Thursday, June 5, 2014

क्यों आता है आत्महत्या का विचार मन में

दरअसल आधुनिक समाज में धर्म एवं धार्मिक भावना कम हो रही है। ऐसे में आत्महत्या जैसी बुराई के निवारण के लिए आवश्यक है कि ईश्वर भक्ति, योगा, चिंतन, मनन जैसे क्रियाकलाप रोज किए जाएं। ऐसा करने से आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और आत्महत्या जैसे बुरे विचार आपके मस्तिष्क को छू भी नहीं पाएंगे।
वर्तमान दौर में किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को असफलता सहज स्वीकार्य नहीं होती। किंतु यह स्थिति, किशोरावस्था व युवावस्था में बेहद संवेदनशील होती है। जब किसी युवा को लगने लगता है कि वह अपने अभिभावकों के स्वप्न को साकार नहीं कर पाएगा तो वह नकारात्मक सोच में डूब जाता है और इस तरह की परिस्थिति उसे कहीं न कहीं उसे आत्महत्या के लिए विवश करती है।
ज्योतिष की नजर से...
अहमदाबाद के ज्योतिषी व्यापक लोढ़ा बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा और चंद्रमा को मनु का कारक माना गया है। अष्टम चंद्रमा नीच राशि में अथवा राहु को शनि के साथ विष योग और केतु के साथ ग्रहण योग उत्पन्न करता है। ऐसे समय में मनुष्य की सोचने समझने में शक्ति कम कर देता है। उसकी वजह से वो अपनी निर्णय शक्ति खो देता है। अगर 12वें भाव में ऐसी युति होने पर फांसी या आत्महत्या का योग बनता है। इसी तरह अनन्य भाव में अलग- अलग परिणाम उत्पन करता है।
बचने के ये उपाय भी हैं कारगर
शास्त्रों में इससे बचने के लिए शिव स्तुति, महामृत्युंजय मंत्र, शिवकवच, देवीकवच और शिवाभिषेक सबसे सहज सरल और प्रभावी उपाय हैं। किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए शुभ ग्रह की स्तुति और नीच ग्रह का दान श्रेष्ठ रहता है। जिन्हें आत्महत्या के विचार आते हों, ऐसे व्यक्तियों को मोती एवं स्फटिक धारण करना चाहिए, और नियमित भगवान शिव का जलाभिषेक करना लाभप्रद रहते हैं। इसके अलावा पांच अन्न(गेहूं, ज्वार, चावल, मूंग,जवा और बाजरा) दान करना चाहिए। इसके साथ ही पक्षियों को इन अन्न के दाने भी खिलाना चाहिए।
आत्महत्या का कारण वास्तु भी?
जिस घर में आत्महत्या होती है, उस घर में दो या दो से अधिक वास्तुदोष अवश्य होते हैं। इनमें से एक दोष घर के ईशान कोण (पूर्व- उत्तर) में होता है और दूसरा दक्षिण पश्चिम में होता है। घर में दक्षिण पश्चिम जगह कोण के वास्तुदोष जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुआं, बोरवेल, बेसमेंट या किसी भी प्रकार से इस कोने का फर्श नीचा हो। इस दोष के साथ यदि उस घर के पश्चिम र्नैत्य कोण में मुख्य द्वार हो तो घर के पुरूष सदस्य के साथ और यदि मुख्य द्वार दक्षिण र्नैत्य कोण में हो तो उस घर की स्त्री द्वारा आत्महत्या की संभावना बलवती हो जाती है।  दूसरा वास्तुदोष घर के ईशान कोण में होता है। जैसे - घर का यह कोना अंदर दब जाए, कट जाए, गोल हो जाए या किसी कारण पूर्व आग्नेय (ईस्ट आफ साऊथ ईस्ट) की ओर दीवार आगे बढ़ जाए तो घर के पुरूष सदस्य द्वारा और यदि उत्तर वायव्य (नार्थ आफ द नार्थ वेस्ट) की दीवार आगे बढ़ जाए तो घर की स्त्री सदस्य द्वारा आत्महत्या की जा सकती है।
इसी प्रकार घर के दक्षिण र्नैत्य में मार्ग प्रहार हो तो स्त्रियां और पश्चिम र्नैत्य में मार्ग प्रहार हो तो पुरूष उन्माद जैसे रोगों के शिकार होंगे और कहीं-कहीं वे आत्महत्या भी कर सकते हैं व पूर्व आग्नेय कोण ढंके तो पुरूष द्वारा और उत्तर वायव्य ढंके तो भी स्त्री द्वारा आत्महत्या करने की संभावना बन जाती है। उपरोक्त आत्महत्याओं जैसी दुःखद घटनाओं से बचने का एकमात्र उपाय है कि, घर के वास्तुदोषों को दूर किया जा सकता है।

कहता है विज्ञान
इंदौर के मनोचिकित्सक डॉ. अभय जैन बताते हैं कि आत्महत्या का मूल कारण दरअसल डिप्रेशन है। आत्महत्या के मानसिक, सामाजिक, साइकोलॉजिकल, बायोलॉजिकल एवं जेनेटिक कारण होते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं और वह आत्महत्या जैसा घृणित कदम उठाते हैं। इसके कई कारण होते हैं जैसे तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग आदि। जिन लोगों में आत्महत्या के बारे में सोचने की आदत (सुसाइडल फैंटेसी) होती है, वही आत्महत्या ज्यादा करते हैं। नकारात्मकता आत्महत्या की बहुत बड़ी वजह हैं क्योंकि इस समय आप सही सलाह नही ले पाते। वहीं आत्महत्या का विचार करने वाले लोग यदि धर्म और अध्यात्म का सहारा लें तो इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। युवावस्था संक्रमण काल है, युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर से कॅरियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमेंट, भविष्य की पढ़ाई आदि। जब वह इस अवस्था में आता है, तो बेरोजगारी का शिकार हो जाता है और भविष्य के प्रति अनिश्चितता बढ़ जाती है। अपरिपक्वता के कारण कई बार परेशानियां आती हैं। जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है।

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