जब ग्यारहवीं की पढ़ाई शुरू की तो सिलेबस देखने के बाद झटका लगा। दसवीं के कम्परेजन में 11 वीं और 12 वीं का सिलेबस बहुत ज्यादा टफ है। तो शुरू में तो ऐसा लगा था कि चीजें बहुत मुश्किल होने वाली हैं लेकिन जब पढ़ना शुरू किया तो ये पता लगा कि आईआईटी और 12वीं का सिलबेस लगभग एक जैसा ही है। ऐसा नहीं था कि मैंने 11वीं में कम पढ़ा और 12 वीं में ज्यादा पढ़ना शुरू कर दिया।
स्कूल रेगुलर जाता था। और वहां जो भी असाइनमेंट्स दिए जाते थे वो सब टाइमली करता था। ऐसे में 12 वीं बोर्ड के लिए एक्सट्रा पढ़ाई की जरूरत नहीं हुई। और 97 परसेंट भी स्कोर कर पाया। मेरी तैयारी का दायरा एनसीईआरटी की बुक्स और कोचिंग के नोट्स तक सीमित नहीं था। मैंने फॉरन ऑथर्स जैसे ईएम पुरुल और क्लिपनर की भी बुक पढ़ी ताकि मेरे कॉन्सेप्ट स्ट्रांग हो पाएं।सफर के समय में भी करता था पढ़ाई
रोज कोचिंग नहीं जाता था। वीकएंड पर और वेकेशन पर कोटा जाकर एलेन में पढ़ता था। मेरे शहर उदयपुर से कोटा का तीन घंटे का सफर है। सफर के इन तीन घंटों में भी रिविजन करता था। मैं जानता था ये दो साल जिंदगी में फिर कभी लौटकर नहीं आने वाले। मैं खुद को रिलेक्स करने के लिए सिर्फ डेढ़ घंटा टीवी और स्पोर्ट्स को दे पाता था। फोकस की बात की जाए तों फिजक्स, कैमिस्ट्री मैथ्स तीनों को बराबर वेटेज दिया। हालांकि कैमिस्ट्री में थोड़ा कंफर्ट कम था। पढ़ने का मेरा कोई फिक्स शेड्यूल नहीं था। तीन घंटे के स्लॉट में पढ़ता था क्योंकि पेपर में तीन घंटे के स्टैमिना की जरूरत होती है। मेरे पिता भी आईआईटी दिल्ली से पासआउट हैं। उन्होंने मुझे गाइड किया है तो प्रेशर को हैंडल करना भी सिखाया। 11 वीं से ही मैंने तैयारी शुरू की थी। इन दो सालों में ना जाने कितनी बार उन्होंने मुझे कहा है कि अगर आईआईटी में सलेक्शन नहीं होता है तो कहीं और हो जाएगा। इसलिए मैं रिलेक्स था। मैं सिलेबस में बंधकर नहीं बल्कि ज्यादा नॉलेज के दम पर क्वालिफाई करना चाहता हूं।
तीन घंटे के स्लॉट में जब पढ़ता था तो मैथ्स और फिजिक्स से शुरू करता था क्योंकि ये इंटेनसिव होते हैं। और फिर कैमिस्ट्री का नंबर आता था। मुझे कोर्स को खत्म करने की जल्दी नहीं थी। कई बार 15-15 दिन लग जाते थे एक टॉपिक को क्लियर करने में। मैथ्स और कैमिस्ट्री में जहां में सॉल्विंग पर फोकस रहता था और कैमिस्ट्री में लर्निंग और ग्रेबिंग पर। मेरी मैमोरी फोटोग्राफिक है और मैं बहुत ऑर्गेनाइज्ड रहता हूं। मुझे पता है मेरे छोटे से छोटे नोट्स कहां और कैसे रखे हैं। ऐसे में ढूंढने में मेरा टाइम वेस्ट नहीं होता। अब आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करना चाहता हूं।
स्टूडेंट्स के लिए टॉपर के टिप्स
* कोर्स बहुत लैंदी हैं, ऐसे में ग्यारहवी की शुरुआत से लेकर एग्जाम तक अपना एनर्जी लेवल और कंटीन्यूटी बनाए रखें।
* कोचिंग के दौरान टेस्ट सीरीज में कभी अच्छे मार्क्स आते हैं तो कभी खराब। ऐसे में खुद की पॉजिटिविटी बनाए रखना जरूरी है। टेस्ट सीरीज में जब मेरे मार्क्स जब भी खराब आते तो मैं अपनी कमियों का एनालिसिस करता था।
* मैं तीन घंटे के स्लॉट में पढ़ता था, पेपर तीन घंटे का होता है। स्टैमिना मेंटेन करना जरूरी है।
*बाकी स्टूडेंट्स की तरह तैयारी के दौरान मैंने भी सिली मिस्टेक्स कीं, लेकिन अपनी गलतियों को गलती से भी नहीं दोहराया।
* पढ़ने के लिए तीन घंटे का स्लॉट फिक्स था लेकिन खुद को टाइट शेड्यूल में नहीं बांधा।
