Saturday, May 31, 2014

केसर से महकी घोली घाटी

केसर का जायका थोड़ा कड़वा होता है, लेकिन इसी केसर ने कश्मीर की वादियों में आज नई खुशबू और मिठास घोल दी है। एक जमाने में केसर को करीब-करीब अलविदा कह चुके किसान अब केसर की ज्यादा से ज्यादा खेती करना चाहते हैं। केसर के जरिए किसानों की जिंदगी में नए रंग घोलने में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) और यहां की शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने अहम रोल अदा किया है।
कभी थी मायूसी
केसर को जाफरान के नाम से भी जाना जाता है। कश्मीरी में इसे कुंग कहा जाता है। एक जमाना था जब कश्मीर को इसके लिए खासतौर पर पहचाना जाता था। लेकिन, राज्य के बदलते हालात के साथ ही खेती के पुराने तौर-तरीकों ने केसर की पैदावार पर खासा असर डाल दिया था। किसान केसर की जगह दूसरी फसलों की खेती करने लगे थे और इसके खत्म होने का खतरा पैदा हो गया था। 1996-97 तक कश्मीर में करीब 5707 हेक्टेयर जमीन में केसर की खेती की जाती थी। लेकिन, 2008-09 में इसका रकबा सिमटकर 3280 हेक्टेयर और उत्पादन 16 मीट्रिक टन से घटकर 7.70 मीट्रिक टन पर पहुंच गया था। शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के प्रफेसर डॉ. एफ. ए. नेवी बताते थे कि हालात ऐसे हो गए थे कि राज्य से केसर का नोमेनिशां कभी भी मिट सकता था।
तकनीक का कमाल
इन हालात में आईसीएआर ने फरवरी 2009 में अपने नैशनल एग्रीकल्चरल इनोवेशन प्रोजेक्ट (नैप) के जरिए केसर को नई जिंदगी देने का बीड़ा उठाया। उसने किसानों को परंपरागत तरीकों से हटकर केसर की खेती के नए तरीकों से रूबरू कराया। उन्हें नई तकनीक देने के साथ ही फसल को बर्बाद करने वाले कीड़ों और फंगस से निपटने के लिए दवाएं मुहैया कराईं। मिट्टी की हेल्थ सुधारने और सिंचाई करने के नए तरीके बताए। उन्हें बताया कि केसर के बीज (कॉर्म) को खेत में ज्यादा से ज्यादा कितने समय तक रखना चाहिए। उन्हें यह भी बताया कि केसर के फूल चुनने और उसमें से केसर निकालने के वैज्ञानिक तरीके क्या हैं। इसी के साथ उन्हें केसर को सुखाने के मॉडर्न तरीकों से वाकिफ कराया। नतीजतन आज किसान केसर को सुखाने के लिए सोलर पावर तक का इस्तेमाल कर रहे हैं। केसर की खेती को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने सैफरन मिशन भी शुरू किया है। इसके जरिए किसानों को केसर पैदा करने के लिए प्रति हेक्टेयर 5 लाख रुपये की मदद दी जा रही है।
बदल गई तस्वीर
एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के ही डॉ. गौहर बताते हैं कि इन कोशिशों का नतीजा यह है कि आज 3785 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की खेती की जा रही है और किसान इस रकबे को बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। नई तकनीक के इस्तेमाल से पहले जहां एक किलो फूलों से 25 ग्राम केसर निकला करती थी, वह अब बढ़कर 37 ग्राम हो गई है। इस समय राज्य में 15 मीट्रिक टन केसर का उत्पादन हो रहा है। नैप का कार्यकाल इस साल जून में खत्म होने जा रहा है। किसान चाहते हैं कि इस योजना को आगे बढ़ाया जाए। किसान सैफरन मिशन को भी अभी जारी रखने के पक्ष में हैं।

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