Saturday, June 14, 2014

सोने ने दी लोहे को सीख

किसी नगर में एक सुनार की दुकान थी। वह आभूषणों का निर्माण करने के साथ-साथ उन्हें बेचने का काम भी करता था। उसका कारोबार बहुत अच्छा चलता था और उसकी दुकान में कई आदमी काम करते थे। दुकान पर अक्सर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती। यह देख एक दिन सुनार ने सोचा कि ग्राहकों को बैठने के लिए बड़ी जगह देना चाहिए।
यह सोचकर सुनार ने आभूषण निर्मित करने वाले एक कारीगर को दुकान के बाहर थोड़ी-सी जगह में बैठा दिया। अब वह दुकान के बाहर एक कोने में बैठते हुए वहीं सोने को गलाता और उसे हथौड़े से कूट-पीटकर सुंदर गहने बनाता।
एक दिन जब सुनार की दुकान पर बैठा कारीगर स्वर्ण आभूषण बनाने के लिए सोने को गला रहा था तो उसमें से सोने का एक कण उछलकर छिटकते हुए पास की दुकान में गरम लोहे के कण के साथ जा मिला। वहां पहुंचकर सोने के कण ने देखा कि लोहे के कण बहुत उदास हैं।
यह देख सोने के कण ने उनकी उदासी का कारण पूछा। इस पर एक लोहे का कण बोला - भाई, हमारी उदासी का कारण यह है कि हमें रोज आग में तपना और पिटना पड़ता है। यह सब बर्दाश्त नहीं होता। यह सुनकर सोने के कण ने कहा - 'यह सब तो हम स्वर्ण कणों साथ भी होता है।
पर हम तो उदास नहीं होते। लोहे के कण ने जबाब दिया - तुम्हारी बात अलग है। तुम्हें तो कोई और पीटता है। हमें तो हमारे ही अपने सगे जोर-जोर से पीटते रहते हैं। तुम नहीं समझ सकते कि अपनों से पिटने का दर्द क्या होता है!
इस पर सोने का कण बोला - 'तुम इस पिटाई को अन्यथा क्यों लेते हो? अगर हमें पीटा जाता है तो सिर्फ हमारा रूप संवारने और सुंदर आकार देने के लिए, ताकि हम लोगों के काम आ सकें।
तुम्हें तो और भी खुश होना चाहिए, क्योंकि तुम्हारे अपने ही तुम्हारा भविष्य संवार रहे हैं। भविष्य संवारने और दूसरों के काम आने के लिए अगर हमें थोड़ी-बहुत तकलीफ भी उठाना पड़े तो खुशी-खुशी उठाना चाहिए।" यह सुनकर लोहे के कणों की उदासी दूर हो गई।

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