Sunday, May 18, 2014

7 जन्म नहीं अब सिर्फ 2 साल निभती हैं शादियां

आज के जमाने में न सिर्फ दुनिया सिकुड़ रही है, बल्कि दिन, घंटे यहां तक कि जिंदगियां भी सिकुड़ने लगी हैं। ऐसे में 7 जन्मों तक साथ निभाने का शादी का वादा भी सिकुड़कर सिर्फ दो साल का रह गया है। मौजूदा हालात में अधिकतर शादीशुदा कपल्स सिर्फ 2 साल तक ही शादी का बंधन निभा पा रहे हैं।
बिजनसमैन सुनिल पुरोहित और 6 सालों तक उनकी गर्लफ्रेंड रहीं निधि सुंदर (नाम बदल दिये गए हैं) ने सबकुछ किया। उन्होंने लंबे वक्त की कोर्टशिप चलाई, दोनों के परिवारों को मनाया तब जाकर शादी की। लेकिन साल भर के अंदर ही दोनों एक-दूसरे के 'कट्टर' विरोधी बन गए और तलाक की अर्जी दायर कर दी।
हालांकि, शादियां कितने वक्त टिक रही हैं इस बारे में कोई डेटा मौजूद नहीं है, लेकिन अधिकतर कौंसेलिंग क्लिनिक्स का यही कहना है कि शादियों की उम्र अब घटती जा रही है। कई सिलेब्रिटीज के तलाक के केस हैंडल कर चुकी मुंबई में रहने वाली ऐडवोकेट मृणालिनी देशमुख का भी यही मानना है। उन्होंने कहा, 'मेरे पास आने वाले 10% केसों में कपल शादी के एक या दो साल बाद ही अलग हो रहा हो रहा होता है। यहां तक कि मेरे पास ऐसे क्लायंट्स भी लीगल अड्वाइस लेने आते हैं जिनकी शादियों को एक महीना भी पूरा नहीं हुआ होता।'
मृणालिनी का मानना है कि अधिकतर कपल शादी के साथ आने वाली जिम्मेदारियां नहीं समझ पाते और मैच्योरिटी से हैंडल नहीं कर पाते। कई केसों में उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं मिलता।
देशमुख का कहना है, एक या दो साल तक एक दूसरे को डेट कर चुके कपल शादी के बाद अचानक कम्पैटिबल न होने की बात करते हैं। यह ताज़ा ट्रेंड है। वह कहती हैं, 'बतौर वकील यह बात मुझे हैरान कर देती है। शादी से पहले वे मेड फॉर ईच अदर होते हैं और शादी के बाद उनकी सारी कम्पैटिबिलिटी खत्म हो जाती है।'सायकायट्रिस्ट विजय नागस्वामी का मानना है कि शादी की संस्था को यह झटका मिलना जरूरी था। वह कहते हैं, 'पुरानी पीढ़ी के लिए शादी एक संस्कार था, लेकिन भारत की शहरी युवा पीढ़ी के लिए शादी दो वयस्कों के बीच का रिश्ता है।' वह मानते हैं कि आने वाले सालों में शादी को आने वाली पीढ़ियों की सहूलियत के हिसाब से रीडिफाइन किया जाएगा।गीता बालशेखर ने अपने देवर की शादी टूटते हुए देखी है। उनका मानना है कि अधिकतर युवा शादी करने से इसलिए भागते है्ं, क्योंकि वे पहले ही मान के बैठ जाते है कि 'शादियां चलती ही नहीं। ऐसे में वक्त क्यों बर्बाद किया जाए।' मॉडर्न शहरी डिक्शनरी में कॉम्प्रोमाइज़ एक गंदा शब्द है। बालशेखर कहती हैं, 'वे सुलह के कॉन्सेप्ट में विश्वास नहीं रखते। वे स्वीकार ही नहीं करना चाहते कि शादियां न चलने का बड़ा कारण वे खुद हैं। उनकी अस्थिरता की वजह से शादी ही नहीं अन्य रिश्ते भी खराब होते हैं।'

मुंबई के एक ऐडवर्टाइजिंग प्रफेशनल मनोज भवनानी की शादी को पांच साल हो चुके हैं। वह कहते हें, 'शादियां तब अच्छी हुआ करती थीं जब नेता ईमानदार हुआ करते थे। दोनों बीते वक्त की बातें हैं। चीजों में आने वाले बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। आज के वक्त में शादियां बच्चे पैदा करने का सोशल कॉन्ट्रैक्ट हैं। शादी का रिवाज़ खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है। अब तो सरकार भी लिव-इन रिलेशनशिप्स को लीगल मानती है।'
चेन्नई   की वकील और ऐक्टिविस्ट सुधा रामलिंगम कहती हैं कि आजकल शादियों से भाग रहे बच्चों को माता-पिता का सहयोग मिल रहा है। वह कहती हैं, 'पहले मां-बाप बच्चों को कहते थे कि ज़रा-ज़रा सी बात पर रोकर घर मत आना। अब वे कहते हैं कि अड्जस्ट न कर पाओ तो वापस आ जाना हम देख लेंगे। हमारी सोसायटी अक्सेप्ट करना सीख रही है।' वह मानती हैं कि ऐसा सिर्फ बड़े शहरों में नहीं है। सुधा बताती हैं, 'मैंने सालेम, पॉन्डिचेरी और मदुरै में एक-दो सालों में ही रिश्ते टूटते देखे हैं।'
मुंबई की सायकायट्रिस्ट और सायकोथेरपिस्ट वरखा चुलानी कहती हैं, 'लोगों में घमंड बढ़ गया है। लोगों में मैं की भावना बढ़ गई है।' महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। दिल्ली की 30 वर्षीय फिल्ममेकर मृगांका पांडे कहती हैं कि शादी के बाद उनके पति का व्यवहार उनके साथ बदल गया। वह उनसे उम्मीद करते थे कि वह एक पारंपरिक बहू के तौर पर रहें। पांडे कहती हैं, 'हम पागलों की सोसायटी में रहते हैं और शादी हमारे रिश्तों के डबल स्टैंडर्ड्स पर से परदा उठाकर रख देती है।'

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