कोटा। सिनेमाहॉल में जाकर फिल्म देखना कई लोगों को पसंद नहीं होता, क्योंकि वहां घर की सुविधा और आजादी नहीं होती। लेकिन घर पर फिल्में टीवी की छोटी स्क्रीन पर देखनी पड़ती हैं। इसका एक उपाय है घर में प्रोजेक्टर लगाना। घर में टीवी के मुकाबले प्रोजेक्टर लगाना थोड़ी सी टेढ़ी खीर है। दूरी, सही माउंटिंग, स्टेबिलिटी और सही प्लेसमेंट जैसे कुछ पहलू हैं, जिनके बारे में होम प्रोजेक्टर को सेट करते वक्त सोचना पड़ता है। हम बता रहे हैं घर में प्रोजेक्टर कैसे लगाएं...
कमरे के साइज/दूरी का चुनाव कैसे करें?
आप अगर प्रोजेक्टर खरीदने वाले हैं या आपके पास पहले से प्रोजेक्टर हो, तो उसके मुताबिक आप एक निश्चित दूरी से मिलने वाली इमेज के साइज का आकलन कर सकते हैं। यहां दूरी से मतलब आपके प्रोजेक्टर और दीवार या स्क्रीन के बीच की दूरी से है। प्रोजेक्टर के थ्रो रेशियो में दूरी से भाग देकर आप इमेज साइज निकाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर प्रोजेक्टर स्क्रीन से 10 फुट की दूरी पर रखा गया है और इसका थ्रो रेशियो 1.8 से 2.22 है, तो आपको इमेज साइज 54 इंच से लेकर 66 इंच तक की मिलेगी। इमेज पिक्सलेशन से बचने के लिए यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपके और स्क्रीन के बीच की दूरी इमेज की चौड़ाई से कम से कम दोगुनी होनी चाहिए। बेंक्यू, एप्सन, पैनासोनिक और व्यूसोनिक जैसे कई प्रोजेक्टर मैन्युफैक्चरर अपनी वेबसाइट पर दूरी कैलकुलेटर मुहैया कराते हैं, ताकि आसानी से इनके लिए प्लेसमेंट स्पॉट्स तय कर सकें।
डीएलपी या एलसीडी या एलईडी प्रोजेक्टर
ये तीन अलग-अलग टेक्नॉलजीज हैं। डीएलपी (डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग) में छोटी सी माइक्रोस्कोपिक मिरर की बनी चिप का इस्तेमाल होता है। साथ ही, इसमें एक स्पिनिंग कलर वील भी होता है। डीएलपी शार्प इमेजेज देता है, इसका रेस्पॉन्स टाइम भी बेहतर होता है और साथ ही इसमें 3D आउटपुट की भी क्षमता होती है। यह ऐक्टिव और पैसिव, दोनों तरह के प्रोजेक्शन को सपोर्ट करता है। कुछ लोगों को डीएलपी में कलर बेंडिंग लगती है। एलसीडी प्रोजेक्टर्स में लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले का इस्तेमाल होता है। इनमें कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते हैं और इस वजह से ये आमतौर पर कम महंगे होते हैं। एलसीडी में बेहतर सेचुरेशन, कम नॉइज मिलता है और ये बड़े वेन्यूज में ज्यादा बेहतर काम करते हैं। हालांकि, इनके फिल्टर की मेनटिनेंस की जरूरत होती है और इनमें कम कंट्रास्ट होता है। एलईडी प्रोजेक्टर्स आमतौर पर बेहद छोटी एलईडी का इस्तेमाल करते हैं और इनका जीवनकाल 20,000 घंटे से ज्यादा होता है। ये बेहतर कलर्स डिलिवर करते हैं, साथ ही इनमें कम पावर कंजम्पशन होता है और एक तरह से इनकी मेनटिनेंस कॉस्ट जीरो होती है। एलईडी प्रोजेक्टर्स एलसीडी या डीएलपी के मुकाबले छोटे होते हैं। एलईडी प्रोजेक्टर्स में कम हीट निकलती है, लेकिन एक चीज याद रखिए कि एलसीडी या डीएलपी प्रोजेक्टर्स के मुकाबले एलईडी प्रोजेक्टर्स में ब्राइटनेस सीमित होती है।
पॉकेट प्रोजेक्टर्स
