के लिए कहा जाए।

0 comments:

Post a Comment