Tuesday, June 3, 2014

लेबर कोर्ट में कैसे करें मजीठिया को लेकर परिवाद

मजीठिया वेतन बोर्ड के लिए लड़ रहे साथियों के लिए यह लेबर कोर्ट के लिए परिवाद पत्र प्रस्तुत कर रहा हूं। इसमें 5 रूपए का कोर्ट फीस टिकट लगाकर लेबर कोर्ट में हां, परिवाद पत्र के साथ उक्त संस्था का कर्मचारी होने का प्रमाण भी प्रस्तुत करें जैसे- बैंक द्वारा भुगतान की छायाप्रति, सैलरी स्लिप, उपस्थिति पंजीयन, गेट पास आदि में कुछ भी। जिससे नियोक्ता यह ना कह सकें कि उक्त व्यक्ति हमारे संस्था में काम नहीं करता। यदि कर्मचारी के पास यह दस्तावेज नहीं भी है तो परेशान होने की जरूरत नहीं। क्योंकि कोर्ट नियोक्ता से पूछता है कि आप सिद्ध करों कि यह आपका कर्मचारी नहीं है। यदि मालिक या नियोक्ता भर्ती संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाता तो उस पर दंडात्मक कार्यवाही होती है क्योंकि उपस्थिति पंजीयन रखना, नियुक्ती पत्र, अवकाश कार्ड, वेतन कार्ड देना संस्थान की कानूनी जिम्मेदारी है।
मजीठिया वेतन बोर्ड में हाउस रेंट, मेडिकल भत्ता, यात्रा भत्ता, रात्रिकालीन भत्ता आदि सभी जुड़े है सभी की गणना कराएं। याद रखें लेबर कोर्ट पीएफ संबंधी मामलों की सुनवाई नहीं करता इसलिए इसका क्लेम पीएफ कार्यालय व उसके कोर्ट में भेजे। हां इसकी प्रति लेबर कोर्ट में दिखा सकते है।
बोनस प्रेस कर्मचारियों को कंपनी के लाभ के अनुसार देने का प्रावधान है लेकिन कंपनी का लाभ कुछ ही कर्मचारियों को पता होता है। इसलिए बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की धारा 10 के अनुसार कुल वेतन का न्यूनतम 8.33 प्रतिशत बोनस भुगतान करना चाहिए। जो एक माह के वेतन के बराबर होता है। धारा 31 के तहत साल भर के कुल वेतन का 20 प्रतिशत का बोनस दिया जाता है।बहस में अधिकतर वकील यह पूछते है कि आप मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति की मांग किस नियम या धारा के तहत कर रहे है। यह अवैधानिक है। वैसे कई केसों में मैंने अध्ययन किया और आवेदक केस जीत जाता है लेकिन आर्थिक व मानसिक क्षतिपूर्ति का कोई नियम नहीं है। सुखाधिकार अधिनियम 1882 की धारा 33 के तहत उक्त क्षतिपूर्ति का उल्लेख है लेकिन व जमीन विवाद से संबंधित है। मजदूरों व श्रमिकों के लिए कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 की धारा 10 के तहत मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।
परिवाद पत्र का प्रारूप:
माननीय श्रम न्यायालय.........................( )
प्रकरण संख्या:................................/2014
नाम ....................................................
पता...................................................... आवेदक/ कर्मचारी
बनाम
नाम .................................................
पता...................................................
नाम ................................................. अनावेदक/नियोजक
पता...................................................
नाम .................................................
पता...................................................
श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्त) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1955 (1955 का 45) की धारा 9 और 13ग के तहत गठित मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के तहत वेतन भुगतान व एरियर का भुगतान कराने व अनावेदक/नियोक्ता पर वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15(3) के तहत दंड रोपित करने बावत्
1. निवेदन है कि प्रार्थी एक श्रमजीवी पत्रकार है. जीवन यापन का एक मात्र जरिया पत्रकारिता का पेशा है। मैं ..............(इस संस्था)..........में ...............(इस पद)............पर दिनांक .....................से कार्यरत हूं।
2. मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाएं 11 नवंबर 2011 से स्वीकार कर ली गई है। तथा उक्त संबंध में दायर रिट याचिका (सिविल) 246 /2011 पर 7 फरवरी को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सभी प्रेस मालिकों को अप्रैल 2014 से मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के अनुसार वेतन देने के आदेश दिए थे। तथा एरियर का भुगतान 7 फरवरी 2015 तक चार किस्तों में करने के आदेश दिए थे लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उपरांत मुझे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार ना वेतन मिल रहा है और ना ही एरियर देने के लिए कोई पहल की जा रही है।
3. नियमानुसार मई तक एरियर की पहली किस्त मिल जानी चाहिए लेकिन अभी तक नहीं दी गई जिससे साफ होता है मुद्रक प्रकाशक और नियोक्ता को कानून का ना तो कोई भय है और ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई मान है।
4. मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार मेरा प्रति माह का वेतन ............. है। कटौती के अन्य भत्ते व एलांउस इस प्रकार है।
5. चूंकि जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 6 के तहत एक माह में 144 दिन व धारा 7 के तहत दिन की पारी में 6 घंटे और रात्रि की पारी में साढ़े 5 घंटे ही काम करने की अनुमति है। अर्थात् सप्ताह में 36 घंटे काम करने की अनुमति है लेकिन नियोक्ता द्वारा मुझसे 12 घंटे काम लिया गया।
6. उक्त अधिनियम के अनुसार यदि तय समय से ज्यादा काम लिया जाता है तो कर्मचारी व मालिक की सहमति पर अन्य दिन अवकाष देना चाहिए। लेकिन संस्थान ने नहीं दिया। इसलिए अतिरिक्त समय काम करने के एवज में वेतन का डेढ़ गुणा वेतन पाने का अधिकार है जो .....................इतना हुआ।
7. जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 7 के अनुसार 11 माह में एक माह की उपार्जित छुट्टी दी जाएगी। किन्तु 90 उपार्जित छुट्टियां एकत्र हो जाने के बाद और छुट्टियां उपार्जित नहीं मानी जायेंगी। सामान्य छुट्टियों, आकस्मिक छुट्टियों और टीका छुट्टी की अवधि को काम पर व्यतीत अवधि माना जाएगा। संस्थान द्वारा कभी उक्त नियम का पालन किया गया और ना ही छुट्टी दी गई।
जिसका वेतन .......................इतना हुआ।
8. वर्तमान में मुझे ..............वेतन मिल रहा है। अंतः 11 नवंबर 2011 से नवंबर 2012 तक मेरा कुल वेतन .......................................
.......................................
एक साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन
9. 11 नवंबर 2012 से नवंबर 2013 तक मेरा कुल वेतन
साल का बोनस- ......... अर्थात् कुल वेतन का 20 प्रतिशत अर्थात् साल भर का कुल वेतन (गुणा) साल भर का वेतन
वेतन भुगतान में देरी के कारण इसका प्रत्यक्ष लाभ संस्थान मालिक को गया और मेरे हक का वेतन अन्य कार्याें में उपयोग किया। इसलिए उक्त राषि की ब्याज राशि 12 प्रतिशित की दर से इतना हुआ।
यह राशि समय पर नहीं मिलने से मुझे जो मानसिक पीड़ा व आत्मग्लानि हुई उसकी मानसिक क्षतिपूर्ति राशि ................................है।
वेतन और बोनस की राशि समय पर नहीं मिलने के कारण मुझे जो आर्थिक क्षति हुई मेरी प्रगति रूकी, बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और निवेश में जो हानि हुई उसकी आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि ..............इतनी हुई।
पीएफ राशि -

