Thursday, April 10, 2014

भारतीय बैंक क्राइसिस झेलने लायक नहीं

कोटा। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) ने वॉर्निंग दी है कि भारतीय बैंकों के पास अचानक लॉस सहने के लिए पर्याप्त फंड नहीं है। उसने कहा है कि क्रेडिट क्वॉलिटी खराब होने पर बैंकों को अपने इक्विटी कैपिटल का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। आईएमएफ ने बुधवार को जारी ग्लोबल फाइनैंशल स्टेबिलिटी रिपोर्ट (जीएफएसआर) में कहा कि अन्य देशों के बैंकों के मुकाबले भारतीय बैंकों ने बैड असेट्स को कवर करने के लिए प्रॉफिट में से पर्याप्त रकम अलग नहीं रखी है। 
रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत, हंगरी, इंडोनेशिया, मलयेशिया और दक्षिण अफ्रीका में डिफॉल्ट के लिए कम प्रोविजनिंग की गई है यानी कम पैसा अलग से रखा गया है। इसका मतलब यह है कि अगर इन बैंकों का बैड लोन बढ़ता है, तो बैंकों को अपने इक्विटी कैपिटल का इस्तेमाल करना पड़ सकता है।'
ज्यादातर देश अब बेसेल 3 नॉर्म्स के मुताबिक, मिनिमम 6 फीसदी टीयर 1 कैपिटल रखते हैं। हालांकि संबंधित प्रोविजनिंग की वजह से उनके नुकसान सहने की क्षमता अलग-अलग है। रिपोर्ट में बताया गया है, 'भारत और हंगरी में बैंकों के पास डिफॉल्ट को सहने की क्षमता सबसे कम है। उसकी वजह कम प्रोविजनिंग है। इसके बाद चिली और रूस का नंबर आता है। हालांकि, इन दोनों देशों में भी बेसेल 3 नॉर्म्स लागू हैं।'
भारतीय इकॉनमी पर एक्सचेंज रेट और फॉरेन करेंसी रिस्क का ज्यादा असर पड़ता है। इसका मतलब है कि अगर डोमेस्टिक करेंसी में बड़ी गिरावट आती है, तो इकॉनमी प्रेशर में आ सकती है। हालांकि ज्यादातर इमर्जिंग देशों के साथ भी ऐसा ही होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 'ग्लोबल इकॉनमी की मुश्किलें बढ़ने से करेंसी की वैल्यू कम होती है तो विदेशी लोन पर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है। करेंसी की वैल्यू कम होने के चलते असल लोन की रकम भी बढ़ जाती है। विदेशी लोन लेने वाले बैंकों की इससे प्रॉफिटेबिलिटी और कम हो जाएगी। फॉरेन एक्सचेंज लॉस से भारत, इंडोनेशिया और तुर्की में अर्निंग्स 20-30 फीसदी कम हो सकती हैं।' इस तरह के लोन के लिए नेचुरल हेजिंग होती है। आईएमफ ने नेचुरल हेजिंग के असर को आंकने की भी जरूरत बताई है। उसका कहना है, 'हेजेज के असर पर सावधानी से विचार करना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में स्लोडाउन के दौरान नेचुरल हेजेज उम्मीदों से कम रहे थे क्योंकि विदेश से मिलने वाला रेवेन्यू करेंसी में डेप्रिसिएशन जितनी ही गिरा थी।' रिपोर्ट में कहा गया है कि फाइनैंशल स्टेबिलिटी एडवांस्ड इकॉनमी में मजबूत हुई है, लेकिन मॉनेटरी पैकेज को वापस लेने से इमर्जिंग इकॉनमी को मुश्किलें हो सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 'अमेरिका में मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव का दुनिया भर में असर हो रहा है। इससे कुछ इमर्जिंग देशों के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।'

0 comments:

Post a Comment