Tuesday, June 3, 2014

इंजीनियरिंग पार्क बने तो बढ़े निर्यात

दिनेश  माहेश्वरी 
कोटा।  शहर से स्टोन, केमिकल और वेल्डिंग रॉड के अलावा कई इंजीनियरिंग प्रोडक्ट भी निर्यात होते हैं। इन उद्योगों के पास निर्यात के ऑर्डर तो आते हैं, लेकिन जगह के अभाव में वह एक सीमा से अधिक ऑर्डर पूरे नहीं कर पाते हैं। वर्तमान में इंजीनियरिंग उद्योग से सालाना 30 करोड़ का एक्सपोर्ट होता है। उद्यमियों का कहना है कि जगह के अभाव में नई यूनिट लगाने और स्टोरेज में दिक्कत होती है। उनका कहना है कि इंजीनियरिंग पार्क बने तो निर्यात का आंकड़ा बढ़ सकता है।
 इंजीनियरिंग उद्योग से जुड़ी करीब 30 यूनिट में से 25 प्रतिशत यूनिट ऐसी हैं, जिनके बनाए उत्पाद कई देशों में निर्यात होते हैं। गियर बॉक्स बनाने वाली राजस्थान की इकलौती इंडस्ट्री भी कोटा में है। यहां बने गियर बॉक्स यूके, श्रीलंका, सऊदी अरब, सिंगापुर एवं मिस्र आदि देशों में निर्यात होते हैं। देश में ज्यादातर गियर बॉक्स स्टील प्लांट में सप्लाई होते हैं। गियर बॉक्स इंडस्ट्री के एमडी कुलदीप राज अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने 45 साल पहले यह उद्योग शुरू किया था। उस समय रीको से जो जगह मिली वह पर्याप्त थी, लेकिन इतने समय बाद इंडस्ट्री लगातार ग्रोथ कर रही है तो जगह छोटी पडऩे लगी। नई यूनिट लगाने और स्टोरेज के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।
रुड़की यूनिवर्सिटी (वर्तमान में आईआईटी) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त अग्रवाल का कहना है कि उनकी प्रतिस्पर्धा देश की सबसे बड़ी कंपनी एलिकॉन एवं रेडिकॉन से है। जिनकी फैक्ट्रियां पांच लाख वर्गमीटर क्षेत्र में हैं। उनके सामने सबसे बड़ी दिक्कत जमीन की है, यदि रीको 8000 वर्गमीटर जमीन और उपलब्ध करा दे तो निर्यात चार गुना तक बढ़ सकता है। वर्तमान में एक से डेढ़ करोड़ रुपए सालाना के गियर बॉक्स निर्यात कर रहे हैं।
अभी तक क्या हुए प्रयास
इंडस्ट्रियल डीलर्स एसोसिएशन के महामंत्री अनिल न्याती ने बताया कि शहर में 30 इंजीनियरिंग यूनिट्स के लिए उन्होंने रानपुर क्षेत्र में इंजीनयिरिंग पार्क बनाने के लिए रीको के मुख्यालय प्रस्ताव भेजा था। जिस पर कलेक्टर से लेकर उद्योग मंत्री तक अपनी सिफारिश कर चुके हैं। पूरा प्रोजेक्ट प्रोसेस में आने के बाद ऐन वक्त पर पिछले दिनों रीको की इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कमेटी ने खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि अब वह फिर से प्रयास करेंगे। जगह मिलती तो 40 यूनिट लगती और 400 करोड़ का इन्वेस्टमेंट होता। इनमें ज्यादातर यूनिट का एक्सपोर्ट का काम है। उनके पास विदेशों से ऑर्डर आते हैं, लेकिन जगह की कमी है।
इंजीनियरिंग पार्क का यह होगा फायदा
इंजीनियरिंग पार्क बनने से सारी इंजीनियरिंग यूनिट्स एक ही जगह पर हो जाएंगी। इसके अलावा बिजली बिल और टैक्स में भी छूट मिलेगी। साथ ही उद्योगों को ज्यादा जगह भी मिल जाएगी।
जगह हो तो निर्यात दुगना हो सकता है
मेरी इलेक्ट्रिक ऑटोमेशन पैनल बनाने की फैक्ट्री है। वर्तमान में बैंकाक, थाइलैंड, वियतनाम एवं बर्मा आदि कई देशों में एक्सपोर्ट का काम है। सालाना दस करोड़ के पावर इक्यूपमेंट निर्यात होते हैं।, सरकार 4000 वर्गमीटर जगह दे तो एक्सपोर्ट दुगना हो सकता है। वर्तमान में जगह के अभाव में ज्यादा ऑर्डर नहीं लेते हैं।
-महिपाल सिंघवी, उद्यमी
12 हजार मीटर जमीन नहीं मिली
मेरी फैक्ट्री में सीमेंट, केमिकल, फर्टिलाइजर एवं सिंथेटिक प्लांटों में काम आने वाले इंजीनियरिंग प्रोडक्ट बनते हैं। फैक्ट्री के विस्तार के लिए 12 हजार वर्गमीटर जमीन चाहिए। इसके अभाव में काम ज्यादा नहीं बढ़ा रहे हैं। अभी बेल्जियम एवं साउथ अफ्रीका आदि देशों में निर्यात किया है। सालाना 3-4 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। पिछले दिनों हिन्दुस्तान जिंक ने साउथ इंडिया की एक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया था। वह ऑर्डर पूरा नहीं कर पा रहा था, उसका भी उत्पाद यहां से बनाकर दिया है।
-आरके चौहान, उद्यमी

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