Tuesday, June 3, 2014

शर्मनाक हरकत प्रिंट मीडिया हाउस की

जैसे की आप को पता है कि दैनिक भास्कर ने अपने सारे कर्मचारियों से जबरन बांड साइन करवाया है। उस विषय में, मैं सब को बताना चाहूंगा की उस फॉर्म में जैसे की आप को पता है कि दैनिक भास्कर ने अपने सारे कर्मचारियों से जबरन बांड साइन करवाया है। उस विषय में, मैं सब को बताना चाहूंगा की उस फॉर्म में लिखा गया है  "i intend to exercise my option given under clause 20(j) of the aforesaid recommendation". तो ये २०(जे) है क्या ?
२०(जे ): The revised pay scales shall become applicable to all employees with effect from 1st July 2010. However, if an employee within three weeks from the date of publication of Government Notification under Section 12 of the Act enforcing these recommendations exercises his option for retaining his existing pay scale and "existing emoluments", he shall be entitled to retain his existing scale and such emoluments.
जैसे की आप देख सकते है की ३ हफ्ते के अंदर कर्मचारी को बताना पड़ता है की उसे ये वेज बोर्ड नहीं चाहिए और ३ हफ्ते के अंदर उसे सबमिट करना पड़ता है लेबर मिनिस्ट्री में। हफ्ते तो क्या महीने बीत चुके है अब तक। पता नहीं इतनी बुद्धि वाले व्यक्ति ऐसा बांड साइन करवा के अपने आप को शर्मिंदा करने वाली हरकते क्यों कर रहे है। कभी कभी तो मुझे हसी भी आती है इन लोगो पे की इनके पास अब कुछ करने को नहीं बचा तो कुछ भी किये जा रहे है। फ़िलहाल ये तो आप को क्लॉज़ बताना चाहता था मैं। वैसे ये क्लॉज़ उन लोगो के लिए होता है जिनकी तनखाह वेज बोर्ड से पहले से ही ज्यादा है और वो वेज बोर्ड को लागू करना नहीं चाहता अपने आप के लिए तो इस ऑप्शन को चुन सकता है। तो बेशक ही ये बड़े अफसर लोगों के लिए है। कोई भी कोर्ट या इंसान इस बात को कैसे समझ सकता है कि कोई उसे लिख के दे की मुझे 50 हजार सैलरी में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मैं तो १० हज़ार लेकर ही खुश हु। बेकार में भास्कर वाले ज़ेरॉक्स के पैसे नुकसान कर रहे है।अब अगर बात करे जबरन बांड साइन करने की तो अगर 3 माह के अंदर भी कोई व्यक्ति बांड साइन कर के देता है और फिर वो बोलता है की उसे ये बांड जबरन साइन करवाया गया है तो उस बांड का कोई अस्तित्व कही भी नहीं रह जाता। ऊपर से आप लोग कंपनी के खिलाफ फ्रॉड का केस भी कर सकते हो जिसमे जिन जिन व्यक्तिओ ने ये अमानवीय, असाधारण, असंवैधानिक हरकत करवाई हो उसे आप जेल भी भिजवा सकते हो। जैसे की कोई भी निवेदन पुलिस कस्टडी में नहीं लिया जा सकता , उसे सिर्फ मजिस्ट्रेट के सामने ही लिया जा सकता है वैसे ही जबरन भराए गए बांड को कोई भी कोर्ट मान्य नहीं रखती। जहा तक मेरा अनुभव है ये तो फिर भी कागज का टुकड़ा था, अगर वो लोग आप से एफिडेविट भी करा ले और आप कोर्ट में जाकें बोले की ये जबरन कराइ गई है तो उसका भी अस्तित्व नहीं रहता।
मैं आप सभी लोगों को अवगत करना चाहता हूं की भारत में सबसे ज्यादा लेबर लॉ है और यहाँ पे कायदे में सबसे ज्यादा प्रोटेक्शन लेबर को दिया गया है।यहाँ पे कुछ चीजे में आप को बताता हु जो की "WORKING JOURNALISTS AND OTHER NEWSPAPER EMPLOYEES (CONDITION OF SERVICE) AND MISCELLANEOUS PROVISIONS ACT, 1955 " में लिखा हुआ है।
१) आप को कोई भी दिन के ६ (सोम से शनि ) घंटे से ज्यादा काम करने को नहीं बोल सकता। ४ हफ्ते में कर्मचारी 144 घंटे काम करने के लिए बाध्य है, उसके उपरांत उसे ओवरटाइम देना पड़ता है। अगर लंच और टी ब्रेक को भी जोड़ दे तो ज्यादा से ज्यादा 1 दिन ७ घंटे का ऑफिस टाइम बनता है। वो भी हफ्ते में 1 छुट्टी के साथ।
२) आप को साल में एक बार बोनस मिलना चाहिए और वो भी 1 माह की सैलरी जितना।
इसी तरह बहुत सारे कानून बने है अख़बार के कर्मचारियों के लिए। और उसका उल्लंघन होने पर आप लेबर कोर्ट में कभी भी याचिका डाल सकते है।
अब अगर भास्कर ग्रुप की बात करें तो अभी पीएफ और बोनस सीटीसी में गिनते है जब की वेज बोर्ड लागू करने के बाद पीएफ और बोनस अलग से बेसिक सैलरी के हिसाब से मिलेंगे जो की हमारा हक़ है। अब तक यहाँ सीटीसी के नाम पे लोगों का शोषण हो रहा है। और एक बात की ये वेज बोर्ड 1 टाइम एक्टिविटी नहीं है दोस्तों, इसमें भविष्य के भी सारे प्रावधान लिखे गए है , जैसे की हर ६ माह में डीए रिवाइज्ड होगा और हर साल मिनिमम एनुअल रेट ऑफ़ इन्क्रीमेंट ४ फीसदी है। मतलब की बेसिक में ४फीसदी ऐड होगा और उसपे वेरिएबल पेय मिनिमम ३५फीसदी ऐड होगा उस दोनों का टोटल करके मैंन बेसिक बनेगा और उसपे सारे अलाउंस देने पड़ेंगे। सो अगर देखने जाये तो वो ४फीसदी बेसिक में बढे हुए अभी के २० % सीटीसी में बढे उससे भी अच्छे है।

 दैनिक भास्कर का  एक  पत्रकार

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