Tuesday, May 13, 2014

ये 5 बातें जो बचाएंगी आपके रुपए को डूबने से

कोटा।  बीते साल की फाइनेंशियल प्लानिंग और टैक्स बचत के इंतजामों को जैसे-तैसे 31 मार्च तक निपटाने के बाद ज्यादातर लोगों ने अप्रैल का महीना दौड़भाग के बाद राहत की सांस लेने में ही गुजार दिया होगा।
नए वित्त वर्ष (2014-15) का पहला महीना यूं ही गुजर जाने के बाद अब समय है समय से जाग जाने और इस साल के लिए अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग की पुख्ता योजना बनाने का, ताकि इस साल सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से निपटाया जा सके। अपने पोर्टफोलियो और संपत्ति पर सोच-विचार कर निवेश की योजना बनाने के लिए यह उपयुक्त समय है। शुरुआत में ही योजना बना लेने से आपको जहां अपने निवेश पर रिटर्न कमाने में मदद मिलेगी, वहीं वित्त वर्ष के आखिर में कर बचत के उपायों के लिए इधर-उधर चक्कर काटने से भी आप बचे रहेंगे।
कौन सी स्कीम में करें निवेश?
निवेश की सालाना प्लानिंग को लेकर इस साल एक सबसे अहम सवाल यह उठ रहा है कि नई सरकार द्वारा आम बजट पेश किए जाने से पहले अभी ही निवेश की प्लानिंग शुरू कर देना कहां तक उचित होगा? इसके अलावा सके अलावा इस साल पुराने आयकर कानून की जगह बहु प्रतीक्षित प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के भी पारित होने की संभावना है।

इसमें आयकर स्लैम और करछूट संबंधी प्रावधानों में कई बड़े बदलाव होने की उम्मीद है। ऐसे में क्यों न फाइनेंशियल प्लानिंग को फिलहाल टाले रखा जाए? इस बारे में फाइनेंशियल प्लानरों का कहना है कि निवेशकों को इसके दूसरे पहलू पर भी गौर करना चाहिए। वह, यह है कि नई सरकार का बजट जुलाई-अगस्त से पहले नहीं आएगा। ऐसे में निवेश को पूरी तरह लटकाए रखने से आपको 4-5 महीने के रिटर्न का नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा।
कैसे बढ़ेगा आपका खजाना?
निवेश विशेषज्ञों का कहना है कि परंपरागत निवेशों पर इन चीजों का बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में सिक्योर्ड इनवेस्टमेंट स्कीमों में निवेश के लिए बजट से पहले भी निवेश करने में कोई खास हर्ज नहीं है।अलबत्ता इससे ऐसा करना आपको अपने निवेश पर करीब आधे वर्ष का रिटर्न गंवाने से बचाए रखेगा।� खुदरा निवेशक आमतौर पर जोखिमों से दूर रहते हुए बांड, राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी), किसान विकास पत्र (केवीपी) सावधि जमा (एफडी), पब्लिक प्राविडेंट फंड (पीपीएफ) व डेट फंड जैसे सुरक्षित माने जाने वाले निवेशों में प्राथमिकता के आधार पर निवेश करते हैं।
प्रोफेशनल सलाह लेकर ही करें निवेश
निवेश पर ज्यादा रिटर्न के लिए जोखिम उठाने से परहेज न करने वाले निवेशकों के लिए मौजूदा समय में अच्छी बात यह है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के बीच इक्विटी बाजार इस समय मजबूत स्थिति में है। चुनाव से पहले की तेजी के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स फरवरी से अप्रैल के बीच 11.5 फीसदी चढ़ा है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का 50 शेयरों वाला निफ्टी सूचकांक इस दौरान 12 फीसदी से ज्यादा उछला है. चुनाव के बाद केंद्र में मजबूत सरकार बनने बढ़ते आसार के बीच भारतीय बाजार के प्रति विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की धारणा काफी मजबूत बनी हुई है। ऐसे में चुनाव के बाद आने वाले महीनों में बाजार में बढ़त का रुख बना रहने के आसार जताए जा रहे हैं। दूसरी ओर कई विशेषज्ञ यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि बाजार काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में आने वाले दिनों में एक बड़ा करेक्शन दिख सकता है। इसके अलावा बाजार पर नई सरकार के बजट का अच्छा खासा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में प्रोफेशनल सलाह लेकर ही इक्विटी में निवेश करने में समझदारी दिखती है। कंसल्टेंट आपको जोखिम भरे सेक्टरों से दूर रखते हुए उन सेक्टरों निवेश के बारे में सलाह दे सकेगा, जिनमें आने वाले दिनों में तेजी की प्रबल संभावना हो और जिनमें पैसा लगाना आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है।
ठोस प्लानिंग के लिए जरूर बनाएं वित्तीय आपात कोष
आपकी आमदनी में अगर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं या नौकरी अगर कम सुरक्षित है तो फाइनेंशियल प्लानिंग के तहत एक ऐसा वित्तीय कोष (कैश रिजर्व) जरूर बनाएं, जिसके सहारे आपात स्थितियों में आपकी जिंदगी सुचारु रूप से चल सके। इसके लिए अपने परिवार के 3 से 6 महीने का खर्च चलाने लायक राशि को अलग जमा करके रखें। इसके अलावा कुछ नकदी भी बचाए रखना जरूरी है, क्योंकि जीवन में कई दफा ऐसी स्थिति पैदा होती है, आपको तत्काल नकदी की जरूरत होती है ऐसे में हाथ में बहुत कम नकदी होने पर आप परेशानी में पड़ सकते हैं। ऐसी हालत में आपका कैश रिजर्व बहुत मददगार साबित होगा।
वित्तीय दायित्वों का रखें पूरा ख्याल
फाइनेंशियल प्लानिंग में अकसर लोग निवेश की तो काफी ठोस योजना तैयार कर लेते हैं, पर अपनी देनदारियों और वित्तीय जिम्मेदारियों की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। यह रवैया परेशानी खड़ी कर सकता है, क्योंकि ऐसे में देनदारियां चुकाने के लिए आपको अपने निवेश को बीच में ही तोड़ना पड़ सकता है।इससे अपने निवेश में आपको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि देनदारियों व वित्तीय दायित्वों का पूरा-पूरा हिसाब लगाने के बाद उससे बची रकम को ही निवेश योजनाओं में लगाया जाए।अगर आप पर क्रेडिट कार्ड जैसी ऊंची लागत वाली देनदारियां हैं, तो सबसे पहले इन्हें चुकाएं, क्योंकि इनपर आपको 50 फीसदी तक का ऊंचा ब्याज चुकाना पड़ सकता है, जबकि निवेश पर केवल 9-10 फीसदी रिटर्न आएगा। इसलिए फाइनेंशियल प्लानिंग करते वक्त� क्रेडिट कार्ड जैसे ऊंचे ब्याज वाले भुगतान को नजरअंदाज करने की भूल कतई न करें।

0 comments:

Post a Comment