पॉकेट या पिको प्रोजेक्टर्स में एलईडी को लाइट सोर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से ये काफी कॉम्पैक्ट हो जाते हैं। इन्हें ट्राउजर की पॉकेट तक में रखा जा सकता है। ज्यादातर पिको प्रोजेक्टर्स पाम साइज के होते हैं। इन्हें मोबाइल फोन्स (सैमसंग गैलक्सी बीम) या हैंडहेल्ड डिजिटल कैमरा (निकॉन एस 1000पीजे) के साथ भी इंटिग्रेट किया जा सकता है। हालांकि, ये प्रोजेक्टर्स ज्यादा रेजॉलूशन या ब्राइटनेस नहीं ऑफर करते। ऐसे में ये छोटे और डार्क रूम के लिए ज्यादा मुफीद माने जाते हैं। आप 60 इंच तक की स्क्रीन साइज चुन सकते हैं और आप अपने स्मार्टफोन, गेमिंग कंसोल्स और लैपटॉप्स को इनसे जोड़ सकते हैं। कुछ डिजाइन्स में बिल्ट-इन एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम, इंटरनल मेमरी और रीचार्जेबल बैटरी भी होती है। इतना सब कुछ होने के बावजूद इन डिवाइस का वजन 500 ग्राम से भी कम होता है।
दीवार या स्क्रीन
आप स्क्रीन के बजाय दीवार का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन प्रोजेक्टर इस पर बेहतर परफॉर्म नहीं कर पाता है। स्क्रीन दीवार के मुकाबले ज्यादा बेहतर जरिया है। कुछ स्क्रीन्स ज्यादा लाइट रिफ्लेक्ट करती हैं। यह ज्यादा रोशनी वाले कमरों में अच्छा परफॉर्म करती हैं या इसका रिजल्ट तब अच्छा आता है जब आपके प्रोजेक्टर में कम ब्राइटनेस हो। स्क्रीन्स को बाकी ऑब्जेक्ट्स के सामने भी रखा जा सकता है। कुछ लोगों का कहना है कि स्क्रीन्स के चारों ओर ब्लैक बॉर्डर्स भी कंट्रास्ट बढ़ा देते हैं। इससे इमेज बेहतर हो जाती है। इसके अलावा स्क्रीन्स में वाइट और ग्रे का सही शेड होता है, जिससे कलर कास्ट की प्रॉब्लम दूर हो जाती है। अगर आप दीवार का इस्तेमाल करते हैं, तो यह एकदम स्मूद होनी चाहिए और एकदम सफेद पेंट होनी चाहिए। आप प्रोजेक्टर्स के लिए इसे स्पेशल एक्रेलिक रिफ्लेक्टिव पेंट करा सकते हैं।
कमरे के साइज/दूरी का चुनाव कैसे करें?
आप अगर प्रोजेक्टर खरीदने वाले हैं या आपके पास पहले से प्रोजेक्टर हो, तो उसके मुताबिक आप एक निश्चित दूरी से मिलने वाली इमेज के साइज का आकलन कर सकते हैं। यहां दूरी से मतलब आपके प्रोजेक्टर और दीवार या स्क्रीन के बीच की दूरी से है। प्रोजेक्टर के थ्रो रेशियो में दूरी से भाग देकर आप इमेज साइज निकाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर प्रोजेक्टर स्क्रीन से 10 फुट की दूरी पर रखा गया है और इसका थ्रो रेशियो 1.8 से 2.22 है, तो आपको इमेज साइज 54 इंच से लेकर 66 इंच तक की मिलेगी। इमेज पिक्सलेशन से बचने के लिए यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपके और स्क्रीन के बीच की दूरी इमेज की चौड़ाई से कम से कम दोगुनी होनी चाहिए। बेंक्यू, एप्सन, पैनासोनिक और व्यूसोनिक जैसे कई प्रोजेक्टर मैन्युफैक्चरर अपनी वेबसाइट पर दूरी कैलकुलेटर मुहैया कराते हैं, ताकि आसानी से इनके लिए प्लेसमेंट स्पॉट्स तय कर सकें।
डीएलपी या एलसीडी या एलईडी प्रोजेक्टर
