Thursday, June 19, 2014

बनारसी साड़ी की बढ़ेगी शान

कोटा। दुनियाभर में मशहूर बनारस की साड़ियां और भदोही के आलीशान कारपेट से संकट के बादल छटने वाले हैं। देश के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव से पहले बनारस के उद्यमियों से किए वादे पूरा करने जा रहे हैं। नई सरकार ने देशभर की एमएसएमई इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए योजना का रोडमैप तैयार कर लिया है, जिसमें वाराणसी को भी प्राथमिकता दी गई है।
 कुटीर उद्योगों के लिए घोषणा जल्‍द

केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र ने वाराणसी में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि सरकार यहां के हस्‍तशिल्‍प और हथकरघा उद्योगों के लिए प्‍लान तैयार कर रही है। मंत्री ने कहा कि शहर और इसके आसपास के क्षेत्रों में चल रहे कुटीर उद्योगों के नई योजनाओं की घोषणा जल्‍द ही की जाएगी। मिश्रा ने कहा कि योजना के विकास से संबंधित अगली बैठक 26 जून को की जाएगी।
हथकरघा और कारपेट बुनकरों की चुनौतियां
बड़ी मशीनों और कल कारखानों के आने के बाद वाराणसी के विश्‍व प्रसिद्ध कुटीर उद्योग पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वाराणसी साड़ी उद्योग की राह में आने वाली पांच बड़ी मुश्‍किलेंः
 महंगा कच्‍चा माल  

वाराणसी साड़ी के लिए लगने वाले सिल्‍क और कच्‍चे माल के दामों में वृद्धि के चलते बुनकरों के लिए साड़ी बनाना मुश्किल पड़ रहा है। मानवकल्याण संघ (एचडब्‍लूए) के निदेशक डॉ रजनीकांत का कहना है सिल्‍क के दाम काफी ज्‍यादा हैं और इसके ऊपर से आयातित वस्‍तुओं पर सरकार की एं‍टी डंपिंग ड्यूटी ने बुनकरों का प्राफिट मार्जिन छीन लिया है।
विदेशी सिल्‍क पर भारी आयात कर

साड़ी बनाने के लिए 80 प्रतिशत सिल्‍क चीन से बाकि 20 प्रतिशत कर्नाटक से आयात किया जाता है। इससे पहले की यूपीए सरकार ने आयात कर 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया था। इसकी वजह से बुनकरों को मिलने वाली प्रॉफिट काफी कम हो गई।
पारदर्शिता की कमी
तमाम महंगाई के बावजूद बनारसी साडि़यों पर बुनकरों को लाभ मिलता, लेकिन भ्रष्‍ट सरकारी अधिकारियों की लूट खसोट के चलते कल्‍याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता। रजनीकांत के अनुसार, “ करीब 600 को-ऑपरेटिव सोसायटी हैं, जिनमें से केवल 50 को ही पारदर्शी और सही पाया गया, बाकि भ्रष्‍टाचार और घूसखोरी में लिप्‍त हैं।
 

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