*मैथ्स में ज्यादा से ज्यादा क्वैश्चन सॉल्व किए ताकी स्पीड और एक्यूरेसी बनी रहे। वहीं कैमिस्ट्री में मैं कॉन्सेप्ट को समझता था।
स्कूल रेगुलर जाता था। और वहां जो भी असाइनमेंट्स दिए जाते थे वो सब टाइमली करता था। ऐसे में 12 वीं बोर्ड के लिए एक्सट्रा पढ़ाई की जरूरत नहीं हुई। और 97 परसेंट भी स्कोर कर पाया। मेरी तैयारी का दायरा एनसीईआरटी की बुक्स और कोचिंग के नोट्स तक सीमित नहीं था। मैंने फॉरन ऑथर्स जैसे ईएम पुरुल और क्लिपनर की भी बुक पढ़ी ताकि मेरे कॉन्सेप्ट स्ट्रांग हो पाएं।सफर के समय में भी करता था पढ़ाई
रोज कोचिंग नहीं जाता था। वीकएंड पर और वेकेशन पर कोटा जाकर एलेन में पढ़ता था। मेरे शहर उदयपुर से कोटा का तीन घंटे का सफर है। सफर के इन तीन घंटों में भी रिविजन करता था। मैं जानता था ये दो साल जिंदगी में फिर कभी लौटकर नहीं आने वाले। मैं खुद को रिलेक्स करने के लिए सिर्फ डेढ़ घंटा टीवी और स्पोर्ट्स को दे पाता था। फोकस की बात की जाए तों फिजक्स, कैमिस्ट्री मैथ्स तीनों को बराबर वेटेज दिया। हालांकि कैमिस्ट्री में थोड़ा कंफर्ट कम था। पढ़ने का मेरा कोई फिक्स शेड्यूल नहीं था। तीन घंटे के स्लॉट में पढ़ता था क्योंकि पेपर में तीन घंटे के स्टैमिना की जरूरत होती है। मेरे पिता भी आईआईटी दिल्ली से पासआउट हैं। उन्होंने मुझे गाइड किया है तो प्रेशर को हैंडल करना भी सिखाया। 11 वीं से ही मैंने तैयारी शुरू की थी। इन दो सालों में ना जाने कितनी बार उन्होंने मुझे कहा है कि अगर आईआईटी में सलेक्शन नहीं होता है तो कहीं और हो जाएगा। इसलिए मैं रिलेक्स था। मैं सिलेबस में बंधकर नहीं बल्कि ज्यादा नॉलेज के दम पर क्वालिफाई करना चाहता हूं।
तीन घंटे के स्लॉट में जब पढ़ता था तो मैथ्स और फिजिक्स से शुरू करता था क्योंकि ये इंटेनसिव होते हैं। और फिर कैमिस्ट्री का नंबर आता था। मुझे कोर्स को खत्म करने की जल्दी नहीं थी। कई बार 15-15 दिन लग जाते थे एक टॉपिक को क्लियर करने में। मैथ्स और कैमिस्ट्री में जहां में सॉल्विंग पर फोकस रहता था और कैमिस्ट्री में लर्निंग और ग्रेबिंग पर। मेरी मैमोरी फोटोग्राफिक है और मैं बहुत ऑर्गेनाइज्ड रहता हूं। मुझे पता है मेरे छोटे से छोटे नोट्स कहां और कैसे रखे हैं। ऐसे में ढूंढने में मेरा टाइम वेस्ट नहीं होता। अब आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करना चाहता हूं।
स्टूडेंट्स के लिए टॉपर के टिप्स
* कोर्स बहुत लैंदी हैं, ऐसे में ग्यारहवी की शुरुआत से लेकर एग्जाम तक अपना एनर्जी लेवल और कंटीन्यूटी बनाए रखें।
* कोचिंग के दौरान टेस्ट सीरीज में कभी अच्छे मार्क्स आते हैं तो कभी खराब। ऐसे में खुद की पॉजिटिविटी बनाए रखना जरूरी है। टेस्ट सीरीज में जब मेरे मार्क्स जब भी खराब आते तो मैं अपनी कमियों का एनालिसिस करता था।
* मैं तीन घंटे के स्लॉट में पढ़ता था, पेपर तीन घंटे का होता है। स्टैमिना मेंटेन करना जरूरी है।
*बाकी स्टूडेंट्स की तरह तैयारी के दौरान मैंने भी सिली मिस्टेक्स कीं, लेकिन अपनी गलतियों को गलती से भी नहीं दोहराया।
* पढ़ने के लिए तीन घंटे का स्लॉट फिक्स था लेकिन खुद को टाइट शेड्यूल में नहीं बांधा।
*मैथ्स में ज्यादा से ज्यादा क्वैश्चन सॉल्व किए ताकी स्पीड और एक्यूरेसी बनी रहे। वहीं कैमिस्ट्री में मैं कॉन्सेप्ट को समझता था।
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