ये तीन अलग-अलग टेक्नॉलजीज हैं। डीएलपी (डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग) में छोटी सी माइक्रोस्कोपिक मिरर की बनी चिप का इस्तेमाल होता है। साथ ही, इसमें एक स्पिनिंग कलर वील भी होता है। डीएलपी शार्प इमेजेज देता है, इसका रेस्पॉन्स टाइम भी बेहतर होता है और साथ ही इसमें 3D आउटपुट की भी क्षमता होती है। यह ऐक्टिव और पैसिव, दोनों तरह के प्रोजेक्शन को सपोर्ट करता है। कुछ लोगों को डीएलपी में कलर बेंडिंग लगती है। एलसीडी प्रोजेक्टर्स में लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले का इस्तेमाल होता है। इनमें कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते हैं और इस वजह से ये आमतौर पर कम महंगे होते हैं। एलसीडी में बेहतर सेचुरेशन, कम नॉइज मिलता है और ये बड़े वेन्यूज में ज्यादा बेहतर काम करते हैं। हालांकि, इनके फिल्टर की मेनटिनेंस की जरूरत होती है और इनमें कम कंट्रास्ट होता है। एलईडी प्रोजेक्टर्स आमतौर पर बेहद छोटी एलईडी का इस्तेमाल करते हैं और इनका जीवनकाल 20,000 घंटे से ज्यादा होता है। ये बेहतर कलर्स डिलिवर करते हैं, साथ ही इनमें कम पावर कंजम्पशन होता है और एक तरह से इनकी मेनटिनेंस कॉस्ट जीरो होती है। एलईडी प्रोजेक्टर्स एलसीडी या डीएलपी के मुकाबले छोटे होते हैं। एलईडी प्रोजेक्टर्स में कम हीट निकलती है, लेकिन एक चीज याद रखिए कि एलसीडी या डीएलपी प्रोजेक्टर्स के मुकाबले एलईडी प्रोजेक्टर्स में ब्राइटनेस सीमित होती है।
पॉकेट प्रोजेक्टर्स
पॉकेट या पिको प्रोजेक्टर्स में एलईडी को लाइट सोर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से ये काफी कॉम्पैक्ट हो जाते हैं। इन्हें ट्राउजर की पॉकेट तक में रखा जा सकता है। ज्यादातर पिको प्रोजेक्टर्स पाम साइज के होते हैं। इन्हें मोबाइल फोन्स (सैमसंग गैलक्सी बीम) या हैंडहेल्ड डिजिटल कैमरा (निकॉन एस 1000पीजे) के साथ भी इंटिग्रेट किया जा सकता है। हालांकि, ये प्रोजेक्टर्स ज्यादा रेजॉलूशन या ब्राइटनेस नहीं ऑफर करते। ऐसे में ये छोटे और डार्क रूम के लिए ज्यादा मुफीद माने जाते हैं। आप 60 इंच तक की स्क्रीन साइज चुन सकते हैं और आप अपने स्मार्टफोन, गेमिंग कंसोल्स और लैपटॉप्स को इनसे जोड़ सकते हैं। कुछ डिजाइन्स में बिल्ट-इन एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम, इंटरनल मेमरी और रीचार्जेबल बैटरी भी होती है। इतना सब कुछ होने के बावजूद इन डिवाइस का वजन 500 ग्राम से भी कम होता है।
दीवार या स्क्रीन
आप स्क्रीन के बजाय दीवार का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन प्रोजेक्टर इस पर बेहतर परफॉर्म नहीं कर पाता है। स्क्रीन दीवार के मुकाबले ज्यादा बेहतर जरिया है। कुछ स्क्रीन्स ज्यादा लाइट रिफ्लेक्ट करती हैं। यह ज्यादा रोशनी वाले कमरों में अच्छा परफॉर्म करती हैं या इसका रिजल्ट तब अच्छा आता है जब आपके प्रोजेक्टर में कम ब्राइटनेस हो। स्क्रीन्स को बाकी ऑब्जेक्ट्स के सामने भी रखा जा सकता है। कुछ लोगों का कहना है कि स्क्रीन्स के चारों ओर ब्लैक बॉर्डर्स भी कंट्रास्ट बढ़ा देते हैं। इससे इमेज बेहतर हो जाती है। इसके अलावा स्क्रीन्स में वाइट और ग्रे का सही शेड होता है, जिससे कलर कास्ट की प्रॉब्लम दूर हो जाती है। अगर आप दीवार का इस्तेमाल करते हैं, तो यह एकदम स्मूद होनी चाहिए और एकदम सफेद पेंट होनी चाहिए। आप प्रोजेक्टर्स के लिए इसे स्पेशल एक्रेलिक रिफ्लेक्टिव पेंट करा सकते हैं।
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