कट लगाकर लेबर कोर्ट में दाखिल किया जा सकता है। साथ ही इसे रजिस्ट्री डाक द्वारा भी भेजें। ध्यान रहे जितने वादी रहेंगे उतने कोर्ट फीस के टिकट और रजिस्ट्री डाक का खर्च देना पड़ेगा। अर्थात् वादियों की संख्या के अनुसार परिवाद पत्र की प्रतियां रहेगी जैसे तीन वादी हैं तो तीन प्रति में यह परिवाद पत्र कोर्ट फीस सहित तैयार करना पड़ेगा। वैसे सच्चाई यह है कि लेबर कोर्ट में संभवतः आज तक जर्नलिस्ट एक्ट के तहत परिवाद ही नहीं लगा इसलिए कोर्ट फीस भी वकीलों व कोर्ट स्टाफ को नहीं पता।
(नोट- पीएफ राशि का क्लेम पीएफ कार्यालय भेजा जा चुका है।)
इस तरह कुल राशि ................................................
10. चूंकि वेतन देने में नियोक्ता द्वारा अनावश्य बिलंव किया गया और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया गया। जो संस्थान की गैर जिम्मेदाराना प्रवृति को दर्शाता है इसलिए वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15 की उपधारा 3 के तहत संस्थान पर कुल वेतन राशि का दस गुना जुर्माना लगाना उचित होगा। जिससे नियोक्ता दोबारा कानून की अवहेलना करने का साहस ना कर सकें।
दंड सहित कुल राशि ..........................कुल राषि (गुणित) 10
अतः माननीय न्यायालय से निवेदन है कि मुझे मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार वेतन और एरियर भुगतान कराने की कृपा करें।
सत्यापन
मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि मेरे द्वारा बिंदू 1 से 10 तक दी गई जानकारी मेरी जानकारी के अनुसार सत्य है।
प्रार्थी/ आवेदक
दिनांकः
महत्वपूर्ण जानकारी
जब किसी कर्मचारी को निकाल दिया जाता है तो उसे छंटनी मुआवजा पाने का हक है जो एक महीने वेतन गुणित 6 अर्थात् 6 माह का वेतन और जितने साल काम किया है। उतने का गुणा जैसे कोई तीन साल काम किया और उसका अंतिम वेतन 6000 है तो 6’ 6000’ 3 बराबर 108000 यह राशि छंटनी मुआवजा हुई और यदि ग्रेच्यूटी राशि 6000 (वेतन) ’ 15 (दिन)’ 3 (नौकरी अवधि) / 26 (एक माह में 26 दिन माने जाते है छुट्टियां काटकर) अर्थात् कुल 10384.61 रूपए तीन साल की ग्रेच्युटी मिली। वैसे सामान्य मजदूरों के लिए 5 साल बाद ग्रेच्युटी का अधिकार है लेकिन पत्रकारों के लिए तीन साल बाद ही अधिकार बनता है।
240 दिन व साल में एक माह अवकाश लिए बिना 11 माह तक नौकरी करने वाला कर्मचारी नियमित कर्मचारी माना जाता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25(एफ) के तहत इसके बाद किसी कर्मचारी को यह कहकर नहीं निकाला जा सकता है कि आपका काम संतोषजनक नहीं है यदि निकाला जाता है तो लेबर कोर्ट में चुनौती दी जाती है जहां कोर्ट पुनः नौकरी पर रखने का आदेश देने के साथ ही निकाले गए अवधि का वेतन देने का आदेश देता है।
नोट- चूंकि सभी जानकारियां व परिवाद पत्र बनाने में सवधानियां बरती गई है फिर भी कानून जानकारों से सलाह ले ले।

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