मोदी सरकार ने आर्थिक सुधारों को रफ्तार देने के लिए एक बार फिर अध्यादेश का सहारा लिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी गई। मालूम हो कि देश में एक लाख करोड़ से अधिक के प्रॉजेक्ट जमीन अधिग्रहण की दिक्क्तों के कारण अटके पड़े हैं। नए अद्यादेश में अब भूमि अधिग्रहण कानून में 80 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फैसले की जानकारी देते हुए दावा किया कि इस बदलाव से किसानों और उद्योग जगत दोनों को फायदा होगा। ज्यादा किसानों को लाभ मिल सकेगा, वहीं अनावश्यक प्रक्रिया को हटाने से विकास से जुड़े प्रॉजेक्टों को जल्द मंजूरी मिल सकेगी।
किसानो की सहमति और मुआवजे जैसे प्रावधानों में बदलाव नहीं किया गया है। प्राइवेट कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहण में अब भी 80 पर्सेंट किसानों की सहमति जरूरी होगी। वहीं पीपीपी प्रोजेक्टों के लिए 70 फीसदी किसानों की सहमति लेनी होगी।
मुआवजे की शर्त में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। नए नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद प्रभावी हो जाएंगे। हालांकि छह महीने के अंदर इन्हें संसद से मंजूरी लेनी होगी।
5 क्षेत्रों को छूट : दूसरे बड़े बदलाव में सरकार ने 5 अन्य क्षेत्रों के लिए जमीन अधिग्रहण पर जमीन मालिकों की इजाजत लेने और सामाजिक असर पड़ने जैसी जांच करवाने की अनिवार्यता खत्म कर दी है। इनमें सैन्य मकसद के लिए अधिग्रहण, गांवों की इन्फ्रास्ट्रक्चर स्कीम, सस्ते व गरीबों के लिए हाउसिंग प्रॉजेक्ट, बिजली व पब्लिक प्राइवेट प्रॉजेक्टों (पीपीपी) के तहत चुने गए इंडिस्ट्रयल कॉरिडोर या अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण शामिल हैं।
13 प्रॉजेक्ट भी दायरे में : पहले के प्रावधानों के अनुसार रेलवे, नैशनल हाइवे, मेट्रो रेल, एटमिक एनर्जी और बिजली जैसे 13 सेंट्रल गवर्नमेंट प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण पर मौजूदा कानून लागू नहीं होता था। अब इन प्रोजेक्टों को भी मौजूदा जमीन अधिग्रहण कानून के दायरे में ला दिया गया है। जेटली ने तर्क दिया कि इससे इन प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण होने पर किसानों को ज्यादा मुआवजा मिल सकेगा, पुनर्वास जरूरी होगा लेकिन इससे किसानों की सहमति को नहीं जोड़ा गया है।
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फैसले की जानकारी देते हुए दावा किया कि इस बदलाव से किसानों और उद्योग जगत दोनों को फायदा होगा। ज्यादा किसानों को लाभ मिल सकेगा, वहीं अनावश्यक प्रक्रिया को हटाने से विकास से जुड़े प्रॉजेक्टों को जल्द मंजूरी मिल सकेगी।
किसानो की सहमति और मुआवजे जैसे प्रावधानों में बदलाव नहीं किया गया है। प्राइवेट कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहण में अब भी 80 पर्सेंट किसानों की सहमति जरूरी होगी। वहीं पीपीपी प्रोजेक्टों के लिए 70 फीसदी किसानों की सहमति लेनी होगी।
मुआवजे की शर्त में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। नए नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद प्रभावी हो जाएंगे। हालांकि छह महीने के अंदर इन्हें संसद से मंजूरी लेनी होगी।
5 क्षेत्रों को छूट : दूसरे बड़े बदलाव में सरकार ने 5 अन्य क्षेत्रों के लिए जमीन अधिग्रहण पर जमीन मालिकों की इजाजत लेने और सामाजिक असर पड़ने जैसी जांच करवाने की अनिवार्यता खत्म कर दी है। इनमें सैन्य मकसद के लिए अधिग्रहण, गांवों की इन्फ्रास्ट्रक्चर स्कीम, सस्ते व गरीबों के लिए हाउसिंग प्रॉजेक्ट, बिजली व पब्लिक प्राइवेट प्रॉजेक्टों (पीपीपी) के तहत चुने गए इंडिस्ट्रयल कॉरिडोर या अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण शामिल हैं।
13 प्रॉजेक्ट भी दायरे में : पहले के प्रावधानों के अनुसार रेलवे, नैशनल हाइवे, मेट्रो रेल, एटमिक एनर्जी और बिजली जैसे 13 सेंट्रल गवर्नमेंट प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण पर मौजूदा कानून लागू नहीं होता था। अब इन प्रोजेक्टों को भी मौजूदा जमीन अधिग्रहण कानून के दायरे में ला दिया गया है। जेटली ने तर्क दिया कि इससे इन प्रोजेक्टों के लिए जमीन अधिग्रहण होने पर किसानों को ज्यादा मुआवजा मिल सकेगा, पुनर्वास जरूरी होगा लेकिन इससे किसानों की सहमति को नहीं जोड़ा गया है।